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भाग 4

23 अगस्त 2022

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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष्ठर मत्तिको हृदयसे एक बार ही मिटा दूँगा अन्तमें गिरीश बाबूके कहनेसे में एक मुंशी रखकर “ इन्तख्रावे हबीब” नामक पुस्तकमें सिंह, ग्दंभ और मंदूक इत्यादिकी अपूर्व हिकायतें पढ़ने लगगया, और प्रति दिन मशीनके पहियेकी भाँति अदाल्तकों आने:जाने लगा ।

चार बरस गिरीश बाबूके साथ रहनेसे ओर अपनी मेहनतसे मेरी प्रेक्टिस कुछ कुछ जमगई । कमीशन लेना बन्द कर दिया और थोड़ी मीठी मीठी बातों और थोड़ेसे परिश्रमसे मुख्तारोंके दलमें प्रिय होगया। धीरे धीरे आमदनीकी राह खुलती जा रही थी ।

पहले पहल जब विदेशमें आकर  अपूर्ब विध्नबाधाओं में पड़कर ( संग्राम ) कर रहा था, तब सोचा करता था कि आर्थिक दशाकी उन्नति होजाने पर सुखी बन जाऊँगा | किन्तु अब आर्थिक दशाकी उन्नतिके साथ ही जीमें प्रश्न उठता था कि यदि ऐसी आदमनी कलकत्तेमें होती तो कैसा रहता! 

आज कोटसे लोटकर धरमें बैठा हुआ ज्लीके साथ हँसी मजाक कर रहा था।

 वह कहने लगी--- कुछ दिनकी छुट्टी लेकर घरको क्यों नहीं चलते ? कलकत्तेमें बच्चेका अन्न प्रासन संस्कार करके फिर लौट आवेंगे।” 

मैंने कहा---“ तुम ब्यर्थ में हमारा मन मत बिगाड़ो, सरल ! तुम्हारी ही बदौलत तो देश छोड़ना पड़ा है | तुम्हरे ही कारण तों  आज मैं अपने कुटुम्बियोंको छोड़े हुए परदेशमें पड़ा हुआ हूँ । यदि उसबार तुमने नाराज न कर दिया होता, तो भला  इस देश मे  क्‍यों आता १?”

मेरी आवेगभरी हुईं भाषा सुनकर सरला खूब हँस पड़ी जिससे कि उसकी स्वाभाविक कांति दूनी उज्ज्वल होगई । में उसके हँसनेसे बिग- ड्कर बोला---“ अब यदि उस बातके कहनेसे तुम हँसोगी तो मैं . तुमसे बोलना चालना बन्द कर दूँगा। ” 

सरला बोली--- “अब परदेशमें ऐसी चालाकी नहीं चल सकती ।” में अपने हृदय पर अपना संयम दिखानेके लिए बरामदेमें चला आया | नीचेका नजर पहुँचते ही कई एक जिप्सी सड़क पर चले जाते हुए दिखाई दिये | उनको देखते ही हृदयमें एक प्रकारकी उत्ते- जनासी माहम हुई | दौड़कर घरमें जाकर 

सरला से कहा--- “ सरला जल्दी बाहर आओ, क्‍या एक नई चीज देखोगी ? ” सरलाने आश्वर्यस मेरी बाँह पकड़कर कहा---

“ क्या नई चीजहै !” मैंने कहा--“ तुमको दिल्लीके ईरानी जिप्सियोंका हाल सुनाया था । तुमने ईरानी जिप्सी देखने चाहे थे । आज ये कई जिप्सी घरके सामनेसे होकर जा रहे हैं, आओ-जल्द आओ। ” सरला झपटकर बाहर आई । तब तक ईरानी मेरे सामनेसे आगे बढ़कर कुछ दूर निकल चुके थे। सरलछा उनको भले प्रकार नहीं देख पाई । 

सरलां बोली--- “ तुम तो कहते थे कि सझीना बड़ी सुन्दरी है। इन लछोगोंकी देखनेसे तो वह बात ठीक नहीं जान पड़ती। ”

मेंने कहा---“ तुम इन लोगोंको भली प्रकार देख न पा सकनेहीसे ऐसा कह रही हो। इन छोगोंमें सभी बड़ी सुन्दरी होती हैं।”

इरानी रमणी | , सरला  बोली--- जब तुमने उसको सुन्दर समझा था तब तुम कुआरे थे |!”

मैंने सरलाकी ठोड़ी पकड़कर कहा---“ तुम्हें अपने रूपका इतना घमंड है ? ” सरला अप्रतिभ होकर मुझसे हाथ छुड्शाकर भीतर चली गई।

ऊपरकी घटनाके दो दिन पीछे में संध्याके समय आफिसमें बैठा हुआ कागजपत्रोंको उल्टपछ्ट रहा था कि इतनेहीमें बहुत ही सुंदर कांतिवाले एक मुसलमान युवकने आकर सलाम किया | यह युवक जाना पहिचाना हुआसा माद्धम होता था, किन्तु ठीक तरहसे मैं यह स्थिर नहीं कर सका कि उसको मेंने कहाँ देखा था । 

वह बोला--- “ क्या वकील साहब, पहिचानते नहीं हैं? ” मेंने कुछ अप्रतिभ होकर कहा---“ माफ कीजिए, याद नहीं आती के कहें आपसे मुलाकात हुईं थी। ” 

युवक ने कहा--- “अब्दुल मजीदको भूलगये ? ” मेरी  कपाट ख़ुलगया | यह तो मेरा वही जाना  (रसप्रिय ) अब्दुल मजीद है । बहुत दिनों पीछे उसके मिलनेसे बहुत ही आनन्द हुआ | मैंने एक बार ही उस बेचारेंको अनेक प्रस्‍नोंकी झड़ी लगाकर बचैर लिया |  

मजीदने कहा---“ इतने सवालोंका एकसाथ जवाब देना तो मेरे लिए बिल्कुल ही नामुमकिन है | इस समय कुछ गुप्त बात कहना है।” 

मैंने अपने मोहरिरकी ओरको देखा, जिससे वह बाहर चढागया । 

मजीद बोला “ आपको पहिली बार ही मेंने पटनामें देखकर पहिचान लिया था |”

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

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भाग 2

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मार्ग में भाग 1

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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