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भाग 5

23 अगस्त 2022

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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमें पड़ा । यह बात दादाके कानोंतक पहुँची भी नहीं जान पड़ती थी, क्योंकि बीचबीचमें प्रकाश उनसे मिलता रहता था । उसकी बहिनसे मुझको जो घृणा हो गई थी, उसका कुछ अंश अब प्रकाश पर भी जा पड़ा । 

अगहनके मासमें मेरी एम. ए. की परीक्षा समाप्त होगई | मनकी अवस्था भर्डाी नहीं थी, इस लिए प्रश्नोंके उत्तर भली भाँति नहीं लिखे जा सके । इससे मुझको कुछ अधिक दुःख नहीं हुआ। मैंने सोचा कि जब सारे ही जीवनभर दुःखोंकी बेड़ी पेरोंमें डालकर कॉंटोंसे भरे हुए मार्गमें जीवनयात्रा करनी पड़ेगी, तब इस एक परीक्षामें पास या फेल हो जानेस कौनसी बड़ी हानि हुईं जाती है ?

 एक दिन दादाने कहा, “रमेश, आज कहीं जाना नहीं । संध्याके समय प्रकाशक पिता--बाबू तुमको आशीबीद देने आवेंगे ।

 अब मुझको सुविधा हाथ छगी ओर मैंने कहा--आशीबोद कैसा दादा ? क्‍या मेरा-- | '.

दादा हँसते हंसते दूसरे स्थानको चले गये | उस समय भी उन्होंने मेरे दुःखको नहीं सुना | मेने विचारा कि इस विषयमें अब उनको आगे नहीं बढ़ने देना चाहिए। आशाीवतरोद हो जाना तो एक प्रकारसे विवाह ही हो जाना है। डूबनेसे पूरे क्या एक बार तैर कर तट पर निकल जानेकी चेश्य करना उचित नहीं है ? इस लिए छज्जाकों भाड़में डाठकर में मन्थरग- तिसे दादाके कोठे पर पहुँचा | 

खूब साहस करके मैंने दादासे गंभीर भावसे कहा---“ दादा, मे विवाह नहीं करूँगा | ” दादा कुछ लिख रहे थे। मेरी ओरको मुख करके वे बोले--- “ अच्छा, न करना | ”

उस समय दादाके मुखका भाव देखकर ओर अपनी छज्जाको छोड़कर में सरल स्वाभात्रिक भाव धारण करनेके लिए हँसदिया दादा भी हँसदिये । जीको रोककर मेंने फिर रूखे भावसे कहा--- 

'' नहीं, दादा हँसीकी बात नहीं है। भें ब्याह नहीं करूँगा ।” 

दादाने लिखते लिखते कहा, “ अच्छा, भाई | मत करो |”

उस समय मेरी लज्जा  चली गई थी | सरस्वती स्वय॑ आकर मेरे कण्ठमें बैठना चाहती थीं । मेंने बड़े आग्रहसे कहा--“ नहीं दादा, में सच ही कहता हूँ कि विवाह नहीं करूँगा। न मालूम भाभी ने एक भूल में पड़कर तुमसे क्‍या कह डाला ---! 

बड़े भाई मुह उठाकर कुछ मुस्कुराते हुए कहने लगे---“ अरे तू क्या मुझको काम नहीं करने देगा? हंम लोगोंने इस विषयमें कुछ भी नहीं सोचा है | क्या आज तुझे किसी खेलमें नहीं जाना है  ”

 मुझे हताश होना पड़ा | मैंने जान लिया कि चेष्टा: करना व्यथ, है विरक्ति, छेश और निरुत्साहको सिरपर छाद कर में क्रिकेट खेल- नेको चला गया | 

 ब्रह्माके लिखे  हुए विरुद्ध कार्य करना क्षुद्र मनुष्यके लिए असाध्य है। बेचारा प्रबोध वर्षभर परिश्रम करने पर भी परीक्षा में फेल हुआ और सिर पर मुसीबत रहते और हृदयमें दारुण आन्दोलन रहने पर भी में परीक्षा में पास हो गया। भने विचारा कि विधिलिपि सचमुच अखण्ड- नीय है । जब हृदयमें असह्य यातना भोगकर भगवान्‌को कातर कण्ठ्से पुकारने पर भी विवाहकों नहीं रोक सका, तब बिचारा कि “भग- वान्‌ तुम्हारे कार्यो समझना मनुष्यके लिए असंभव है|” किन्तु शुभ विवाह हो गया इससे कया मेरे भीतरकी अग्नि शांति हो गई !

यह सोचकर मेंने विना चूँ किये हुए विवाह तो कर ही लिया कि पिताका अपमान होगा; किन्तु यह किसीको नहीं बतलाया कि प्राणके भीतर कैसा भीषण इश्विकरंशन हो रहा था । जिस दिन परीक्षाका फल प्रकाशित हुआ उस दिन मेरी फ़्लशब्या थी । मेंने स्थिर किया कि आज भी कुछ गड़बड़ न करके प्राणके भीतरको अगम्निको प्राणके भीतर ही बुझाऊँगा । दुलहिनके आनेके दिनसे मेंने भीतरके मकानका आना जाना ही छोड़ दिया था | 

संध्याके बाद कुछ सामाजिक और अपने कुलकी क्रियाओंके करनेके लिए मुझको घरमें जाना पड़ा | भावज बोढीं--देखा बहूका कैसा भाग्य है! इधर बहू आई, उधर तुमपास हो गये। यह कसी भीषण बात थी! क्‍या में बास्तवमें ऐसा अपदार्थ हूँ कि बिना स््रीके भाग्यकों सहायता पाये हुए परीक्षामें उत्तीर्ण ही नहीं हो सकता था ? फ़ूछोंकी सुगंधसे भरे हुए फ़ूलबासरमें लेटा हुआ में यही विचार रहा था | में सोचता था के मेरे पासवाली यह कदये ओर दुश्री क्ली अपने अशिक्षित और बुद्धिहीन मस्तिष्कमें मुझको कितना हेय समझ रही होगी । यह बात इसने अवश्य ही सुना होगी . कि भे इसके फोटोकों लेने जाकर इसके रूप पर मोहित हो गया ओर स्वय॑ मैंने ही इसके साथ विवाह करनेका प्रस्ताव किया ।

ओह, कितनी भयंकर बात है! ऐसी संतोष और आमोदकी बात सुनकर भा किस छ्लीका स्वाभाविक गव दसगुना नहीं बढ़ जायगा ? इसके अतिरिक्त जब संध्याको इसने यह सुना होगा कि मेरी एम. ए. की उपाधि मुझको इसीके भाग्यसे प्राप्त हुई है, तब इसने मुझको ।कैतना हेय समझा होगा और अपने आपको कितना बड़ा माना होगा!


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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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भाग 2

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मार्ग में भाग 1

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भाग 2

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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

24 अगस्त 2022
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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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