सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फीरोज्ञा छीजिएगा ? ” “ मेंने कहा---भीतर आशभो | ”
किन्तु बुघुआंने उन छोगोंको मगा दिया और हमसे कहा--- '' ऐसे लोगोंको धरमें घसने देना ठीक नहीं है । ”
मेंने मन ही मन नौकरकी प्रशंसा की, किन्तु एक अभावनीय भय बराबर हृदयको दाबता जा रहा था । इस एक नई विपदको सिर पर आई हुई देखकर जी बहुत ही घबड़ाया । भाँति भॉतिकी चिन्तायें आकर घेरने लगीं ।
इसके बाद जब नीचे उतरकर आफिसकी खिड़काके पासहामें मुझे एक कागजका टुकड़ा मिला, तब तो मैं डरके मारे और भी अधीर होगया | बड़ी कठिनतासे मैंने उसको पढ़ा। उस पर उद्दूमें लिखा हुआ था---“ काफ़िर शैतान ईरानियोंका इन्तकाम खयाल करो । तबाह करूँगा अगर नहीं छड़कीका पता बताओ तो” अथीौत् काफिर शैतान, ईरानियोंके बदछेका बिचार कर | यदि लड़कीका पता नहीं बतलावेगा तो तेरा सबे नाश कर दूँगा।
मेंने कॉपते हुए हाथमें पत्र लिए हुए उसको पढ़ा । सोचा कि मजीदका चाहे जो कुछ भी हो, किन्तु में इस विषयमें पुलीसका आश्रय अवश्य दूँगा | मुझसे तो बिना दोष किसी गुप्त घातकके हाथोंमें प्राण नहीं दिया जायगा ।
बस ठीक उसी समय मजीद भी आ पहुँचा। मेरी चिट्ठी पड़ते ही उसके चेहरेका मठीला रंग एक बार ही मलीन होगया । चिट्मको इधर 'उधर लोट पौट करके वह बोछा---“ एक ही कागज ओर एक ही 'लिखावट है, अब क्या करना चाहिए ”
मैंने कहा--“आप चाहे जो कुछ भी करें, किन्तु मैं तो इस माम- लेको पुलीसके हाथमें दूँगा । ”
मजीद बोला---“ लिलह, ऐसा न करना | अगर अपनी हिफाजत ही भरका आपको खयाल हो, तो यह खूब समझ राखिए कि मेरे जीता रहते कोई आपका बाल भी नहीं छू सकेगा।”
मेंने कहा---“ मजीद साहब | ढंग कुछ बहुत अच्छे नहीं दिखाई पड़ते हैं | ”
वह बोला---“ मैंने एक तर्कीब सोची है। मेंने सब हाल सली- 'नाको सुनाया और उसको यह भी समझा दिया कि ब्रजेन बाबूको तुमसे कुछ खास बात कहना है | वह बुरका ओढ़े हुए आपसे । मिल- नेको राजी है। ” मेरी तो बराबर ही यह इच्छा थी कि इस विषयमें सलीना बीबीसे सलाह करना उचित है | मैंने खूब बिचार कर जाना कि उन छोगोंकी प्रतिहिंसाका कारण केवल स्नेह ही है | इस लिए यह सम्रझमें आया कि यदि उन लोगोंको सलीनासे मिलने दिया जायगा तो वह उन -सबको समझा दे सकेगी | मजीदसे कहा---“ मुझहीसे क्या है ? आप 'सखयं ही उनको क्यों नहीं समझा देते हैं ? ”
वह बोला--“ मैं उसको ठीक नहीं समझा पाऊँगा | आप ही चलकर समझा दें | अब सलीना हिन्दुस्थानी भाषा खूब सौख गई है।” बहुत कहने सुननेके पीछे में मजीदकी बात पर राजी हुआ और पाकेटमें रिवाल्वरें ( तमंचा ) रखकर क्ृष्णका नाम जपता हुआ में उसके घरके ओरकों चर दिया । चारों ओर देखकर चढता जा रहा था |
'उधर लोट पौट करके वह बोछा---“ एक ही कागज ओर एक ही 'लिखावट है, अब क्या करना चाहिए १” मैंने कहा--“आप चाहे जो कुछ भी करें, किन्तु मैं तो इस माम- लेको पुलीसके हाथमें दूँगा ।
” मजीद बोला---“ लिलह, ऐसा न करना | अगर अपनी हिफाजत ही भरका आपको खयाल हो, तो यह खूब समझ राखिए कि मेरे जीता रहते कोई आपका बाल भी नहीं छू सकेगा।” मेंने कहा---“ मजीद साहब | ढंग कुछ बहुत अच्छे नहीं दिखाई पड़ते हैं | ” वह बोला---“ मैंने एक तर्कीब सोची है। मेंने सब हाल सली- 'नाको सुनाया और उसको यह भी समझा दिया कि ब्रजेन बाबूको तुमसे कुछ खास बात कहना है | वह बुरका ओढ़े हुए आपसे ।मिल- नेको राजी है। ” मेरी तो बराबर ही यह इच्छा थी कि इस विषयमें सलीना बीबीसे सलाह करना उचित है | मैंने खूब बिचार कर जाना कि उन छोगोंकी प्रतिहिंसाका कारण केवल स्नेह ही है | इस लिए यह सम्रझमें आया कि यदि उन लोगोंको सलीनासे मिलने दिया जायगा तो वह उन -सबको समझा दे सकेगी |
मजीदसे कहा---“ मुझहीसे क्या है ? आप 'सखयं ही उनको क्यों नहीं समझा देते हैं ? ” वह बोला--“ भें उसको ठीक नहीं समझा पाऊँगा | आप ही चलकर समझा दें | अब सलीना हिन्दुस्थानी भाषा खूब सौख गई है।” बहुत कहने सुननेके पीछे में मजीदकी बात पर राजी हुआ और पाकेटमें रिवाल्वरें ( तमंचा ) रखकर क्ृष्णका नाम जपता हुआ में उसके घरके ओरकों चर दिया । चारों ओर देखकर चढता जा रहा
उस स्त्री इधर आँख भी नहीं उठाई । उसकी आँखों के अतिरिक्त और कहीं भी उत्तेजना नहीं मारछूम होती थी। फिर एक बारगी मजी- दकी ओरको बढ़कर उसने पशुओंकी भाँतिसे मजीदका गला पकड़- लिया और अपने सीधे हाथकी छुरीको मजीदकी गर्दन पर रक्खा ।
अधिक क्या कहूँ, मेरे हाथमेंसे तो अपने रिवाल्वरका घोड़ा दाबने भरकी शक्ति भी निकल भागी थी । जिस समय कि ईरानी छुरीने मजीदके गलेको छुआ था ठीक उसी समय चन्द्रमाके उजालेके रंगवाली एक देवी मूत्तिने आकर वजकी भाँति istri जोरसे उस बज्लौका हाथ पकड़ लिया । उस ज्लीने आँखें घुमाकर पीछेको देखा और जान पड़ता है कि हाथ पकड़नेवालीकी सुन्दरता देखकर वह अंधी होगई । क्योंकि उसका दूसरा हाथ भी मजीदके गलेपरसे हट गया।
विस्मित स्नी बोली----“ सलीना ! ?” सलीनाने सुन्दर ओर वीणाको भी लज्जित कर देनेवाले स्तर॒समे कहा---“ शमे, शम ! मादर तू दामादे खुदरामे कशी ? (मा, छिः, छि: ! तू अपने जमाईको ही मारे डाल रही है ! ) उसकी मॉँका रुका हुआ झरना अब बड़े जोरकी नदीकी भॉँति बह निकला ।
वह बोली--. मेरे लाल '' दामाद |! दामाद किसका | जो कि मेरे दिकक छाछकों चोरकी: तरहसे तोड़ लेआकर दो काफिरोंके साथमें मिला और तुमको गुमराह किया--वह मैरा दामाद ! बेईमान दुश्मन, बेशम लड़की, किसको मेरा जमाई बतला रही है। हाथ छोड़ इन दोनोंको मार डालकर वनों और जंगलोमें फिर तुझकों साथ लिए घूमूँगी |”
सबने मेरी ओरको देखा | मर्दने अबतक कुछ भी नहीं किया था, क्रैन्त अब जान पड़ा कि वह मुझपर आक्रमण करेगा ।