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भाग 4

23 अगस्त 2022

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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” | 

मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ” 

भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

बात ठीक थी, किन्तु उस चित्रको छोड़ देने की भी रत्ती भर इच्छा नहीं थी । इस लिए मेंने सोचा कि इसका निगेटिव तो मेरे पास हां है अभी दूसरी और छाप ढछाँगा | भाभी हँसती हुई उस छब्रिको लेगई मेरे जी में एक भीषण तर्क उठा | क्‍या एक दूसरे घरानेको कुँवारी कन्याकी छबि लेकर संध्याके आकाशकी ओरको देखते हुए बैठना यह क्या कुछ अनुचित काये हो गया ? सामने आँख जाने पर मेंने देखा कि एक फानूस आकाशमें उत्रातः हुआ चला आरहा था। जब- तक फानूस दइृशष्टिसे बाहर नहीं चछा गया तब तक में बराबर उसीकी गतिको देखता रहा। मैंने सोचा कि शायद भावज अपने जी।+ यह समझेंगी कि ऊषाके सोन्द्यने रमेशके हृदय पर अधिकार कर लिया है । बड़ी भूल मुझसे होगई। मेंने उनसे कह क्‍यों न दिया कि ऊषाका असली रंग काला है, केवल मेरी कारीगरीहीसे चित्रांकित ऊषाका रंग सुन्दर सा दीख पड़ता है। 

उस दिन “श्यामा-पूजा ” थी | दादा सोदागरी आफिसमें खजा- ज्वीका काम करते थे | इस लिए और दिनोंमें उनको नो बजेके भीतर ही दो पहरके भोजनकों समाप्त कर लेना पड़ता था | आज छुट्टीका दिन था, संभवत: ओर दिनोंके प्रातःकाल ही भोजन कर डालनेके कष्टका बदला लेलेनेके लिए दोपहरका समय बीत जानेपर भी स्नानादि किसी काममें भी वे आग्रह नहीं दिखछाते थे । वे उस समय तक बैठकमें बैठे हुए “ अअ्चना ? हीको पढ़ रहे थे और पिताजीके साथमें किसी विषयमें गूढ़ परामश कर रहे थे। पिताजीकी प्रकृति स्रभावहासे गेभीर थी किंतु फिर भी वे मामलेकी बातोंमें दादाकों शर्रक करके उनको सम्मा- नित करते थे | उनके दरबारमें में बहुत ही कम जाता था। माताहीन बालक प्राय: पिताहीसे बडा प्रेम रखते है, किंतु मेरी प्रकृति और प्रकारकी थी। उन दिनोंमें मेरी परीक्षा पास आगई थी | इस लिए भें पासके कमरेमें बैठकर विश्व विद्यालयकी निर्वाचित पाठ्यपुस्तकोंसे घनिष्ठता करनेकी चेश कर रहा था । अचानक दादाने मुझको बुलाया । मेरे कमरेम प्रवेश करत ही पिताजी अन्यत्र चले गये। 

दादाने पूछा--“ प्रकाशका घर कहाँपर है? ” 

मैंने उनको ठीक ठाक बतदादिया । किंतु मुझको कुछ विस्मय भी हुआ कि इस प्रइनका तार्त्पप क्‍या है ! 

उन्होंने पूछा--“ प्रकाशके पिता क्‍या करते हैं ? ”

 मैंने कहा---/ वे हाइकोर्टके बकीछ हैं। उनका नाम---बाबू है ।

 उन्होंने कहा---“ ओह, वे तो बड़े नामी वकील हैं |”

 मेंने पूछा--“ क्यों दादा, उनके विषयमें आप इतनी पूछताछ क्यों करते हैं ? ” 

दादा बोले, “ इस बातका जानकर तू क्‍या करेगा  ” 

सब मामला  मार्के का समझ पड़ने लगा । मनमें संदेह हुआ कि भाभीहीने उस छब्रिको लेकर एक काण्ड खड़ा कर दिया है। किंतु प्रकठमें चित्रकी कोई भी बात में नहीं कह सका । भी मॉतिसिे देख- नेपर मुझको देखनेमें आया कि दादाके अधरके सिरेपर कुछ हँसी छिपी हुई थी 

भैया दोयजके दिन भाईके साले अवनी निमंत्रणमें आये | अवस्थामें मेरी अपेक्षा कम होनेपर भी साले होनेके कारणसे वे मुझसे हँसी ठठोली करते थे। थोडी देर बातचीत करके अवनी बोले--- रमेश बाबू , आपके “रोमेंटिक लाभ” की सब बातें मैंने सुनीं। यह ठीक ही है, आजकलके बाजारमें अपना “ पार्टनर ” (जोड़ा ) आप ही ठीक कर लेना अच्छा है | 

अब मुझको तिलभर भी संदेह नहीं रहा । मेंने जान लिया के छबिवाली बात महिलामस्तिष्ककी उवैरतासे इतनी दूरतक फैल गई है। उसकी भ्रांत घारणाको दूर कर देनेकी मैंने उचित चेश की, किन्तु किसी भांति भी उसके उस विश्वासको में तोड न सका | 

उस दिनसे एक विषम भावना मेरे हृदयको हिलाने लगी। इस बातको सबको केसे समझाऊँ कि ऊषा पर मेरी आसक्ति नहीं है ! भद्गता के कारण से में मित्र की बहिन की प्रशंसा कर सकता था, किंतु इसी बातसे उसको अपने जीव्रन की संगेनी बना लेने की मेरी बेल- कुल इच्छा नहीं थी । मेरे मनमें तो यह इच्छा थी कि किसी असामान्य रूपवाली /श्री वाली बुद्धि और विद्यावकी  छलनाका पाणिग्रहण करूँगा | बन्धुबांघवोमें दो एक वार इस व्रिषय पर मेरा गवेषणापूर्ण  व्याख्यान भी हो चुका था कि आदर्श स्त्री कैसी  होती है। 

 मैंने कल्पना से जिस आदरशेको हृदयमें चित्रित कर रक्खा था ऊषा उससे कितने ही सीढ़ी नीचे है यह बात सबके सिरमें केसे प्रवेश कराऊँ | इसका कोई भी उपाय समझमें नहीं आता था । ऊषाके संबंध में जितना भी विचार करता था वह उतनी ही बुरे रूप और श्रीवाली समझ पड़ती थी। यह तो उसके कपड़े ओर गहनोंके पहि- नावसे ही विदित हो गया था कि वह शिल्पसे अनभिज्ञ है। फिर भी और सब छोग यही समझ रहे थे | उसके गुण ओर रूपमें में मोहित हूँ। छिः, छि: मेर कानों तक फेले हुए उज्बल नेत्र द्वय क्या सवंधा ही दश्टिहीन हो गये ?

 कैसी भ्रांत घारणाम फँसकर घरवाले स्नेहके कारण बडी पिन्से कार्य कर रहे थे ! 

मैंने जीसे सोचा कि मुझको इस बात का पता पहले क्‍यों न लग- गया कि पिताके हृदयमें इतनी उदारता और इतना रनेह है। भूलसे यह विश्वास हो जाते ही कि में एक लडकीसे प्रेम करता हूँ थे कितनी चिन्तासे का रहे हैं | भेंने विचारा कि इन बार्तोमें घर्वालेंहीके दोषसे अनेक युवकोंका भविष्य एक वारही दुर्दशापूण बन जाता है कितने ही युवक आत्ससंयम न कर सकने पर पाप करनेकी ओरको झुक पड़ते हैं। 

यह विचार कर मेरा जी बडा ही व्याकुछ हो जाया करता था कि भेरे विषयम यद्यपि पिताजीका उद्देश्य बहुत ही भला है, तथापि उसका फछ विषमय होगा | कभी कभी भें यह भी सोचता था कि पिताजीका कहना न माननेसे भी क्‍या होगा। क्योंकि एक न एक दिन विवाह तो करना ही होगा । विवाहित जीवनका संपक स्रीके रूपसे बहुत थोडा ही है। किन्तु ज्यों ही में उषघाकी बात सोचता था त्यों ही उसके रूपके दोष बड़े विराट आकारमें मेरे हृदयके नेत्रोंके सन्मुख आ जाते थे। और यह बात मुझको बडी पीड़ा देनेवाली बनगई कि मुझको ऊषाकी दृष्टिमें भी हेय बनना पडा | इस लिए उसको केवल शोभा- हीन मानकर भी शांत नहीं हो पाया-मुझे उस पर क्रोध आया और हिंसाका भाव हुआ | भावज पर भी ऋरेघ हुआ । मेंने सोचा कि वास्तवमें स्लियोंकी बुद्धि प्रलय करनेवाली है । 

क्रमसे यह अवस्था हो गई कि इस बातकी हृदयमें दाबे रखना असंभव हो गया । पर पिता या दादासे तो इस बातकों कह डाल- नेकी शिक्षा या क्षमता मुझमें थी नहीं | ओहो ! वे कैसी भारी भूलकी नींव पर मेरे सुखके महरूकों बनानेकी चेष्टा कर रहे थे | मेरी कल्प- नामें इसका भावी फल भी मिल भावसे चमकता दिखाई दे रहा था। में जान रहा था कि यह अगद्गाडका मेरे ऊपर गिरकर मुझहीकों पीस डालेगी । 

इस सारे अनिष्ट की जड भावजसे मेंने एक दिन कहा, “छि; छिः, भार्भी ! तुमने वे सा बचपन किया ?” 

उन्होंने कहा---“ क्यों मेरा क्या अपराध हैं ? ”! 

मेरे जामें बहुत सी बातें उठ रही थीं | इस लिए घैय घरकर मेंने उनसे कहा-- 

क्या मेरे नेत्र नहीं हैं? यदि अपने आप देखकर ही में विवाह करूँगा, तो भला प्रकाशकी बहिनके रूप ही पर जाकर क्‍यों मोहित होर ऊँगा  तुम सबको रोक देओ । मुझे सदाके लिए विपदमें न फँसा देना।  

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

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भाग 2

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मार्ग में भाग 1

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भाग 2

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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

24 अगस्त 2022
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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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