मैं साठ साल पार का हूं तो ये कौन सी तीस की है। इसकी उम्र भी अब साठ को छू ही रही है।
शायद खबरें पढ़ती न होगी! टीवी में भी तो सीरियलों में ही लगी रहती है। पर मेरी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी है कि अगर ये बेचारी घर के काम में लगी होने से दुनिया भर के इस ख़तरे को भांप नहीं पा रही है तो मैं ही उसे सचेत करूं। मैं मन ही मन उसे जागरूक करने का कोई उपाय सोचने लगा।
मैं मेज पर अख़बार फ़ैला कर ज़ोर- ज़ोर से ख़बरें पढ़ने लगा। "हमारा शहर रेड ज़ोन में आया। यहां संक्रमित होने वालों का आंकड़ा सात सौ पहुंचा। मरने वालों की संख्या दो अंकों में। मास्क न लगाने के कारण पुलिस ने महिला को रास्ते से वापस लौटाया, न ला सकी दुधमुंहे बच्चे के लिए दूध... मातृत्व हुआ शर्मसार"
मैं बार - बार कनखियों से पत्नी की ओर देखने की कोशिश करता, कि वो इन खबरों से कुछ विचलित हो रही है या नहीं?
पर उसके कान पर तो मानो जूं भी नहीं रेंगी हो। वो उसी तरह गुनगुनाते हुए मटर छीलने में लगी रही।
मैं घबराया। मुझे संदेह होने लगा कि पत्नी कहीं जीवन से बैराग की ओर तो नहीं बढ़ रही। कहीं जीने- मरने की चिंता से ऊपर उठ रही हो। ये तो और खतरनाक था। अवसाद में जा सकती थी।
मैंने और ज़ोर- ज़ोर से देश- विदेश की सबसे ख़तरनाक ख़बरों को चुन- चुन कर पढ़ना शुरू किया। देखें, शायद अब कुछ असर हो।
"एक ही दिन में सत्तर लोग चपेट में, मरने वाले बीस हुए। शमशान घाट ने अंतिम संस्कार करने में आनाकानी की..."
वह उठी। दोनों हाथ कमर पर रखे। मेरे सामने आकर पूरी ताक़त से चिल्लाई- अजी, क्यों गला फाड़ रहे हो, तुम्हारा कुछ नहीं होने का। पिछले दस साल से सुन रही हूं - लाखों को मिले करोड़ों के इनाम। हर बस्ती में से सौ लोगों ने पाए गिफ्ट। सारा दिन कूपन काट- काट कर सहेजते रहते हो, कभी एक कटोरी भी अाई तुम्हारे हाथ? अब जैसे कोरोना सबसे पहले तुम्हें ही ढूंढ़ लेगा। अाए बड़े!
मुझ पर जैसे घड़ों पानी पड़ गया। तो ये है इसके कॉन्फिडेंस लेवल का राज???
- प्रबोध कुमार गोविल