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भाग 2

23 अगस्त 2022

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं तुमको प्यार करता हूँ । तुम्हारी चिट्ठी पाकर कल उससे खूब झगड़ा किया । तुम्हारे प्रेमकी सब बातें उसको आदिसे अंत तक सुनादीं । उसको भली भाँति समझा दिया कि में तुम्होरे गुणों और शैक्षापर मोहित हूँ, तुम्हीं मेरी एक मात्र अर्धाश्वरी हो, तुम्हारे रूपकी ज्योति संसारको जीत लेनेवाली है, तुम्हारा प्रेम बड़ा गहरा है, हमारे तुम्हारे प्रेमकी धार उसकी जैसी छोटी बेलसे रुकनेवाली नहीं है और मेरे चित्तकी गतिको रोकनेकी चेष्टा करना उसका पागलपन है। वह ये बातें सुन कर चुप हो रही । शायद रोती रही होगी । उसको कोई बड़ा रोग होगया है । दिन दिन दुबली होती जाती है; अच्छा इन सब बातोंको अब इस समय छोड़ो । सुषमा ! अब फिर तुम कब देखनेको मिलोगी ? ना समझ भुजेनको एक वार फिर न भेज दो कि वह आमंत्रित करके मुझे बुला लेजाय । देखा, आदमी विना लिखेपढ़े कैसा होता है? क्‍या तुमको उसपर दया नहीं आती १ अब अधिक लिखना व्यर्थ है | मिलने पर सब हाल कहूँगा। सुषमा अब विदा लेता हूँ । इति । 

अमभिन्नह्दय, अमर । 

 प्राणाधिक अमर, देखा कैसा साहस किया ! उसीके हाथों तुम्हारे पास चिट्ठी भेज दी थी | प्रत्येक पढ़ी लिखी स्त्री  के यादे ऐसा ही बुद्धिमान स्वामी हो, तो आत्महत्या करनेवालोंकी गिनती बहुत बढ़ जाय | लाख (मोहर अम्मा आते तो खूब अच्छी तरह देख ली थी कहीं वह सस्तेमें खोल कर पढ़ लेता ? डर भी क्‍या था ? बह तो मुझसे यमकी तरह डरता है। उड़ा देती, कह देती कि वे बड़े ठठो लिये हैं, इसी लिए मेंने भी हँसी की थी। आज रातको आना मत भूल जाना | निमंत्रणकी याद दिलनेहीके लिए यह चिट्ठी लिखी है । चातकीकी भाँति आशासे सड़कहीको देख रही हूँ । न आओ तो मेरा ही सिर खाओ-आना ज़रूर ! 

सेविका, सुषमा ।

 प्यारी मृणालिनी, बड़ी सर्दी होगई है | वैद्याज बहुत सोचमें पड़े हैं | कहते हैं । कविता  क्‍या कारण है? बूढ़ेने सैकड़ों  श्लोक सुना डाले | हाय भाग्य ! क्या शाद्म सभी बातें लिखी पड़ी हैं! मैंने मन ही मन सोचा कि ओझाको बिना बुलाये यह बीमारी नहीं जा सकती । बिना बैगीके भला कहीं वैद्यके घरका सांपकाटा अच्छा होता है ? मैं तेरी बड़ी बहिन हूँ । तेरे पेरों पड़ती हूँ कि इस मामलेमें अब अधिक झगड़ा मत उठा। तेरी चिट्ठी पाकर ही तो श्वसुरर्जाको रोगकी पहिचान हुई है | पहले कोई भी नहीं समझा था। सास जो सेवा जुश्रूषा करती हैं, उससे मुझे कष्ट होता है। तुम्हारे पीडाके संवाद देनेहीसे ब्राह्मणकी छडकौको इतना कष्ट हुआ | अब सबको देखकर उनके पैरोंकी घूछ शिर चढ़ाती हूँ | तीन दिनसे रोग बहुत बढ़गया है । उठा नहीं जाता है| जान पड़ता है कि शांति पास ही है। मेरा अपने लिए हादिक आशीबोद जानना | इति ।

 तुम्हरी अभामिनी बहिन, किरणबाला |

भली भाती  समझ  लिया कि किरण दीदीकी भृत्युका कारण में ही हूँ । साल भर पहिले जान पाती तो अच्छा होता । कया करूँ? बहुस ही सबल वासना की ऑधीके झोकि मे पड़कर में तिनकेकी भातिसे डड गई | जिस समय पतंग दीपककी उज्ज्वल चमक देखकर मोहित : होता है उस समय उसको यह नहीं सूझता है कि दीपक केबल . जलानेहीवाला है, वह फल नहीं है और न उसमें प्राण और मन हर- : नेबाली सुगंध है। नरककी बाहरी चमक दमक देखकर ही मैं पागल गई थी-कूद कर जाने पर दीख पडा कि वहाँ| मिरी आग ही है- जिस शांति-बलको पीनेंके लोभसे मैंने इहकाल और परकाल दोनोंको . जलाञ्जलि दी थी, अब वहीं हछाहल दिखलाई पड़ रहा है ! कौन . जाने कि असली शांति मिलनेमें अभी कितनी कसर ओर है। क्यों . बहिन, क्‍या तुम मुझे क्षमा नहीं करोगी ?

 किरण दीदीका नाम आते : ही मेरा सब शरीर कांप उठता है। न जाने इस प्रश्चात्तापसे कैसे . छुटकारा होगा ? छोक छाजसे आत्महत्या करनेको सोचती हूँ किन्तु . पापीको मृत्युका बड़ा डर होता है! बड़े भारी जीवनके शेष द्विन भस्म हो जायें, नरकके धुयेंसे साँस रुक जाय, हाफ हॉफ और रो रो कर मैं जवानाके पागलपनके पापके प्रायश्वित्तको कहूँ;। बहिन, दया करके एकाध चिट्ठी तो भेजती रहना | कहीं लुम भी इस अभागिनी और पतित बहिनसे घृणा न करने लगना  हतभागिनी सुषमा | सुषमा | 

अब जाना कि में क्‍या खो बैठा ! प्रेमकी भागीरथीकों छोड़कर सूखी बावर्डामें जल पीनेकी गया था, यौवनके धमंड्से पशुबुद्धिबश बहुमूल्य रत्नको फेंक कर काचके संसर्गसे अपने शरीरको क्षतविक्षत कर बैठा, देवीके बदले राक्षसीकी आराधना करके उपहारम अशांति पाई । नहीं, तुम्हारा कुछ भी दोष नहीं है | इस पापका करनेवाला तो में ही हूँ। कौन कहता है कि किरण मरगई । वह तो हर घड़ी अपने स्वर्गीय प्रीतिषण मुखसे मेरे साथ रहती है। अभागिनी किरण मेरी थी! वह अब भी मुझे नहीं छोड़ पाती है ! जीमें होता है कि देखे कि अभी और कितने पाप कर सकता हूँ! नहीं किरण अब तुम्हारे हृदयमें में क्षयरोग पेदा नहीं कर सकता | अब छाख चेष्टा करने पर भी तुम बिना बोले हुए चुपचाप मेरे पाशविक अत्याचारोंको नहीं देख पाओगी | हाय, अब तो नृशेस, निठुर और पापी स्वामीको आप मरते मरते ताड़के पंखेसे हवा करके शांति नहीं दे पाओगी | अब जब तुमको जलाने और दुःख पहुँचानेमें समर्थ ही नहीं हूँ तब फिर पाप करूँगा ही क्‍यों? 

किरणका मरना भी अच्छा ही हुआ---उसके गम्भीर प्रेमका पता चलगया । और यह भी समझमें आगया कि विद्याका घमंड एक जघन्य और गाहित कर्म है। इसी लिए कहता हूँ कि “आओ ) सुषमा हम तुम दोनों पिशाच और पिशाची एक साथ बेठकर चिरकालर तक पश्चात्ताप करें ओर रो रो कर कहें---“ किरण ! किरण ! हमको क्षमा करो !” 

हतभाग्य अमर

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
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भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमान

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

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यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते

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भाग 2

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दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

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मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

22 अगस्त 2022
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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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23 अगस्त 2022
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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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