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दैनिक_प्रतियोगिता

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प्रायः प्राकृतिक आपदाओं का सामना प्रत्येक देष को करना पड़ता है। जैसे विष्व में कई देष ऐसे हैं जो अत्यधिक ठंडे हैं जहां बारह महीने बर्फ की मोटी चादर के साथ-साथ वहां का तापमाप षून्य से बहुत नीचे तक रहता

मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको  🙏🙏जहरीले रसायन खेतों में डाल रहे हैं हम !तात्कालिक पैदावार बढ़ा ले रहे हैं हम !!प्रतिदिन धरती को बाँझ बना रहे हैं हम !और प्राकृतिक आपदा भी बता रहे

बिना अपराध किये किसी को सजा नही देत ईश्वर प्राकर्तिक आपदा में मनुष्य अपनी प्रमुख भूमिका निभा रहा है फिर वो चाहे नदी इत्यादि को गंदा करना हो या फिर वृक्षों की कटाई इत्यादि इंसान यह नही जानता की "प्रक्र

जिंदगी के हर अहसास के,अंदाज निराले होते हैं।प्रकृति यह है मनुष्य की,कभी हंसते कभी रोते हैं।।दोस्ती:-दोस्ती है प्रेम का रिश्ता,जो दिल में पैदा होता है।हर मनुष्य के जीवन में,एक सच्चा दोस्त होता है।।जहां

राम अमोल पाठक जी और अमरावती का सफर ख़त्म होता है और सूरजगढ़ पहुँच जाते हैं |    राम अमोल पाठक जी दोनों बैग कंधे पर लटका लेते हैं और ट्रेन से उतर अमरावती से चन्दन को अपनी गोद में ले लेते हैं |

हमारे भारतीय चिन्तन में शरीर को धर्म का पहला साधन माना गया है। महाकवि कालिदास की सूक्ति "शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्"  और इस हेतु सदैव स्वस्थ रहने को कर्तव्य निरूपित किया है। "धर्मार्थ काममोक्षाणाम् आरो

तुम भविष्य के सपने हो,इस देश के श्रृंगार हो।भारत मां के सच्चे सपूत,मां की ममता के प्यार हो।।शुद्ध और पोषक आहार से,शारीरिक मजबूत बनाओं।बल बुद्धि विकसित करके के,देश प्रगति में हाथ बढ़ाओ।।तुम भविष्य के द

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता हैं। हमारा शरीर एक साधन हैं और बिना किसी साधन के साध्य को पाना असम्भव होता हैं हमारा शरीर ही इस जगत में सक्रिय प्राणी के रूप में हमारे होने का पहचान हैं शरीर स

    मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको🙏🙏 एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने युवाओं के विषय में समझाते हुए कहा था कि युवावस्था उत्साह,उमंग, कर्मठता, प्रयोग -धर्मिता और नवोन्मेष

जिस प्रकार हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर को संकेत प्रदान करता है और उसी के अनुरूप हमारा शरीर काम करता है वैसे ही अगर हम नकारात्मक वातावरण में रहे तो उसका सबसे पहला प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है और धीरे

अब तक आपने देखा         ये कह प्रतिक्षा अपना नीचे वाला होठ बाहर निकाल कर कमरे में चारों तरफ देखने लगी , तभी उसे याद आया कि आज उसे , कुछ रस्में भी करनी है , जो बाकी है । 

इंटरनेट से पहले जब दूरभाष या टेलीफोन का आविष्कार हुआ तो यह मानवीय जीवन के लिए एक उपयोगी वरदान था। क्योँकि तब दूर देश-परदेश में रहने वाले अपने लोगों से बातचीत एक सरलतम सुविधा माध्यम था। टेलीफोन से लोगो

Hello friends 🙏आज के दौर में हम इतना आगे निकल चुके हैं , की इंटरनेट के बिना हमारा सारा काम अधूरा सा लगेगा । आज के दौर में छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा हर एक काम इंटरनेट के माध्यम से ही होने लगा है ।

राम अमोल पाठक जी बिहार के एक गांव के भरे-पुरे परिवार से थे |  गांव में आँगन वाला सबसे ऊँचा मकान राम अमोल पाठक जी का था, घर पर पिताजी,भैया-भाभी, एक प्यारी सी भतीजी और बीवी अमरावती थी, अभी-अभी राम अमोल

तड़पता है दिल ये मेरा हर पलतुझसे जुदा होने के बाद ...भटकता हूँ मैं दरबदरएक तेरे ना होने के बाद ...तेरे बिना ना रहा मैं एक पल अब कैसे रहूं मैं तेरे बिन उम्र भर ...कांटो सा लगता है यह खामोश कमरा&nb

जिस प्रकार इंसान को सांस लेने के लिये दिल व फैफडो का इस्तेमाल करना पड़ता है ठीक उसी प्रकार आज के आधुनिक युग में इंटरनेट इंसान का दिल व फैफडा बन चुका है जहां आप इसके बिना सांस तक ले नही सकते हैं फिर वो

मीराबाई की जीवनी... पायो जी मैंने नाम रतन धन पायो।बस्तु अमोलक दी म्हारे सतगुरु, किरपा कर अपनायो।जनम जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो।खरचै नहिं कोई चोर न लेवै, दिन-दिन बढ़त सवायो।सत की नाव खेवहि

मेरे प्यारे अलबेले मित्रों !बारम्बार नमन आपको 🙏🙏       मित्रों ! इस दौड़ती भागती जिंदगी को आसान बनाने के लिए सन 1960 ई0 में इंटरनेट ने जन्म लिया जो कि हमारी ज़िंदगी में एक महत्त्व

वर्तमान समय में हम सभी तकनीकी के इतने आदी हो चुके हैं कि उसके बिना एक दिन की कल्पना करना भी किसी को बेचैन कर देने के लिए काफी है। आज की सदी में तकनीकी का पूर्णतः उपभोग कर पाने में इंटरनेट का योगदान सर

लत लगी इस दुनिया कोनशा हुआ अनौखा है।इंटरनेट के बिना एक पल,हर मनुज का सूना है।।खाने-पीना की सुध नहीं,हाथ मोबाइल जब आई है।मनुज की नजर हटती नहीं,जीवन की राह बनाई है।।समय के पाबंद हो गये,समय बचा ना परिवार

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