shabd-logo

भाग 5

24 अगस्त 2022

15 बार देखा गया 15

मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ”

वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।”

मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने दिल्ली छोड़नेसे बादकी सब बातें मुझको सुनाई । वह बोला---

ब्रजेन बाबू---आपसे सही बात कहता हूँ कि मेंने क्वीन पार्क में बैठकर जिस वक्त सलीना से हँसी दिलगी शुरू की थी, उसी समय उसकी सादी खूब सूरती और उसके भोले पन ने मेरे दिल पर काबू कर लिया था | सलीना भी कहती थी कि वह मुझसे उसी वक्तसे मोहब्बत करने छगी थी। इसके बाद जो दो दिन दिल्लीमें रहना हुआ, उसीमें चुपचाप सब निश्चय करके और आपसे इजाजत लेकर मैंने दिल्ली छोड़ दी ।

मैंने उसको अपने घेरे जानेका हाल सुनाया | बेचारा अप्रतिभ होकर कहने लगा---“ तब तो जिस बातका डर था वह हो ही गई । इसीसे मैं उस दिन आपके दिल्लीसे चले जानेके लिए बड़ा जोर दे रहा था और जवाहरातके लिए वे लोग जो कुछ भी कह रहे थे वह बिलकुल ही झूठ था। जवाहरात सब सलीनाहीके थे | और खुदाकी कसम, मैंने उनमेसे एककों भी अभीतक स्पशे नहीं किया है | ”

मैंने कहा--“ हाँ | मेंने भी यही सोचा था | ”

वह बोला---“ इसके बाद कानपुर, फतेहपुर और इलाहाबाद बगैरह शहरोंमें कुछ कुछ दिन रहता हुआ अब अखीरमें पटनेमें आकर रहने लगा हूँ | हम दोनोंकी शादी कानपुर ही में हो गई थी । ”

मैंने कहा---“ क्या आपके घरके लोगोंको इसका कुछ पता नहीं है|”

वह बोला----“ घरवालोंमें तो तब फक्त मेरी माँ और एक चाचा थे । माँ मेरे साथहीमें है। और चाचा अब मरगये हैं । यहाँ रहकर में रोजगार करता हूँ । बड़े सुखसे रहा करता था, किन्तु काई हफ्ते भरसे बड़ी बलामें फँसगया हूँ।”

मैंने पूछा---“ कैसी बछा ? ” थोड़ेसे मुवक्रि७ आकर पासके कमरेमें बेठ गये थे | उनकी ओरको देखकर मजीद बोला---“'पहले इन लोगोंको रुव्सत कर दीजिए में यहीं इन्तजार कर रहा हूँ । ”

उसका कहना उाचित समझ पड़ा | मैंने झटपट मुवक्किक्ोंको कार्य करके टाल दिया ओर फिर मर्जीदहीके पास लोट आया ।

मजीदने एक कागज निकाला और उसे मेरे हाथमें देकर कहा--- '' पिछले इतवारके दिन घरमें घुसते वक्त यह कागज इत्तफाकसे मुझे मिलगया । ”

मुझको फार्साका कुछ कुछ ज्ञान था, किन्तु फिर भी उस लेखकों में नहीं पढ़ पाया। इस लिए मजीदने उजालेकी ओर बढ़ आकर पढ़ना आरंभ किया--“ छाझन, बदवरुत, निगरांवाशके मावोने दहरोज़वेसवबे गुनाहेख़ुद वासिलेजहनम ख्वाहि झुद । ” अथोत---“ हे शापग्रस्त, हतभाग्य, सावधान होजा | आजसे दस दिनके भीतर अपने पापोके फलमें तुझको जहन्नममें जाना पड़ेगा । ”

क्या कहा जाय---अजेन बाबू | यहाँ तो कोई भी मेरा दुर्मन नहीं है । नौकरों में से भी कोई कुछ बतला नहीं पाया । मेरा सन्देह सलीना के जिप्सियों पर होता है........ । ”

मैंने बात काट कर कहा, “ सन्देह ही क्‍यों होता है ? मैंने अपनी आँखोंसे परसोंके दिन सड़कपर कई जिप्सियोंको देखा है । पर यह नहीं जानता कि वे आपकी बीबीके रिश्तेदार हैं या नहीं। ”

मजीदका मुँह एक साथ सूखगया | वह बोला---“ क्या आप नहीं जानते कि ये लोग कसे बदला लेनेवाले होते हैं। मेंने सलीनासे इन छोगोंके बदला लेनेके बहुतसे किस्से सुने हैं । ”

अस्तु मैं उदूं और फार्सी पढ़लेने और पश्चिममें वास करने पर भी सो- छहो आने बंगाली ही था | इस लिए ईंरानियोंकी प्रतिहिंसाका नाम आते ही मेरा प्राण कौंप उठा। भला कौन कह सकता है कि ये बबैर मुझको नहीं पहचान पावेंगे और मुझको और मजीदको एकस्थान पर देखकर मुझे भी विपदमें डालनेकी चेथ्टा नहीं करेंगे | किन्तु अपने चेहरेपर व्यवहारी छोगोंका साहस दिखलाकर मैंने कहा---“आप क्‍यों डरते हैं? अँगरेजी राज्यमें अब वैसे जंगली उपाय नहीं चल सकते हैं ”

मजीद बोला---“ और तो है सो है-किन्तु अब दस दिनोंमें केवल दो दिन बाकी रहगये हैं । तब भछा कहिए कि इतनी जल्द क्‍या तर- कीब की जा सकती है? ”

मेंने कहा---“ पुछीसमें खबर दीजिए | जिप्सियों पर तो बैसेही पुलीसकी कऋपादष्टि रहती है, फिर यह खबर मिलने पीछे तो वे सबके सब गंगाके पार भेज दिये जायेँगे।”

मजीदने चिन्ताके साथ कहा “यह बात होते ही सब बात फैल जायगी | पहले तो मैं सलीनाहीको कुंछ बतलाना नहीं चाहता हूँ और दूसरे इस जगह मेरी भी कुछ इज्जत होगई है । मैं हर खास आममें यह बात फैलने देना नहीं चाहता हूँ । कि मेरा जिप्सियोंसे कुछ ताल्ठुक़ है। ”

मैंने जिज्ञासाकी कि “ इस बातको बीबीसे कह देने में बुराई भी क्या है ? अपने रिश्तेदारोंके ्भावको जैसा वह समझ सकती हैं बैसा कोई भी नहीं समझ सकता । ” की, सारांश यह है कि अब सर्लना पर्दानशीन बीबी थीं, इस लिए उनके संबंधमें सब बातें बड़ी श्रद्धाके साथ कहनी पड़ती थीं।

मजीद बोला---“ ब्रजेन बाबू , यह सही है कि सलीना मुझसे बड़ी मुहब्बत करती है, लेकिन फिर भी कहावत है कि खून पानी से गाढ़ा होता है। आप जानते ही हैं कि जंगलकी चिड़ियाको मैंने पकड़कर पर्दान- शीन बनाया है |”! यह कथन मुझको सत्य जान पड़ा और मेंने कहा---“ क्या आपकी बीबीने उनके संबेधमें अब तक कुछ कहा नहीं ”

मजीदने कहा---“ हाँ, कितनी ही बार कह चुकी है कि इन ख़ुशीके दिनोंमें कहीं मेरी अम्मा मिलजाती तो अच्छा था। किन्तु यह नहीं कह सकता कि अम्मा मिलकर उसे सलाह क्या देंगी? ”

दोनों कितनी ही देर वाद विवाद करने पर भी कुछ स्थिर नहीं कर सके । दूसरे  दिन संध्याको फिर उसके साथ सलाह करनेकी सम्मति मेंने प्रकट की । इन सब बातोंमेसे सरछाको कोई भी बात मेंने नहीं सुनाई ।

सरला बोली---“उस फिरनेवाले दलकी एक स्त्री आज हमारे घर भी आई थी। बुघुआने उसको निकाल दिया। ” मैं यह बात सुनते ही कप उठा और अपने डरको छिपाकर बोला कि कब आई थी !

30
रचनाएँ
चित्रावली
0.0
चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
1

लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
4
0
0

भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमान

2

भाग 2

22 अगस्त 2022
1
0
0

इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

3

स्मति भाग 1

22 अगस्त 2022
0
0
0

यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते

4

भाग 2

22 अगस्त 2022
0
0
0

दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

5

मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
0
0
0

 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

6

भाग 2

22 अगस्त 2022
0
0
0

उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

7

भाग 3

22 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

8

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

9

भाग 5

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

10

सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

11

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

12

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

13

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

14

चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

15

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

16

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

17

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

18

भाग 5

23 अगस्त 2022
0
0
0

एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

19

भाग 6

23 अगस्त 2022
0
0
0

कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

20

क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

21

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

22

ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
0
0
0

 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

23

भाग 2

23 अगस्त 2022
0
0
0

हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

24

भाग 3

23 अगस्त 2022
0
0
0

उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

25

भाग 4

23 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

26

भाग 5

24 अगस्त 2022
0
0
0

मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

27

भाग 6

24 अगस्त 2022
0
0
0

 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

28

भाग 7

24 अगस्त 2022
0
0
0

सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

29

भाग 8

24 अगस्त 2022
0
0
0

सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

30

अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
0
0
0

सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

---

किताब पढ़िए