एक बार सुदूर गांव के एक दुरूह से खेत पर एक वृद्ध औरत काम कर रही थी।
वह सुबह जब खेत पर आई थी तो उसने भिनसारे ही अपने चौदह साल के लड़के को यह कह कर घर से प्रस्थान किया कि वह जल्दी जा रही है क्योंकि खेत पर बहुत काम है।
लड़के ने उसके चले जाने के बाद नहा- धोकर चूल्हे पर रोटी बनाई और एक कपड़े की पोटली में चार मोटी रोटी अपने लिए तथा दो रोटी अपनी मां के लिए लेकर वह खेत की ओर चल पड़ा।
जब वह खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी मां ने धूप में पसीना बहाते हुए गोबर के उन सब उपलों के ढेर को उठा कर किनारे के बबूल के पेड़ के नीचे जमा कर दिया है जिन्हें वह कल उसी पेड़ के नीचे से उठा कर खाद के रूप में पूरे खेत में फ़ैला कर गया था। उसे मां पर क्रोध आया जिसने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
वह बाल्टी उठा कर पीने का पानी भर लाने के लिए पास के कुएं पर चला गया।
कुएं की जगत पर उसने कपड़े की एक पोटली टंगी देखी जिसमें सुबह - सुबह सूर्योदय से भी पहले उठ कर मां द्वारा बनाई गई रोटियां थीं।
मां ने उससे पूछा कि क्या वह उन रोटियों को खा आया है,जो मां ने सुबह उसके लिए बना कर रसोई के छींके पर टांग दी थीं?
लड़के के पास किसी गाबदू की तरह मां को देखे जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उसने दोबारा रोटी बना कर मां की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
एक दूसरे से नाराज़ होकर शब्दों के मितव्ययी मां - बेटा अब एक साथ बैठ कर प्याज़ और रोटी खा रहे थे।
- प्रबोध कुमार गोविल, बी 301 मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी,447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर- 302004 (राजस्थान) मो. 9414028938 ई मेल:: prabodhgovil@gmail.com