एक बार गिलहरी, चूहे, खरगोश, छिपकली, मेंढ़क आदि कुछ मित्रों ने मिलकर जंगल में एक कमरा किराए से ले लिया। मिला भी सस्ता, क्योंकि लोमड़ी के पास तो कई थे।
जंगल में हवा भी चलती थी, तूफ़ान भी आते थे, बारिश भी होती थी, चलो, अब इन सब से छुटकारा मिला, घर अपना हो गया।
कुछ दिन तो मज़े से बीते लेकिन फ़िर एक दिन बैठे बैठे उन सबका माथा ठनका। सबने देखा कि कमरा दिनों दिन गंदा होता जाता है। जंगल में तो हवा पानी से अपने आप सफ़ाई होती रहती थी मगर अब इस कमरे में तो दुनिया भर का कचरा जमा होने लगा। सब चिन्तित हो गए।
जाकर लोमड़ी से शिकायत की - "मैडम, आपका कमरा तो दिनों दिन गंदा होता जाता है।"
लोमड़ी ने कहा - "प्यारे बच्चो, सफ़ाई की जिम्मेदारी मकान मालिक की नहीं, किरायेदारों की होती है। तुम एक झाड़ू लाकर रखो, सब ठीक हो जाएगा।"
उत्साह में भरे सब एक झाड़ू खरीद लाए। कुछ दिन बीते तो फ़िर सबका ध्यान इस बात पर गया कि कमरा तो अब भी गंदा का गंदा ही है।
वे सब बौखला कर झाड़ू के पास जाकर बोले - "क्यों जी, तुम्हारा फायदा ही क्या हुआ, गंदगी तो अब भी ज्यों की त्यों है?"
झाड़ू कुछ न बोली, बस मासूमियत से धीरे धीरे मुस्कुराती रही।
झाड़ू के इस ढीठ पने से सब क्रोधित होकर उखड़ गए और लगे झाड़ू को कोसने और उस पर लानतें भेजने - "झूठी, आलसी, निकम्मी, कामचोर, अहसान फरामोश...!"
तभी उधर से गुजरती लोमड़ी ने खिड़की से झांका और बोली - "ओ बावलो, झाड़ू पड़ी पड़ी सफ़ाई नहीं करती, इसे हाथ में लेकर गंदगी झाड़नी पड़ती है।"
यह सुनकर सब हक्के - बक्के रह गए और खूब शर्मिंदा हुए।
उन सबने अपने आपको शीशे में देखा और सोचने लगे, शायद कुदरत को पता था कि हम सब आलसी ही होंगे इसलिए उसने झाड़ू जैसी पूंछ हम सबको दे दी।