पेड़ की डाल पर बैठे एक कबूतर ने देखा कि सामने वाले मकान में एक खूबसूरत खिड़की है जिस पर कोई पर्दा भी नहीं है,और सफ़ाई होने के कारण आसपास कोई कीट पतंगा भी मंडरा नहीं रहा।
उसकी आंखों में उमंग की तरंगें आने लगीं।
उसने मन ही मन ये ठान लिया कि कुछ दिनों से उसका जिस कबूतरी से प्रेम चल रहा है, यदि वह गर्भवती हुई तो हम अपना घरौंदा इसी खिड़की में रखेंगे।
कहते हैं न, कि शिद्दत से कुछ चाहो तो कायनात उसे देने में देर नहीं करती। कबूतरी की आंखों में एक दिन मातृत्व की लालसा दिपदिपाने लगी।
दोनों मिलकर बाग़ से तिनके ला लाकर खिड़की पर रखने लगे।
पर ये क्या ? इधर बेचारे दोनों पंछी तिनके लाते,उधर भीतर से एक लड़की बार बार उन्हें बुहार कर नीचे फेंक देती।
ये सिलसिला सुबह से दोपहर तक चलता रहा। न पखेरू ही थके और न लड़की ही आजिज़ आई।
लड़की ने सोचा,ये कबूतर अब तक क्यों नहीं थके?
लेकिन कबूतरों ने सोचा, जब तक काम पूरा न हो,उसे बीच में कैसे छोड़ दें! उन्हें ये याद ही नहीं रहता था कि उनके पहले लाए गए तिनके फ़ेंक दिए गए हैं।लेकिन जब उन्हें ये अहसास हुआ कि ये लड़की हमारे लाए हुए तिनके उठा उठा कर फेंकती जा रही है तो कबूतर सोचते,हम दो हैं,ये अकेली, देखें हमें कब तक रोकेगी? कबूतरों ने विचार किया कि ये हमें हटाती तो हम एक मिनट में यहां से चले भी जाते, पर ये हमारे बच्चों का आशियाना उजाड़ रही है, ये हम हरगिज़ नहीं होने देंगे।
आखि़र थक कर लड़की ने कबूतरों से ही पूछा- "क्यों रे उत्पातियो, इस ज़िद की वज़ह?"
कबूतरों ने कहा - "दुनिया ऐसे ही बनी है मैम साहब!"
लड़की हार मान कर भीतर चली गई।