मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़का रहनेसे लोग निन्दा करते हैं , अब तो पचास रुपये महीना मिलते हैं, तब फिर सोच विचार काहेका ? ब्याह करो और संसारी बनो । मैंने कहा--क्यों माता, बड़े भाइयोंके बच्चे भी तो मेरे हैं। तब फिर संसारमें अभाव ही किस बातका है वे सब भले चंगे रहें, वंशका भला ही भला है। जिस समय मातासे मेरी इस प्रकार बातचीत हो रही थी उसी समय मैँँझली भावज आगई | उन्होंने कहा---मौॉजी भी ऐसी ही हैं जो उनसे तक करने लग गई ।तीन चार वर्ष पहले जब,..बाबूकी लड़कीके साथ ब्याह होनेकी बातें हुई थीं तब तो कोई उजर किया ही नहीं था ।
क्या तब लल्ला आदमी नहीं थे। अब कलककत्तेमें रहकर थियेटर देखे, साहब मेम देखे, और तमाम बातें हुईं। अब उनसे पूछनेकी आवश्यकता ही क्या है। कल हम लड़कीको देखनेको जा ही रही हैं। लड़कीको दूँढ़नेवालियोंके तो ढूँढ़ते ढूँढ़ते पैर छिल गये ।
भावजकी इस सैनिक विधिकी कार्यप्रणालीसे में अप्रसन्न चाहे जितना हुआ होऊँ, पर सोचा यही कि हमारे दादाको इसी बुद्धिसे चलना होगा और इस लिए बंगाली जातिकी वत्त॑मान अवस्था, बिना परिणाम सोचे हुए विवाह कर डालनेके कुफल, और लड़कीके ब्याहके संबंधके समा« जके अत्याचार, प्रभति अनेक विषयों पर वक्तृता देकर में स्टेशनकी ओरको चल पड़ा
वैद्यनाथ स्टेशन पर गाड़ीमें चढ़ते ही जो देखा तो हरिश बाबू दिखाई दिये । उन्होंने कहा--बाह, विना बादलोंके दशैनहीके जल | क्या आशु बाबू , शनिवारको घर गये थे ? | मेंने सम्मतिसूचक गर्दन हिलाई | उन्होंने कहा--कहो काम काज कैसा चलता है! मैंने कहा---हाँ, चलरहा है, अभी हालमें कुछ उन्नति हुई है। अब मुझे ५०) मिलने लगे हैं । हरिश बाबूने बड़ा आन॑द प्रकाशित किया | आज कलके बाजार में) मासिक उपाजन कर लेना साधारण काम नहीं है यह बात भी उन्होंने समझी। मेंने पूछा कि अविनाश बाबू क्या कर रहे हैं ?
उन्होंने हँसकर कहा---भला वह करेंगे ही क्या ? पिछली वार बी. एल. में फेल होगये थे, अब इस वार भी उसकी चेष्टा कर रहे हैं।. और बी. .एल. पास भी हो गये तो क्या होगा ? आप तो जानते ही हैं।'
में हँसा वह भी हँस दिये । मेरी हँसी ईष्यो पृणे थी। जो मनुष्य मेरे मुखके भ्रासको निकाछ लेजाकर मेरे जीवनभरकी शांतिको हर लेगया था उसकी और क्या भलाई हो सकती थी ।
हरिश बाबुने कहा--- आश् बाबू आपने इतने दिनों तक विवाह क्यों नहीं किया !
मेंने कहा--कोंई ठीक मीजान नहीं लगा । उन्होंने कहा---जब अविनाशका विवाह हुआ था तब उनकी च्लीको अवस्था कितनी थी!
मैंने कहा---मैं क्या जानूँ ! उन्होंने कहा--हाँ तुम क्यों जानने लगे ? बारह ही तेरह व्षेकी 'होगी, क्यों न ! मैंने कहा---हो सकती है। हरिश बाबुने कहा--देखो साहब छोग फिर भी कहते हैं कि बंगा- लियोंके जीवन में (रंगीलापन) नहीं होता है | जिस देशमें बारह वर्षेकी नायिकाके लिए एक बुद्धिमान् मनुष्य जीवनभर कुँआरा 'रह सकता है उस देशका रोमेन्स या रंगीलापन क्या सामान्य है! यह बात मुझको बहुत ही असह्य हुईं। ठीक उसी समय ट्रेन कोननगरमें पहुँचकर रुक गई । हमारा एक साथी यात्री एक थेला उठा- कर ओर अँगोछेमें बैँधे हुए दो एक अधमैले कपड़ों को लेकर उतर गया। मैं भी उसीके साथ उतरने छगा। हरिश बाबूने मेरा हाथ पकड़कर कहा--क्यों महाशय, कहाँ जाते हो ! मैंने कहा--मैं यहीं उतारूँगा।
हरिश बाबुने कहा--बाह सो क्यों ? अमी तो कहा था कि कल- कत्ता जाना है। क्मैंने कहा--हाँ, कहा तो जरूर था किन्तु में यहाँ उतरूँगा। हरिश बाबू एक व्यंगपू्णे हँसी हँसकर और रूमालको गढेमें डाल - कर हाथ जोड़कर बोले---मुझसे नाराज हो गये ? अच्छा क्षमा कीजिए अब उस बातको नहीं कहूँगा। उनकी भतक्तिसे मुझे हँसी आगई। हारकर और भी कई मिनिठों तक उन्हींके साथ बैठना पड़ा ।