उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखसे फुहारेकी भाँति अनर्गल बातोंकी धाराएँ छूट रही थीं | दोनों स्त्रिया पागलोकी भाँति फिर रही थीं और मेरी ओरको ऊँगली उठाकर शायद फारसी भाषामें कुछ कहती जाती थीं ।
दारोगा साहबने उनको रोकनेकी चेस्टा की ओर बड़ी ही मीठी उर्दू में हमसे कुछ प्रूछा | मणीन्द्र उनके कहने को कुछ समझ गया, किन्तु मैं “ लड़की ” और जवाहरात इन दो शब्दोंके अतिरिक्त कुछ भी 'नहीं समझ सका ।
मणीन्द्र बोला ---“ जिप्सी ईंरानी लङकी का खोज करता हुआ आया |
दारोगा साहबने हँस कर टूटी फ़ूटी अँगरेजी में कहा--“ आपके जो साथी थे, वे कहाँ गये | ?
अँगरेजी सुनते ही मैंने एक लंबी चौड़ी वक्तता दी और फिर उनलोगोंस कहा--“ इतने छोगोंके साथ बल्पूवक हमारे यहाँ चले आना बहुत ही अनुचित हैं । और फिर हमारी ट्रेनका समय आचुका है। ट्रेन फेल हांन पर हमारी हानिको कौन भर देगा | कलकत्तेमें ऐसी अराजकता कभी नहीं हो पाती | ”
मेरी लम्बी चौड़ी वक्तताका मर्म न समझ सकनेपर दारोगा साह- बने फिर उर्दू ही छेड़ी | ईरानियोंका शरीर छूछूकर और कई वार जवाह- रात दिखला कर हमको समझा दिया कि ईरानी लोग कह रहे हैं कि आए लोगोंने लड़्की और जवाहरात चुराये हैं ।
इस बातको सुनते ही में तो अमप्निशमों होगया और बोला-! हम छोग क्या इन नंगोंकी लड़की और जवाहरात लेकर कलकत्तेको भागेंगे | ऐसी झूठी नालिस करेगा तो अच्छा नहीं होगा । जानता है कि हम कोन है ? ग्रेजुएट है।” मणीन्द्रने धीर भावसे कहा--“ नहीं क्रद्ध होने की बात नहीं है। इसमें मजीद मियांकी कुछ कारसाजी है |” इस लिए दारोगा साहबसे कहा-“ लड़की क्या चोदह पंद्रह वरसकी है ? ”
दारोगा साहब बोले--“ हाँ ! ये लोग कहते हैं ॥ कि इन दोने ल्लियोंने आपको लड़कीके साथमें क्कीन्सपाकेमें देखा था। ” मैं कुछ नरम होकर बोला-“ हम छोगके साथमें देखा था । नहीं मजीदके साथमें देखा होगा |
मजीद नाम जिसका है वह एक घूमने फिरनेबालेकी लड़की ले आया था। किन्तु यह हम केसे जान सकता है कि बादमें क्या हुआ दारोगा साहबने उन ठोगोंसे फार्सीमें बातचीत करके कहा के ये लोग भी कहते हैं ॥ कि आप लोगों के साथ में कोई मुसल्मान था, किन्तु फिर भी यह आपको निर्दोष नहीं समझते हैं ।
दारोगा साहबकी वातोंसे क्षणभरमें पता लग गया कि मजीद मियांकी शादीका रहस्य कदाचित् धीरे घीरे कार्यरूपमें परिणत हो गया ओर मित्रके कालरेकी बात बनावटी थी | वह हम छोगोंसे आज ही रातको दिल्ली छोड़ जानेके लिए भी इसीसे कह रहा था कि पीछेसे कभी हम पर कोइ विपत्ति न पड़े | यदि कुछ देर पले ही हम लोग चल पड़े होते तो इस झगड़ेसे बच गये होते ।
अस्तु, पल भरमें मर्णीन्द्रके साथमें मेंने परामशें किया | कुछ अँग- रेजी ओर कुछ हिन्दीमें मेंने दारोगा साहबको मजीदका सब दत्तान्त ऋमले सुना दिया । जिस युवतीको मैंने मनीदके साभ्रमें देखा था वह इन्हीं जिप्सियोंकी लड़की है या नहीं, यह स्थिर रनेके लिए उनसे उसका नाम पूछा । क्कीनपार्कम में उस छड़कीका नाम “ सठीना ! सुन चुका था।
ईरानियोंसे पूछ कर दारोगा साहब ने बताया ॥ कि उनकी कन्या का नाम सलीना था |” अब सन्देह का कोई भी कारण नहीं रह गया । दारोगा कहने लगा-“ मेरा विश्वास है कि सर्लना मजीदके साथ ही भाग गई है घबह आपको तो अपना कोई पता नहीं बतला गया है? ”
हमने दारोगासे कह दिया कि लखनऊके गोलागंजके मकबरें के अतिरिक्त ओर कोई पता भी उसने हमको नहीं बतलाया है | हमने पुलीसको यह संबाद नहीं दिया कि वह अलीगढ़ कालिजमें पढ़ता है या वहाँ- अनुसंधान करनेसे उसका हाल मिल सकता हैं। पहले तो हमको इसीमें संदेह था कि यह कार्य मजीदके द्वारा हुआ भी है या नहीं । दूसरे इतने थोड़े ही समयमें मजीदने हमको ऐसी मित्रताक परिचय दिया था कि जिससे उसकी कुछ भी हानि करनेको हमारा जी नहीं चाहता था । यदि बह वास्तवमें अपनी जवानीकी उमंगकी तरंग किसी ईरानी छलनाका अपनी धर्मपत्नी बनानेके लिए ले भी गया हो, तो उस बेचोरेन क्या बुराई का कार्य किया |
किन्तु यह पाप भुगतना हमको पड़ा | दारोगा साहबने बड़ी नम्र- ताके स्राथमें हम छोगोंसे क्षमा प्राथना करके बक्सोंकों खोलकर खाना तलाशी करनेका प्रस्ताव किया । उन्होंने कहा कि ये ईरानी के जवाहरात चोरी गये हैं | इस छि' करत्तेव्यके अनुरोधभे आप छोगेंके बक्सोंकी तलाशी मुझको लेन पड़ेगी ।
इससे अधिक अपमान सूचक बात या व्यवह्दर मेरी समझम और कुछ हो ही नहीं सकता था । केवल थोड़ेसे जंगली भुक्खड़ोंके कह- नेसे दो शिक्षित बंगाली प्रेजुएटोकी तछठाशी ली जायगी, यह सुनकर में बहुत ही ममाहत हुआ । यदि जेलखानेको जाना पड़े तो भी ठो ऐसे प्रस्ताव पर में राजी होनेवाला नहीं हूँ । किन्तु दारोगा साहब भी छोड़ देनेवाले जीब नहीं थे । उन्होंने पहले तो मीठी मीठी बातें की, पीछे वे बोले कि यदि आप छोग मेरे तदाशुकमें बाघा देंगे तो म जबरदस्ती तलाशी दूँगा और फिर ऐसा मनोभाव भी प्रकट किया कि अन्तमें आपको थाने छेजाऊँगा । मेंने उनके पीछे खड़े हुए दूतों पर दृष्टि डाडी, तोतारामके डरे हुए चेहरेको देखा और क्राधसे भरे हुए ईरानेयोंकी ओर भी देखा | अन्र्मे मणीन्द्रसे पूछा ॥के क्या करना चाहिए !
मणीन्द्र बोला-- देखें न, बकसोंमें क्या खाक घूल रखी है । व्यथ झगड़ा करनेसे क्या प्रयोजन है ” अब दारोगा साहबने खाना तलाशी आरंभ की । इस झेझटके मारे उसदिन रातकी गाड़ी नहीं मिल पाई और दूसरे दिन १० बजे तक वहीं पड़े रहना पड़ा |
उसबार पश्चिम जानेसे उर्दू ओर फार्सी भाषाकी झंकार सुनकर और उत्तर पश्चिम भारतवर्षमें सत्र ही उर्दूको प्रचलित देखकर जीमें बड़ी ही इच्छा हुई थी ककि उर्दू भाषाको अवश्य ही सौखँँगा । इतनी बड़ी ओर आवश्यकीय भाषाको सीख डालना प्रत्येक शिक्षित बंगा- छलका कत्तेव्य है। कलकत्ता लौठ कर छः मासके भीतर ही मैंने अपने संकल्पके अनुसार कार्य कर डाला और अपने एक मुसलमान मित्रके पास “अलिफ़बे फार्सी ” नामक उर्दू पुस्तकका पहिला भाग पढ़ना आरंभ करदिया |
इसके पीछे एक वार बी. एल, परीक्षाकी झंझटमें उर्दू पढ़ना बन्द करदेने पर भी परीक्षाके बाद दूने आग्रहके साथमें मेंने फिर पढ़ाई आरंभ कर दी | मेरे एक रिश्तेदार पटनामें विकालत किया करते थे। में जिन दिनों पास होकर अर्खपुरके सुशिक्षित मंडलरूपी तरुवरके शांतिप्रद आश्रयको ग्रहण करनेके विचारमें था, उन्हीं दिनोंमें मेरे एक नातेदार गिरीश बाबूने पिताजीको एक पत्र लिखा---“ यदि ब्रजेनका जी हो तो वह यहाँ हम लोगोंके पास चछा आ सकता है। यहाँ हम लोगोंकी सहायतासे वह आरंभहीसे कुछ न कुछ पाने लगेगा | किन्तु उदू जानना बहुत ही आवश्यक है । यदि आनेको इच्छा हो तो उसको उर्दू सीखनेकी चेश करना चाहिए | ”
गिरीश बाबूका पत्र पाते ही मेंने तो स्वगे ही हाथ में पा लिया | पश्चिमकी ओरको मेरी रुचि बराबर ही चढी जा रही थी और फिर कुछ ही दिनों पूर्व चिट्ठी पत्नीमें ल्लीसे अनवन हो जानेके कारण कुछ दिनोंतक निवासितकी माँति अपने घरके छोगोंकी भुछाये जाकर दूर परदेशमें अकेले रहनेके कल्पित चित्रको में अपने हृदय पटल पर अंकित कर रहा था। इस लिए पिताजीकों समझाकर मेंने कहा--- “पटना तो कलकत्तेके पास ही है, यहाँ तक '' कि सनीचरके सनीचर घर आते रहना संभव है। ”
किन्तु पिताने शीघ्रही कोई हॉमी या नाहीं नहीं का | अन्तमें जब उन्होंने मेरा बहुत ही आग्रह देखा तो कह दिया---'' मै तीन मासकी छुट्टी लेकर तुम्हारे साथ चलूगा, आगे जो कुछ होगा देखा जायगा |