
अन्न दाता,पेशा – खेती ,
अन्न उगाता
डॉ शोभा भारद्वाज
एक हिस्से में महिलाएं लाल झंडा लेकर बैठी थी किसान आन्दोलन में
माओवादियों का प्रदर्शन क्यों ? एक
महिला स्टेज पर रूदाली बनी मातम जिसे पंजाब में स्यापा कहते हैं करती हुई बैन भर
रही थी ‘ह्य - ह्य मोदी मर जा तू’ मौलिक अधिकार में अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता के अंतर्गत कौन सा अधिकार है ? किसान आन्दोलन की आड़ में सीपीआई, सीपीआई (एम),
सीपीआई (एमएल) और
नक्सलवाद समर्थक अपना एजेंडा आगे बढ़ाने में लगे हैं . हर व्यक्ति अपना कर्म करता
है वह उसकी जीविका का साधन है किसान अन्न उगाता है क्या केवल अन्नदाता ही
महत्वपूर्ण है .टैक्स पेयर का कोई महत्व नहीं ?
देश के किसानों से सबको दर्द है सरकारें कोशिश करती रही हैं किसानों की
आर्थिक स्थिति ठीक हो स्वामीनाथन रिपोर्ट में अनेक सुझाव दिए गये थे उन्हीं को
किसानों के हित में लागू किया गया है मुख्यतया पंजाब एवं हरियाणा के किसानों ने
विरोध में राजधानी को घेर लिया है वह कृषि सुधार कानून को काला कानून कहते हुए
तीनों कानूनों को रद्द करने की जिद पर अड़े हैं भीड़ का दबाब डाल कर सरकार को विवश
करने की कोशिश कर रहे हैं इन लोगों में आढ़ती एवं विरोधी दल शामिल हैं . काफी समय
से किसानों के बीच से बिचौलिये हटाने की मांग थी अब पंजाब एवं हरियाणा के किसान
कहते हैं मोदी जी बिचौलियों को खत्म कर रहे हैं जब कि आढ़ती हमारे बैंक है. आढ़तियों
के हित में भी आन्दोलन चल रहा है किसानों के अनेक सफेद पोश नेता है .
प्रजातंत्र में रास्ता सम्वाद से निकलता है उचित संशोधनों के लिए सरकार
तैयार है.
पहले रैलियां होती थी एक दो दिन तक कतार बाँध कर प्रदर्शनकारी प्रदर्शन
करते चले जाते . अन्ना हजारे की भूख हडताल लोकपाल बिल के समर्थन में कई दिन तक चली
पहले जन्तर मन्तर बाद राम लीला ग्राउंड लोकपाल बिल का पता नहीं लेकिन आम आदमी
पार्टी को सत्ता मिली . सीएए के विरोध के नाम पर दिल्ली ने शाहीन बाग का धरना देखा
101 दिन चला व्यस्त सड़क को घेरे धरने पर
दादियाँ, महिलाओं के साथ छोटे बच्चे बड़े भी थे इन
सब के इंचार्ज बंद कमरों से संचालन करते हाँ जब मीडिया वाले आते उनमें से कुछ बाहर
निकल कर दादियों के कान में फुसफुसाते हैं वह सब एक भाषा बोलती स्टेज पर चढ़ कर
बच्चे भी प्रवचन देते हैं आजादी – आजादी
के नारे लगाते हैं कैसी आजादी चाहिए थी ? क्या चीन या पाकिस्तान वाली आजादी या मुस्लिम देशों की तानाशाही जहाँ न
दाद न फरियाद जैसे चलता है चलने दो गैर मुस्लिमों को पाकिस्तान में मर जाने दो
इन्हें उनकी बच्चियों का दर्द नहीं था ‘आज उन्हें किसानों से दर्द जग गया बिलकिस बानों भी किसानों के आन्दोलन
में अपनी उपस्थिति दिखाने पहुंच गयीं परन्तु यहाँ बिरयानी और कुछ ?नहीं मिलेगा किसानों के आन्दोलन में शाहीन
बाग़ की तरह अपना विज्ञापन करने फ़िल्म और साहित्य जगत से जुड़े लोग नहीं आये.’
किसान आन्दोलन में खाना चाय और भी इंतजाम हैं बस शाहीन बाग़ की तर्ज पर
तम्बू लगने बाकी है. नारे भी सुने खालिस्तान के नारे लगे कनाडा, अमेरिका में न्यूयार्क , शिकागो ब्रिटेन में भी खालिस्तान के समर्थन में नारे गूँजे ‘राज करेगा खालसा ‘ हिटलर के समय जर्मनी में जर्मन आर्यन रेस
को सर्वश्रेष्ट कह कर यहूदियों को मारा था. शाहीन बाग़ के बाद नई परम्परा चल पड़ी
दिल्ली
बार्डर की सड़कों को
घेर कर बैठ जाओ प्रवेश मार्ग को घेर कर किसान बैठे हैं उनके पीछे राजनीतिक दल भी
अपनी राजनीति की
दुकान चला रहे है .
शाहीन बाग़ की तर्ज पर धरने ,लाभ
केजरीवाल आम आदि पार्टी के सर्वेसर्वा ने उठाया ,एक मुश्त मुस्लिम का वोट अपने हाथ में कर लिया. अब उनकी योजना हरियाणा एवं पंजाब के चुनावों को किसानों
के साथ सहानुभूति दिखा कर जीता जा सकता है यदि वह जीत का स्वप्न देख रहे हैं तो
अकाली दल एवं पंजाब में कांग्रेस के मुख्यमंत्री अरमिन्दर सिंह क्या करेंगे? अब वह यूपी में भी पैर पसारना चाहते है
.पहले उन्हें कृषि कानून से एतराज नहीं था ड्रामे की राजनीति में माहिर हमारे
मुख्य मंत्री जी किसानों के बीच गये अपने को सेवादार बताया, दिल्ली विधान सभा का विशेष सत्र बुला कर
कृषि कानून की प्रतियाँ फाड़ी नारे लगा कर मीडिया में सुर्खियाँ बटोरने की कोशिश .
जेऍनयू सरकारी खर्चे पर चलने वाली यूनिवर्सिटी में टुकड़े टुकडें गैंग ने
इसी संस्थान में पाकिस्तान जिंदाबाद ,देश के टुकड़े टुकड़े तक जंग जारी रहेगी के नारे लगे , देश द्रोह के आरोपी शरजील इमाम एवं अन्य
नक्सलाईट की रिहाई के पोस्टर भी है बुद्धिजीवियों की मानसिकता पर हैरानी है यह
किसी और प्लेनेट के जीव नहीं थे इसी भारत भूमि में रहते हैं .देश स्तब्ध रह गया.
.सोवियत संघ के टूटने के बाद मार्क्सवाद कमजोर पड़ने लगा चीन भी माओ वादी विचार
धारा से धीरे-धीरे पीछे हटने लगा लेकिन भारत में नई विचार धारा, क्रान्ति द्वारा व्यवस्था परिवर्तन के
नारे ,लाल सलाम ,अलगाव वाद,
यही नहीं सुराज का
स्थान स्वराज ने ले लिया है खुले आम नक्सलवाद का समर्थन कई संसद और सत्ता में बैठे
हैं कईयों ने राजनीतिक पार्टियाँ बना ली हैं लेकिन चंदा विदेशों से भी आता है
क्यों ? क्या चंदा देने वाले देश , भारत को तोड़ने का षड्यंत्र रच रहें है ?बंदूक उनकी है कंधे सफेद पाशों के साईबाबा व्हील चेयर पर है उसका अपराध न
देख कर मानवाधिकार वादियों नें उसके पक्ष में देश विदेश तक शोर मचाया , नक्सलवादी संगठन चौथा आतंकवादी संगठन माना जाता है उनके समर्थक बैनर पोस्टर
लेकर बैठे हैं उनकी रिहाई की मांग की गयी इनका किसानों में उनका प्रयोजन क्या है ?
किसान अब सम्भल गये हैं जामियाँ के स्टूडेंट ढपलिया लेकर आये लेकिन
उन्हें स्टेज पर चढने नहीं दिया जेऍनयूँ के रण बाकुरे भी बिना स्टेज पर चढ़े भाषण
देकर चले गये .इस तरह राजधानी को घेरने के विरुद्ध कानून बनना चाहिए.