एक शहर था। उसे सब लोग सफल लोगों का शहर कहते थे। वैसे नाम तो उसका कुछ और था, किन्तु वह अपने नाम से ज़्यादा अपनी फितरत से पहचाना जाता था। उसे सफल लोगों का शहर कहने के पीछे कोई बहुत गूढ़ या रहस्यमय कारण नहीं था, बल्कि वह तो केवल इसीलिए सफल लोगों का शहर कहलाता था कि उसमें रहने वाले सभी लोग अपने-अपने कामों में सफल थे। वे जो कुछ कर रहे थे, वह हो रहा था।देखा जाय तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी। यदि कोई कुछ करे तो वह होना ही चाहिए।लेकिन अमूमन ऐसा होता नहीं है। क्योंकि लोगों की इच्छाएं और कार्य प्रायः एक दूसरे के विलोमानुपाती होते हैं। "यदि यह होगा तो वह नहीं हो सकेगा","यदि यह नहीं हो पा रहा तो उसका होना स्वाभाविक है",आमतौर पर ऐसा होता है। चीज़ें इसी तरह आकार लेती हैं, और इसीलिये सब नहीं हो पाता। यदि आप अमीर बन रहे हैं, तो कोई दूसरा गरीब हो रहा है। आप बीमार हैं तो डाक्टर पनप रहा है।कोई हार गया तो आप जीत गए। आप भूखे मर रहे हैं तो कोई और जमाखोरी का लुत्फ़ ले रहा है। तात्पर्य ये, कि सबका अच्छा नहीं हो पाता।लेकिन जिस शहर की बात हम कर रहे हैं, वहां वह सब हो रहा था, जो-जो वहां के लोग करना चाहते थे। इसी से वह सफल लोगों का शहर कहलाता था। दरअसल, वह अवसरवादी लोगों का शहर था। वहां के लोग वही करते थे जो हो जाये। मसलन यदि वहां कोई "दहाड़ने" की कोचिंग देता था तो उसमें केवल शेरों को ही प्रवेश दिया जाता था।वहां लोग बंदरों को छलांग लगाना सिखाते थे,बतखों को तैरना। यदि कोई आँसू बहाना सिखा रहा है तो वह उन्हीं लोगों को सिखाएगा, जो दुखी हों। इस तरह काम न होने का अंदेशा नहीं होता था।यदि लोग ठान लेते कि वहां कोई सरकार न हो, तो वह अपने आप को वोट दे देते थे।