बरसात का मौसम शुरू होने में कुछ ही दिन बाक़ी थे। खेतों में जोश - खरोश से हल चल रहे थे। संसार गंज गांव के बूढ़े किसान रतन ने सुबह तड़के ही बुवाई कर देने का मन बनाया और एक पोटली में गेहूं के बीज रात को ही संभाल कर अपने सिरहाने की दीवार के आले में रख छोड़े ताकि सुबह - सुबह उन्हें लेकर निकल सके।
रात को सबके सोने के बाद छोटी बहू चुपचाप उठी। उसने सोचा, पिताजी हर बार गेंहू उगा लाते हैं, मक्के की रोटी तो कभी खाने को ही नहीं मिलती, क्यों न पोटली में थोड़े मक्के के बीज मिला डालूं! ऐसा करके वह चुपचाप जा सोई।
कुछ देर बाद बड़े बेटे की आंख खुली। उसने सोचा, मेरी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं रहती, डॉक्टर कहता है कि इसे जौ की रोटी खिलाओ, यहां तो किसी को उसकी चिन्ता है नहीं, मुझे ही कुछ करना पड़ेगा। उसने मुठ्ठी भर जौ पोटली में मिला दिए।
देर रात किसान की घरवाली की आंख खुली। उसने सोचा, बिटिया साल में एक बार तो घर आती है, यहां भी उसे अपनी पसन्द का बाजरा कभी खाने को नहीं मिलता। सोचते - सोचते उसने बीज की पोटली में थोड़ा बाजरा बुरक दिया।
मौसम में जब फ़सल आई तो रतन का माथा ठनका। वह सब समझ गया। उसने मन ही मन ठान लिया कि अगले बरस जब वो बुवाई को आयेगा तो बीज की पोटली किसी को छूने भी नहीं देगा, उसे कलेजे से लगा कर सोएगा।