द्रोणाचार्य राउंड पर थे। उन्होंने देखा कि उनके कार्यालय से फ़ोन कर- कर के विद्यार्थियों को गुरुकुल में अध्ययन के लिए बुलाया जा रहा है।
उन्होंने निजी सहायक से पूछा - ये सब किसलिए?
उत्तर मिला - सर, विद्यार्थी घर में बैठे ऑनलाइन शिक्षा लेे रहे हैं। हम उन्हें आमंत्रण दे दें ताकि गुरुकुल खुलते ही अच्छे छात्र हमारे यहां प्रवेश लेे लें।
द्रोणाचार्य ने कहा - नहीं, इससे तो ये संदेश जाता है कि हमारे पास विद्यार्थी नहीं हैं। तुम छात्रों से कहो कि सीटें भर जाने के कारण अब प्रवेश बंद हो गए हैं।
- लेकिन इससे तो यहां कोई नहीं आएगा, हमें भारी नुक़सान होगा। सहायक ने कहा।
गुरु प्रवर बोले- तुम नादान हो, इससे हमें दोहरा लाभ होगा। छात्र ये सोचेंगे कि हमारा स्तर इतना उच्च है कि उन जैसे श्रेष्ठ विद्यार्थियों का नम्बर भी नहीं आया। दूसरी ओर एकलव्य की तरह वे स्वयं पढ़ लेंगे और हमें दक्षिणा में अपने अंगूठे भी देंगे।
- किन्तु सर, तब हम यहां क्या करेंगे? सहायक ने जिज्ञासा प्रकट की।
- और भी काम हैं पढ़ाने के सिवा... गुरुदेव मन ही मन सोच रहे थे और सहायक मुंह ताक रहा था।