shabd-logo

जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022

16 बार देखा गया 16

ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन नौ-जवान पर मुश्तमिल था जो उम्र में मुझ से काफ़ी बड़े थे।

हफ़ीज़ पेंटर की दुकान में जो बिजली वाले चौक से बाएं हाथ हाल बाज़ार के पास ही वाक़्य थी, हम सब बैठते और घंटों गपबाजी होती रहती। मैं पढ़ाई वढ़ाई क़रीब क़रीब छोड़ चुका था। इसी तरह मुबारक अपनी मुलाज़मत पर लात मार कर अमृतसर वापस चला आया था। वो किसी रियासत में मुलाज़िम था। हफ़ीज़ पेंटर की अपने बाप से चख़ हो गई थी, इस लिए उस ने अलाहिदा एक बड़ी दुकान ले ली जिस में कुछ अर्सा पहले एक कम्युनिस्ट सिख की दुकान थी, जो ग्रामोफोन डीलर था। ख़ैर दीन की मस्जिद से मुल्हिक़ा दुकान हाल बाज़ार में थी मगर अच्छे मौक़ा पर थी। यानी ऐन हाल बाज़ार के वस्त में और मस्जिद के ज़ेर-ए-साया ख़राबात मुरव्वजा उसूलों के मातहत होनी ही चाहिए। इस लिए वो उसे बहुत पसंद आगई थी। इधर अज़ान होती तो उधर रिकार्ड बजते। लेकिन कोई दंगा फ़साद इस बात पर वहां कभी न हुआ। अलबत्ता छोटी छोटी बातों पर सैंकड़ों ख़ून होते रहते।

अमरद परस्ती ग़ुंडों, रंडी बाज़ी पर, गुंडों की दो मुख़ालिफ़ पार्टीयों पर, ऐसे मुस्लिम मुस्लिम और मुस्लिम हिंदू फ़साद आम थे। जो एक दो दिन अपनी धाक बिठा कर झाग के मानिंद ग़ायब हो जाते। गर्मी की पहली पीली भिड़ों के मानिंद जो अपने इर्दगिर्द जाला तन लेती हैं और ब-ज़ाहिर बिलकुल मुर्दा हो जाती हैं। लेकिन मालूम नहीं फिर मुवाफ़िक़ मौसम आने पर ज़िंदा हो जाती हैं, और बे-क़ुसूर आदमियों को काटने के शुगल में मसरूफ़ होजाती हैं।

अमृतसर एक अजीब-ओ-ग़रीब शहर है। यहां हर एक क़िस्म की शैय उस ज़माने में पाई जाती थी। भंगनों की लड़ाई से लेकर गर्वनमैंट से पंजा-कशी करने तक। लोग भी भांति भांति के थे। लाले जो अपनी बज़्ज़ाज़ी की दुकानों पर पादते रहते और कुछ ऐसे मन चले भी थे जो छोटे छोटे पटाख़े बना कर चलाते थे कि लोगों के दिल एक लहज़े के लिए दहल जाते। दहश्त पसंद भी थे और अमन पसंद भी। नमाज़ी और परहेज़गार भी थे और अव्वल दर्जे के ओबाश और गुनाहगार भी। मस्जिदें थीं और मंदिर भी। इन में गुनाह के काम भी होते थे और सवाब के भी।

ग़र्ज़ कि इंसानी ज़िंदगी के ये सब धारे साथ साथ मुतवातिर बहा करते थे....कई सयासी तहरीकें हुईं। कई ग़ुंडों का आपस में किश्त-ओ-ख़ून हुआ। मुस्लमानों और क़ादियानियों में कई मुबाहले हुए, जिन में बड़े जग़ादरी उलमाए किराम ने हिस्सा लिया। क़हत पड़े, वबाएं आईं। जलियाँ वाला का तारीख़ी हादिसा हुआ, हज़ारों इंसान, जिन में मुस्लमान, सिख, हिंदू सब शामिल थे, मौत के घाट उतारे गए, लेकिन अमृतसर जूं का तूं रहा।

हफ़ीज़ पेंटर की दुकान पर यूं तो दुनिया भर के सयासी, मजलिसी और मआशी मसाइल पर तबादल-ए-ख़यालात और बहस होती रहती, मगर बड़े ख़ाम अंदाज़ में। असल में वो सब के सब आर्टिस्ट थे। गो नीम रस....उन को दरअसल मोसीक़ी से शग़फ़ था। कोई तबले की जोड़ी उठा लेता, कोई सितार, कोई सारंगी और कोई तानबूरा हाथ में लेकर मियां की टूडी, मालकौंस या भागीरी का अलाप शुरू करदेता।

यहां भांग भी घोटी जाती, चरस भरे सिगरेट भी पीए जाते, शराब के दौर अक्सर चलते। इस लिए कि दिन इतना बड़ा बे-बाक नहीं था। साढ़े आठ रुपय में एक पूरी बोतल बढ़िया से बढ़िया स्काच विस्की की आजाती थी। हफ़ीज़ शाम को अपनी दुकान के भारी भरकम किवाड़ बंद करदेता और हम चटाईयों पर बैठ कर इस मशरूब से आहिस्ता आहिस्ता लुत्फ़-अंदोज़ होते। फिर आधी रात को जब आस पास की सारी दुकानें बंद होतीं, हम मोसीक़ी का दौर शुरू कर देते।

यहां क़रीब क़रीब सब गवय्ये, बड़े और छोटे फ़न का मुज़ाहरा कर चुके थे। इस लिए कि ज़िंदा दिल नौजवानों की महफ़िल थी। फकड़ बाज़ी भी होती तो कोई बुरा न मानता था।

एक दिन मैं सुबह दस बजे के क़रीब हफ़ीज़ पेंटर की दुकान के सामने से गुज़र रहा था। इस लिए कि मुझे ज़रा आगे चल कर एक कैमिस्ट की दुकान से अपने कान के लिए दवा लेनी थी कि हफ़ीज़ ने बर्श कान में उड़िस कर मुझे ब-आवाज़-ए-बुलंद पुकारा और इसी कान में अड़े हुए बर्श को निकाल कर उस से मुझे इशारा किया, जिस का ये मतलब था कि मैं उस की बात सुनता जाऊं।

मैं उस की दुकान के थड़े के पास खड़ा होगया, और उस से पूछा “क्या बात है हफ़ीज़ साहब?”

हफ़ीज़ ने बर्श फिर कान में उड़िस लिया और जवाब दिया “बात ये है मेरी जान कि आज तो कल का गाना होगा। उस के साथ मच्छर ख़ान और बसे ख़ान भी होंगे....वो मुआमला भी होगा....छः बजे से पहले पहले ही आजाना....मैंने तमाम दोस्तों को इत्तिला दे दी है। तवक्कुल को मैंने सुना तो नहीं लेकिन नए ख़याल के लोग उसे बहुत पसंद कर रहे हैं। नौ-जवान है। कहते हैं कि ख़ां साहब आशिक़ के मानिंद बे-डार गाता है और हक़ अदा करता है।”

मैं बहुत ख़ुश हुआ “आऊँगा और ज़रूर आऊँगा। मगर ये मच्छर ख़ान क्या बला है.......... क्या तुम उसे किसी मच्छरदानी के अंदर बिठाओगे?

हफ़ीज़ पेंटर खिखला कर हंसा “अरे नहीं यार, उस की आदत है कि जब कोई तान लेता है और वापस सिम पर आता है और बड़े ज़ोर से अपनी रानों पर दो हत्तड़ मारता है........... इस लिए उस का नाम मच्छर ख़ान पड़ गया है। जैसे वो गा नहीं रहा, बल्कि अपने बदन पर काटने वाले मच्छर मार रहा है।”

मैंने उस से कहा “चलो, इस का तमाशा भी देख लेंगे...पर अगर इस ने आज रात कोई मच्छर न मारा तो ये तय है कि तुम्हारे आर्ट स्टूडियो से वो ज़िंदा बाहर नहीं निकलेगा।”

हफ़ीज़ खिखला कर हंसा, कान में से उड़सा हुआ बर्श निकाला और साइन बोर्ड पेंट करने लगा “जाओ यार जाओ.......... मेरा वक़्त हर्ज कर रहे हो......... मुझे ये काम वक़्त पर मुकम्मल करना है।”

मैं वहां से चला गया........... कैमिस्ट की दुकान से दवाई ली। बाहर निकला तो शेख़ साहब जो वहां के बहुत बड़े रईस थे, उन से दो आदमी दुकान के पास खड़े बातें कर रहे थे। मैंने शेख़ साहब को सलाम किया.......... उन्हों ने जैसा कि उन की आदत थी, छड़ी बिजली के खंबे के साथ मारी। जब आवाज़ पैदा हुई तो उन का इत्मिनान होगया तो वो मुझ से मुख़ातब हुए। “कहो भई सआदत क्या हाल है।”

मैंने अर्ज़ की “जनाब की दुआ से सब ठीक है।”

जिन दो आदमियों से शेख़ साहब बातें कर रहे थे, वो स्याह फ़ाम थे, लेकिन उचकन का रंग उन के रंग से कहीं ज़्यादा काला।

दुबला पुतला, लेकिन चेहरे के नक़्श तीखे। शेख़ साहब चलने लगे तो इस आबनोसी गोश्त-पोस्त के टुकड़े ने तेज़ी से बढ़ कर शेख़ साहब के कोट की पीठ झाड़नी शुरू की, बड़ी नफ़ासत से, शेख़ साहब ने गर्मा कर उस से पूछा “क्या बात थी?”

इस आबनोसी आदमी ने बड़ी पतली आवाज़ में जवाब दिया “चन्द बाल थे और थोड़ी सी गर्द।”

शेख़ साहब ने उस का शुक्रिया अदा किया और कहा “अच्छा तुम कल सुबह घर पे आना” और वो फिर बिजली के खंबे को अपनी छड़ी से बजाते हुए ग़ालिबन कंपनी बाग़ की तरफ़ निकल गए।

एक दिन मैंने फिर उसे देखा। अपने कटड़े के बाज़ार में वो दो लालों की मुसाहिबी में मसरूफ़ था। उस ने साफ़ सुथरे कोटों पर से कई मर्तबा ग़ैर-मरई चीज़ें जुदा कीं। उस दिन भी वो अपनी काली उचकन पहने था। हालाँकि काले कपड़े पर गर्द-ओ-ग़ुबार फ़ौरन नुमायां होता है, मगर मैंने ग़ौर से देखा, कि उस पर ऐसी कोई चीज़ भी नहीं थी। मेरा ख़याल है वो जनटल मैनों के बर्श के इलावा अपना बर्श ख़ुद भी था।

मुझे रास्ते में एक दोस्त मिल गया। मैंने उस से पूछा “ये आबनोसी आदमी कौन है?”

उस ने हैरत से पूछा “कौन सा आबनोसी आदमी........... बन मांनुस से थे, मगर आबनोसी कहाँ से तुम ने घड़ लिया।”

मैंने उस से ज़रा तेज़ लहजे में कहा “अरे ये आदमी जो हमारे आगे आगे जा रहा है....... चुग़द हो परलय दर्जे के। क्या इतना भी नहीं जानते कि आबनोस एक लकड़ी होती है।”

“तो क्या ये लकड़ी है जो चल फिर रही है?”

“अबे नहीं....आबनोस का रंग काला होता है, चूँकि उस ने काली उचकन पहनी है और रंग भी उस का ख़ुदा के फ़ज़ल-ओ-करम से ख़ासा काला है, तो मैंने उसे आबनोसी कह दिया।”

मेरा दोस्त हंसा “अरे, तुम उसे नहीं जानते, उस का नाम जेंटिलमैनों का बर्श है।”

“इतना तो मैं जानता हूँ।”

“तो इस से ज़्यादा तुम और क्या जानना चाहते हो?”

मैंने चिढ़ कर कहा “यही कि इस का महल्ले वक़ूअ क्या है....इस का पेशा क्या है?”

मेरा दोस्त मुस्कुराया “ये ज़ात का रुबाबी है, जो दरबार साहब में चौकी करते हैं........... मगर ये वहां नहीं जाता......... ”

“क्यों?”

“बस इस को अमीरों की सोहबत हासिल है। इन ही में उठता बैठता है, और उन के कोटों पर बर्श करता रहता है।”

मैंने उस से पूछा “खाता पीता कहाँ से है?”

जवाब मिला “जिन की मुसाहिब-दारी करता है........... इस के इलावा गाता बहुत अच्छा है।”

मैंने पूछा “तुम ने कभी सुना है उस को?”

“नहीं, अलबत्ता तारीफ़ बहुत सुनी है।”

हम बातों में मशग़ूल पीछे रह गए और वो जेंटिलमैनों का आबनोसी बर्श इन दो लालों के कोट झाड़ता बहुत दूर निकल गया।

थोड़ी देर के बाद मेरा दोस्त भी मुझ से जुदा हो गया। उस को कोई ज़रूरी काम था वर्ना में उस शख़्स के मुतअल्लिक़ कुछ और मालूमात हासिल करता।

इत्तिफ़ाक़ से मुझे अपने बहनोई (जो अमृतसर के आनरेरी मजिस्ट्रेट थे और ख़ुदा मालूम क्या क्या थे) के साथ एक तक़रीब पर जाना पड़ा। अब मुझे अच्छी तरह याद नहीं कि वो तक़रीब थी जो नए डिप्टी कमिश्नर के तक़र्रुर के सिलसिले में थी। वो शख़्स वही काली उचकन पहने मुअज़्ज़ज़ और रईस लोगों के इर्द-गिर्द चक्कर लगा रहा था। उस ने बिला मुबालग़ा आधे घंटे के अंदर अंदर चुन चुन कर कई रूअसा के कोट साफ़ किए। अपनी पतली पतली उंगलियों से। किसी के कालर पर से उस ने बाल उठाए, किसी के कोट की पीठ पर से...बाज़ों के कोटों को, जब उस की समझ में न आया वो गर्द अपने रूमाल से झाड़ दी और हर एक से शुक्रिया वसूल किया।

बड़ी जुरअत से काम लेकर वो डिप्टी कमिश्नर बहादुर के पास भी जा पहुंचा, और उस की पतलून साफ़ करदी। वो अंग्रेज़ था। इस ने जेंटल-मैनों के बर्श का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा किया।

इस के बाद एक रात जब कि हल्की हल्की बूंदा बांदी हो रही थी और हफ़ीज़ पेंटर की दुकान में हम माशूक़ अली फ़ोटोग्राफ़र से उस का गाना सुन कर महज़ूज़ हो रहे थे, और साथ साथ विस्की भी पी रहे थे, कि अचानक दुकान का फाटक नुमा दरवाज़ा खुला और जेंटिलमेनों का बर्श नुमूदार हुआ। उस ने हम सब से मुख़ातब हो कर कहा “मैं इधर से गुज़र रहा था कि गाने की आवाज़ सुनाई दी.......... माशा अल्लाह बड़ी सुरीली थी......... है तो ये तहज़ीब के ख़िलाफ़ कि में बिन बुलाए चला आया...अगर आप की इजाज़त हो तो क्या थोड़ी देर के लिए आप की महफ़िल में शरीक हो सकता हूँ।”

हफ़ीज़ पेंटर और माशूक़ अली फ़ोटो ग्राफ़र बैक वक़्त बोले “हाँ, हाँ तशरीफ़ रखिए।”

मुबारक ने कहा, “सर आँखों पर......... यहां मेरे पास बेठिए.....आप तो ख़ुद बड़े मअर्के के गाने वाले हैं......... कुछ नोश फ़रमाईएगा।”

मुबारक की मुराद विस्की से थी, मगर जेंटिलमेनों के बुर्श ने बड़ी शाइस्तगी से कहा “जी नहीं......... मैं इस नेअमत से महरूम हूँ।”

सब के इसरार पर उस ने गाना शुरू किया। मियां की टोडी थी जो उस ने ऐसी ख़ुश-इलहानी से गाई कि मज़े आगए। इस के बाद उस ने इजाज़त चाही...सब नशे में चूर थे, इस लिए उन को ये ख़बर नहीं थी कि बाहर ज़ोरों की बारिश हो रही है.......लेकिन जब जेंटिलमेनों के बर्श ने दरवाज़ा खोला तो उस ने कहा “हुज़ूर, बाहर बहुत बारिश हो रही है, कैसे जाईएगा।”

आबनोसी बर्श के होंटों पर मुस्कुराहट नुमूदार हुई। “आप फ़िक्र न करें, अभी लाला जगत नारायण कम्बल वाले की गाड़ी मुझे लेने के लिए आजाएगी....आप अपना शुग़ल जारी रखिए ....शुक्रिया!”

ये कह कर उस ने दुकान का फाटक नुमा दरवाज़ा बंद कर दिया।

एक घंटे के बाद बारिश थमी तो महफ़िल बर्ख़ास्त करदी गई...बाहर निकल कर हम ने देखा कि कोई आदमी बदरु में औंधे गिरा पड़ा है...मैंने ग़ौर से देखा तो चिल्लाया “अरे ये तो वही जेंटिलमेनोंका बर्श है।”

हफ़ीज़ ने लड़खड़ाते हुए लहजे में कहा “जेंटिलमेनों की ऐसी तैसी...चलो अपने अपने घर।”

सब ने इस फ़ैसले पर साद किया....जब वो चले गए तो थोड़ी देर के बाद वो शख़्स जो बे-दाग़ काली उचकन पहनता था और रूअसा के कोट साफ़ किया करता है, होश में आया.....उस की उचकन कीचड़ से अटी हुई थी, मगर उसे साफ़ करने वाला कोई नहीं था।
 

50
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा कोई नशा नहीं लेकिन भूख को इस बात से ऐतराज़ है
1

मूत्री

10 अप्रैल 2022
10
0
0

कांग्रेस हाऊस और जिन्नाह हाल से थोड़े ही फ़ासले पर एक पेशाब गाह है जिसे बंबई में “मूत्री” कहते हैं। आस पास के महलों की सारी ग़लाज़त इस तअफ़्फ़ुन भरी कोठड़ी के बाहर ढेरियों की सूरत में पड़ी रहती है। इस क़दर ब

2

मोचना

10 अप्रैल 2022
2
0
0

नाम उस का माया था। नाटे क़द की औरत थी। चेहरा बालों से भरा हुआ, बालाई लब पर तो बाल ऐसे थे, जैसे आप की और मेरी मोंछों के। माथा बहुत तंग था, वो भी बालों से भरा हुआ। यही वजह है कि उस को मोचने की ज़रूरत अक्स

3

रत्ती, माशा, तोला

10 अप्रैल 2022
2
0
0

ज़ीनत अपने कॉलिज की ज़ीनत थी। बड़ी ज़ेरक, बड़ी ज़हीन और बड़े अच्छे ख़ुद-ओ-ख़ाल की सेहतम-नद नौजवान लड़की। जिस तबीयत की वो मालिक थी उस के पेश-ए-नज़र उस की हम-जमाअत लड़कियों को कभी ख़याल भी न आया था। कि वो इतनी म

4

रामेशगर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से में उस के एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिन की ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उस की बहुत तारीफ़ क

5

राजू

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहु

6

लतीका रानी

13 अप्रैल 2022
2
0
0

वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म क

7

शाह दूले का चूहा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा कि

8

शान्ति

13 अप्रैल 2022
0
0
0

दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर

9

शादाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ख़ान बहादुर मोहम्मद असलम ख़ान के घर में ख़ुशियां खेलती थीं, और सही मा’नों में खेलती थीं। उनकी दो लड़कियां थीं, एक लड़का। अगर बड़ी लड़की की उम्र तेरह बरस की होगी तो छोटी की यही ग्यारह साढ़े ग्यारह और जो लड़का

10

शुग़ल

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ये पिछले दिनों की बात है जब हम बरसात में सड़कें साफ़ करके अपना पेट पाल रहे थे।  हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपये का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इसलिए हम सब

11

वालिद साहब

13 अप्रैल 2022
0
0
0

तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था।  दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।”  जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?”  रियाज़ ने ताश की ग

12

मिस्री की डली

13 अप्रैल 2022
0
0
0

पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

13

मिस्टर मोईनुद्दीन

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

14

मिस माला

13 अप्रैल 2022
1
0
0

गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

15

मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
1
0
0

नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

16

मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

17

मिलावट

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

18

मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

19

मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

20

महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

21

मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

22

बीमार

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

23

बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

24

बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
0
0
0

बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

25

बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
2
1
0

बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

26

पहचान

20 अप्रैल 2022
0
0
0

एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

27

फातो

20 अप्रैल 2022
0
0
0

तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

28

फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
1
0
0

टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

29

माई जनते

20 अप्रैल 2022
0
0
0

माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

30

मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

31

हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

32

नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

33

डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
1
0
0

ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

34

मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

35

रिश्वत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

36

नारा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

37

झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

38

नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

39

जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
0
0
0

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

40

जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

41

जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

42

देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
0
0
0

नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

43

टू टू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

44

डरपोक

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

45

दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
0
0
0

छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

46

तस्वीर

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

47

नया साल

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

48

ढारस

20 अप्रैल 2022
0
0
0

आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

49

तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

50

डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए