shabd-logo

ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022

8 बार देखा गया 8

 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उससे बहुत कुछ भिन्न है | इसी कारण मुझको अपनी पश्चिमयात्राका पूरा मुख नहीं मिला  | और जान पड़ता है कि बड़ोंकी बात न माननेका पाप भी मेरे पीछे पीछे गया था। माँने कहा था कि ' छठको यात्रा नहीं करते हैं किसी और दिन जाना |! इस बात पर हाजिर जवाब मणीन्‍न्द्र बोला था---“ यदि इस दिन यात्रा नहीं की जाती है तो भीड़ ट्रेममें कम होगी । छठ्हीकेा चलो ।” किन्तु सेशन पर जाकर देखा तो आशंकासे भी अधिक भीड़ निकली ! इसके अतिरिक्त गयाजीमें स्थानका अभाव, और काशीजीके बन्दरोंका उपद्रत्र आदि कितनी ही छोटी मोटी दिक्कतोंने हमारे श्रमणमें बराबर साथ दिया। प्रयागके पवित्र संगम पर स्नान करके हमने अक्षयबट देखनेके लिए दुर्ग प्रवेश किया । न जाने एक सिपाहीने हिन्दुस्थानी बोलीमें क्या कहा । अंतमें जब उसने समझमें आनेवाली भाषामें गाली दी तब जाना कि किसी निषिद्ध स्थानमें आना हो गया। पैसेकी हानि तो बराबर पग पग पर होती थी । गाड़ीवाले, इक्केबाले, और कुली आदि सभी हमको ठग लेते थे | जब प्रयागमें दही मोल लेकर एक ज्लौसे दाम पूछे, तब वह बोली---“ दो डब्बछ ” | मेंने मुखसे कुछ भी छोट फेर किये बिना उसको चार पैसे दे दिये । किन्तु फिर सुननेमें आया कि डब्बलका अर्थ है एक पेसा । 

दिल्ली पहुँचने पर हमारे भाग्य ख़ुलनेका प्रधान कारण हुआ रात्तेमें एक अँगरेजी और हिन्दुस्थानी भाषा जाननेवाले साथीका मिलना | अब्दुल मजीदसे गाड़ीहीमें परिचय हो गया था। वह भी हम ही जैसा ऐनक लगानेबाला, कालेज से  नया निकला  हुआ, श्रमणप्रिय युवक था | इस लिए हम लोग बहुत ही थोड़ी देरमें परस्पर घुल मिल गये |

 हम लोगोंने उसको प्रेसिडेंसी कालेजके हाड्चाठ सुनाये ओर उसने ! हमको अलीगढ़ कालेजकी बहुत सी बातें बतलाई | अन्तमें यह ठहरा कि दिल्लीमें जाकर हम सब छोग एक ही स्थान पर ठहरेंगे | मजीदके परामशैसे हम झोग जाकर चौंदनी चोकमें तोतारामके होटलमें ठहरे । 

दिल्ली शहर अब्दुल मर्जादका भी भाँति देखा हुआ था। इस लिए वह हंमको लेकर दिनभर घुमाता फिरता था। जुम्मा मसजिद मोती, मसजिंद, दीवान खास और दीवान आम इत्यादि अनेक ऐतिहासिक स्थानोंकी सेर करके हम छोग लुप्त मुगल गोरवको स्मरण किया करते थे । पुराने दिल्ली दुरगपर स्थान स्थान पर अरबी ओर फारसीमें जहाँ जहाँ जो कुछ भी लिखा था वह सब मजीद हमको समझाता था । इससे हमको पता चलगया कि बी, ए. को पास न कर सकने पर भी मजी- दने अलीगढ़ कालेजमें केवल क्रीकेट खेलनेहीमें समय नहीं बिताया । 

 दिल्लीकी “ क्रीन्स पार्क ” में बैठकर हम लोग मणीन्द्रके साथ घरका लौटनेकी सलाह कर रहे थे । इन छः: सात दिनोंमें दिल्लीके द्श्योंको भली भाँति देख डाला था, इस लिए अब॑ अधिक दिनों वहाँ पड़े रह कर व्यथें समय नष्ट करनेको भी जी नहीं चाह रहा था। जान पड़ रहा था कि अब्दुल मजीद भी लखनऊ चल देनेको व्यग्र है | इस लिए दो एक दिन लखनऊ ठहरनेके पीछे घरको लोट जाना स्थिर हुआ | हम छोगोंको बागहीमे बैठा छोड़कर अब्दुछ मजीद अपने किसी मित्रसे बातचीत करनेको चला गया था | कोई आध घंटा पाछे वह हँसता हुआ लोट आया | हमने देखा कि उसके पीछे ही एक जिफ्सी स्त्री  थी ॥। उसका चेहरा बहुत ही हृष्ट पुष्ट और सुन्दर था और बिना सफाई किया हुआ घूल धूसरित खूब चमकता हुआ मुख था । युवतीके वल्ल बहुत ही मेले थे और जगह जगह पर फट भी गये थे । हाथमें एक छोटीसी पोठली लिए हुए वह टूटे हुए चपोले जूते पहने मजीदके साथ हमारी ही ओर॒को चली आ रही थी । 

मैंने कहा---“ हाँ, ठीक! यह तो भुक्खड़बद्भुओंके दलकी स्त्री माद्म होती है । जान पड़ता है कि मजीद इससे सॉपकी औषध मोल लेगा ।

 पास आते ही मजीद बोला--“ ब्रजेन बाबू , आज में एक नया जीव लाया हूँ । यह ईरानी जिप्सी है । परशियासे भारत घूमनेको आई है |” 

मेंने कहा--“ हाँ | में भी जानता हूँ | ये औरतें दक बाँध कर बंगाल भी जाती हैं। छोगोंसे झगड़ा करती हैं | छोटी छोटी चीजें ॥: ती हैं और जहाँ तहाँ मेदानमें डेरे डाछ लिया करती हैं | जब कोई मना करता है तब उससे लड़ पड़ती हैं। 

ईरानी इस्त्री  आगे बढ़कर घास  पर बैठ गई | मजीदने उससे कुछ कहा जिसपर युवतीने अपने हाथकी पोठ्ी खोलकर उसमेंसे बहुतसे छोटे पत्थर निकाले | 

मणीन्द्र बोला,“यह तो जौहरी मादूम होती है | बहुतती जवाह- रात निकाले डालती है ।” 

मजीद बोला---“ इनके पास बहुतसे कीमती पत्थर भी पाये जाले हैं | पोंछ कर साफ कर देनेसे येही अधिक सुन्दर दिखाई पड़ने लगेंगे  | 

युवती घास पर बैठी हुई एक एक करके बहुतसी वस्तुर्ये दिखाती रही । मजीद उसके साथमें खूब बातचीत करता जा रहा था। 

30
रचनाएँ
चित्रावली
0.0
चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
1

लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
4
0
0

भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमान

2

भाग 2

22 अगस्त 2022
1
0
0

इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

3

स्मति भाग 1

22 अगस्त 2022
0
0
0

यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते

4

भाग 2

22 अगस्त 2022
0
0
0

दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

5

मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
0
0
0

 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

6

भाग 2

22 अगस्त 2022
0
0
0

उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

7

भाग 3

22 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

8

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

9

भाग 5

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

10

सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

11

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

12

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

13

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

14

चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

15

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

16

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

17

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

18

भाग 5

23 अगस्त 2022
0
0
0

एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

19

भाग 6

23 अगस्त 2022
0
0
0

कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

20

क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

21

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

22

ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

23

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

24

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

25

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

26

भाग 5

24 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

27

भाग 6

24 अगस्त 2022
0
0
0

 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

28

भाग 7

24 अगस्त 2022
0
0
0

सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

29

भाग 8

24 अगस्त 2022
0
0
0

सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

30

अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
0
0
0

सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए