इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके सानियर डिपुटीकी अदालतमें उपस्थित किया गया | हाकिमको देखते ही मेरा हृदय शीघ्रतासे धड़कने छगा । मेंने देखते ही अपने पिताकों पहचान लिया | किन्तु पिता अपने छोड़े हुए पुत्रकोी नहीं पहचान सके । आरोपीके वर्कालने एक बड़ी लेबी चौड़ी वक्तता देना आरंभ किया। मुझको उन्होंने घूर्तसाधु बतलाया और कहा कि इन बदमाशोंका दल है और उसका प्रधानकार्य अँगरेजी राज्यसे बालकोंको चुरालेजाकर विदेशी राज्योंमें वेंचना है। इस बातको हम लोग समझते भली भाँति हैं किन्तु फिर भी प्रमाण नहीं दे सकते | अत एवं उन्होंने हुजूरसे प्राथनाकी कि अभियुक्तका ३६३ धाराके अपराधमें विचार करें|
वकीलपुगव यह कहनेसे भी नहीं ' चूके की यदि इसके गुप्त अंकी तछाशी ली जावे तो चोरीका बहुत माल निकलेगा । उन्होंने हाकिमको यह विश्वास भी दिलाया कि तहकी- कात समाप्त हो जाने पर पुलीस भी इसी अपराधमें इस अभियुक्तका चालान करेगी । ऋमसे साक्षीका बयान हुआ | एक प्रकारसे मेरा अपराध साबित हो गया। क् हाकिम अथात् मेरे पिताने कहा-“ इस बड़े अभियोगका विचार मैं स्वयं न करके सशन्स सुपुर्द करूँगा | अच्छा---तुमको कुछ कहना है ?” पहले तो मैंने सोचा कि जेलहीको जाऊँ, किन्तु फिर विचारा कि जेल जानेसे भी क्या होगा £ जेल जानेसे तो फिर उद्देशके सिद्ध होनेकी कोई आशा ही नहीं रह जायगी । इसके बदले मैंने अपना पारिचय देकर सच बात कह देना ही ठीक समझा | में पितासे तो कोई कृपा चाह ही नहीं रहा था । जब वे विचारासनपर बैठे हुए हैं तब उनको राजाका प्रातेनेधि समझना ही चाहिए ।
इस लिए हाकिमके सामने निर्दोषता प्रमाणित करनेमें क्या हजे है ! यह सोचकर मेंने हाथ जोड़कर कहा, “ हुजूर ! यदि अदाल्तके कमरेकों लछोगोंसे खाडी करा दिया जाय, तो में इस जटिछ रहस्यको खोल दूँ । हाकिम राजी हो गये । अब पिता, पुत्र और सरकारी वकीलके अतिरिक्त वहाँ और कोई भी नहीं रह गया | मैंने दाढ़ी, मूंछठ ओर जठा आदि सारे छद्मवेशके साजकों हटाकर दूर फेंक दिया और नीचेको मुख करके एक ही सॉंसमें जीवनके सारे इतिहासको पिताक्रे सामने कह डाला | साक्ष्यरूपसे छड़केके गलेके तावीजको दिखाया और कहा कि लड़का मेरा है इस बातका प्रमाण यह ताबोज ही है। जो बात मैंने स्वप्तमें भी नहीं सोची थी, वह हुई । पिताने इजछाससे उठकर मुझे अपने गछेसे लगा लिया।
उस समय उस लड़केको छोड़कर उस- अदाल्तमें सबकी आओंखोंसे आँसू बह रहे थे। लड़का आश्चर्यसे आँखें फेला फेला कर हम लछोगोंकी ओरको देख रहा था । माताका हृदय शांत हो गया था, छड़केकी ओरको मेरी ऐसी कत्तेन्यपरायणता देखकर पिता सन्तुष्ट हो गये थे, उनकी आज्ञासे लड़केको में घर छे गया | सदय ग्वालाभी हमारे यहीं आ रहा । किन्तु मेरे हृदयको फिर भी पूरी शांति नहीं मिली। शांति होती भी कैसे ? पापकी याद और पापका स्परशशे आदि निमल शांतीके शत्रु हैं, इस लिए मेरा शेष जीवन आनन्दसे नहीं वीता | किन्तु सरला मुझसे अधिक भाग्यवान् थी | जिस दिन में सरलासे मिलकर आया था, उस दिन वह मूछित होकर गिर पड़ी थी। उसी मूछीने उसको शान्ति छा दी, उसके तीन दिन पीछे ही अभागिनी अनंतपथकी यात्राके लिए निकल पड़ी थी |