आम तौर पर वह पृथ्वी की हलचल देख कर प्रफ़ुल्लित हुआ करती थी, लेकिन एक दिन कुदरत मनुष्य और दूसरे जीवों के उत्पात से आज़िज़ आ गई।
तंग होकर एक दिन उसने मन ही मन एक बेहद कठोर फैसला ले डाला।
कुदरत ने सोचा कि वह धरती के हर जीव से उसका कोई न कोई एक गुण वापस ले लेगी।
जब सोच ही लिया तो फिर देर कैसी? झटपट अमल की तैयारी भी होने लगी।
सबसे पहले बारी आई शेर की। कुदरत ने उसे उसकी अकड़ ठिकाने लगाने के लिए सज़ा देने का निश्चय किया, उसकी अकड़ छीन ली गई। शान से जंगल में घूम कर किसी का भी शिकार करके ताज़ा माँस खाने वाले वनराज अब सिर झुका कर सर्कस और फिल्म-शूटिंग में काम करने के लिए ट्रेनिंग लेने लगे। दहाड़ने पर कोड़े फटकारे जाते। यहाँ तक कि कई बाग़-बगीचों में तो उनकी निगरानी के लिए कुत्ते तक तैनात कर दिए गए।
फिर बारी आई मगरमच्छ की। ये जनाब भी अजीब थे, जल-थल दोनों को अपनी जागीर समझते थे। गर्मियों में ठन्डे पानी के भीतर और सर्दियों में गुलाबी धूप में रेत पर आराम फरमाते। कुदरत ने रौद्र रूप लिया और लगी उनकी मिल्कियत छीनने। जब वे पानी में होते तो तेज़ सुनामी लहरों से ज़मीन पर फेंक दिए जाते,ज़मीन पर खेतों में मटरगश्ती कर रहे होते तो कुदरत ऐसा दुर्भिक्ष लाती कि सूखी ज़मीन की तपती दरारों में सांस लेना दूभर हो जाये।
कुदरत की कोप दृष्टि फिर मोर पर भी पड़ी। कुदरत ने उसकी पीठ पर बीस किलो पंख लादे और सरकंडे जैसे बड़े-बड़े पैर बना दिए। सारी ऊंची उड़ान भूल कर महाशय वन में ही नाचते रह गए।
इस तरह एक-एक करके प्रकृति-माँ ने सबके छक्के छुड़ा दिए।
अब बारी आई इंसान की।
अब कुदरत की असली परीक्षा थी।
इंसान से उसका कोई गुण छीन लेना आसान काम न था।
पहले तो यही तय करना टेढ़ी खीर थी कि आदमी का कौन सा गुण है और कौन सा दुर्गुण। उसके गुण-अवगुण एक साथ मिल कर रहते थे। कहीं गलती से भी प्रकृति माँ उसका कोई गुण छीनने की जगह अवगुण छीन लेती तो पासा उल्टा ही पड़ जाता न, यह तो उसे सजा देने के स्थान पर ईनाम देना हो जाता।
प्रकृति ने एक सुबह झील के किनारे हरे पेड़ों के नीचे सारे पशु-पक्षियों को इकठ्ठा किया और उनसे कहा कि वे इंसानों के कुछ गुण बताएं।
-"इंसान बहुत अच्छा गाता है, सुबह-सुबह उसका आलाप सुन कर मन झूमने लगता है" कोयल ने कहा।
-"रहने दे, रहने दे, मैं घरों के बाहर पेड़ों पर रहती हूँ, आदमी की कर्कश आवाज़ से सवेरे ही मुझे भागना पड़ता है" चिड़िया बोली।तभी किसी की आवाज़ आई-"आदमी मेहनती बहुत है, खेतों में हल चलाता हुआ ढेरों अन्न उपजा देता है।"
-"लेकिन वह हल चलाते हुए हमारे बिल भी तो तोड़ देता है" चूहा मायूसी से बोला।
-"आदमी का सबसे बड़ा गुण तो ये है कि वह प्रकृति का मुकाबला करना जानता है। जब प्रकृति गर्मी में आग बरसाती है तो वह आराम से कूलर-पंखे चला कर पड़ा रहता है, कुदरत पानी बरसाए तो वह छतरी तान कर बाहर निकल आता है, ज़रा सर्दी पड़ी कि बैठा अलाव तपता है और गुनगुनाता है, बाढ़ भी आये तो नावों में बैठ कर तैरता घूमता है।" भालू बोला।
यह सुनते ही प्रकृति माँ को चक्कर आने लगे। उसने सोचा- जो मनुष्य मुझसे टक्कर लेने की हिम्मत रखता है, उसका कोई गुण छीन कर मैं खतरा मोल क्यों लूँ ?
कुदरत ने सभा बर्ख़ास्त की और सभी को अपने-अपने काम पर जाने को कहा।