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भाग 3

23 अगस्त 2022

19 बार देखा गया 19

उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखसे फुहारेकी भाँति अनर्गल बातोंकी धाराएँ छूट रही थीं | दोनों स्त्रिया  पागलोकी भाँति फिर रही थीं और मेरी ओरको ऊँगली उठाकर शायद फारसी भाषामें कुछ कहती जाती थीं । 

दारोगा साहबने उनको रोकनेकी चेस्टा की ओर बड़ी ही मीठी उर्दू में हमसे कुछ प्रूछा | मणीन्द्र उनके कहने को कुछ समझ गया, किन्तु मैं “ लड़की ” और जवाहरात इन दो शब्दोंके अतिरिक्त कुछ भी 'नहीं समझ सका । 

मणीन्द्र बोला ---“ जिप्सी ईंरानी  लङकी  का खोज करता हुआ आया   | 

दारोगा साहबने हँस कर टूटी फ़ूटी अँगरेजी में कहा--“ आपके जो साथी थे, वे कहाँ गये | ? 

अँगरेजी सुनते ही मैंने एक लंबी चौड़ी वक्तता दी और फिर उनलोगोंस कहा--“ इतने छोगोंके साथ बल्पूवक हमारे यहाँ चले आना बहुत ही अनुचित हैं । और फिर हमारी ट्रेनका समय आचुका है। ट्रेन फेल हांन पर हमारी हानिको कौन भर देगा | कलकत्तेमें ऐसी अराजकता कभी नहीं हो पाती | ” 

मेरी लम्बी चौड़ी वक्तताका मर्म न समझ सकनेपर दारोगा साह- बने फिर उर्दू ही छेड़ी | ईरानियोंका शरीर छूछूकर और कई वार जवाह- रात दिखला कर हमको समझा दिया कि ईरानी लोग कह रहे हैं कि आए लोगोंने लड़्की और जवाहरात चुराये हैं ।

इस बातको सुनते ही में तो अमप्निशमों होगया और बोला-! हम छोग क्या इन नंगोंकी लड़की और जवाहरात लेकर कलकत्तेको भागेंगे | ऐसी झूठी नालिस करेगा तो अच्छा नहीं होगा । जानता है कि हम कोन है ? ग्रेजुएट है।” मणीन्द्रने धीर भावसे कहा--“ नहीं क्रद्ध होने की बात नहीं है। इसमें मजीद मियांकी कुछ कारसाजी है |” इस लिए दारोगा साहबसे कहा-“ लड़की क्या चोदह पंद्रह वरसकी है ? ” 

दारोगा साहब बोले--“ हाँ ! ये लोग कहते हैं ॥ कि इन दोने ल्लियोंने आपको लड़कीके साथमें क्कीन्सपाकेमें देखा था। ” मैं कुछ नरम होकर बोला-“ हम छोगके साथमें देखा था । नहीं मजीदके साथमें देखा होगा | 

मजीद नाम जिसका है वह एक घूमने फिरनेबालेकी लड़की ले आया था। किन्तु यह हम केसे जान सकता है कि बादमें क्या हुआ  दारोगा साहबने उन ठोगोंसे फार्सीमें बातचीत करके कहा के ये लोग भी कहते हैं ॥ कि आप लोगों के साथ में कोई मुसल्मान था, किन्तु फिर भी यह आपको निर्दोष  नहीं समझते हैं । 

दारोगा साहबकी वातोंसे क्षणभरमें पता लग गया कि मजीद मियांकी शादीका रहस्य कदाचित्‌ धीरे घीरे कार्यरूपमें परिणत हो गया ओर मित्रके कालरेकी बात बनावटी थी | वह हम छोगोंसे आज ही रातको दिल्ली छोड़ जानेके लिए भी इसीसे कह रहा था कि पीछेसे कभी हम पर कोइ विपत्ति न पड़े | यदि कुछ देर पले ही हम लोग चल पड़े होते तो इस झगड़ेसे बच गये होते । 

अस्तु, पल भरमें मर्णीन्द्रके साथमें मेंने परामशें किया | कुछ अँग- रेजी ओर कुछ हिन्दीमें मेंने दारोगा साहबको मजीदका सब दत्तान्त  ऋमले सुना दिया । जिस युवतीको मैंने मनीदके साभ्रमें देखा था वह इन्हीं जिप्सियोंकी लड़की है या नहीं, यह स्थिर रनेके लिए उनसे उसका नाम पूछा । क्कीनपार्कम में उस छड़कीका नाम “ सठीना ! सुन चुका था।

ईरानियोंसे पूछ कर दारोगा साहब  ने बताया ॥ कि उनकी कन्या का  नाम सलीना था |” अब सन्देह का कोई भी कारण नहीं रह गया । दारोगा कहने लगा-“ मेरा विश्वास है कि सर्लना मजीदके साथ ही भाग गई है  घबह आपको तो अपना कोई पता नहीं बतला  गया है? ” 

हमने दारोगासे कह दिया कि लखनऊके गोलागंजके मकबरें के अतिरिक्त ओर कोई पता भी उसने हमको नहीं बतलाया है | हमने पुलीसको यह संबाद नहीं दिया कि वह अलीगढ़ कालिजमें पढ़ता है या वहाँ- अनुसंधान करनेसे उसका हाल मिल सकता हैं। पहले तो हमको इसीमें संदेह था कि यह कार्य मजीदके द्वारा हुआ भी है या नहीं । दूसरे इतने थोड़े ही समयमें मजीदने हमको ऐसी मित्रताक परिचय दिया था कि जिससे उसकी कुछ भी हानि करनेको हमारा जी नहीं चाहता था । यदि बह वास्तवमें अपनी जवानीकी उमंगकी तरंग किसी ईरानी छलनाका अपनी धर्मपत्नी बनानेके लिए ले भी गया हो, तो उस बेचोरेन क्‍या बुराई का कार्य  किया |

 किन्तु यह पाप भुगतना हमको पड़ा | दारोगा साहबने बड़ी नम्र- ताके स्राथमें हम छोगोंसे क्षमा प्राथना करके बक्सोंकों खोलकर खाना तलाशी करनेका प्रस्ताव किया । उन्होंने कहा कि ये ईरानी के जवाहरात चोरी गये हैं | इस छि' करत्तेव्यके अनुरोधभे आप छोगेंके बक्सोंकी तलाशी मुझको लेन पड़ेगी ।

इससे अधिक अपमान सूचक बात या व्यवह्दर मेरी समझम और कुछ हो ही नहीं सकता था । केवल थोड़ेसे जंगली भुक्खड़ोंके कह- नेसे दो शिक्षित बंगाली प्रेजुएटोकी तछठाशी ली जायगी, यह सुनकर में बहुत ही ममाहत हुआ । यदि जेलखानेको जाना पड़े तो भी ठो ऐसे प्रस्ताव पर में राजी होनेवाला नहीं हूँ । किन्तु दारोगा साहब भी छोड़ देनेवाले जीब नहीं थे । उन्होंने पहले तो मीठी मीठी बातें की, पीछे वे बोले कि यदि आप छोग मेरे तदाशुकमें बाघा देंगे तो म जबरदस्ती तलाशी दूँगा और फिर ऐसा मनोभाव भी प्रकट किया कि अन्तमें आपको थाने छेजाऊँगा । मेंने उनके पीछे खड़े हुए दूतों पर दृष्टि डाडी, तोतारामके डरे हुए चेहरेको देखा और क्राधसे भरे हुए ईरानेयोंकी ओर भी देखा | अन्र्मे मणीन्द्रसे पूछा ॥के क्या करना चाहिए ! 

मणीन्द्र बोला-- देखें न, बकसोंमें क्या खाक घूल रखी  है । व्यथ झगड़ा करनेसे क्‍या प्रयोजन है ” अब दारोगा साहबने खाना तलाशी आरंभ की । इस झेझटके मारे उसदिन रातकी गाड़ी नहीं मिल पाई और दूसरे दिन १० बजे तक वहीं पड़े रहना पड़ा | 

 उसबार पश्चिम जानेसे उर्दू ओर फार्सी भाषाकी झंकार सुनकर और उत्तर पश्चिम भारतवर्षमें सत्र ही उर्दूको प्रचलित देखकर जीमें बड़ी ही इच्छा हुई थी ककि उर्दू भाषाको अवश्य ही सौखँँगा । इतनी बड़ी ओर आवश्यकीय भाषाको सीख डालना प्रत्येक शिक्षित बंगा- छलका कत्तेव्य है। कलकत्ता लौठ कर छः मासके भीतर ही मैंने अपने संकल्पके अनुसार कार्य कर डाला और अपने एक मुसलमान मित्रके पास “अलिफ़बे फार्सी ” नामक उर्दू पुस्तकका पहिला भाग पढ़ना आरंभ करदिया |

 इसके पीछे एक वार बी. एल, परीक्षाकी झंझटमें उर्दू पढ़ना बन्द करदेने पर भी परीक्षाके बाद दूने आग्रहके साथमें मेंने फिर पढ़ाई आरंभ कर दी | मेरे एक रिश्तेदार पटनामें विकालत किया करते थे। में जिन दिनों पास होकर अर्खपुरके सुशिक्षित मंडलरूपी तरुवरके शांतिप्रद आश्रयको ग्रहण करनेके विचारमें था, उन्हीं दिनोंमें मेरे एक नातेदार गिरीश बाबूने पिताजीको एक पत्र लिखा---“ यदि ब्रजेनका जी हो तो वह यहाँ हम लोगोंके पास चछा आ सकता है। यहाँ हम लोगोंकी सहायतासे वह आरंभहीसे कुछ न कुछ पाने लगेगा | किन्तु उदू जानना बहुत ही आवश्यक है । यदि आनेको इच्छा हो तो उसको उर्दू सीखनेकी चेश करना चाहिए | ” 

गिरीश बाबूका पत्र पाते ही मेंने तो स्वगे ही हाथ में पा लिया | पश्चिमकी ओरको मेरी रुचि बराबर ही चढी जा रही थी और फिर कुछ ही दिनों पूर्व चिट्ठी पत्नीमें ल्लीसे अनवन हो जानेके कारण कुछ दिनोंतक निवासितकी माँति अपने घरके छोगोंकी भुछाये जाकर दूर परदेशमें अकेले रहनेके कल्पित चित्रको में अपने हृदय पटल पर अंकित कर रहा था। इस लिए पिताजीकों समझाकर मेंने कहा--- “पटना तो कलकत्तेके पास ही है, यहाँ तक '' कि सनीचरके सनीचर घर आते रहना संभव है। ”

 किन्तु पिताने शीघ्रही कोई हॉमी या नाहीं नहीं का | अन्तमें जब उन्होंने मेरा बहुत ही आग्रह देखा तो कह दिया---'' मै तीन मासकी छुट्टी लेकर तुम्हारे साथ चलूगा, आगे जो कुछ होगा देखा जायगा |

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
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भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमान

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

22 अगस्त 2022
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यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

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मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

22 अगस्त 2022
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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

24 अगस्त 2022
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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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