घर पास ही था,मधु प्रणव से बोली- चल रिक्शा कर लेते हैं,खड़ा भी है सामने!
- इतनी सी दूर के पंद्रह रुपए? मधु ने उलाहने के स्वर में कहा। - बारह देंगे...कहते कहते उसके जवाब का इंतजार किए बगैर अब दोनों रिक्शा में सवार थे।
लालबत्ती पर भारी ट्रैफिक में फंसा रिक्शा रुका, तो प्रणव ने कहा- हे भगवान, ऐसे तूफानी ट्रैफिक में रिक्शा चलाते ही क्यों हैं लोग?
उसकी बात का जवाब मधु की जगह खुद रिक्शावाले ने दिया, बोला - सरकार ने रोज़गार मुहैया कराने के नाम पर दिया है, आप लोग समझते हैं कि सरकार आरक्षण देकर हमें अफ़सर ही बनाती है...
हरीबत्ती होते ही कान फोड़ू भौंपुओं में उसकी आवाज़ दब कर रह गई।
मधु ने उतरते ही अपना पर्स टटोला और दस का सिक्का पकड़ाते हुए बोली - अब दो रुपया छुट्टा कहां होगा, रख लो यही।
रिक्शा वाला एकाएक गरम हुआ। बोल पड़ा - छुट्टा मैं देता हूं, निकालो क्या है, बीस, पचास, सौ ...?
- बाप रे ! देखे इन लोगों के तेवर? सरकार और मुफ्त बांट - बांट कर इन्हें सिर चढ़ा रही है। देखो कितनी बदतमीजी से बोल रहा है। छह हज़ार की तो साड़ी पहन रखी है मैंने, ज़रा भी लिहाज़ नहीं है...
प्रणव ने मन में कहा छह हज़ार की साड़ी पर उसके दो रुपए का बाट रखा है न, इसलिए लहरा नहीं पाई।
रिक्शा वाला पचास रुपए का छुट्टा गिन कर दे रहा था।
- प्रबोध कुमार गोविल, बी 301, मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी, 447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर-302004 (राजस्थान)