एक पार्क में कुछ लोगों का जमावड़ा देख कर वहां से गुज़र रहे एक विद्वान पंडित ने अपने साथ चल रहे स्थानीय मित्र से पूछा - यहां क्या हो रहा है?
मित्र ने कहा- पार्क है, लोग खाना खा रहे हैं।
पंडित जी उत्सुकता वश भीतर चले गए और टहल कर नज़ारा देखने लगे।
एक ओर मेज पर शाही भोज चल रहा था। आठ - दस प्लेटों में सलाद, मेवा, चिकन, पकौड़े, तली मछली आदि रखी थी। वेटर ने आकर कहा, आप लोग ड्रिंक्स खत्म कर लें तो खाना लगाएं?
कुछ दूरी पर ज़मीन पर बिछी दरी पर एक कतार में लोग बैठे थे जिन्हें पत्तल में चावल के साथ मछली परोसी जा रही थी। एक महिला बातों में लगी औरतों से कह रही थी पहले खाना खा लो, फ़िर बातें करना।
पार्क के एक कौने में अपने उनींदे बालक को एक मुट्ठी चना देकर सफ़ाई करने वाली औरत ने कहा- पहले खाना खा, फ़िर सोना।
पंडित जी को समझ में नहीं आया कि यहां खाना कौन खा रहा है, उन्हें न कहीं खीर दिख रही थी न पूड़ी। वो अनमने से बाहर चल दिए।
- प्रबोध कुमार गोविल