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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022

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भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमाने ही के लिए ! राम ! राम | सरला लो मेरी बहिन है! वह तो“झुझकों मन्मथ दादाके नामसे पुकारा आरती है। भद्गाचाय॑ महाशय मेरे सिर में दर्द रहने के कारण ही इन “दिनो मेरे पढ़ने लिखनेको कुछ शिथिल देख रहे थे। तब क्या मैं इसी बात से नार की नाराज हो गया छि: छि: कैसी घृणा और कैसी लज्जाकीः बात है!

'कहावत है कि भूत मरकर ओंझा होता है। परेश बाबू सौघे- सादे और धर्म:प्राण होने पर भी काफी बुद्दधिमान्‌ थे और इस संसार के: उन्होंने देखा भी खूब ही था। इसीसे उन्होंने घृणा से महक सवरमें कहा-“ मैया ! मैंने जिस दिन से तुम्हारे बाकुं की मूँयू के ढँग को देखा था उसी दिनसे जान लिया जा 'कि तम गये; किन्तु मुझको यह नहीं सूझ पड़ा था कि तुम भट्टाचाय महाशय उस समय घर पर नहीं थे |

मलिन वेशा और  शड़ित केशा विधवा सरठा अपना बायाँ हाथ फैलाये और सिर झुकाये बैठी थी। उसके पास ही उसकी माँ, साक्षात्‌ सावित्री, स्थिर : मेरे हैसे बैठी हुईं मेरी गणनाशाक्तिकी परीक्षा कर रही थी | वे माँ बेटी दोनों मेरे ज्योतिष पर मोहित हो रही थीं। मोहित होना ही चाहिए भी था, क्‍यों कि सरला के जीवनकी कोई बात भी. तो मुझसे छिपी हुईं नहीं थी । उसके संगका सुख जितनी देर भी उठाया जा सके उतनाही उत्तम है | इसीसे सरलाका हाथ देख कर मैं उसके जीवनको पिछली बातोंमेंसे एक एकको बतछाता जा रहा था । इन सब बातोंकी सरला अन्यमनस्क हो कर सुन रही थी ।

उसने भाँति दर तन तो नहीं पाया था किन्तु यह बात मैं भली भौति समझ गया था कि पुरानी स्मृति उसके हृदयमें उधल-पथल मचा रही थी। सरलाने अन्य मनस्कतासे पुछा--“ क्या आप कह सकते हैं के . मरूँगी कब ? ” 6 मरूंगी कब ? मरूँगी कब?” यह प्रश्न मेरे कानोमें ४ जने लगा ! मैंने सोचा---सरला तेरी यह दशा किसके कारण हो रही है? हाय । तूने केसी कुघड़ीमें मुझसे प्रेम किया था! और सरलाकी माता !? जी में आ रहा था कि इस बनावटी वेष को फ्रेंक कर इसके दोनों पैर पकड़ रोकर कहूँ---“ मॉ-मुझको क्षमा करो ! ” मुझको चुप देखकर सरठा बोली--“क्यों। कया नहों बतला सकते हो ? ” मेंने सोचा नारी जीवन धन्य है ! मृत्यु तो उसकी बहुत पहले ही हो जानी चाहिए थी | फिर उससे प्रकटठमें कहा--“ इनके सामने. सब बातें कह दूँ!”

सरलाके प्राण सूख गये, वह बोली--“ हाँ, क्या हानि है !!? मेरा उद्देय सफल नहीं हुआ | सोचा था एकान्त मिल जाने पर 'सरलाको अपना परिचय देदूँगा ! मेंने कहा---“ कुसंगमें पड़कर तुम्हारा जीवन विषमय हो गया। ” दोनों आश्वर्यसे मेरे मुखको द्वेखने लगीं | में कहने लगा---“तुमने तो मरनेकी चेष्टा की थी, किन्तु वह विफल हो गई |” यह बात मैंने केवल अटकल्से कही थी। एक निष्टर अधर्मी पुरुष जिसके करनेके लिए तत्पर हो गया था, क्‍या उसके लिए एक लज्जा से झुकी हुईं महिला तैयार न हुई होगी ? अपने जीवनकी एक 'बात उसको सुनाई । माँ और बेटी आश्चर्यके साथ मेरे पेरोंकी घूलि भक्तिपूर्वक लेने लगीं । सरहा बोली कि-आप अन्तरयामी हैं | मेरा प्राण पत्थरं का बना हुआ था। में बहुतेश रो चुका था-; साझाकों अपने छाभ में साझा न बॉटना अपर्म है | लड़केने मुझे बहु- तैरा रुढाया था |

यदि वह अपनी गर्भधारणीको नहीं रुछा पाया तो इस कलिकाल में उसका जन्म ही बथा है। मैंने कहा--“ यदि तुम बुरा न मानो तो एक और छक्षणका फल भी कह ही डाहूँ। ” सरला ने मेरी ओरको निहार कर कहा---“ क्या १ अच्छा, कहिए॥ मेंने कहा, “तुम्हारे एक पुत्र है किन्तु जान पड़ता है कि इर. जीवनमें तुझारा और उसका मिलाप न होगा |” इस संवादका फल बहुतही बुरा हुआ । सरलाने श्थिर दृष्टिसे एक वार अपनी मौका मुख देखा ओर फिर वह मूच्छित होकर गिर पड़ी मेंने उसकी माँसे कहा---“ आप जल्द जल ले आवें |” माँ उठकर चली गई |में वस्लष के अंचलसे सरलाके हवा झलने लगा । सरलाने नेत्र मूँद लिए । मेंने भरे हुए कण्ठ में कहा---“सरछा | प्यारी ! क्या मुझे पहँचानती नहीं हो ? ” सरला बोली, “ प्राणाधिक,आप हो ? मुझको सन्देह हुआ था।” युवती फिर मूच्छित हो गई। उसी समय में चल दिया । बाहर आकर मेंने कपड़ेके अंचलसे अपनी आँखें पोंछ डालीं | कहीं कोई संन्यासीके नेत्रोंमे जल न देख ले ? संन्यासी बेचारे को जी भर रो लेनेका भी अधिकार नहीं है ।

वधवान के सीनियर डिपुटी मजिस्ट्रेट की  कोठी आज छोगों की भीड़ से खचाखच भरी हुई है | बालकों की एक टोलीने “ कृष्ण सागर” के किनारे .. बैठकर सलाह की कि आज स्कूल से भाग चलकर बालक के चोरका / मुकदमा देखना चाहिए । आज धर्म-द्वेषी लोगों में बड़ी चेतनता आई है। बे तो समझते ही हैं कि धर्म अधर्म सब झूठ है। गेरुए वस्त्र वाले साधु लुचे होते हैं, चुपचाप चोरी किया करते हैं । जो लोग घरमें निकम्मे थे और दूसरोंकी कमाई खाते थे उनके लिए एक काम मिल- गया, देखो इस चोरीका क्या रंग खुलता है। ग्राण्डटंक रोड से पश्चिम ओर को चले जाते हुए मैंने राहमें एक जगह पर अपने जीवन के सववस्व पुत्रकों खेलते हुए देखा था। जीमें आया कि जब ईश्वरने एक ऐसा अवसर सौंपा है तब व्यथे कष्ट उठाते फिर- नेकी क्या आवश्यकता है ? उसकी उस सुन्दर और संसारको मोहित करने वाली सूरत को देखकर मेरा हृदय एक बार फ़िर पितृस्नेहसे भर- गया । सोचा कि हाथ में पाये हुए इस रतनको अब छोड़ देना मूर्खता हैं ।

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

22 अगस्त 2022
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भद्गाचार्य महाशयके पैर छूकर मैंने शपथ की कि इस मामले मै  बिलकुछ निर्दोष हूँ। क्‍या आज तक जो उन्होंने अपने पुत्र ही की भाँति दो  बरस  मुझे पाला  था वह सब इस.घृणित और .जघन्य पापकी डालको मेरे सिर पर जमान

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

22 अगस्त 2022
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यह आज से पन्द्रह वर्ष पहले की बात है---” दो दिन बराबर वृष्टि होते रहनेसे घाट सब डूब गये थे, घरसे बाह निकलना कठिन हो गया था | काम धन्धा सब बन्द था। नहीं कह सकता कि यदि संयोगसे मित्र अमरनाथ न आगये होते

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

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मार्ग में भाग 1

22 अगस्त 2022
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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

22 अगस्त 2022
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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

24 अगस्त 2022
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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

24 अगस्त 2022
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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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