मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्यों नहीं दिया? ”
वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।”
मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने दिल्ली छोड़नेसे बादकी सब बातें मुझको सुनाई । वह बोला---
ब्रजेन बाबू---आपसे सही बात कहता हूँ कि मेंने क्वीन पार्क में बैठकर जिस वक्त सलीना से हँसी दिलगी शुरू की थी, उसी समय उसकी सादी खूब सूरती और उसके भोले पन ने मेरे दिल पर काबू कर लिया था | सलीना भी कहती थी कि वह मुझसे उसी वक्तसे मोहब्बत करने छगी थी। इसके बाद जो दो दिन दिल्लीमें रहना हुआ, उसीमें चुपचाप सब निश्चय करके और आपसे इजाजत लेकर मैंने दिल्ली छोड़ दी ।
मैंने उसको अपने घेरे जानेका हाल सुनाया | बेचारा अप्रतिभ होकर कहने लगा---“ तब तो जिस बातका डर था वह हो ही गई । इसीसे मैं उस दिन आपके दिल्लीसे चले जानेके लिए बड़ा जोर दे रहा था और जवाहरातके लिए वे लोग जो कुछ भी कह रहे थे वह बिलकुल ही झूठ था। जवाहरात सब सलीनाहीके थे | और खुदाकी कसम, मैंने उनमेसे एककों भी अभीतक स्पशे नहीं किया है | ”
मैंने कहा--“ हाँ | मेंने भी यही सोचा था | ”
वह बोला---“ इसके बाद कानपुर, फतेहपुर और इलाहाबाद बगैरह शहरोंमें कुछ कुछ दिन रहता हुआ अब अखीरमें पटनेमें आकर रहने लगा हूँ | हम दोनोंकी शादी कानपुर ही में हो गई थी । ”
मैंने कहा---“ क्या आपके घरके लोगोंको इसका कुछ पता नहीं है|”
वह बोला----“ घरवालोंमें तो तब फक्त मेरी माँ और एक चाचा थे । माँ मेरे साथहीमें है। और चाचा अब मरगये हैं । यहाँ रहकर में रोजगार करता हूँ । बड़े सुखसे रहा करता था, किन्तु काई हफ्ते भरसे बड़ी बलामें फँसगया हूँ।”
मैंने पूछा---“ कैसी बछा ? ” थोड़ेसे मुवक्रि७ आकर पासके कमरेमें बेठ गये थे | उनकी ओरको देखकर मजीद बोला---“'पहले इन लोगोंको रुव्सत कर दीजिए में यहीं इन्तजार कर रहा हूँ । ”
उसका कहना उाचित समझ पड़ा | मैंने झटपट मुवक्किक्ोंको कार्य करके टाल दिया ओर फिर मर्जीदहीके पास लोट आया ।
मजीदने एक कागज निकाला और उसे मेरे हाथमें देकर कहा--- '' पिछले इतवारके दिन घरमें घुसते वक्त यह कागज इत्तफाकसे मुझे मिलगया । ”
मुझको फार्साका कुछ कुछ ज्ञान था, किन्तु फिर भी उस लेखकों में नहीं पढ़ पाया। इस लिए मजीदने उजालेकी ओर बढ़ आकर पढ़ना आरंभ किया--“ छाझन, बदवरुत, निगरांवाशके मावोने दहरोज़वेसवबे गुनाहेख़ुद वासिलेजहनम ख्वाहि झुद । ” अथोत---“ हे शापग्रस्त, हतभाग्य, सावधान होजा | आजसे दस दिनके भीतर अपने पापोके फलमें तुझको जहन्नममें जाना पड़ेगा । ”
क्या कहा जाय---अजेन बाबू | यहाँ तो कोई भी मेरा दुर्मन नहीं है । नौकरों में से भी कोई कुछ बतला नहीं पाया । मेरा सन्देह सलीना के जिप्सियों पर होता है........ । ”
मैंने बात काट कर कहा, “ सन्देह ही क्यों होता है ? मैंने अपनी आँखोंसे परसोंके दिन सड़कपर कई जिप्सियोंको देखा है । पर यह नहीं जानता कि वे आपकी बीबीके रिश्तेदार हैं या नहीं। ”
मजीदका मुँह एक साथ सूखगया | वह बोला---“ क्या आप नहीं जानते कि ये लोग कसे बदला लेनेवाले होते हैं। मेंने सलीनासे इन छोगोंके बदला लेनेके बहुतसे किस्से सुने हैं । ”
अस्तु मैं उदूं और फार्सी पढ़लेने और पश्चिममें वास करने पर भी सो- छहो आने बंगाली ही था | इस लिए ईंरानियोंकी प्रतिहिंसाका नाम आते ही मेरा प्राण कौंप उठा। भला कौन कह सकता है कि ये बबैर मुझको नहीं पहचान पावेंगे और मुझको और मजीदको एकस्थान पर देखकर मुझे भी विपदमें डालनेकी चेथ्टा नहीं करेंगे | किन्तु अपने चेहरेपर व्यवहारी छोगोंका साहस दिखलाकर मैंने कहा---“आप क्यों डरते हैं? अँगरेजी राज्यमें अब वैसे जंगली उपाय नहीं चल सकते हैं ”
मजीद बोला---“ और तो है सो है-किन्तु अब दस दिनोंमें केवल दो दिन बाकी रहगये हैं । तब भछा कहिए कि इतनी जल्द क्या तर- कीब की जा सकती है? ”
मेंने कहा---“ पुछीसमें खबर दीजिए | जिप्सियों पर तो बैसेही पुलीसकी कऋपादष्टि रहती है, फिर यह खबर मिलने पीछे तो वे सबके सब गंगाके पार भेज दिये जायेँगे।”
मजीदने चिन्ताके साथ कहा “यह बात होते ही सब बात फैल जायगी | पहले तो मैं सलीनाहीको कुंछ बतलाना नहीं चाहता हूँ और दूसरे इस जगह मेरी भी कुछ इज्जत होगई है । मैं हर खास आममें यह बात फैलने देना नहीं चाहता हूँ । कि मेरा जिप्सियोंसे कुछ ताल्ठुक़ है। ”
मैंने जिज्ञासाकी कि “ इस बातको बीबीसे कह देने में बुराई भी क्या है ? अपने रिश्तेदारोंके ्भावको जैसा वह समझ सकती हैं बैसा कोई भी नहीं समझ सकता । ” की, सारांश यह है कि अब सर्लना पर्दानशीन बीबी थीं, इस लिए उनके संबंधमें सब बातें बड़ी श्रद्धाके साथ कहनी पड़ती थीं।
मजीद बोला---“ ब्रजेन बाबू , यह सही है कि सलीना मुझसे बड़ी मुहब्बत करती है, लेकिन फिर भी कहावत है कि खून पानी से गाढ़ा होता है। आप जानते ही हैं कि जंगलकी चिड़ियाको मैंने पकड़कर पर्दान- शीन बनाया है |”! यह कथन मुझको सत्य जान पड़ा और मेंने कहा---“ क्या आपकी बीबीने उनके संबेधमें अब तक कुछ कहा नहीं ”
मजीदने कहा---“ हाँ, कितनी ही बार कह चुकी है कि इन ख़ुशीके दिनोंमें कहीं मेरी अम्मा मिलजाती तो अच्छा था। किन्तु यह नहीं कह सकता कि अम्मा मिलकर उसे सलाह क्या देंगी? ”
दोनों कितनी ही देर वाद विवाद करने पर भी कुछ स्थिर नहीं कर सके । दूसरे दिन संध्याको फिर उसके साथ सलाह करनेकी सम्मति मेंने प्रकट की । इन सब बातोंमेसे सरछाको कोई भी बात मेंने नहीं सुनाई ।
सरला बोली---“उस फिरनेवाले दलकी एक स्त्री आज हमारे घर भी आई थी। बुघुआने उसको निकाल दिया। ” मैं यह बात सुनते ही कप उठा और अपने डरको छिपाकर बोला कि कब आई थी !