उनकी उम्र नब्बे साल है। खुदा का शुक्र है कि अभी भी अपने सब काम वो अपने हाथों से करते हैं।
कुछ दिन पहले वो आधी रात में बिस्तर से उठ कर शौचालय जा रहे थे जो कुछ ही दूरी पर था। अचानक उन्हें ऐसा लगा जैसे भगवान शिव स्वयं उनके सामने आकर खड़े हो गए हों। बिल्कुल वही आकार प्रकार जो वो रोज पूजा में देखते आए थे। वो हतप्रभ रह गए और दोनों हाथ जोड़ दिए। संयोग से उस समय वह छड़ी भी उनके हाथ में नहीं थी जो अमूमन वो साथ में रखते हैं।
इतना ही नहीं, लौटते समय वही मूरत फिर उनके सामने आई। अबकी बार वो बोल भी पड़े - महाराज, क्यों मेरे सामने बार बार आ रहे हो, क्या मुझसे कोई भूल हो गई? मूर्ति अंतर्ध्यान हो गई।
जब वो बिस्तर पर आकर लेटे तो उन्हें ऐसा लगने लगा मानो वो समुद्र की तेज़ लहरों में डूबते जा रहे हों। बार बार लहरें उन्हें गहराई की ओर ले जा रही थीं।
अगली सुबह वो बहुत प्रफुल्लित थे और हर आने जाने वाले को अपनी रात की आपबीती सुना रहे थे। वो ये देख कर तो और भी प्रमुदित थे कि रोजाना उनकी बात अनसुनी कर चले जाने वाले लोग भी आज उन्हें ध्यान से सुन रहे हैं। मानो दिन ही पलट गए उनके।
उनके छोटे बेटे का लड़का डॉक्टर था। उम्र कुल सत्ताइस साल, पर बेहद प्रखर बुद्धि वाला। वह दूसरे कमरे में बैठा अपनी दादी को प्यार से समझा रहा था कि दादाजी की आंख का मोतियाबिंद इतना पक गया है कि उन्हें कभी कभी अपनी परछाई भी काली, आकार लेकर चलते फिरते दूसरे आदमी की तरह दिखाई देती है। रात को कभी कभी उनका ब्लड प्रेशर भी बहुत कम हो जाता है, खास कर शौच से आने के बाद।
दादी हैरानी से देख रही थी कि ये वही छुटका है जो पैदा होने के बाद उसके हाथों से किसी खरगोश की तरह फिसलता था।
कितना अंतर आ गया था अब !