कोई आधे घण्टे तक मैं स्थिर पड़ा रहा | तबतक ऊषा सोई नहीं थी । मरे ही भाग्यके दोषसे जिसका गये इतना बढ़ गया था भला वह अब क्यों सोती | उसके अलंकारोंके बजनेकी ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। अंतमें मुझको माछूम पडा कक मेरे कंघेमे किसीका हाथ छुआ । में सोते हुए होनेका बहाना करके चुप पडा रहा | जान पड़ता है कि ऊषाका हाथ धोखेसे मेरे छग गया था | उसने डरकर हाथको खींच लिया |
इस कोठेकी निस्तब्धता धीरे धीरे मेरी पीड़ाका कारण बनती जाती थी । एम, ए. उपाधि लाभकी संपदाकों में स्वच्छन्द चित्तसे नहीं भोग सकता था--क्या यह कुछ कम दुर्भाग्यकों बात था कभी कभी जीमें आता था कि अपने हृदयके विषोंकों पासवाछी अप- राधिनी पर थूककर उसको असली भेद समझा दूँ। किन्तु वह अब- सर निकलगया था | जिस समय उसका हाथ कँघेसे लग गया था, उस समय ये बातें कही जा सकती थीं ।
नहीं कह सकता कि ऊपाके जीमें क्या गुजर रही थी। जान पड़ता था कि बहुत अधिक गव॑ और मेरे प्रति अश्रद्धां, ये दो भाव उसके हृदयको मथ रहे थे। फिर अवसर हाथ आया । उसका घाणित (?) हाथ फिर मेरे शरीरसे छू गया।
मैंने कहा---“ सैंभलकर नहीं सोया जाता १ ”
ऊषा हट गई; मुँहसे कुछ नहीं बोली । मेंने सोचा कि इसको कितना गये है । उसको सिरसे पेंरॉतक देखा । गर्वसे सिकुडकर वह चुपचाप लेटी थी ।
मुझे बहुत ही बुरा लगा | मैंने कहा--तेरा गर्व करना भूल है।
उसने धीरे धीरे अस्पष्ट शब्दोंमें कुछ कहा । मैंने उसके मुखके पास कान छेजाकर कहा कि तू क्या कहती है !?
उसने भेरे मुखकी ओरको नहीं देखा । धीरे धीरे बोली यदि कुछ गलती हो जाती थी, तो .बड़ी बहिन कहती थी कि विद्वान् पति मिलनेवाला है, इस कारण तुझको गवे हो गया है । अब आप भी वही बात कहते हैं। भला मेंने क्या किया है ?
मैं जिस अवसरकों खोजता था वह मिल गया । भेने कहा--क्या किया है ? तूने मेरी जीवनभरकी जोडी हुई आशाओंको जला कर भस्म कर दिया; तूने मेरी स्नरी बनकर मेरे जीवनमें हलाहल मिला दिया । सारे घरवालोंने एक भूलमें फँसकर मेरी सब इच्छाओंके अंकुरको नष्ट कर दिया । में कैसी अशुभ घडीमें तेरी तस्त्रीर लेने गया था ।
अब मेर जीमें यह जाननेको वासना हु३ कि इतनी लंबी वक्तताका श्रोतापर क्या प्रभाव पड़ा । यह नहीं समझमें आया कि ऊपाके शरी- : रके टक्षणोंसे भय झलकता था या गव। उसके रोनेकी धीौमी ध्वनि मेरे कानोंमें अस्फुट रूपसे जा रही थी ! तब कया ऊषा गदवेमें भरी हुई नहीं है ! तब क्या मेरे प्रधानभयका कारण स्वप्तमें देखी हुई प्रेत- मूतिकी भाँति अर्लाक आर केवल कल्पनासे बना हुआ है ? उसके रोनेसे मुझको कुछ दया आई | मैंने मुठायम स्वस्से कहा--रोती बयों है ऐसा करेगी तो में कमरे से चला जाऊँगा ।
ऊषाने बड़बड़ करके फिर कुछ कहा--कहना रोने में मिल जानेके कारण से समझ में नहीं आया | इसके बाद मेंने फिर “पूछा ” तो वह बोली--मैंने तो कोई दोष किया नहीं है।आप न जाने क्यों मेरा तिर-.'स्कार करते हैं। में तो आपकी आज्ञा पाठन करने के लिए उसी भौतिसे वस्त्र पहिनती हूँ जसे ॥ कि आप बता आये थे |
मैंने अप्रसन्न होकर पूछा--मैंने भला कब तुझको कपड़े पहिनना सिखाया !
उसने कहा--जिस दिन फोटो खींचा था ।
मेंने पूछा--उस प्रकार से वस्त्र क्यों पहिनती है ।
लज्जा से मुख नीचे को करके ऊषा ने कहा--मांने कहंदिया था कि हमेशा आपहीकी बात सुननी पडेगी, और जो आप करेंगे बही करना होगा ।
कैसी मधुर भाषा थी! केसी अमृतमयी वाणी थी! इस बातको मेंने धीर भावसे बक्ष्य किया | देखा तो उस मूतप्तिमें गर्वका लक्षण कहीं दृष्टि न आया | मेरा चार मासका दुःख और इतने दिनोंका कुसंस्कार पलभरमें जाता रहा । पुष्पोंकी छुगंध सिरमे प्रवेश करके मेरे आनन्दको बढ़ाने लगी | मेरे दोनों ओंठों ने मेरे अनजान में ही छलना के ओंठोंसे मधु हरण कर किया । मेंने * फ़ूलवासरके उजालेमें देखा कि ऊषा असामान्य रूपवती है ।