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भाग 2

23 अगस्त 2022

22 बार देखा गया 22

 उन दिनों में एक प्रकारसे फोटोग्राफी सीख चुका था और सब प्रकारके चित्रोंको बड़ी चतुरता से बना सकता था। एक दिन दोपहर ढले भे बाइसिकिलकी सहायतासे माणिकतलाके खोलेको पार करके पक्के रास्ते पर सीधा पूर्ब को  चल दिया । रास्तेके बंगरोंके बाग बहुत ही रमणीयकान्ति धारण किए थे। हस हछिए रास्तेकी थकावट नहीं चढ़ी । 

कुछ आगे बढ़ने पर एक ओर खोलेकी घार मिली | कोतूहल परवश होकर बाँधके ऊपरके एक बड़े वटबृक्षके तले गाडीकों टेंक कर में स्वयं  भी वहीं पर बेठ गया । वह दृश्य बहुत ही शांति देने वालासा जान पड़ने लगा । खोलेके दूसरी पार रुक हुए जलसे भरी एक बहुत बड़ी मील थी। मेंने देखा कि सब ओर स्थिर और शांत जलकी राशि है। कहीं पर भी कोई लहर नहीं दिखाई देती थी।. फिर जलहीके बीचमें दो एक झोपड़े भी दिखाई दे दिये।

 इससे मैंने सोचा कि शायद वर्षाके जलकी धारने मैदानकों पावित करके चिर- भाग्यहीन  और दरिद्री  कृषकों का सर्वनाश  कर डाला  है| मुझ जेसे आमोर्दाप्रिय और बिना दायित्व वाले  युवको की ऑँखोंको अच्छे लगने वाले दृश्य अवश्य ही कितने ही हत भाग्य लोगों के शोकके आंसुओ  के सिंचे हुए होते है ।

मैं  पूरे शहरवाला लड़का हूँ | कलकत्तेस बाहर बहुत है कम गया हूँ  उस जलराशिके असली हाछको जानेनेके लिए मुझको बहुत ही कौतूहल हुआ । मैंने पास ही खेले पर एक नावमें कई एक स्त्रियो का घूँघट काढ़े खड़े हुए देखा | उन सबकी कमर ओर सिर पर मिट्टीके एकहीसे घड़े थे। वहाँसे उठ कर मैंने मांझीसे पूछा उस पार काहेका जल है मॉँझी ? 

माँसीने कहा--“ वह “ वादा ! है वाबू  बादा !---

मैंने कहा “ बादा क्या ? ?

उसने मुझको जो समझाया उसका अभिप्राय यह था के जल- पू्णे नीची भूमि। कुटियें घीवरोकी थीं। वे उस जल्में मछलियें पैदा करके रोजगार चलाते थे | बादामें जल खारी था, इस लिए धीवरियें पीनेका जल इस पारसे आकर लेजाती थीं ।

उस दिन उस स्थानके सब ही पदार्थ मुझको सुन्दर समझ पड़ रहे थे | नावमे बेठी हुई और कलसियोंको कांखमें दबाये हुए जो धीवर ललनायें थीं वे मेरे यौवनोत्साहपूर्णहदयमें पौराणिक भावकों विशेष रूपसे उकसा रही थीं। उन ब्रल्रियोने मेरे चित्तमें इन्दावनको गोपवा- छाओंकी कथाको स्मरण करा दिया | वह नि्जनसुद्र॑य स्थान कोछा- हलपूर्ण नगरकी अपेक्षा अधिक मनोरमसा छगने छगा। 

मैंने मनमें स्थिर किया कि कलर केमरा लेजाकर इस स्थलरके दो एक द्रश्योंको अवश्य उतारूँगा | 

मेरी फोटोग्राफी विद्याका गुरु प्रबोध था। दूसरे दिन उसको उस जगह लेजानेका मेंने बड़ी चेष्ठा की । उसने कहा---“ ऐसे पागल तुम ही हो, जो बादा या धापाके मैदानमें ऐसी घूपमें छबि लेने जाते हो ?”' वह मेरे साथ जानेको राजी नहीं हुआ, तब में अकेला ही उस कड़ी घूपमें झुल्सता हुआ वहों जा पहुँचा। किन्तु यह आश्चयकी बात है कि उसदिन वहाँ प्रकह्वतिके मुख पर वह टावप्यपूर्ण मधुर हँसी नहीं थी । उस समय प्रचण्ड घामसे समस्त पृथ्वी झुठसी जा रही थी, इस लिए लिपरकी नाव पर वे धीवरी रूपिणी गोपबालायें नहीं दौख पड़ीं और जल्में उनके चित्रके प्रतिफालित होनेसे जो सोन्दर्य उत्पन्न होता था सके उपभोग करनेकी मेरी ग्ञत्ति चरितार्थ नहीं हुईं। इस लिए बहाँकी कुटियोंकी ही एक छबि लेकर वट वृक्षके नीचे कुछ विश्राम करनेके लिए में बैठगया | 

 छबि टेलेनेक पछे जब में घरको फिरने टगा, तब रास्तेमे प्रकाश मिल्गया | उसने कहा --“ क्यों रमेश ! तुम्हारा मुख सूखा क्‍यों है ? वह हाथमें क्‍या है? ”

मैने  कुछ हँसकर वहा--अरे, भाई ! यह क्यों पूंछ ? एक ग्रहदशामें फँसकर आज व्यथ ही बड़ा कष्ट भोगा ।

 प्रकाशने कहा--- “ आओ, आओ. , भेरे घर थोड़ासा विश्राम कर लो|” भें बहुत ही प्यासा था; इस लिए उसके निमंत्रणको भने आनन्द- पूर्वक स्वॉकार कर लिया | हम दोनों पुराने संगके पढ़े हुए मित्र जिस समय प१रूपर अपने अपने सुखदुःखकी बाते कहनेमें ढगे हुए थे, । 

उसी समय एक साथ प्रकाशके पिता यहाँ आ गये | इधर उधरकी कुछ बातचीत करके वह प्रकाशकों संग बुला ले गये | जल्द ही लोटकर प्रकाशने मुझसे पूछा--- रमेश, क्या तुम्हारे केमरामें छ्रेटठ छगा है ? ” 

मैंने कहा, “हाँ, एक ऐलेट है तो । क्यों, क्या तुम्हारे सुन्दर मुखकी एक छबि लढूँ ? !?

 प्रकाश बोला--नहीं यह उद्देश बिलकुल नहीं है | मेरी छोटी बहि- नके विवाहका संबंत होनेको है | वर पक्षवालो ने   उसकी एक छबि  मगवाई  है । यदि इस समय तुमहीसे काये बन जाय, तो और कष्ट नहीं करना पड़े | पिताजी इसी छिए मुझको पुकार कर ले गये थे । 

मेने कहा---“ वाह, यह कितनीसी बात है? जाओ जल्द टीक- ठाक करो | उजेला चले जाने पर चित्र अच्छा नहीं आवगा।

मैंने उनकी छत पर एक सुभीतके स्थान पर चित्र लेनेका आयोजन करने लगा | जाडेकी एक काली चादरसे पाछेकी एक प्राचीरको मेंने बंद कर दिया और प्रकाश से कहा कि छतपर की दीवाल मेंसे दो एक बेले उखाड़ ले आओ | 

प्रकाशने कहा--“छतपरके बेल ओर फ़ूछ सब सूखेपड़े हैं नी- चेसे थोड़ेस पामके झाड़ ले आताहूँ |” मुझसे जितना भी होसका स्थानकों सुन्दर करलिया और उससे कहा ॥ के अब जाकर अपनी बहिनको  ले आओ। 

उसकी बहिन आई | लड़की देखनेमें बुरी नहीं थी। वह अपने बड़ेबड़े और सरक नेत्रोसे केमराकी आर देखती हुईं और कोमछ होठ।के कोने पर कुछ मुस्कुराती हुईं वहाँ आकर उपाःस्थत हुई । 

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रचनाएँ
चित्रावली
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चित्रावली उपन्यास का मूल अर्थ है,निकट रखी गई वस्तु किंतु आधुनिक युग में इसका प्रयोग साहित्य के एक विशेष रूप के लिए होता है। जिसमें एक दीर्घ कथा का वर्णन गद्य में क्या जाता है। एक लेखक महोदय का विचार है, कि जीवन को बहुत निकट से प्रस्तुत कर दिया जाता है। अतः साहित्य के कुछ अन्य अंगों जैसे- कहानी, नाटक,एकांकी आदि में भी जीवन को उपन्यास के भांति बहुत समीप उपस्थित कर दिया जाता है। प्राचीन काव्य शास्त्र में इस शब्द का प्रयोग नाटक की प्रति मुख्य संधि के एक उपभेद के रूप में किया गया है। जिसका अर्थ होता है किसी अर्थ को युक्तिपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करने वाला तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला साहित्य के अन्य अंगों में भी लागू होती है। आधुनिक युग में उपन्यास शब्द अंग्रेजी जिसका अर्थ है,एक दीर्घ कथात्मक गद्य रचना है। कथावस्तु , पात्र या चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, देशकाल, शैली, उपदेश। इन तत्वों के अतिरिक्त एक और महत्वपूर्ण तत्व भाव या रस है।
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लङके का चोर भाग 1

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भाग 2

22 अगस्त 2022
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इसीसे उसको उठाये लिए जा रहा था । पुत्र तो मेरा ही था, तब किसी और मनुष्यकी आज्ञा लेनेकी आवश्यकता ? कितु मेरा जाना अधिक दूर नहीं हुआ था कि पुर्लेसने राहद्वीमें मुझको गिरत्फार कर लिया और आज मैं वर्धवानके

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स्मति भाग 1

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भाग 2

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दादाके कमरे में जाकर मैंने जो देखा उससे एक वारही स्तामित और मर्माहत होकर रह गया वहाँ मैंने देखा की आठ मास  पूर्ब जिस मन्दिर में में अच्छे शरीखाली, आभामयी और सदा हँसमुख रहने- वाली पुण्य प्रतिमाको प्रात

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मार्ग में भाग 1

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 हरिश बाबूसे मेरा पहिछा पारिचय हाईकोटकी ट्राममें हुआ । में अपने आफिससे ठोटते समय स्वभावके अनुसार पहिले दर्जके कमरे में  चढ़गया | जब हाथमें टिकिटोंकी गड्ठी और कमरमें टिकिट काटनेका यंत्र ल्टकाये हुए ट्

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भाग 2

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उस दिन श्रापशायर रेजिमेंटके गोरोंक साथ कलकत्ता कृबकी फुटबाल---की मेच थी | इस लिए मैदान लोगोंसे भरा था । उस दिन मुझको आफिससे समयसे पहले ही अवकाश मिलगया। इस लिए पैसे खर्च करके मिट्टीके तेलके पीपोंपर खड़

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भाग 3

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मैंने पच्चीस ही वर्ष के जीवन में देखलिया कि भगवान ने मनुष्य के सुख- दुःख की मात्रा को सदा के लिए ही बराबर बना दिया है| बालकपन ही से मुझमें बुद्धिकी इतनी प्रखशता नहीं थी, वरन्‌ तिसपर भी मुझमें आत्मामिम

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मेंने कहा---अब तो तुझको कोई और आपत्ति नहीं है ? मैंने कहा---कहो मा ! काहेको आपत्तिको पृूछती हो ! स्नेहमयी माने कहा--छि: आश्यु, ऐसी बातें क्‍यों करता है ? बंगा- लीके घरमें २५ वर्षकी अवस्थाका क्वौरा छड़

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भाग 5

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उस दिन कालीघाटमें अधिक भीड़ नहीं थी। माताके मन्दिरके बीचमें एक त्रह्मचारी गाना गा रहा था और उसके चारों ओर ख्तलीपु- रुष और लड़के लड़कियाँ घिरे बैठे उसके संगीत सुधासे तृप्त हो रहे थे। में भी दशन करके लो

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सुधा भाग 1

23 अगस्त 2022
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चन्द्रमाकी सफेद किरणेसि शांत रात्रिमें नीछा आकाश अपूर्व शोभा धारण कर रहा था । वह होलीका दिन था। मधुर वसन्तमें दिशाओंको कंपित करता हुआ पपीहा प्राणभरके गा रहा था। फ़रूछोंकी सुगंधिसे सब दिशायें आमोदित हो

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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इसके पीछे कितने ही दिन बीत गये | कितनी ही निद्राहीन रातें चली गई | शशि शेखर के हृदयका न दबनेवाला वेग किसी भी तरह शांत नहीं हुआ | कितनी ही मुैँहसे विना कही हुईं प्राथनाओं और कातर आँखों से उसका हृदय नही

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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अच्युतानन्दने कहा-“बेटा, तुम घरको छीट जाओ । कठोर कत्तेन्य तो अब भी तुम्हारे सामने पडा हुआ है । अभी कमंयोगका पालन करना ही तुम्हारा कर्तव्य है, ज्ञानयोगमें तुम्हारा अधिकार नहीं है। ”  दूसरा संन्यासी बो

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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अनेक दिन विना खाये ओर अनेक रातें बिना सोये रहनेकी थकावटसे सुधाकी देहलता निर्जीय सी होंगई थी। सुधाकी यह मूछा तो भंग हो गई, किन्तु उसको समय समय पर ऐसी ही मूछो होने लगी | शशिशेखर की व्याधिने एक दिन प्रबछ

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चित्र रहस्य भाग 1

23 अगस्त 2022
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उस साल में बी. ए. की पराक्षामें पास हुआ था | बावा के लाख सिर मारने और बहुत धन व्यय करने पर भी माता भारती का मेर बड़े भाईके साथ वैसा सद्भाव नहीं उत्पन्न हुआ था । इस लिए मुझे बी. ए. पास करते देखकर पिता

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उसकी उजली श्यामवर्णवाली देह एक रेशमी वस्त्र  से ढकी हुई थी। यदि उसका वर्ण और आधिक उजला होता, तो वह बड़ी सुन्दर त्तरियोंमें गिनी जासकती थी। इस लिए मेंने यह स्थिर किया कि इसका चित्र इस ढंग से दूँगा की ज

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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'' चित्र में लिए जाती हूँ ” |  मैंने हाथ फेला कर कहा--“ वाह | तुम चित्रको लेजाकर करोगी क्‍या ! ”  भाभी हँस कर बोलीं---“ और कुँवारे लड़के होकर एक कैँवारे लड़कीकी छब्रिको रख कर तुम्हीं कया करोगे। ” 

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भाग 5

23 अगस्त 2022
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एक ही दो बार नहीं मेंने भावजके श्रांत विश्वासको दूर कर डाल- नकी बहुत बार चष्टा की | वे सोचती थीं कि यह लजासे ही ऐसा अनुरोध करता है। असलमें उसके मनका विश्वास वही है जो कि मैं समझी हूँ । में बड़े पेंचमे

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भाग 6

23 अगस्त 2022
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कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्‍यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछू

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क्षमा भाग 1

23 अगस्त 2022
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१) कलकत्ता---५ मई १८९१  सुषमा,  तुम्हारा पत्र मिला । पत्र पढ़कर सुखी ही हुआ हूँ । यर्यप चिह्दीका सुर करुणा और वेदना व्यज्ञक है तथापि यह कहनेमें सत्यके व कहना होगा कि में उससे विशेष दुःखित या व्यथित

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भाग 2

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 प्रियतम सुषमा, तुम्हारी चिट्ठी पढ़कर हृदयमें भाला सा लगा | प्रूजाके दिनोंमें तुम्हारी बहिन मृणालिनीने क्या तुम्हारे साथ कुछ झगड़ा किया था?  उसका क्या अधिकार है, जो तुमको कुछ कह सके । मेरा जी है मैं त

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ईरानी रमणी भाग 1

23 अगस्त 2022
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 पूजाकी छुट्टीके दिनोंमे उसबार पश्चिमकी यात्रा करनेमें सबसे बड़ी बाधिका हुई थी हिन्दुस्तानी भाषाकी अनभिज्ञता | घरपर में जिस बोलीमें नौकरोंसे बोला करता था--पश्चिममें जाने पर जाना गया कि हिन्दी भाषा उसस

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भाग 2

23 अगस्त 2022
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हम  लोग  उनकी बातोंको बिलकुल ही नहीं समझ रहे थे.। क्योंकि उनकी बातचीत फारसीमें हो रही थी। हम उनकी अंगभंगीको देख रहे थे। मजीद ओर ईरानी स्त्री  दोनों पुराने परचित जान पड़ते थे । वे पर- स्पर एक दूसरेकी ब

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भाग 3

23 अगस्त 2022
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उस दलको देखते ही मेरा दम सूख गया | उनके कपड़े देखनेसे जान पड़ा कि एक तो कोई ऊँचा पुलीसका कमचारी हैं, दो तीन पहरेवाले हैं और उनके साथमें दो तीन जंगली पुरुष और दो ईरानी ल्लियाँ हैं | इन जिप्सियोंके मुखस

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भाग 4

23 अगस्त 2022
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मैंने  यह जानकर भी कि अब निर्जन प्रवास नहीं होगा, केवल प्रवास ही होगा अपने ।जीमें पिताके स्नेहकी खूब प्रशंसा की । ! सोचा कि तीन मास तो देखते ही देखते कट जायेंगे फिर प्रवासमें ' रहते रहते स्लीकी उस निष

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भाग 5

24 अगस्त 2022
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मैंने पृुछा---तब अपना परिचय क्‍यों नहीं दिया? ” वह बोला---“ किस मँँहसे देता ? आप सब ही कुछ तो जानते हैं ।” मैंने कहा---“छज्जाकी कौन बात थी ! प्रेममें लज्जा कैसी, मजीद साहब ! ” मजीदने हँसदिया और अपने

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भाग 6

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 सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फ

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भाग 7

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सरलाने उत्तर दिया ॥ कि दो पहरके समय में बरामदेमें चली गई थी । वहाँ पर मेंने देखा |कि एक स्ली और एक पुरुष धरके चारों ओर चक्कर काट रहे थे और कुछ देख रहे थे | मुझको देखते ही वह चली कहने छगी---'' माजी, फी

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भाग 8

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सँभाल कर मेंने थाम लिया इस समय मेरे जीपर जो बीत रही थी वह 'कही नहीं जा सकती है।  सलीना---“ अम्मा, तुझको धोखा हुआ | विवाहके पहले मैंने स्वामीको छुआ भी नहीं और इन बंगाली बाबूर्जाको उस दिन दिल्लीमें देख

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अशुभ मुहूत्ते

24 अगस्त 2022
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सब ही वातोंमें एक शुभ और एक अशुभ मुहूत्त देखनेमेँ आता है । नहीं कह सकती कि मेरे ब्याहकी बात भी कैसे अशुभ मुहूर्ततमें उठी थी | तबसे अतुर सुखमें रहने पर भी मेरे हृदयके भीतरका सुख लोप होगया । अच्छा अब इन

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