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स्मति भाग 1

22 अगस्त 2022

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यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते और उनका साथ न होजाता तो ये दो दिन कैसे कटते | अमर कल प्रातःकाल : आये थे | थोड़ी ही देरमें बड़े वेगसे वृष्टि होने लगी । उनके घरको कहला भेजा कि यदि वृष्टि नहीं रुकेगी तो अमरनाथ यहीं रहेंगे | संध्यास पूर्व वादलोंको मानों कुछ आल्स्य सा आ गया और मेह भी कुछ मन्द पड़ गया | मित्र अमरनाथ और मैं दो कुर्सियें उठा छेजाकर बरामदेमें जा बेठे | रास्तेका जल कलकल राब्द करता हुआ नदीके स्रोतकी भाँतिसे दौड़ रहा था और छोगों के दल जलकों चीौरते हुए अपनी अपनी जानेकी जगहोंको जारहे थे | मेरे मनमें अकस्मात्‌ एक पुरानी कहानी जाग उठी |

मैंने कुर्सीको और भी अमरनाथके अधिक पास खींच ले जाकर कहा---“यह आजसे पन्द्रह वषे पहलेकी बात है, उस दिन भी समस्त दिन आज से अधिक मूसल्धार वर्षा होने के  पीछे ऐसे ही संध्यासे पूर्व वृष्टि रुकी थी | दादाके विवाहमें में समोला बना था और बहूके साथ एक ही पालकीमें बैठा हुआ मैदानमें होकर घरको आरहा था | मेदान का जल कलछकलछ राब्द करता हुआ एक धारसे दूसरी धारमें जा रहा था पालकीके दोनों ओर हरे रंगके घने नाजके पौधे हवाके झोकों से झूम रहे थे | बहू समस्त दिन रोते रोते चुप होरही थी । याद पड़ती है कि उस अवसर पर मेंने उसको कितनी ही बातें सुनाई थीं ठीक उन्हीं दिनोंमें में कछकत्तेके एक स्कूलमें भर्ती हुआ था । क्रिकेट मेच, फुटबाल का खेल, ओर ईडन गार्डेनकी सैर आदि अपनी छोटी मोटी बहादुरी की सारी बातें उसको एक सांस  में ” मुनाता जारहा था और मोरी बहू भी अपने छाल दुपट्टेमें होकर आँखें फेलाकर मेरे मुँहको देखती हुईं मेरी बातोंकी तृप्ति प्रृक सुन- रही थी ।

उससे पहले किसीने मेरी इतनी बातें नहीं सुनी थीं और न उनको सुनने ही योग्य समझा था । उस दिन मुझको श्रोता मिल गया । इस कारण बड़ा आनन्द हुआ | धीरे धीरे हमारी पाठलकोने गाँवके भीतर प्रवेश किया | उस समय संध्या होगई थी और ताछाबके किनारे पर आतिशबाज फुलझड़ी ओर गोले तथा बाजे- वाले ढोल और झाँझ आदि लिए हुए दूल्हा और दुलूहिनको लेजानेके लिए राह देख रहे थे। स्मरण होता हैं ॥ केि आतिशबाजसे मैंने भी एक फुलझड़ी लेली थी और पाठकीके एक ओरको हाथ बढ़ाकर उसको छोड़ रहा था। जब फुछझ्नडीका गुल झड़कर नाछेके जलके ऊपर गिरता और पटाखा छूटनेकासा शब्द होता था तब में उत्सुक होकर यह देखनेके लिए बहुके मुखकी ओरको देखने लगता था कि मेरी ' बहादुरी देखती जाती है या नहीं ।

इसके बाद वैशाख मासमें जब ग्रीष्म की छुट्टियोंमें में घरको गया तों भाभी कुछ ही पहले हमारे घर आई थी। उसने आकर मुझसे चुपकेसे कहा- “ देवर, मुझको यहाँ आये हुए पन्द्रह दिन होगये । मैं रोज यही विचारती थी कि तुम कत्र आवोगे | भोजन करके एक बार ऊपर अवश्य आना, में तुम्हें कितनी ही चीजें दिखाऊँगी। दादाके घर जाकर देखा कि भावजने पोतके बहुतसे खिलोने टे- बिल पर सजा रक्खे थे मुझको देख कर वह हँसकर बोढीं---“अच्छा- देवर, टीक ठीक बतलछाओ कि यह गाडी कैसी लगती है । इन सबको मैंने अपने आपही बनाया है । माने मुझसे कहाथा कि इस सब रद्दी खातेको वहाँ ले जाकर क्या करेगी; किन्तु मैंने उनका मना करना नहीं माना और तुमको दिखानेके लिए ये सब चीजें यहाँ ले आई |  

वास्तवमें वे बहुत ही अच्छे ढंगके बने हुए थे। मेंने कहा कि भाभी, तुम ऐसा सुन्दर खिलोना बना लेती हो । अब प्रूजाकी छुट्ठीमें जब घर आउऊँगा तब तुम्हारे लिए बहुत सा पोत और तार छेता आउऊँगा। भावजने उसीदम हँसकर उत्तर दिया---“ नहीं देवर, पोत नहीं लाना, किन्तु थोड़ासा काले रंगका ऊन लेते आना | में गलेबन्द बुनना सीख रही हूँ एक तुमको बुन दूँगी। ” अमर, वह गलेबन्द आज भी मेरे गलेमें पड़ा हुआ है किन्तु हाय ? इसकी बनानेवाली नहीं है। कुछ वर्षके लिए इस प्रथ्वीके रंग मंच पर एक दुःख भरे हुए नाठककों खेलकर कौन कह सकता है कि वह कहौंको चढी गई ! वह विजलीकी चमक जैसी रूपराशे और सर- लतामयी हँसी सदाके लिए मेरी आँखोंसे ओझल होगई | हाय ! भाभी, हाय ! करुणाकी प्रतिमा और दयामयी भाभी, तुम इस आभागेके, स्पृतिमन्दिरमें इस निष्ठुर चिह॒को क्‍यों छोड़ गई !

ब्याहके कोई सात वर्ष पीछे किसी एक सौदागरके आफिसमें नोकरी लछगजानेसे दादा कलकत्ते:आय | मैं उन दिनों इन्ट्रेस पास करके एफ.  ए , में पढ़ने लगा था। उन्होंने मेरे ही मेसमें रहकर काये करना आरंभ कर दिया | साहबने उनकी एकाग्रता ओर दक्ष- तासे बहुत प्रसन्न होकर उनके पदकी शीघ्र ही उन्नति करदी । दादाके पास उनके आफिसके साथी निशानाथ बाबू संध्याकी प्रतिदिन ही मिलने आया करते थे; वे मुझको पहलेहीसे अच्छे नहीं छगते थे । इसी प्रकारसे दोचार महीने कट गये । इसके बाद में देखने छगा कि दादा प्रतिदिन संध्याके बाद दो तीन घण्टे बाहर बिताने ढछगे हैं । उनके बाहर जानेकी सज--धजको देखकर मेरे मनमें एक प्रकारका भय ओर सन्देह होने छगा । एक दिन मैंने उनसे पएँछा कि आप रोज संध्याके बाद कहाँको जाया करते हैं ? दूसरी ओरको मुँह करके उन्होंने उत्तर दिया कि सारे दिन परिश्रम करनेके पीछे चुप बैठे रहना अच्छा नहीं लगता, इस लिए निशानाथ बाबूके घर गानेबजानेमें जी बहछाने चछा जाता हूँ। मैंने उनके उत्तरको तो सुन लिया, परन्तु अपने मनके सन्देहको में नहीं हटा सका। इसके अनन्तर सरस्वती पूजाका दिन आया |. पढ़नासुनना बन्द था। समस्त दिन ताश पीटनेके पीछे संध्यासे धृर्ष कुछ थक कर लेट रहा था। एकाएक ध्यान आया के दादा दस बजे भोजन करके बाहर गये हैं और जलपानका समय निकल चुकने पर अब भी लोटे नहीं हैं | 

मेरे मनमें बड़ी ही दुभीवनायें आई-मैं चुप हो कर सो रहा । मुझसे बाहर नहीं निकला गया। रात्रिके आठ बज गये। रमेशने आकर कहा क्यों, चुप कैसे पड़े हो? दादा कहाँ हैं? पूजाके निमंत्रणमें गये हैं न! उसके निधुर परिहाससे मुझको बहुत कष्ट हुआ; कोई उत्तर बिना दिये में पहलेहीकी भाँति पड़ा रहा । पहलेहीसे भूख नहीं थी, फिर भी कुछ खाना चाहिए, इस लिए थोड़ा सा खाकर बिछोने पर जा पड़ी । कुचिन्ता और वेदनासे मन जछा जा रहा था, और दुःखसे भरे होनेसे नेत्र घिरे और भरे जा रहे थे | में सो गया । भाई अमर, उस दिन पिछली रातको जो स्वप्त भेंने देखा वह आज भी मनमें अच्छी तरह अंकित हो रहा है, न जाने उसे कभी भूदूँगा या नहीं । उस डरावने स्वप्तकी स्पातेसे आज भी शरीर रोमाश्वित हो जाता है । मैंने देखा कि आकाश कुहरेसे भरा हुआ है | सामने जहाँ तक दृष्टि पहुँचती थी वहाँ तक समुद्र फेन उड़ाता हुआ उमड़ रहा था। समुद्रके गजनसे कान बहिरे हुए जा रहे थे। मेंने देखा कि दादा उसमें गिरकर डूबे जा रहे हैं | तट पर भावज खड़ी थीं, उनका सुनहरा शरीर काछि- मामय ओर निर्दोष सुन्दर बदन शवकी भाँति सूखा हुआ था | जलको कॉपते हुए हाथसे दिखाती हुईं वह मेरी ओरकों अति दौन और अति करुण नेत्रोंसे देखती हुईं टूटे हुए स्वरसे कह रही थीं, “ देखो देखो, मेरा सव्ेस्व जाता है | यदि तुम रक्षा कर सकते होओ तो करो | ” मैं बहुत ही ममोहत हो कर चीख पड़ा, मेरी नींद टूट गई। उठकर देखा तो दादा तब भी नहीं आये थे ।

एक दिन भोजन करते करते दादाने कहा “ सुकुमार, हमारा आफिस यहाँसे बहुत दूर चला गया है और बड़े बजारमें हीएक सुभीतेका मकान मिल रहा है | वहाँ ही जा रहनेकी इच्छा होती है। ” मैंने सोचा ये अपने पापाचारके मार्गकोी एक साथ साफ कर लेनेकी ठान बैठे हैं। छोटेसे कॉटेको निकाल कर दूर फेंक देनेकी उन्होंने इढ़ प्रतिज्ञा कर ली है। अभिमानसे मैंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया । आँखेंकी फाड़ कर आँसू बाहर निकले पड़ते थे । बड़ी कठि- नाइंसे मेंने उनको रोका | यह मेरा स्वभाव है कि जब हृदयमें बड़ी बेदना होती है तब मुखसे में कुछ भी नहीं कह सकता । सर्व नाशकी सोलहों आने तेयारी होने और उनको अपने पास ही रखनेकी बड़ी इच्छा रहने पर भी स्वभावदोषसे में कोई बात नहीं कह पाया |

दो दिन बाद दादा नये घरको चले गये | उस दिन मेंने जो पत्र अपने घरको लिखा उसमें सब हाल लिख दिया, और माताको यह निषेध लिख दिया की भार्भा को इस बातका कुछ भी पता न लगने पावे | चिन्ता और मनके कष्ट से में दिन बिताता रहा | जब मिलनेको दादाके घर जाता था और वे नहीं मिलते थे, तब हार कर बीचबीचमें उनके आफिसहीमें जाकर मिल आता था । उनसे मेंने बारबार अनु- रोध किया ककि एकवार घरको चलिए ऐसा करनेसे मेंने विचारा था कि उस सरलताको प्रतिमा और पुण्यमयी भावजकों देखकर ये अपने पूर्व चरित्रपर फिर आ जायेंगे । किन्तु हाय वह सब विफल हुआ | वह प्रति सप्ताह जानेकी प्रतिज्ञा तो कर डालते थे, किन्तु वह प्रतिज्ञा _ कार्यमें परिणत नहीं होती थी वे घरको नहीं जाते थे ।

एक दिन सुना कि तहबीलमें गड़बड़ करनेसे दादा नोकरीसे हटा दिये गये | साहब उनसे आन्तरिक प्रेम करते थे इस लिए वे उनको हटा देकर ही चुप हो गये | दादा छज्जाके कारण ग्रुझलले-बीं, मिले ओर घरको चले गये ।

निष्कलड्ड बंशमें कलकका यह गहरा घाव बड़ा कष्ट दायक था, तो भी मेरे मनके एक गुप्त प्रदेश में एक प्रकार की शांति ही की छाया पड़ रही थी। मैंने सोचा अब दादा राहपर आ जायेँगे । 

पूजा की छुट्टी में घर जाकर देखा कि माताजी पहुँचानी नहीं जातीं, उनका शरीर इतना जजेर हो गया है। मैंने पूंछा कके दादा कहाँ हैं | इसपर वे रो पड़ीं और बोलीं, बेटा सुकुमार, यह मेंने कभी भावना भी नहीं की थी कि विधाताने मेरे भाग्यमें बुढ़ापे में इतना कष्ट लिख दिया है। नवकुमार दो दिनसे वर्धभान गया ह और कह गया है के मुझे छोटनेमें देर लगेगी । जान पड़ता है | कि वह तुझसे मिलना नहीं चाहता । ”

क्‍यों, उनको इतने लज्जित होनेकी तो कोई भी आवश्यकता नहीं थी | भूछ मनुष्य ही के लिए है पग पग पर मनुष्य से भूल होती हैं। बुरे संगत  पड़कर उनका निष्कलुंक चरित्र कुछ महीनोंके लिए बिगड़ तो गया ही था, किन्तु में इसीको बड़ा लाभ समझता हूँ कि उन्होंने अपने आपको सँभाल तो लिया | ” वह सँभलेगा क्‍या खाक ! न जाने वहाँसे क्या पीना सीख आया है | आठों पहर वहीं पीता है ओर मेरे हाड़ जछाता है। यह बेचारी पराई लड़की, गरीब गऊ, हाय | इसके भी भाग्य में इतना कष्ट लिखा है | उसके शरीरके एक एक गहनेकों उतार ले जाता है और कढा- रकी दूकानपर जाता है। बेटा सुकुमार, और क्या कहूँ-कहनेकी बात भी नहीं है---अच्छा तू अब कपड़े उतार और हाथ मुँह धोकर कुछ खा ले ” यह सब सुनकर भावजसे मिलने जानेका मेरा साहस नहीं हुआ । हाथ पैर धोकर खानेकों बैठ गया ।

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

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मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

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भाग 2

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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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23 अगस्त 2022
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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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