ये बहुत पुरानी बात है। तब धरती पर कोई भी न था। एक बड़ी सी परात में ईश्वर ढेर सारी मिट्टी लेकर बैठा था। उसके दिमाग में ये उधेड़ - बुन चल रही थी कि धरती पर भेजने के लिए कैसे प्राणी बनाए।
उसके पास कई डिज़ाइन थे। रंग भी थे और कुछ चमत्कारी शक्तियां भी। उसने सोचा, पहले अलग- अलग कार्य करने वाले कुछ अंग बना लिए जाएं। फ़िर उन्हें एक साथ मिलाकर एक पुतला तैयार किया जाए।
सूरज के तेज़ से निकली अग्नि, खुला आकाश, बहती हवा, बादलों में भरा पानी था ही। पांच तत्वों से निर्माण सुगम हो गया।
काम शुरू हुआ।
ईश्वर ने सबसे पहले आंख बना ली ताकि धरती पर होने वाली गतिविधियां प्राणी देख सके।
फ़िर धरती पर खाने योग्य चीज़ों को शरीर में भरने के लिए एक मुंह भी बना लिया गया।
एक छोटी सी नाक भी बना कर रख ली गई ताकि हज़ारों तरह की खुशबू - बदबू भी तो पहचानी जा सके।
काटने चबाने के लिए सुन्दर दांत बना छोड़े गए।
बादलों की गड़गड़ाहट और झरनों का संगीत सुनने को कान बनाए गए।
इन सब को जोड़ कर रखने के लिए डिब्बानुमा गोल सा चेहरा बनाया जिसमें सोच- विचार के लिए एक दिमाग़ भी डाल दिया।
चेहरा पुतले के ऊपर रखना ज़रूरी था ताकि इससे नीचे पूरे शरीर पर नज़र रखी जा सके।
चेहरे पर ही धूप - गर्मी - वर्षा सब पड़ना था इसलिए इस पर बाल भी बनाने ज़रूरी थे।
इतना करके बेचारा ईश्वर थक गया था, पर काम तो पूरा करना ही था। अतः जल्दी से शरीर के बाक़ी हिस्से, जैसे- हाथ, पैर, पीठ, पेट, गर्दन आदि भी बना डाले।
जब सबको जोड़ने की बारी आई तो छोटे- छोटे हिस्से दिमाग़ के पास ही रहने की ज़िद करने लगे क्योंकि नियंत्रण तो दिमाग़ के पास ही था।
ज़्यादातर अंग चेहरे पर आए पर कुछ बड़े- बड़े हिस्से दूर रह गए जैसे हाथ -पैर -पेट -पीठ आदि।
वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए कुछ अंग दो - दो भी रखे गए।
जब पुतला बन कर तैयार हुआ तो मनुष्य के पैर सबको चिढ़ाने लगे कि तुम सब कुछ भी करो,पर तुम्हें रहना तो वहीं पड़ेगा जहां हम लेकर जाएंगे।
इससे चेहरे के सारे हिस्से बेचारे मायूस हो गए। उन्होंने ईश्वर से शिक़ायत की, कि आपने सारी शक्ति तो पैरों को दे डाली और हमें इनका गुलाम बना दिया?
ईश्वर ने फ़ैसला दिया- इन अहंकारी पैरों को सबसे ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी और सबसे कम सम्मान मिलेगा।
ईश्वर ने कहा, इंसान की पहचान उसके चेहरे से ही होगी। पैर उसे स्कूल लेकर जाएंगे पर वहां पहचान पत्र पर तस्वीर चेहरे की ही लगेगी।
पैर उसे मंदिर लेकर जाएंगे पर वहां तिलक चेहरे पर ही लगेगा।
पेट भरने के लिए ये पैर दिन भर रिक्शा खींचेंगे पर राशन कार्ड पर चेहरे की छवि होगी।
यहां तक कि खेल में पैर थक कर चूर हो जाएंगे पर पदक गले में ही पहनाया जाएगा।
और इस तरह अहंकारी का मद चूर हुआ।