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मिस माला

13 अप्रैल 2022

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गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’ज़ीम उसकी अहलियतों को जानता था। स्टंट फिल्मों में आदमी अपने जौहर क्या दिखा सकता है, बेचारा गुमनामी के गोशे में पड़ा था। 

अ’ज़ीम ने चुनांचे अपने सेठ से बात की और कुछ इस अंदाज़ में की कि उसने भटसावे को बुलाया और उसके साथ एक फ़िल्म का कंट्रैक्ट तीन हज़ार रूपों में कर लिया। कंट्रैक्ट पर दस्तख़त करते ही उसे पाँच सौ रुपये मिले जो उसने अपने क़र्ज़ ख्वाहों को अदा कर दिए। अ’ज़ीम गोबिंदपुरी का वो बड़ा शुक्रगुज़ार था। चाहता था कि उसकी कोई ख़िदमत करे, मगर उसने सोचा, आदमी बेहद शरीफ़ है और बेग़रज़। कोई बात नहीं, आइन्दा महीने सही, क्योंकि हर माह उसे पाँच सौ रुपये कंट्रैक्ट की रू से मिलने थे। उसने अ’ज़ीम से कुछ न कहा। दोनों अपने अपने काम में मशग़ूल थे। 

अ’ज़ीम ने दस गाने लिखे जिनमें से सेठ ने चार पसंद किए। भटसावे ने मौसीक़ी के लिहाज़ से सिर्फ़ दो। उनकी उसने अ’ज़ीम के इश्तिराक से धुनें तैयार कीं जो बहुत पसंद की गईं। 

पंद्रह बीस रोज़ तक रिहर्सलें होती रहीं। फ़िल्म का पहला गाना कोरस था। इसके लिए कम-अज़-कम दस गवय्या लड़कियां दरकार थीं। प्रोडक्शन मैनेजर से कहा गया। मगर जब वो इंतज़ाम न कर सका तो भटसावे ने मिस माला को बुलाया जिसकी आवाज़ अच्छी थी। इसके इलावा वो पाँच छः और लड़कियों को जानती थी जो सुर में गा लेती थी। 

मिस माला खांडेकर जैसा कि उसके नाम से ज़ाहिर है कि कोल्हापुर की मरहटा थी। दूसरों के मुक़ाबले में उसका उर्दू का तलफ़्फ़ुज़ ज़्यादा साफ़ था। उसको ये ज़बान बोलने का शौक़ था। उम्र की ज़्यादा बड़ी नहीं थी लेकिन उसके चेहरे का हर ख़द्द-ओ-ख़ाल अपनी जगह पर पुख़्ता। बातें भी उसी अंदाज़ में करती कि मालूम होता अच्छी ख़ासी उम्र की है, ज़िंदगी के उतार चढ़ाओ से बाख़बर है। स्टूडियो के हर कारकुन को भाई जान कहती और हर आने वाले से बहुत जल्द घुल मिल जाती थी। 

उसको जब भटसावे ने बुलाया तो वो बहुत ख़ुश हुई। उसके ज़िम्मे ये काम सिपुर्द किया गया कि वो फ़ौरन कोरस के लिए दस गाने वाली लड़कियां मुहय्या कर दे। वो दूसरे रोज़ ही बारह लड़कियां ले आई। भटसावे ने उनका टेस्ट लिया। सात काम की नकलीं। बाक़ी रुख़सत करदी गईं। उसने सोचा कि चलो ठीक है। सात ही काफ़ी है। जगताप साउंड रिकार्डिस्ट से मशवरा किया, उसने कहा कि मैं सब ठीक कर लूंगा। ऐसी रिकार्डिंग करूंगा कि लोगों को ऐसा मालूम होगा बीस लड़कियां गा रही हैं। 

जगताप अपने फ़न को समझता था, चुनांचे उसने रिकार्डिंग के लिए साउंड प्रूफ़ कमरे के बजाय साज़िंदों और गाने वालियों को एक ऐसे कमरे में बिठाया जिसकी दीवारें सख़्त थीं, जिन पर ऐसा कोई ग़िलाफ़ चढ़ा हुआ नहीं था कि आवाज़ दब जाये। फ़िल्म ‘बेवफ़ा’ का मुहूरत उसी कोरस से हुआ। सैंकड़ों आदमी आए। उनमें बड़े बड़े फ़िल्मी सेठ और डिस्ट्रिब्यूटर्ज़ थे। ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ के मालिक ने बड़ा एहतमाम किया हुआ था। 

पहले गाने की दो चार रिहर्सलें हुईं, मिस माला खांडेकर ने भटसावे के साथ पूरा तआ’वुन किया। सात लड़कियों को फ़र्दन फ़र्दन आगाह किया कि ख़बरदार रहें और कोई मसला पैदा न होने दें। भटसावे पहली ही रिहर्सल से मुतमइन था लेकिन उसने मज़ीद इतमिनान की ख़ातिर चंद और रिहर्सलें कराईं, इसके बाद जगताप से कहा कि वो अपना इतमिनान करले, उसने जब साउंड ट्रैक में ये कोरस पहली मर्तबा हेडफोन लगा कर सुना तो उस ने ख़ुश हो कर बहुत ऊंचा “ओके” कह दिया। हर साज़ और हर आवाज़ अपने सही मुक़ाम पर थी। 

मेहमानों के लिए माइक्रोफोन का इंतज़ाम कर दिया गया था। रिकार्डिंग शुरू हुई तो उसे ऑन कर दिया गया। भटसावे की आवाज़ भोंपू से निकली, “सोंग नंबर एक, टेक फ़र्स्ट रेडी, वन, टू...” 

और कोरस शुरू हो गया। 

बहुत अच्छी कम्पोज़ीशन थी। सात लड़कियों में से किसी एक ने भी कहीं ग़लत सुर न लगाया। मेहमान बहुत महज़ूज़ हुए। सेठ, जो मौसीक़ी क्या होती है? इससे भी क़तअ’न नाआश्ना था, बहुत ख़ुश हुआ, इसलिए कि सारे मेहमान इस कोरस की तारीफ़ कर रहे थे। 

भटसावे ने साज़िंदों और गाने वालियों को शाबाशियां दीं। खासतौर पर उसने मिस माला का शुक्रिया अदा किया जिसने उसको इतनी जल्दी गाने वालियां फ़राहम करदीं। इसके बाद वो जगताप साउंड रिकार्डिस्ट से गले मिल रहा था कि ए.बी. सी प्रोडक्शंज़ के मालिक सेठ रनछोड़ दास का आदमी आया कि वो उसे बुला रहे हैं, अ’ज़ीम गोबिंदपुरी को भी। 

दोनों भागे, स्टूडियो के उस सिरे पर गए जहां महफ़िल जमी थी। सेठ साहब ने सब मेहमानों के सामने एक सौ रुपये का सब्ज़ नोट इनाम के तौर पर पहले भटसावे को दिया, फिर दूसरा अ’ज़ीम गोबिंदपुरी को, वो मुख़्तसर सा बाग़ीचा जिसमें मेहमान बैठे थे, तालियों की आवाज़ से गूंज उठा। 

जब मुहूरत की ये महफ़िल बरख़्वास्त हुई तो भटसावे ने अ’ज़ीम से कहा, “माल पानी है चलो आउट डोर चलें।” 

अ’ज़ीम उसका मतलब न समझा, “आउट डोर कहाँ?” 

भटसावे मुस्कुराया, “माज़े लगे (मेरे लड़के) मौज़ शौक (मौज शौक़) करने जाऐंगे। सौ रुपया तुम्हारे पास है सौ हमारे पास... चलो।” 

अ’ज़ीम समझ गया। लेकिन वो उसके मौज़ शौक से डरता था, उसकी बीवी थी, दो छोटे छोटे बच्चे भी, उसने कभी अय्याशी नहीं की थी। मगर इस वक़्त वो ख़ुश था। उसने अपने दिल से कहा, चलो रे... देखेंगे क्या होता है? 

भटसावे ने फ़ौरन टैक्सी मंगवाई, दोनों उसमें बैठे और ग्रांट रोड पहुंचे। अ’ज़ीम ने पूछा, “हम कहाँ जा रहे हैं भटसावे!” 

वो मुस्कुराया, “अपनी मौसी के घर।” 

और जब वो अपनी मौसी के घर पहुंचा तो वो मिस माला खांडेकर का घर था। वो उन दोनों से बड़े तपाक के साथ मिली, उन्हें अंदर अपने कमरे में ले गई। होटल से चाय मंगवा कर पिलाई। भटसावे ने उससे चाय पीने के बाद कहा, “हम मौज़ शौक के लिए निकले हैं, तुम्हारे पास... तुम हमारा कोई बंदोबस्त करो।” 

माला समझ गई, वो भटसावे की एहसानमंद थी। इसलिए उसने फ़ौरन मरहटी ज़बान में कहा, जिस का ये मतलब था कि मैं हर ख़िदमत के लिए तैयार हूँ। 

दरअसल भटसावे अ’ज़ीम को ख़ुश करना चाहता था, इसलिए कि उसने उसको मुलाज़िमत दिलवाई थी। चुनांचे भटसावे ने मिस माला से कहा कि “वो एक लड़की मुहय्या कर दे।” 

मिस माला ने अपना मेकअप जल्दी जल्दी ठीक किया और तैयार हो गई, सब टैक्सी में बैठे। पहले मिस माला प्लेबैक सिंगर शांता करुणाकरण के घर गई मगर वो किसी और के साथ बाहर जा चुकी थी। फिर वो अनसुया के हाँ गई, मगर वो इस क़ाबिल नहीं थी कि उनके साथ ऐसी मुहिम पर जा सके। 

मिस माला को बहुत अफ़सोस था कि उसे दो जगह नाउम्मीदी का सामना करना पड़ा। लेकिन उस को उम्मीद थी कि मुआ’मला हो जाएगा, चुनांचे टैक्सी गोल पेठा की तरफ़ चली। वहां कृष्णा थी। पंद्रह-सोलह बरस की गुजराती लड़की, बड़ी नर्म-ओ-नाज़ुक सुर में गाती थी। 

माला उसके घर में दाख़िल हुई और चंद लम्हात के बाद उसको साथ लिये बाहर निकल आई। भटसावे को उसने हाथ जोड़ के नमस्कार किया और अ’ज़ीम को भी। माला ने ठेट दलालों के से अंदाज़ में अ’ज़ीम को आँख मारी और गोया ख़ामोश ज़बान में उससे कहा, “ये आपके लिए है।” 

भटसावे ने उस पर निगाहों ही निगाहों में साद कर दिया। कृष्णा, अ’ज़ीम गोबिंदपुरी के पास बैठ गई। चूँकि उसको माला ने सब कुछ बता दिया था, इसलिए वो उससे चुहलें करने लगी। अ’ज़ीम लड़कियों का सा हिजाब महसूस कर रहा था। भटसावे को उसकी तबीयत का इ’ल्म था। इसलिए उसने टैक्सी एक बार के सामने ठहराई, सिर्फ़ अ’ज़ीम को अपने साथ अंदर ले गया। 

नग़्मा निगार ने सिर्फ़ एक दो मर्तबा पी थी, वो भी कारोबारी सिलसिले में। ये भी कारोबारी सिलसिला था। चुनांचे उसने भटसावे के इसरार पर दो पैग रम के पिए और उसको नशा हो गया। भटसावे ने एक बोतल ख़रीद के अपने साथ रख ली। अब वो फिर टैक्सी में थे। 

अ’ज़ीम को इस बात का क़तअ’न इ’ल्म नहीं था कि उसका दोस्त भटसावे दो गिलास और सोडे की बोतलें भी साथ ले आया है। 

अ’ज़ीम को बाद में मालूम हुआ कि भटसावे प्लेबैक सिंगर कृष्णा की माँ से ये कह आया था कि जो कोरस दिन में लिया गया था, उसके जितने टेक थे, सब ख़राब निकले हैं, इसलिए रात को फिर रिकार्डिंग होगी। उसकी माँ वैसे कृष्णा को बाहर जाने की इजाज़त कभी न देती। मगर जब भटसावे ने कहा कि उसे और रुपये मिलेंगे तो उसने अपनी बेटी से कहा, “जल्दी जाओ और फ़ारिग़ हो कर सीधी यहां आओ। वहां स्टूडियो में न बैठी रहना।” 

टैक्सी वर्ली पहुंची, या’नी साहिल-ए-समुंदर के पास। ये वो जगह थी, जहां ऐश-परस्त किसी न किसी औरत को बग़ल में दबाये आया करते। एक पहाड़ी सी थी, मालूम नहीं मस्नूई या क़ुदरती... उस पर चढ़ते, काफ़ी वसीअ-ओ-अ’रीज़ सतह-ए-मुर्तफ़ा क़िस्म की जगह थी। 

उसमें लंबे फ़ासलों पर बेंचें रखी हुई थीं, जिन पर सिर्फ़ एक एक जोड़ा बैठता। सबके दरमियान लिखा समझौता था कि वो एक दूसरे के मुआ’मले में मुख़िल न हों। भटसावे ने जो कि अ’ज़ीम की दा’वत करना चाहता था वर्ली की पहाड़ी पर कृष्णा को उसके सुपुर्द कर दिया और ख़ुद माला के साथ टहलता टहलता एक जानिब चला गया। 

अ’ज़ीम और भटसावे में डेढ़ सौ गज़ का फ़ासला होगा। अ’ज़ीम जिसने ग़ैर औरत के दरमियान हज़ारों मील का फ़ासला महसूस किया था। जब कृष्णा को अपने साथ लगे देखा तो उसका ईमान मुतज़लज़ल हो गया। कृष्णा ठेट मरहटी लड़की थी, सांवली सलोनी, बड़ी मज़बूत, शदीद तौर पर जवान और उसमें वो तमाम दा’वतें थीं जो किसी खुल खेलने वाली में हो सकती हैं, अ’ज़ीम चूंकि नशे में था, इसलिए वो अपनी बीवी को भूल गया और उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि कृष्णा को थोड़े अ’र्से के लिए बीवी बना ले। 

उसके दिमाग़ में मुख़्तलिफ़ शरारतें पैदा हो रही थीं। कुछ रम के बाइ’स और कुछ कृष्णा की क़ुरबत की वजह से। आम तौर पर वो बहुत संजीदा रहता था, बड़ा कम-गो। लेकिन उस वक़्त उसने कृष्णा के गुदगुदी की। उसको कई लतीफे अपनी टूटी फूटी गुजराती में सुनाए। फिर जाने उसे क्या ख़याल आया कि ज़ोर से भटसावे को आवाज़ दी और कहा, “पुलिस आ रही है। पुलिस आ रही है।” 

भटसावे, माला के साथ आया। अ’ज़ीम को मोटी सी गाली दी और हँसने लगा, वो समझ गया था कि अ’ज़ीम ने उससे मज़ाक़ किया है। लेकिन उसने सोचा, बेहतर यही है किसी होटल में चलें, जहां पुलिस का ख़तरा न हो। चारों उठ रहे थे कि पीली पगड़ी वाला नमूदार हुआ। उसने ठेट सिपाहियाना अंदाज़ में पूछा, “तुम लोग रात के ग्यारह बजे यहां क्या कर रहा है? मालूम नहीं, दस बजे से पीछे यहां बैठना ठीक नहीं है, कानून है।” 

अ’ज़ीम ने संतरी से कहा, “जनाब अपुन फ़िल्म का आदमी है।” 

“ये छोकरी”, उसने कृष्णा की तरफ़ देखा। 

“ये भी फ़िल्म में काम करती है। हम लोग किसी बुरे ख़याल से यहां नहीं आए, यहां पास ही जो स्टूडियो है, उसमें काम करते हैं, थक जाते हैं तो यहां चले आते हैं कि थोड़ी सी तफ़रीह हो गई, बारह बजे हमारी शूटिंग फिर शुरू होने वाली है।” 

पीली पगड़ी वाला मुतमइन हो गया, फिर वो भटसावे से मुख़ातिब हुआ, “तुम इधर क्यों बैठा है?” 

भटसावे पहले घबराया, लेकिन फ़ौरन सँभल कर उसने माला का हाथ अपने हाथ में लिया और संतरी से कहा, “ये हमारा वाइफ़ है, हमारी टैक्सी नीचे खड़ी है।” 

थोड़ी सी और गुफ़्तगु हुई और चारों की ख़लासी हो गई। इसके बाद उन्होंने टैक्सी में बैठ कर सोचा कि किस होटल में चलें। अ’ज़ीम को ऐसे होटलों के बारे में कोई इ’ल्म नहीं था। जहां आदमी चंद घंटों के लिए किसी ग़ैर औरत के साथ ख़लवत इख़्तियार कर सके। भटसावे ने बेकार उससे मशवरा किया। चुनांचे उसको फ़ौरन डोक यार्ड का सी व्यू होटल याद आया और उसने टैक्सी वाले से कहा कि “वहां ले चलो।” 

सी व्यू होटल में भटसावे ने दो कमरे लिये। एक में अ’ज़ीम और शांता चले गए, दूसरे में भटसावे और मिस माला खांडेकर। कृष्णा बदस्तूर मुजस्सम दा’वत थी, लेकिन अ’ज़ीम जिसने दो पैग और पी लिए थे, फ़लसफ़ी रंग इख़्तियार कर गया था। 

उस ने कृष्णा को ग़ौर से देखा और सोचा कि इतनी कम उम्र की लड़की ने गुनाह का ये भयानक रस्ता क्यों इख़्तियार किया? ख़ून की कमी के बावजूद इसमें इतनी तपिश क्यों है? कब तक ये नर्म-ओ-नाज़ुक लड़की जो गोश्त नहीं खाती अपना गोश्त पोस्त बेचती रहेगी? 

अ’ज़ीम को उस पर बड़ा तरस आया, चुनांचे उसने वाइज़ बन कर उससे कहना शुरू किया, “कृष्णा मासियत की ज़िंदगी से कनारा-कश हो जाओ। ख़ुदा के लिए इस रास्ते से जिस पर कि तुम गामज़न हो, अपने क़दम हटालो, ये तुम्हें ऐसे मुहीब-ग़ार में ले जाएगा, जहां से तुम निकल नहीं सकोगी। इस्मत फ़रोशी इंसान का बदतरीन फे’ल है। ये रात अपनी ज़िंदगी की रौशन रात समझो, इसलिए कि मैंने तुम्हें नेक-ओ-बद समझा दिया है।” 

कृष्णा ने उसका जो मतलब समझा वो ये था कि अ’ज़ीम उससे मुहब्बत कर रहा है। चुनांचे वो उस के साथ चिमट गई और अ’ज़ीम अपना गुनाह व सवाब का मसला भूल गया। 

बाद में वो बड़ा नादिम हुआ। कमरे से बाहर निकला तो भटसावे बरामदे में टहल रहा था। कुछ इस अंदाज़ से जैसे उसको भड़ों के पूरे छत्ते ने काट लिया है और डंक उसके जिस्म में खुबे हुए हैं। अ’ज़ीम को देख कर वो रुक गया, मुतमइन कृष्णा की तरफ़ एक निगाह डाली और पेच-ओ-ताब खा कर अ’ज़ीम से कहा, “वो साली चली गई।” 

अ’ज़ीम जो अपनी नदामत में डूबा था, चौंका, “कौन?” 

“वही, माला।” 

“क्यों?” 

भटसावे के लहजे में अ’जीब-ओ-ग़रीब एहतिजाज था, “हम उसको इतना वक़्त चूमते रहे, जब बोला कि आओ तो साली कहने लगी, तुम हमारा भाई है। हमने किसी से शादी कर ली है... और बाहर निकल गई कि वो साला घर में आ गया होगा।”  

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बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

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पहचान

20 अप्रैल 2022
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एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

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फातो

20 अप्रैल 2022
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तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

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फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
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टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

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माई जनते

20 अप्रैल 2022
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माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

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मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
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शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

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हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

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नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
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मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

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डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
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ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

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मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
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ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

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रिश्वत

20 अप्रैल 2022
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अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

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नारा

20 अप्रैल 2022
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उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

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झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
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कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

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नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
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मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

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जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
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चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

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जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
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मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

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जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
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ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

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देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
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नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

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टू टू

20 अप्रैल 2022
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मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

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डरपोक

20 अप्रैल 2022
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मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

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दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
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छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

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तस्वीर

20 अप्रैल 2022
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“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

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नया साल

20 अप्रैल 2022
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कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

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ढारस

20 अप्रैल 2022
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आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

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तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
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“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

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डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
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डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

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