- तुम क्या बनना चाहते हो? प्रोफ़ेसर ने पूछा।- मेरा सपना एक लेखक बनने का है। छात्र ने कहा।- क्यों?- क्योंकि मैंने सुना है कि साहित्य के पास जीवन की हर समस्या का निदान होता है, वो एक बेहतर ज़िन्दगी का सपना समाज में रोपता है। छात्र बोला।प्रोफ़ेसर साहब बोले- शाबाश! तुम मेरा ख़्वाब पूरा करना।छात्र ने ख़ुशी से कहा- क्या, आपका भी यही सपना था? फ़िर आप लेखक क्यों नहीं बने सर? क्या आपने कभी कुछ लिखा?प्रोफ़ेसर साहब एक लम्बी आह भर कर कहने लगे - मैं भी तुम्हारी तरह ये सपना लेकर आया था। मैंने अपने शिक्षक को बताया तो उन्होंने कहा, लेखक बनना है तो पहले खूब पढ़ो। मैंने उनकी बात मान कर रात -दिन अपने को अध्ययन में डुबो दिया। पहले चारों वेद पढ़े, सारे पुराण पढ़े, गीता पढ़ी, रामायण पढ़ी, महाभारत पढ़ी।- अच्छा, फ़िर?- फ़िर क्या, कबीर, रहीम, तुलसी, जायसी, केशव, रसखान को पढ़ा, मीरा को पढ़ा, बुद्ध को पढ़ा, महावीर,नानक, विवेकानंद को पढ़ा, फ़िर रवींद्र नाथ टैगोर, महात्मा गांधी को पढ़ा, फ़िर प्रसाद, प्रेमचंद, निराला, महादेवी, पंत को पढ़ा...- फ़िर?- फ़िर क्या? मैं क्या उम्र भर पढ़ता ही रहता। फ़िर बूढ़ा हो गया। तुम लोगों को पढ़ाने लगा।- फ़िर आपने कुछ लिखा?- फ़िर लिखने की ज़रूरत ही क्या थी, लोग मुझे ऐसे ही महान मानने लगे। पुरस्कार मिलने लगे, मेरे सम्मान होने लगे, समितियों में बुलाया जाने लगा। प्रोफ़ेसर साहब गर्व से बोले।- जी, तो अब आप नए लेखकों को क्या संदेश देना चाहेंगे? छात्र ने जिज्ञासा प्रकट की।वे बोले- मैं कहना चाहूंगा कि लिखना है तो दुनिया को ख़ाली काग़ज़ समझो, ये सोचो कि तुमसे पहले एक लफ्ज़ भी नहीं लिखा गया। अपनी आंखों से आज की समस्याएं देखो, आज के लोगों को देखो और उन्हें अपनी रचनाओं के रूप में काग़ज़ पर उतारो। अब तक लिखे गए को अपने पैरों की बेड़ियां समझो। पुस्तकालय को मदिरालय जानो,उधर का रुख भी मत करो।शिष्य हर्ष- उल्लास से भर कर अपने सपने को अपनी कल्पना में सच होता हुआ देखने लगा।