खरगोश सुबह - सुबह तालाब के किनारे टहलने जा रहा था। रास्ते में एक खेत से गाजर तोड़ कर वह उसे पानी से धो ही रहा था कि इठलाती हुई एक बतख वहां अा गई। दोनों में दोस्ती हो गई।
बतख बोली - लाओ, तुम्हारी गाजर का हलवा बना दूं।
हलवा तैयार हुआ तो बतख बोली - जाओ, जल्दी से मुंह धोकर आओ, फ़िर हलवा खाना।
खरगोश जब मुंह धोकर आया तो उसे मन ही मन शक हुआ कि बतख ने पीछे से थोड़ा हलवा खाया है।
उसने तालाब के थाने में जाकर चोरी की रपट लिखवा दी।
थानेदार मेंढक बतख को गिरफ़्तार करने चला आया।जब वह बतख को पकड़ने लगा तो उसने कहा - इस खरगोश के पास क्या सबूत है कि मैंने हलवा खाया है?
खरगोश बोला - तुम्हारी चोंच और पंजे हलवे से लाल हो गए हैं।
बतख घबरा कर बोली - मैंने हलवा नहीं खाया है, मेरी चोंच तो इसी रंग की है,पर थानेदार ने एक न सुनी।
शोर सुन कर तालाब से कछुआ निकल आया।जब उसे सारी बात का पता चला तो वो फौरन बोल पड़ा - थानेदार जी, मैं एक खेत से कपास लाया था,उसका मैंने नरम सफ़ेद कोट सिलवाया था, जो चोरी हो गया। लगता है इस खरगोश ने वही कोट पहना है, गिरफ़्तार कर लीजिए इसे!
यह सुनते ही खरगोश के होश उड़ गए। हक्का बक्का होकर बोला - मैंने कोट नहीं पहना, मेरा तो रंग ही सफेद है। मुझे माफ़ करदो, मैंने अकारण बतख को फंसाया।
कछुआ बोला- कुछ भी हो, अब तुम पर बतख की मानहानि का
मुकदमा चलेगा।
खरगोश ने तुरंत सभी से माफ़ी मांगी और बोला - कछुए भैया ने आज मुझे दूसरी बार हराया है।
थानेदार मेंढक हैरानी से उसे देखने लगा क्योंकि पंचतंत्र के युग में तो वो था ही नहीं, उसे कुछ समझ में नहीं आया।