उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता आनन्द्से खिल उठे। उन्होंने कहा, “मैं तो बराबर कहता था के रमेशकी बुद्दि बड़ी प्रखर है।” जो लोग मेरे नामक साथमें “दुष्ट, मन चाही करने वाला, अवाध्य ? प्रभ्मति सुलालित ओर मघुर विशेषण जोड़ा करते थे वे भी आज प्राण खोलकर मेरी प्रशंसा करने छगे | और मैं यह भी नहीं कहना चाहता हूँ कि मेरे
चित्तमें एक नई प्रसन्नता आकर हृदयके भीतर तकको झकोरे नहीं देदेती थी। अवसर मिलते ही मैं अकेलेमें बेठकर मँगरेजी और बंगालीमें छोटे बड़े नाना विधिके अक्षरोंमे 'रमेशचन्द्र दत्तसेन, बी, ए-- इस प्रकारसे अपना नाम लिखकर देखता था और अपने बड़प्पनको समझता था | एक ओर खूब छिपी हुई बात भी है जो कि मेंने किसीसे कही ही नहीं । उन दिनोंम मेरा जो कोई भी मित्र या परिचित मनुष्य कहीं था उसीको मेंने बिना आवश्यकता पत्र लिख डाला । इसका उद्देय यह था कि उत्तर देते समय वह सिर नामे में “रमेश चन्द्रसेन बी. ए .'लिखकर मेरे हर्षको अवश्य ही बढ़ावेगा | किन्तु भाग्य दोषसे कोई तो पत्रका उत्तर देते ही नहीं थे और जिन्होंने उत्तर दिया उनमें- से बहुते रोने भी बी. ए. उपाधिको बाद देकर उत्तर दिया।
अच्छा इसे छोडो। में इस परीक्षाके फलसे पिताका बहुत ही चहीता हो गया। मेरे किक्रिट और फुटबाल आदि खेल पिताजीकी दृष्टिमें अब दोष ही समझे जाने लगे । दादा बड़े ही शिष्ट, शांत और सरल प्रकृतिके पुरुष थे। एक दिन आदर करते हुए कहने लगे--- रमेश ! भाई अब तुझको मेरी भाँति खजाश्वार्गारी करते हुए जीवन नही बिताना पड़ेगा । बाबा तुझको अबश्य ही डिपुटी मजिस्टेट बनवा देंगे । उन दिनोंमें मुकको डिपुटीगीरीका कोई बड़ा चाव नहीं था। मेरा छोभ तो एक फोटोग्राफ कैमरा का था । मैंने दादासे कहा, “दादा, बाबासे कहकर एक फोटो खींचनेका केमरा न मुककों मोल दिलवादो |:
दादाने कहा---भल्ला इसकी ऐसी क्या बात है ? बाबासे कह न दे | मेने कहा--नहीं भाई तुम ही कहो । मुझे बड़ी लज्जा आती है;, क्योंकि अभी उस दिन में बाइसिकिल मोल लेचुका हूँ।
दादाने कहा -हों यह तो ठीक है । अन्तमें बड़ी देर तक दादासे सलाह करने पर यह ठहरा कि बाबाके सामने यह प्रस्ताव भावज द्वारा पेश कराया जाय । बाबासे डरते तो सब ही थे; किन्तु फिर भी भाभी औरोंकी अपेक्षा किसी भी प्रत्तावकी अधिक साहसस उपस्थित कर देती थीं ।
भावजने थोड़ी देर टाल मटूल करके कहा-“ यदि बाबा बुरा भला कहने लगे ” मेंने कहा “ भाभी, भला बाबाकी बातका क्या बुरा मानना ”
भाभी बोलीं-“ यदि ऐसा ही है, तो तुम खयं ही क्यों नहीं कहले- ते हो ?”
इस तरह थोड़ेसे वादानुवादके पीछे वे कहनेको राजी हो गई । मैं आनंदित मनसे बाइसिकिल पर बैठ कर चल दिया ।