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मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022

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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया |

जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्रामका कंडक्टर आकर उपस्थित हुआ, तब जेबमें हाथ डालकर अपनी तहबीलकी ठीक अवस्थाको जानकर मैं बड़े चक्करमें पड़ा । जेबमें हाथ डालकर जितनी बार भी गिना उतनी ही बार-एक, दो, तीन, चार, पॉच,-पाँच पेसोंसे अधिकका होना नहीं मादम होसका | में बड़ी विपदमें पड़ा चकित होकर एक बार गाड़ीके भीतर देख गया; गाड़ी आपफिससे छोटे हुए क्कोंसे भरी हुई थी |

गाड़ीम जाना पहिचाना ऐसा एक भी चेहरा दिखाई नहीँ पड़ा कि जो एक पेसा कर देता | कण्डक्टर गाड़ीसे निकलनेकी रा- हमें खड़ा था, इससे उतर पड़नेकी भी सूरत नहीं थी | यह एक नई  भाँतिकी विपदा  थी। कि जिसने आकर मरे मनकी स्थिरता पर गोली बरसाना आरंभ कर दिया था। यह लाख रुपयेकी चिन्ता नहीं थी, नौ- करी खोजनेकी भावना नहीं थी, बापके श्राद्धकी समस्या नहीं थी, काली लड़कीके विवाहकी दुश्चिन्ता नहीं थी इस सामान्य एक पैसेके अभावसे मेर श्यामवर्णके मुखने बेंगनी रंग धारण कर लिया ! और कंडक्टर भी बड़ा असभ्य था, बोल उठा कि “महाशय, टिकिट ।  ”

मैं  जातिका बंगाली ठहरा, इस लिए कुटिल बुद्धिका मौरूसी पट्टा - दार हूँ। मेंने सप्रतिभ भावसे कहा--“ बाबू तुम्हारे पास दस रुपये तो नहीं हैं ? ”

उसने कहा--नहीं महाशय, मुझको डिपोसे दस हि पयेकी इकट्ठी रेजगारी कैसे मिल सकती है ! मैंने कहा--ऐं | तब तो बड़ी मुश्किक दिखाई देती है। देखनेसे जान पड़ा कि खुरदा पैसे तो मेरे पास पाँचसे अधिक हैं ही नहीं ।

धीरेधीरे कण्डक्टर मुझसे जिरह करनेलगा---“ चवन्नी है ! अठनी है ? रुपिया है ? ” में भी मुठामियतसे सिर हिलानेलगा ।

मेरे पास ही हरिश बाबू बैठे थे | उन्होंने कहा--महाशय, यदि आपजीमें कुछ ख्याल न करें तो में एक पैसा उधार देसकता हूँ।

उनके चेहरे पर विशेष रूपसे एक मधुर हास्य चमक रहाथा; इस लिए उनपर कुछ अप्रसन्नता नहीं हुई और उनसे मैंने कह दिया  नहीं, नहीं, आप क्यों कष्ट करते हैं मैं उतर कर किराये की गाड़ी में बैठ जाता हूँ ।

उन्होंने कहा---इसके लिए संकोच न कीजिए आप प्रायः मुझको  ट्राममें मिला ही करते हैं, पैसा लौठा देनेका अवसर मिल ही जायगा | बह भी हँस दिये, में भी हँस दिया ओर कंडक्टरके यंत्रने मीढुं करके एक मधुर शब्द किया । मेंने टिकिट ले लिया | इस घटनाके दस बारह दिन बाद शनिवारको में घरको जारहाथा ।

मझले दादाका लड़का बीमार पड़ा था ; इस लिए में घरको जाते समय बी. एस. ब्रदर्स के बिस्कुटों का एक डिब्बा भी साथमें लिए जारहाथा । हाबड़ा स्टेशनसे जब गाड़ी छोड़ी गई, तब मेंने देखा कि सर्वनाश हो गया | बिस्कुट के डिब्वे को में स्टेशनकी बेठनेकी बेंच ही पर भूलगया | अब बड़ी विपदमे पड़गया । मुर्गीका पाला हुआ हंसि- नीका बच्चा सहसा ताछाबको देखकर जातीय स्वभाववश उसमें तैरने छगकर मुर्गीको जिस भाँति विपदमें डाल देता है मेरी विपद भी उसही प्रकारकी होगई । जैसे कि मुर्गी दो हाथ दूर खड़ी रहने पर भी अपने पाले हुए बच्चेकी रक्षा नहीं कर पाती है, में भी उसी भौतिसे पासहीके बिस्कुटके डिब्बेकी न उठा सका । 

'' कुली, कुली, महाशय, गार्डसाहब ” आदि अनेक चात्कार की किन्तु भाग्यदोषसे मेरे चीखनेको किसीने भी नहीं सुना। गाड़ी भीम बेग और असुर विक्रमसे दौड़ने लगी | अन्तमें थककर मैं बैठ रहा ।

पहले घबराहटमें में अपने साथी यात्रियोंको नहीं देख पाया था । बिस्कुटके डिब्बेको पानेसे हताश होकर बैठते ही मैंने सामने हरिश बाबूको देखा । उनके मुखके उस मृदुमन्द हास्यको देखते ही मुझे बड़ी लज्जा हुईं । मैंने सोचा कि इस पुरुषने क्‍या मेरी विक्रत अवस्था रेखनेके लिए ही जन्म लिया है ?

हरिश बाबूने कहा--क्यों आश्यु बाबू ऐसे घबराये हुए क्‍यों हो ! मैंने सप्रतिभ भावसे उत्तर दिया--नहीं कोई विशेष बात नहीं है । एक पोटली भूल आया हूँ उसके उद्धारकी चेष्टामें ठगा हुआ था | उन्होंने कहा कि काहेकी पोटली थी ।

मैंने सोचा कि यदि कहे देता हूँ कि दस आने दामके बिस्कुटोंके डिब्बेके पीछे इतनी घबराहट थी तो बड़ी ही हीनताका परिचय देना टरप । और ट्रामकी उस बातको और आजकी घटनाको मिला कर यह भरा आदमी मुझे बहुत ही अपदार्थ समझ लेगा । इस लिए मैंने उनसे कहा--एक बिस्कुटका बाक्स, दो पाजामें, जापानी शिल्पकी एक रकाबी, शौकीनी दिखानेको एक शीशी केशरज्नन तेल और टेनिस खेलनेका एक रेकिट, विद्या दिखानेके लिए एक जिल्‍्द खीन्द्र प्रन्था- वली और अर्चना मासिक पत्रिकाका नाम ले दिया।

हरिश बाबूने भौंहें सिकोड़ कहा कहा  --आप तो स्त्रियो के बैठनेके कमरे से पश्चिम ओर वाली बेंच पर बेठे थे ! सर्वनाश ! मनुष्य कहीं डिटेकूटिव तो नहीं है? मैंने कहा-“ हाँ”

हरिश बाबूने कहा--उस स्थान पर तो केवल बिस्कुटोंका यह डिब्बा पड़ा हुआ था और जब आपने स्टेशनमें प्रवेश किया था उस समय भी मैंने आपके पास कुछ नहीं देखा था । मुझकी अपनी खोई हुई चीजको हरिश बाबूके हाथमें देखकर जितनी तसल्ली हुईं थी उससे अधिक दुःख इस बातसे हुआ कि हरिश बाबूने मुझे झूठा जान लिया | मैंने सोचा कि इन्होंने तो मेरी सचाईकी मात्राको जान ही ।लिया, तब अब और सब यात्रियोंके सामने क्यों अपनी किराकेरी कराऊँ ? इस लिए उनसे सप्रतिभ भावसे कहा शायद | तब उन सबको घर ही भूल आया होऊँगा । लड़केकी बीमा- रीके मारे चित्त ठिकाने नहीं है । अधिक क्‍या कहूँ---में अविवाहित हूँ । मैंने सोचा ।के जाके ठिकाने न होनेकी ऐसी कैफियत देनेके पीछे लड़केकी पीड़ा और बाबाकी गंगायात्रा आदिका हार कहना अति आवश्यक है । इसके पीछे शेष पथ कल्पित लड़केके माधुये, उसके लाड़-प्यारकी विशेषता, उसकी माताकी परवाही, उसके ऐबके कारणके निर्णय और चिकित्स[ करनेवालेकी समालोचना आदिमें कट गया । वैद्यनाथमें उतरनेसे पहले में हारिश बाबूका ट्रामका पैसा देना नहीं भूछा ।


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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
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22 अगस्त 2022
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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

22 अगस्त 2022
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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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23 अगस्त 2022
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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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