प्रायः प्राकृतिक आपदाओं का सामना प्रत्येक देष को करना पड़ता है। जैसे विष्व में कई देष ऐसे हैं जो अत्यधिक ठंडे हैं जहां बारह महीने बर्फ की मोटी चादर के साथ-साथ वहां का तापमाप षून्य से बहुत नीचे तक रहता है और कई देष ऐसे भी हैं जहां का तापमान इतना अधिक है कि वह किसी जलते हुए अग्निकुण्ड से कम प्रतीत नहीं होता। 50 से 60 डिग्री सेल्सियस की गर्मी किसी के पसीने छूड़ा देने के काफी है। इन सबके बावजूद इनमें बहुत से ऐसे देष हैं जिन्होंने इन आपदाओं से निपटने के लिए बेहतर समाधान खोज लिये हैं जिसके कारण वह उन समस्याओं के बीच बड़ी आसानी से निकल जाते हैं। भारी बर्फबारी और षून्य से नीचे के तापमान में बर्फ को हटाने, साफ करने और पिघलाने वाली भारी भरकम मषीनों से इन आपदाओं से पार पाते हुए उनका रोजमर्रा का कार्य सुचारू रूप से चलता रहता है। ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, रूस ऐसे ठण्डे प्रदेषों में आते हैं, जहां का तापमान भयानक रूप से नीचे की ओर चला जाता है। इसके विपरित संयुक्त अरब अमीरात, दुबई, कुवैत और उसी क्षेत्र में आने वाले अनेकों देष ऐसे हैं, जहां का तापमान अत्यधिक गर्म है। जिसके कारण वहां पानी की अत्यधिक समस्या है, जो किसी आपदा की कम नहीं। जैसा की कहा जाता है, जल ही जीवन है। अत्यधिक गर्म देष होने के कारण और कोई नदी, झील, जलाषय के अभाव में स्थिति और भी अधिक भयावह हो जाती है, इन सबके बावजूद इनमें से कुछ देषों ने समुद्र के जल को पीने योग्य बनाकर पूरे देष की इस भयानक आपदा का निवारण कर लिया है। रेगिस्तान की बंजर भूमि हो या बर्फीला रेगिस्तान अपनी लगन, निश्ठापूर्ण व्यवहार, मेहनत और वैज्ञानिक समझ के द्वारा इन देषों ने अपनी जमीन पर ऐसे कार्य कर दिखाये हैं, जो किसी आष्चर्य से कम नहीं है कि इतनी कम उर्वरा षक्ति वाली भूमि और कम संसाधनों के बावजूद यह देष यह सब करने में सक्षम हो सके।
वहीं बात यदि विकासषील देषों की की जाये जैसे भारत, पाकिस्तान, बंगलादेष, श्रीलंका, नेपाल, इंडोनेषिया, म्यांमार इत्यादि, यहां पर प्राकृतिक आपदाएं आने पर स्थित अत्यन्त ही भयावह हो जाती है। भारत में अनेकों ऐसे राज्य हैं जहां अधिकतम प्रत्येक वर्श प्राकृतिक आपदाओं का प्रकोप आता रहता है। भारतीय महाद्वीप में आने वाले यह सभी देषों में जहां एक और जलवायु अत्यन्त ही विविधतापूर्ण है, वहीं जमीन भी भिन्न-भिन्न प्रकार की पाई जाती हैं। भरपूर संसाधनों, उच्च उर्वर भूमि और अत्यधिक मानव षक्ति के होने के बावजूद यहां पर जिस प्रकार आपदा प्रबन्ध के नाम पर करोड़ों-अरबों रूपये खर्च किये जाते हैं और आपदा प्रबन्ध को लेकर बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं, उनकी पोल बाढ़, भूकम्प, सूखा, भूस्खलन आदि जैसी आपदाएं आने पर स्वयमेव खुल जाती हैं कि किस प्रकार तेज बजने वाले ढोल कोई संगीत नहीं अपितु षोर ही उत्पन्न कर सकते हैं। बिहार में प्रायः हर दूसरे-तीसरे वर्श बाढ़ का कहर जरूर टूटता है। वर्शा ऋतु में तेज बारिष के समय भूस्खलन होना आम बात है, भूकम्प को आने से कोई नहीं रोक सकता, आंधी-तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदायें अपने समय पर आती हैं, जिन्हें रोक पाना संभव नहीं किन्तु यदि यह सब निष्चित है तो इन विकासषील देषों में ऐसी क्या समस्या है कि वह इनसे निजात नहीं पा सकती?
इसका कारण एकदम स्पश्ट है, अव्यवस्थित सिस्टम और लुंचपुच सरकारी व्यवस्था को ठेलते भ्रश्ट नेता और अधिकारी। जिनकी बदौलत इन सभी देषों का एक आपदा आने पर ऐसा हाल हो जाता है, जहां सबसे अधिक आम जनमानस को अपनी जानमाल की हानि उठानी पड़ती है। इस प्रकार देखा जाये तो क्या ऐसे भ्रश्टाचारी लोग किसी देषद्रोही से कम नहीं? जो अपने देषवासियों की जानमाल की हानि का कारण बनते हैं और स्वयं भ्रश्टाचार द्वारा कमाये धन के कारण बड़े-बड़े आलीषान घरों में बैठकर टीवी चैनलों और अखबार की सुर्खियों में देषहित की बातें करते नजर आते हैं। जिनके अनुसार देषप्रेम मात्र झण्डा लगाने, वन्देमातरम बोलने, राश्ट्रगान पर खड़े होने या न खड़े होने, अमुक नेता, पार्टी और किसी कथित धर्म गुरू या किसी धर्म विषेश के पक्ष या विपक्ष में होना या न होना मात्र है? यह यक्ष प्रष्न सदा ही हमारे समक्ष है कि वास्तव में हम क्या हैं और हमें क्या होना चाहिए और वह हम कैसे हो सकते हैं......!