सभी पूजाघरों पर ताला लगा था।
किन्तु घर के एक कौने में तो ईश्वर था। उसी से कहा- आपके आशीर्वाद से मैंने इस संकट के समय में चंद करोड़ रुपए का दान किया है। मैं हज़ारों निर्धन लोगों के लिए भोजन भिजवाने की व्यवस्था भी रोज़ाना कर रहा हूं।
- ओह ! आवाज़ आई।
वे चौंके। उन्हें लगा कि उन्होंने कुछ ग़लत सुना। ज़रूर ये आवाज़ "ओह" नहीं, बल्कि "वाह" होगी।
वे मूर्ति की ओर देखने लगे। किन्तु आवाज़ कहीं और से नहीं बल्कि ख़ुद उनके भीतर से ही आ रही थी-" इसका मतलब तुम अब तक इतने लोगों के भोजन को अपने कब्जे में लेकर बैठे थे? शायद ये लोग इसीलिए निर्धन थे कि इनका हक़ तुम्हारी तिजोरी में बंद था !"
उन्होंने घबरा कर कक्ष का दरवाज़ा बंद कर दिया।
लॉकडाउन अभी खुला नहीं था।
- प्रबोध कुमार गोविल