एक जंगल में बकरियां चराते हुए एक लड़की और एक लड़का आपस में मिल गए। पहले दिन उनमें जो सन्देह, झड़प और असहयोग पनपे, उनकी तीव्रता धीरे धीरे जाती रही। दोनों ही किशोर वय के थे और पास के अलग अलग गांवों से आते थे। उनके पशु चरते रहते और वो कीकर के पेड़ की छितरी छांव में बैठे इधर उधर की हांकते रहते।
एक दिन साथ चलते चलते लड़की बोली, मुझे बहुत ज़ोर की प्यास लगी है। संयोग से आज वो जिस ओर निकल आए थे, दूर दूर तक कहीं पानी नहीं दिखाई दे रहा था। लड़की बार बार अपनी बात दोहराती - मुझे प्यास लगी है। लड़का खीजता।
अकस्मात एक टीले पर उन्हें गहरा कुआं दिखाई दिया जो ऊपर से तो टूटा फूटा था, पर उसकी तली में थोड़ा सा पानी था। लड़का एक दो पथरीले छेदों में पैर का अंगूठा टिकाता हुआ उसमें कूद गया। वह चुल्लू में भरकर आख़िर कितना पानी इस अनिश्चित और दुर्गम ऊंचाई पर लाता, उसने इधर उधर देखा, और उसे भीतर ही किनारे पर एक फूटे मटके के कुछ टुकड़े पड़े दिख गए। लड़के को वापस बाहर आने में काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी पर लड़की का काम हो गया।
लड़की ने पूछा - तुझे इतनी गहराई में उतरते हुए डर नहीं लगा? लड़का कुछ न बोला।
कुछ देर बाद लड़का बोला - मुझे प्यास लगी है।
लड़की ने कहा - अरे, तू पानी पीकर नहीं आया? लड़का कुछ न बोला, बस, लड़की की ओर देखता रहा।
लड़की एकाएक बोली - मुझे डर लग रहा है, और वापस लौटने के लिए अपनी बकरियों को पुकारने लगी।