उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को चल दिया । रास्तेके बंगरोंके बाग बहुत ही रमणीयकान्ति धारण किए थे। हस हछिए रास्तेकी थकावट नहीं चढ़ी ।
कुछ आगे बढ़ने पर एक ओर खोलेकी घार मिली | कोतूहल परवश होकर बाँधके ऊपरके एक बड़े वटबृक्षके तले गाडीकों टेंक कर में स्वयं भी वहीं पर बेठ गया । वह दृश्य बहुत ही शांति देने वालासा जान पड़ने लगा । खोलेके दूसरी पार रुक हुए जलसे भरी एक बहुत बड़ी मील थी। मेंने देखा कि सब ओर स्थिर और शांत जलकी राशि है। कहीं पर भी कोई लहर नहीं दिखाई देती थी।. फिर जलहीके बीचमें दो एक झोपड़े भी दिखाई दे दिये।
इससे मैंने सोचा कि शायद वर्षाके जलकी धारने मैदानकों पावित करके चिर- भाग्यहीन और दरिद्री कृषकों का सर्वनाश कर डाला है| मुझ जेसे आमोर्दाप्रिय और बिना दायित्व वाले युवको की ऑँखोंको अच्छे लगने वाले दृश्य अवश्य ही कितने ही हत भाग्य लोगों के शोकके आंसुओ के सिंचे हुए होते है ।
मैं पूरे शहरवाला लड़का हूँ | कलकत्तेस बाहर बहुत है कम गया हूँ उस जलराशिके असली हाछको जानेनेके लिए मुझको बहुत ही कौतूहल हुआ । मैंने पास ही खेले पर एक नावमें कई एक स्त्रियो का घूँघट काढ़े खड़े हुए देखा | उन सबकी कमर ओर सिर पर मिट्टीके एकहीसे घड़े थे। वहाँसे उठ कर मैंने मांझीसे पूछा उस पार काहेका जल है मॉँझी ?
माँसीने कहा--“ वह “ वादा ! है वाबू बादा !---
मैंने कहा “ बादा क्या ? ?
उसने मुझको जो समझाया उसका अभिप्राय यह था के जल- पू्णे नीची भूमि। कुटियें घीवरोकी थीं। वे उस जल्में मछलियें पैदा करके रोजगार चलाते थे | बादामें जल खारी था, इस लिए धीवरियें पीनेका जल इस पारसे आकर लेजाती थीं ।
उस दिन उस स्थानके सब ही पदार्थ मुझको सुन्दर समझ पड़ रहे थे | नावमे बेठी हुई और कलसियोंको कांखमें दबाये हुए जो धीवर ललनायें थीं वे मेरे यौवनोत्साहपूर्णहदयमें पौराणिक भावकों विशेष रूपसे उकसा रही थीं। उन ब्रल्रियोने मेरे चित्तमें इन्दावनको गोपवा- छाओंकी कथाको स्मरण करा दिया | वह नि्जनसुद्र॑य स्थान कोछा- हलपूर्ण नगरकी अपेक्षा अधिक मनोरमसा छगने छगा।
मैंने मनमें स्थिर किया कि कलर केमरा लेजाकर इस स्थलरके दो एक द्रश्योंको अवश्य उतारूँगा |
मेरी फोटोग्राफी विद्याका गुरु प्रबोध था। दूसरे दिन उसको उस जगह लेजानेका मेंने बड़ी चेष्ठा की । उसने कहा---“ ऐसे पागल तुम ही हो, जो बादा या धापाके मैदानमें ऐसी घूपमें छबि लेने जाते हो ?”' वह मेरे साथ जानेको राजी नहीं हुआ, तब में अकेला ही उस कड़ी घूपमें झुल्सता हुआ वहों जा पहुँचा। किन्तु यह आश्चयकी बात है कि उसदिन वहाँ प्रकह्वतिके मुख पर वह टावप्यपूर्ण मधुर हँसी नहीं थी । उस समय प्रचण्ड घामसे समस्त पृथ्वी झुठसी जा रही थी, इस लिए लिपरकी नाव पर वे धीवरी रूपिणी गोपबालायें नहीं दौख पड़ीं और जल्में उनके चित्रके प्रतिफालित होनेसे जो सोन्दर्य उत्पन्न होता था सके उपभोग करनेकी मेरी ग्ञत्ति चरितार्थ नहीं हुईं। इस लिए बहाँकी कुटियोंकी ही एक छबि लेकर वट वृक्षके नीचे कुछ विश्राम करनेके लिए में बैठगया |
छबि टेलेनेक पछे जब में घरको फिरने टगा, तब रास्तेमे प्रकाश मिल्गया | उसने कहा --“ क्यों रमेश ! तुम्हारा मुख सूखा क्यों है ? वह हाथमें क्या है? ”
मैने कुछ हँसकर वहा--अरे, भाई ! यह क्यों पूंछ ? एक ग्रहदशामें फँसकर आज व्यथ ही बड़ा कष्ट भोगा ।
प्रकाशने कहा--- “ आओ, आओ. , भेरे घर थोड़ासा विश्राम कर लो|” भें बहुत ही प्यासा था; इस लिए उसके निमंत्रणको भने आनन्द- पूर्वक स्वॉकार कर लिया | हम दोनों पुराने संगके पढ़े हुए मित्र जिस समय प१रूपर अपने अपने सुखदुःखकी बाते कहनेमें ढगे हुए थे, ।
उसी समय एक साथ प्रकाशके पिता यहाँ आ गये | इधर उधरकी कुछ बातचीत करके वह प्रकाशकों संग बुला ले गये | जल्द ही लोटकर प्रकाशने मुझसे पूछा--- रमेश, क्या तुम्हारे केमरामें छ्रेटठ छगा है ? ”
मैंने कहा, “हाँ, एक ऐलेट है तो । क्यों, क्या तुम्हारे सुन्दर मुखकी एक छबि लढूँ ? !?
प्रकाश बोला--नहीं यह उद्देश बिलकुल नहीं है | मेरी छोटी बहि- नके विवाहका संबंत होनेको है | वर पक्षवालो ने उसकी एक छबि मगवाई है । यदि इस समय तुमहीसे काये बन जाय, तो और कष्ट नहीं करना पड़े | पिताजी इसी छिए मुझको पुकार कर ले गये थे ।
मेने कहा---“ वाह, यह कितनीसी बात है? जाओ जल्द टीक- ठाक करो | उजेला चले जाने पर चित्र अच्छा नहीं आवगा।
मैंने उनकी छत पर एक सुभीतके स्थान पर चित्र लेनेका आयोजन करने लगा | जाडेकी एक काली चादरसे पाछेकी एक प्राचीरको मेंने बंद कर दिया और प्रकाश से कहा कि छतपर की दीवाल मेंसे दो एक बेले उखाड़ ले आओ |
प्रकाशने कहा--“छतपरके बेल ओर फ़ूछ सब सूखेपड़े हैं नी- चेसे थोड़ेस पामके झाड़ ले आताहूँ |” मुझसे जितना भी होसका स्थानकों सुन्दर करलिया और उससे कहा ॥ के अब जाकर अपनी बहिनको ले आओ।
उसकी बहिन आई | लड़की देखनेमें बुरी नहीं थी। वह अपने बड़ेबड़े और सरक नेत्रोसे केमराकी आर देखती हुईं और कोमछ होठ।के कोने पर कुछ मुस्कुराती हुईं वहाँ आकर उपाःस्थत हुई ।