सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन बातोंको साफ कहती हूँ--तभी कुछ समझमें आवेगा ।
मेरे पिता बहरामपुरके डिस्ट्रिक्ट इंजीनियर थे। अपने पिताकी मैं इकलेती तो बेटी थी, इसीसे मेरे ब्याहके संबंध उनको बड़ी उत्कण्ठा थी | पिताके पास धनकी कमी तो थी ही नहीं । जिसमें देखने और सुननेमें सब प्रकारंस भला वर मिले इस लिए उन्होंने चेश करनेमें कसर नहीं की ।
मेरी माताने पहिलेहीसे अपनी एक बाल्य सखीके लड़केके साथ में मेरा ब्याह करनेका निश्चय कर रक्खा था । वह लड़का वैसे तो पिता बोले--.-“ प्यारी | तुम क्या जानो, धन संपत्ति कुछ थोड़े ही टिकती है | पिताके रोजगारको जाते रहते कुछ बिरे नहीं छगती । मेरी इच्छा तो यह है कि लड़का अपने ही हा? कमावे । ऐसा होमेपर कुछ चिन्ता नहीं रहेगी । अब मुझक मासकी छुट्टी मिलगई है | कलकत्तेमें जाकर एक दो. संबंध और « खोजूँगा । और तब इस विषयमें जैसा कुछ होगा स्थिर कर ढूँँगा।
मैंने कहा---“ ब्याह गोबिन्द ही के साथ में ठीक करना होगा, किंतु तुम 'देर करनेसे नहीं रुकोंगे। इधर छड़की भी सयानी होगई । जो मिलनहार-होता तो अब तक मिरू ही न गया होता |”... में नहीं कह सकती कि पिता क्या विचारने लगे | मैं भी फ़िर यह देखनेके लिए महीं;ठहरी कि अब आगे .क्या बातें होंगी। जिसकी “बांतचीत थी वहेँ सब जान ही चुकी थी | इसके बाद एक ही सप्ताहके पछे हम सब कलकत्ते जा पहुँचे |
हम लोगोंका अगहनंके महीने में कलकत्ते पहुचना हुआ | देख तेही देखते तीन महीने कट गये | कलकत्ते में मेरा जी नहीं लंगा-। 'सबेरे उठकर छतपर जा बैठती थी | वह नये निकले हुए सूर्यकी मीठी ज्योति और बह मनको मोहनेवाला सुन्दर मलछयानिक अब कहाँ है ! यहाँ नये पछुवोंकी हरी शोभा आँखों को तृत्त नहीं करती थी | बौरकी मीठी गंध प्राणोंकी पागल नहीं बनाती थी और बसन्त सहचर पपीहे ! तेरे मीठे कण्ठस्वरका अमृत भी यहाँ कलसित हो गया!
एक दिन इसी प्रकारके समय में छतपर मैं बेठे हुई थी । अँगे आंकर कहा--पंकज, बेटी नीचेआ, आज तुझको देखनेको आनेबाड़े हैं |. जरा तुझे पहिना उढ़ादें; दूल्हा आप ही देखने आवेगा । कलकत्ते ही का लड़का जो ठहरा |”?