मैदान में एक भैंस घास चर रही थी। उसके पीछे पीछे एक सफ़ेद झक़ बगुला अपने लंबे पैरों से लगभग दौड़ता सा चला आ रहा था।
नज़दीक ही एक पेड़ पर बैठे तोते ने वहां बैठे एक कबूतर से कहा - "प्रेम - प्रीत अंधे होते हैं, देखो, रूई के फ़ाहे सा नरम नाज़ुक धवल प्राणी उस थुलथुल- काय श्यामला के पीछे दौड़ा जा रहा है।"
कबूतर ने जवाब दिया - "प्रेम प्यार का तो पता नहीं,पर भूख ज़रूर अंधी होती है। भैंस चरने में मगन है, उसे पीछे आते मित्र की कोई परवाह नहीं। और बगुला भी कोई भैंस की मिजाज़ - पुर्सी करने नहीं आया है, बल्कि भैंस की सांसों से जो मच्छर उड़ रहे हैं उन्हें अपना निवाला बनाने आया है।"
- "ओह, तो वो दोनों ही अपने अपने ज़रूरी कार्य में व्यस्त हैं, तब हमें अकारण उन पर छींटाकशी करने का क्या हक़?" तोते ने पश्चाताप में डूब कर कहा।
कबूतर बोला - " हां, लेकिन जोड़ी तो बेमेल है ही।"
तभी चरती हुई भैंस कुछ दूर बने एक तालाब के पास जाकर पानी में उतर गई। बगुला भी पानी के किनारे मछलियों पर ध्यान लगा कर खड़ा हो गया।
तोता फ़िर चहका - "देखो देखो, जोड़ी बेमेल नहीं है, दोनों की मंज़िल एक ही थी। दोनों को तालाब में ही जाना था। दोनों रास्ते के मुसाफ़िर थे। अगर एक ही मंज़िल के राही हों, उनमें तो अपनापन हो ही जाता है।"
- "कुछ भी हो, वह भोजन के बाद नहाने गई है और बगुला अपने तालाब से नहा धोकर ही भोजन के लिए निकला होगा, कितना अलग स्वभाव है दोनों का!" कबूतर ने उपेक्षा से कहा।
तोता बोला - "अब घर लौट कर वो दूध देगी, और ये यहां मछली खायेगा। जबकि कहते हैं, दूध और मछली का कोई मेल नहीं है। दोनों एक साथ खा लो तो पचते नहीं हैं।"
कबूतर ने कहा - "और क्या, आदमी तो ऐसा ही कहते हैं।"
तभी पेड़ की तलहटी में बैठी एक गिलहरी बोल पड़ी - "आदमी की बातें खूब सीख रखी हैं तुम दोनों ने?"