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भाग 3

23 अगस्त 2022

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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ” 

दूसरा संन्यासी बोला, “ प्रभु, घर पर मुझको शांति नहीं मिलती है। में ज्ञानद्वारा शांति छाभ करना चाहता हूँ ।” अच्युतानन्द गोस्वामी ने हँसकर कहा, “ बेटा, आँखें मूँद कर देखो, अभी तुम्हारे सामने कितना बड़ा कर्तव्य पड़ा है । पुत्रके शोकसे व्याकुल माता सन्तानके आनेकी प्रतीक्षा करती हुई सड़क पर आँखें लगाये है | लंवे विरहसे कातर, पतिमें प्राण छगाये रहनेवाली सती स्वामीके दर्शन करनेकी छाल्सासे जीवन धारण किये हुए है। बेटा, अन्धे न बनो, तुम्हारी सब वासनायें अभी प्रबल ही हैं, जाओ गृह- स्थीके धर्मको पालो | मनको शांति हो जायगी । ” इस बातको कहकर महापुरुष प्रस्थान कर गये । शशिशेखर ध्यानमें भँखें मूँदे हुए, अनेक चितायें करता हुआ बैठा रहा ।

असलमें घरसे बाहर निकलनेके बादसे शशिशेखरका मन ओर भी अधिक अस्थिर हो गया था। वह शांतिकी आशासे जितनी दूर भी जाता था उसको प्राणके भीतर उतना ही किसीका अभावसा जान पड़ता था| शांतिकी आशासे शशिशेखर कठोर आत्मप्यमका अम्यास करने लगा था, किन्तु ऐसा कर नहीं पाता था, 

हृदयमें एक स्थान सूना था और उस सूने स्थानमें कोई अधिकार करनेकी चेष्टासी करता था | शेखर निद्रामें स्वप्न देखता था कि कोई आँसुओंसे उसके दोनों पेरोंको धो रहा है---कितने ही मना करने पर भी मानता नहीं है--पैरों पड कर कितनी ही साधना करता है।

शेखर उठाना चाहता था किन्तु उठा नहीं पाता था, क्योंके कोई उसको हाथ पकड़ कर रोक लेता था । इन्दावनमें जानेसे शेखर पागल्सा हो गया था, उसकी हृदयकी ज्वाला और भी बढ़ने लगी थी। इसी- लिए अच्युतानंद गोस्वार्मके पास आकर उसने शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था | इसके पीछे उसको कितनी शांति हुई थी सो पाठक जान ही गये हैं | आज सारे दिनभरकी थकावटके बाद शेखरको घोर निद्राने घेर लिया; किन्तु निद्रासे भी उसके मनको शांति नहीं मिली । 

शेखरने एक विचित्र स्वप्त देखा । इस प्रकार अशांतिमें कितने दिनातक पड़े रहोगे ? सुधाकी लेकर सुखी होओ।

शेखरने कहा---“ शेछ | तुझे छोड़कर सुखी केसे हो पाऊँगा ?” 

शैल बोली---. रमणी स्वार्थपर नहीं होती हैं | में मर भले ही गई हूँ किन्तु तुमको असुखी नहीं होने दूँगी । इसी लिए तुमको सुधाके हाथों सोंप दिया है। 

” शैल अदृश्य हो गई । किन्तु फिर वही दृश्य ! कोई उसके दोनों पैरोंको नयनोंके अश्रुओंसे धोने छगा--जाने कितने प्रेमके साथपमें पैरोंमें छोटने छगा। शशिशेखर चौंक पड़ा और चिल्लाकर बोला---

 सुधा, सुधा |” उसको नींद जाती रही। उसने देखा कि वास्तवमें कोई उसके दोनों पैरोंको आँसुओंस सींचकर चुप चाप चला गया है |

चिन्ता ही चिन्ता में शशि शेखर का शरीर गलने लगा | उसको विष- मज्वर चढ़ा | अच्युतानन्दस्त्रामी उसकी सेवा करने छगे | उसको उस अवस्थामें देखकर उसकी माता और पत्नी चिन्तित न हों, यह सम. झकर फिर उन्होंने उन दोनोंको कुछ जानने नहीं दिया | जब बादमें ज्वरका कोप बराबर बढ़ता ही गया तब वे उनको लानेको लाचार हो गये ।

पति में प्राण लगाये रहने वाली सुघा पैंताने बैठी रहकर दिनरात उसकी सेवा में छगी रहने ठगी | आहार और निद्रा छोड़कर साध्वी- सती गोविन्द के चरणारविद में  प्रार्थना करती थी-“ प्रभु, मेरे स्वामीकी रक्षा करो | ” कितनी ही रातें चुप्चाप बीत गई; शाशे शेखरकी अवस्था नहीं सँभली । विकारके धोर प्रछापमें वह बकता था “ शैल, अब मेरा अन्त आगया। मुझे अपने पास बुछाले | ” माता और सुधा मुख से शब्द निकाले विना ऑसू बहा रहीं थीं। अच्युतानन्दने कहा '' तुम लोग अधीर न होओ | इससे रोगी की अवस्था और भी बिगड़ जायगी ” बड़े कष्ट से उन बेचारियोंने अपने आपको रोका, किन्तु जी नहीं मानता था । शेखरकी दशा ऋमसे बिगड़ती ही गई। जब कुछ भला माद्म होता था, तब सुधाके मुखकी  ओर एक टक देखता रहता था । एक दिन चिल्ला उठा--“ शैल में आगया | चल प्राणे- श्वरी, में ओर तू दोनों हाथ पकड़ कर अनन्त धामके मार्ग पर चले जावें | हमें कोई रोक नहीं पावेगा ।”? सुधा निदारुण शोक और नीरब यातनासे रोपड़ी । जान पड़ता है ककि उस रोनेसे शेखरकों ज्ञान हुआ। शेखरने कंहा, “ सुधा, तू रोती है | रो मत। अपने तप्त अँसु- ओंसे मेरे हृदय को  जलावे मत | मुझको जाने दे। इस जीवनमें तो में तुझसे मिछ नहीं पाया, किन्तु मरने बाद जीवन होगा तो फिर हमारा मिलना होगा और इस जीवन बाद तुझकों और शैलको लेकर सुखी होऊँमा । ” शेखर चुपहो रहा | रोती हुई सुधा पास ही मूछित होकर गिर बड़ी ।

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

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भाग 3

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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

24 अगस्त 2022
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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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