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वालिद साहब

13 अप्रैल 2022

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तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था। 

दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।” 

जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?” 

रियाज़ ने ताश की गड्डी के दो हिस्से करके उन्हें बड़े माहिराना अंदाज़ में फेंटना शुरू किया। उसकी निगाहें ताश के फड़फड़ाते पत्तों पर थीं, लेकिन रू-ए-सुख़न तौफ़ीक़ की तरफ़ था। 

“तोफ़ी, आज तुम परेशान हो... ख़िलाफ़-ए-मा’मूल ऊपर तले दोबार हारे हो। ऐसा मालूम होता है कि आज शाम को हस्पताल में नर्स मारग्रेट ने तुम्हारे रोमांस को पोटासीम ब्रोमाइड पिला दिया।” 

जमील ने एक बार फिर ग़ौर से तौफ़ीक़ के चेहरे की तरफ़ देखा, “क्यों तोफ़ी आज टेमप्रेचर कैसा रहा?” 

नसीर अपनी कुर्सी पर से उठा। तौफ़ीक़ की उंगलियों में फंसा हुआ सिगरेट निकाला और ज़ोर का कश लेकर कहने लगा, “सब बकवास है। तोफ़ी ने आज तक जितने रोमांस लड़ाए हैं, सब बकवास थे। ये नर्स मारग्रेट का क़िस्सा तो बिल्कुल मनघड़त है। मरी की ठंडी हवाओं से यहां लाहौर की गर्मीयों में आने के बाइ’स उसे सरसाम हो गया है।” 

तौफ़ीक़ उठ खड़ा हुआ, “बको नहीं!” 

नसीर हंसा “अगर नहीं हुआ तो आजकल में हो जाएगा। बताओ तुम्हारे अब्बा कब तक हस्पताल में रहेंगे।” ये कह कर वो तौफ़ीक़ की कुर्सी पर बैठ गया। 

तौफ़ीक़ ने अपने कलफ़ लगे मलमल के कुरते की ढीली आस्तीनों को ऊपर चढ़ा दिया और जमील के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “चलो चलें... मेरी तबीयत यहां घबरा रही है।” 

जमील उठा, “भई तोफ़ी, तुम कोई बात छुपा रहे हो... ज़रूर कोई गड़बड़ हुई है।” 

“गड़बड़ कुछ नहीं, नसीर की बकवास से कौन है जिसकी तबीयत नहीं घबराती।” तौफ़ीक़ ने जेब से बाजा निकाला और मुँह के साथ लगा कर बजाना शुरू कर दिया। 

नसीर ने अपनी टांगें मेज़ पर फैला दीं और ज़ोर से कहा, “बकवास है... सब बकवास है... ये धुन जो तुम बजा रहे हो रशीद इतरे की है... और रशीद इतरे की कोई धुन सुन कर आज तक कोई ऐंगलो इंडियन या क्रिस्चयन नर्स बेहोश नहीं हुई... बेहतर होगा अगर तुम रूमाल पर थोड़ा सा क्लोरोफार्म छिड़क करले जाओ।” 

रियाज़ ने ताश की गड्डी रख दी और नसीर की टांगें एक तरफ़ रेल दीं। 

“कुछ भी हो। लेकिन हम इतना जानते हैं कि तोफ़ी यहां अपनी गाड़ी का हॉर्न बजाये तो लड़कियां सुन कर उस पर फ़रेफ़्ता हो जाती हैं।” 

नसीर ने सिगरेट की गर्दन ऐश ट्रे में दबाई “और साईकिल की घंटी बजाये तो आसमान से फ़रिश्ते उतरने शुरू हो जाते हैं। एक दफ़ा इसकी खांसी की आवाज़ सुन कर बाग-ए-जिन्ना की सारी बुलबुलें अपनी नग़मासराई भूल गई थीं... बड़ा हंगामा हो गया था... मास्टर ग़ुलाम हैदर ने पूरा एक महीना उनको रिहर्सल कराई। तब जा कर वह कहीं टों टां करने लगीं।” 

तौफ़ीक़ के सिवा बाक़ी सब हँसने लगे। नसीर ज़रा संजीदा हो गया, उठ कर तौफ़ीक़ के पास आगया। उसके कलफ़ लगे मलमल के कुरते की एक शिकन दुरुस्त की और कहा, “मज़ाक़ बरतरफ़... लो अब बताओ हस्पताल की लौंडिया से तुम्हारा मुआ’मला कहाँ तक पहुंचा? मैं तो समझता हूँ वहीं का वहीं होगा। एक शरीफ़ आदमी अपनडेसाईट्स का ऑप्रेशन कराए पड़ा है... मुक़र्ररा औक़ात पर ये तुम्हारी नर्स साहिबा तशरीफ़ लाती हैं। जनाब सिर्फ़ एक दफ़ा सुबह और एक दफ़ा शाम वहां जा सकते हैं। मरीज़, और वो भी क़िबला वालिद साहब, वो मरीज़-ए-अपनडेसाईट्स और तुम मरीज़-ए-इश्क़।” 

रियाज़ ने क़रीब क़रीब गा कर कहा, “मरीज़-ए-इश्क़ पर रहमत ख़ुदा की।” 

नसीर की रग-ए-मज़ाक़ फड़क उठी, “और मरीज़-ए-इश्क़ पर जब ख़ुदा की रहमत नाज़िल होती है तो वो बैंड मास्टर बन जाता है, आज तोफ़ी का मुँह बाजा बजा रहा है। ख़ुदा की रहमत शामिल-ए-हाल रही तो कल सेक्सोफ़ोन बजायेगा... आहिस्ता आहिस्ता इसके साथ दूसरे मरीज़ान-ए-इश्क़ शामिल हो जाऐंगे। फिर ये बरातों के साथ मुँह में क्लारंट दबाये फ़िल्मी ट्युनें बजाया करेगा... हीरा मंडी से गुज़रते हुए उसकी क्लारंट का मुँह ऊंचा हो जाया करेगा। गाल धौंकनी की तरह फूलेंगे, गले की रगें उभर आएँगी और रंडियां कोठों पर से उसपर रहमत-ए-ख़ुदावंदी के फूल बरसाएंगी।” 

तौफ़ीक़ तंग आगया। हाथ जोड़ कर नसीर से कहने लगा, “ख़ुदा के लिए ये भांडपना बंद करो।” 

नसीर ने जमील की तरफ़ देखा, “लो साहब हम भांड हो गए। दुनिया भर की नकलें ये उतारें, ज़माने भर की ख़ुराफ़ात ये बकें, और भांड हम कहलाएं। ये तो आज इन्हें मुँह में घुनघुनियां डाले देख कर मैंने छेड़ख़ानी शुरू कर दी कि शायद इसी हीले उकसें, मुँह से बोलें, सर से खेलें। वर्ना जा-ए-उस्ताद ख़ाली अस्त, कुजा राम राम कुजा टें टें” ये कह कर उसने तौफ़ीक़ के कलफ़ लगे मलमल के कुरते की शिकन दुरुस्त की, “भई तौफ़ीक़, ज़रा चहको, क्या हो गया है तुम्हें।” 

तौफ़ीक़ ने जेब से सिगरेट केस निकाला। एक सुलगाया और कश लेता कुर्सी पर बैठ गया। मेज़ पर से ताश की गड्डी उठाई और पीसनें खेलने लगा। लेकिन नसीर ने लपक कर पत्ते उठा लिये। “ये बुढ़े जरनैलों का खेल है जो ज़िंदगी में कई बार अपनी तमाम कश्तियां जला चुके हों। तुम इतने मायूस क्यों हो गए हो? मारग्रेट न सही कोई और सही।” ये कह कर वो जमील और रियाज़ से मुख़ातिब हुआ, “यारो, बताओ ये क़ताला कौन है? ख़ूबसूरत है? चंदे आफ़ताब चंदे महताब है? पानी पीती है तो गर्दन में से दिखाई देता है?” 

जमील तौफ़ीक़ के पास बैठ गया, “वो फ़ारसी का मुहावरा है... लैला रा ब-नज़र-ए-मजनूं बायद दीद... मारग्रेट ब-नज़र-ए-तोफ़ी बायद दीद, क्यों तोफ़ी?” 

तौफ़ीक़ ख़ामोश रहा। 

“मैं पूछता हूँ, ख़ूबसूरत है? उसके बदन से आन्डोफ़ार्म की भीनी भीनी बू आती है? उसकी गर्दन देख कर गर्दन तोड़ बुख़ार होता है या नहीं?” 

नसीर ये कहता कहता मेज़ पर बैठ गया, “मेंढ़कियों को जो ज़ुकाम होता है, उसका ईलाज तो वो ज़रूर जानती होगी। ख़ुदा के लिए मुझ उससे मिलाओ। वर्ना मुझ पर हिस्टेरिया के दौरे पड़ने लगेंगे।” 

जमील ने रियाज़ की तरफ़ देखा, “रियाज़ उसको कई मर्तबा देख चुका है।” 

“रियाज़ के देखने से क्या होता है, उसको तो अंध औरता है।”नसीर मुस्कुराया। 

जमील ने पूछा, “ये अंध औरता क्या है?” 

नसीर ने रियाज़ के चशमा लगे चेहरे को घूर के देखा और जमील को जवाब दिया,“जनाब ये एक बीमारी का नाम है। इसके मरीज़ औरतों को नहीं देख सकते। चाहे असली पत्थर का चशमा लगाएं।” 

रियाज़ मुस्कुरा दिया, “शायद इसीलिए मुझे मारग्रेट में वो हुस्न नज़र न आया। जिसकी तारीफ़ में तोफ़ी ने ज़मीन-ओ-आसमान के क़ुलाबे मिला रखे थे।” 

तौफ़ीक़ ने अपना झुका हुआ सर उठा कर रियाज़ से सिर्फ़ इतना पूछा, “क्या वो हसीन नहीं थी?” 

रियाज़ ने जवाब दिया, “हर्गिज़ नहीं... साफ़ सुथरी लड़की अलबत्ता ज़रूर है।” 

“लांड्री से ताज़ा ताज़ा आई हुई शलवार की तरह?” नसीर अभी कुछ और कहना चाहता था कि रियाज़ बोल पड़ा, “हाँ यार, एक दिन उसने शलवार क़मीज़ पहनी हुई थी... उन कपड़ों में अच्छी लगती थी। मैं और तोफ़ी मोटर में थे, तोफ़ी ड्राईव कर रहा था। मोटर हस्पताल के फाटक में दाख़िल हुई तो स्टेरिंग तोफ़ी के हाथों के नीचे फिसला। लड़की देख कर हमेशा उसकी यही कैफ़ियत होती है। मैंने सामने देखा तो वो शलवार क़मीज़ पहने मटकती चली आरही थी। 

तोफ़ी ने मोटर ऐ’न उसके पास रोकी और कहा, गुड मोर्निंग। वो मुस्कुराई, लखनवी अंदाज़ से दायां हाथ माथे तक ले गई और कहा, आदाब अर्ज़... जैसा लिबास वैसी बोली। लौंडिया है चालाक, तोफ़ी अभी कोई फ़िक़्रा मौज़ूं कर रहा था कि वो छोटे छोटे मगर तेज़ क़दम उठाती आगे बढ़ गई। तोफ़ी ने फ़िक़रे को छोड़ा और सीने पर दोहतड़ मार कर कहा, मार डाला। इतने में मारग्रेट का अ’क्स बैक वीव मिरर में नुमूदार हुआ। तोफ़ी ने बड़े थीयटरी अंदाज़ में एक अदद चुम्मा उसकी तरफ़ फेंका और मोटर स्टार्ट कर दी।” 

“तुम्हारी इस गुफ़्तगु से साबित क्या हुआ?” नसीर ने अपने घुंघरियाले बालों का एक गुछा मरोड़ते हुए कहा, “बात ये है कि जब तक ये ख़ाकसार बचश्म-ए-ख़ुद उस लौंडिया को नहीं देखेगा कुछ भी साबित नहीं होगा... झूट बोलूं तो तोफ़ी ही का मुँह काला हो।” 

तौफ़ीक़ ख़ामोश सिगरेट के कश लेता रहा। 

जमील ने अपनी कुर्सी ज़रा आगे बढ़ाई और रियाज़ से पूछा, “अच्छा भई, ये बताओ तोफ़ी ने कभी उसे मोटर की सैर नहीं कराई।” 

रियाज़ ने जवाब दिया, “एक दफ़ा उसने कहा था तो उससे मुझे याद नहीं रहा। उसने क्या जवाब दिया था। बात दरअसल ये है कि तोफ़ी को खुल के बात करने का मौक़ा ही नहीं मिला। टेम्प्रेचर लेने या टीका लगाने के लिए आती है तो बाप की मौजूदगी में ये उससे क्या बात कर सकता है? फिर भी इशारों कनायों में कुछ न कुछ हो ही जाता है। मेरा ख़याल है ये अदाऐं आज सिर्फ़ इसीलिए हैं कि इसके अब्बा जान दो तीन दिनों में हस्पताल छोड़ने वाले हैं क्योंकि ज़ख़्म अब बिल्कुल भर चुका है... क्यों तोफ़ी?” 

तौफ़ीक़ ने सिर्फ़ इतना कहा, “मुझे सताओ नहीं यार।” और उठ कर बाहर बाग़ में चला गया। 

नसीर ने अपनी ठोढ़ी हाथ में पकड़ी और चेहरे पर गहरी फ़िक्रमंदी के निशानात पैदा करके कहा, “कहीं लम्डे को इस्क तो नहीं हो गया?” 

“तोफ़ी और इश्क़... दो मुतज़ाद चीज़ें हैं।” रियाज़ कुर्सी पर से उठा और संजीदगी से कहने लगा, “कोई और ही चीज़ हुई है जनाब को... मेरा ख़याल है लाहौर में उसका जी लग गया था। वालिद ठीक हो गए हैं तो अब उसे वापस मरी जाना पड़ेगा।” 

“बकवास है।” नसीर चिल्लाया, “कोई और ही बात है, तुम यहां ठहरो... मैं अभी दरयाफ़्त करके आता हूँ।” 

नसीर उठ कर बाहर चलने लगा तो जमील ने उससे पूछा, “किससे दरयाफ़त करने चले हो?” 

नसीर मुस्कुराया, “घोड़े के मुँह से... अंग्रेज़ी में फ्रोम दी हॉर्सेज माउथ!” ये कह कर वो बाहर निकल गया। 

जमील ने रियाज़ की तरफ़ देखा और संजीदगी से पूछा, “हाँ भई रियाज़, ये सिलसिला क्या है? तोफ़ी एक दिन बहुत तारीफ़ कररहा था उस मारग्रेट की, कहता था कि मुआ’मला पटा समझो, क्या ये ठीक है?” 

“ठीक ही होगा। मेरा मतलब है ऐसा कौन सा चित्तौड़गढ़ का क़िला ये जो तोफ़ी को सर करना है? एक दिन कोरिडोर में काफ़ी मीठी मीठी बातें कर रहे थे?” 

“क्या?” 

“मैंने पाकेट बुक में नोट की हुई हैं। किसी रोज़ पढ़ के तुम्हें सुनाऊंगा” 

जमील के होंटों पर खिसियानी सी मुस्कुराहट पैदा हुई, “मज़ाक़ करते हो यार, सुनाओ, सुनाओ कोई और बात सुनाओ। मेरा मतलब है, ये बताओ कि मैं कभी उस नर्स को देख सकता हूँ।” 

“जब चाहो देख सकते हो... हस्पताल चले जाओ, फ़ैमिली वार्ड में तुम्हें नज़र आ जाएगी, लेकिन क्या करोगे देख कर, तुम्हारा क़द बहुत छोटा है। वो तुमसे पूरी एक बालिशत ऊंची है।” 

“इस क़द ने मुझे कहीं का नहीं रखा। बहुतेरे ईलाज करवा चुका हूँ, एक सुई बराबर ऊंचा नहीं हुआ।” 

“अच्छा?” मैंने कहा। “रियाज़ बाप की मौजूदगी में तोफ़ी उससे इशारे बाज़ी कैसे करता होगा? नहीं, लड़का होशियार है!” 

रियाज़ ने ताश की गड्डी उठाई और पत्ते फेंटने शुरू किए, “अच्छी ख़ासी मुसीबत है। हर वक़्त यही धड़का कि वालिद देख न ले, ताड़ न जाये। कहता था, “जूंही उनकी निगाहें मेरी तरफ़ उठती थीं, मैं नज़रें नीची कर लेता था... जब वो आती थी तो दस-पंद्रह मिनटों में ग़रीब को सिर्फ़ तीन-चार मौके़ आँख लड़ाने को मिलते थे।” 

जमील ने पूछा, “डी.एस.पी हैं न तोफ़ी के अब्बा जान” 

“हाँ भाई... बाप होना ही काफ़ी होता है, ऊपर से डी.एस.पी।” 

जमील ने आह भरी, “मेरे तमाम रोमांस ग़ारत करने वाले मेरे अब्बा जान हैं। हज से पहले उनकी ग़ारतगर्दी इतने ज़ोरों पर न थी, पर जब से आप ख़ाना-ए-का’बा से वापस तशरीफ़ लाए हैं, आपकी ग़ारतगर्दी उरूज पर है। सोचता हूँ शादी करलूं, एक लड़का पैदा करूं और बैठा उससे अपना इंतक़ाम लेता रहूं।” 

रियाज़ मुस्कुराया, “हज करने जाओगे?” 

“एक नहीं दस दफ़ा, साहबज़ादे को साथ लेकर जाऊंगा।” 

ये कह कर उसने मेज़ पर ज़ोर से मुक्का मारा। आवाज़ के साथ ही नसीर दाख़िल हुआ। रियाज़ और जमील दोनों उसकी तरफ़ ग़ौर से देखने लगे। नसीर इंतहाई संजीदगी के साथ कुर्सी पर बैठ गया। जमील के दिमाग़ में खुद बुद होने लगी, “कुछ दरयाफ़्त किया?” 

“सब कुछ।” नसीर का जवाब मुख़्तसर था। 

रियाज़ ने पूछा, “तोफ़ी कहाँ है?” 

नसीर ने जवाब दिया, “चला गया है।” 

“कहाँ?” ये सवाल रियाज़ ने किया। 

“वापस मरी।” 

नसीर का ये जवाब सुन कर रियाज़ और जमील दोनों बयक-वक़्त बोले, “मरी वापस।” 

“जी हाँ, मरी वापस चला गया है। अपनी मोटर में, हस्पताल से सीधा यहां क्लब आया, यहां से सीधा मरी रवाना हो गया है।” 

नसीर ने एक एक लफ़्ज़ चबा चबा कर अदा किया। 

“आख़िर हुआ क्या?” 

नसीर ने जवाब दिया, “हादसा!” 

जमील और रियाज़ दोनों बोले, “कैसा हादसा?” 

“बताता हूँ।” ये कह कर नसीर ने जेब से सिगरेट की डिबिया निकाली जिसमें कोई सिगरेट नहीं था। डिबिया एक तरफ़ फेंक कर वो रियाज़ और जमील से मुख़ातिब हुआ। 

“मुआ’मला बहुत संगीन है?” 

जमील ने रियाज़ से कहा, “मेरा ख़याल है तोफ़ी पकड़ा गया होगा!” 

रियाज़ ने कहा, “मालूम ऐसा ही होता है, आदमी कब तक किसी की आँखों में धूल झोंक सकता है... डी.एस.पी है, फ़ौरन ताड़ गया होगा... लेकिन नसीर तुम बताओ, तोफ़ी ने तुमसे क्या कहा?” 

“बताता हूँ...” एक सिगरेट देना जमील 

जमील ने उसको एक सिगरेट दिया, उसे सुलगा कर उसने बात शुरू की, “बाप की मौजूदगी में उसकी नर्स से इशारेबाज़ी होती थी। ये तुम लोगों को मालूम है, ये सिलसिला इशारेबाज़ी का बहुत दिनों से जारी था। तोफ़ी इसमें ख़ासा कामयाब रहा था। बाप की मौजूदगी के बाइ’स उसे बहुत मुहतात रहना पड़ता था। वो ज़रा गर्दन घुमाते तो ये फ़ौरन अपनी आँखें नीची कर लेता। इन दिक्कतों के बावजूद उसने लड़की से रब्त बढ़ा ही लिया और ड्यूटी के रोज़ शाम को वो उसे एक मर्तबा सिनेमा भी ले गया।” 

जमील गटका, “वाह!” 

रियाज़ ने कहा, “मुझसे उसने इसका ज़िक्र नहीं किया।” 

नसीर ने सिगरेट का कश लिया, “सिनेमा में वो ख़ूब एक दूसरे के साथ घुल मिल गए। नर्स को तोफ़ी का चंचलपना बहुत पसंद आया। परसों की मुलाक़ात में आज की शाम तय हुई कि वो तोफ़ी के साथ दूर तक मोटर में सैर करने चलेगी और तोफ़ी अपनी आदत से मजबूर हो कर अगर कोई शरारत करना चाहेगा तो वो बुरा न मानेगी।” 

जमील फिर गटका, “वाह!” 

रियाज़ ने उसे टोका, “ख़ामोश रहो जमील।” 

नसीर ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया, “परसों की मुलाक़ात में जो कुछ तय हुआ था, मैं आपको बता चुका हूँ। तोफ़ी बहुत ख़ुश था। अपने ख़याल के मुताबिक़ वो एक बहुत बड़ा मैदान मारने वाला था। आज दिन भर वो स्कीमें बनाता रहा... पैट्रोल का इंतिज़ाम उसने कर लिया। 

करम इलाही ने उसे छः कूपन दे दिए थे। उसी की परमिट पर बियर की छः बोतलें भी हासिल करली थीं जो ग़ालिबन अभी तक इम्तियाज़ के फ्रिज्डियर में ठंडी हो रही हैं। तोफ़ी की स्कीम ये थी कि चैन्यूट के पुल तक चलेंगे। हुस्न-ओ-इश्क़ के दरिया, चनाब की लहरें होंगी, मौसम भी ख़ुशगवार होगा। गिलास रास्ते में ख़रीद लेंगे। ठंडी ठंडी बियर उड़ेगी, ख़ूब सुरूर जमेंगे... लेकिन...” 

ये कह कर नसीर एक दम ख़ामोश हो गया। 

जमील ने बेचैन होकर पूछा, “सारा मुआ’मला ग़ारत हो गया?” 

नसीर ने इस्बात में सर हिलाया, “सारा मुआ’मला ग़ारत हो गया।” 

जमील ने और ज़्यादा बेचैन हो कर पूछा, “कैसे?” 

नसीर ने सिगरेट की गर्दन ऐश ट्रे में दबाई और कहा, “प्रोग्राम ये था कि वो शाम को छः बजे हस्पताल जाएगा। घंटा डेढ़ घंटा अपने बाप के पास बैठेगा। इस दौरान में जब मारग्रेट आए तो वो सैर की बात पक्की करलेगा। बात पक्की हो जाएगी तो वो सीधा इम्तियाज़ के हाँ जाएगा, कुछ देर वहां बैठेगा। बियर की एक बोतल पिएगा। बाक़ी पाँच मोटर में रखेगा और जो जगह मुक़र्रर हुई होगी वहां मारग्रेट से जा मिलेगा। दिल-ओ-दिमाग़ सख़्त बेचैन था। घर से वक़्त से कुछ पहले ही निकल आया। हस्पताल पहुंचा, मोटर एक तरफ़ खड़ी की, वार्ड की तरफ़ चला। सीढ़ियां तय कीं ऊपर पहुंचा। कमरे का दरवाज़ा खोला तो क्या देखता है...” 

नसीर एक दम रुक गया। जमील और रियाज़ दोनों बयक-वक़्त बोले, “क्या देखता है?” 

“देखता है कि... ठहरो”, नसीर थोड़ी देर के लिए रुका, “मैं तोफ़ी के अलफ़ाज़ में बयान करता हूँ, मैंने कमरे का दरवाज़ा खोला। क्या देखता हूँ कि माग्रेट पलंग पर झुकी हुई है और वालिद साहब... और वालिद साहब उसके होंट चूस रहे हैं।” 

जमील और रियाज़ क़रीब क़रीब उछल पड़े, “सच?” 

नसीर ने जवाब दिया, “दरोग़ बर-गर्दन-ए-रावी” 

जमील जिसके दिल-ओ-दिमाग़ पर हैरत मुसल्लत थी बड़बड़ाया, “कमाल कर दिया, डी.एस.पी साहब ने।” 

रियाज़ ने नसीर से पूछा, “तोफ़ी ने क्या किया?” 

नसीर ने जवाब दिया, “आँखें नीची कर लीं और चला आया।” 

जमील, रियाज़ से मुख़ातिब हुआ, “मेरे वालिद साहब क़िबला कभी ऐसे नज़ारे का मौक़ा दें तो मज़ा आजाए। पता नहीं तोफ़ी क्यों इस क़दर परेशान था?” 

नसीर ने कहा, “तोफ़ी की वालिदा साहिबा उसके साथ थीं, तोफ़ी ने मुझसे कहा मैं तो नज़रें नीची करके चिल्लाया, लेकिन अम्मी जान दरवाज़ा खोल कर अंदर कमरे में चली गईं।” 

जमील ने पुर-अफ़सोस लहजे में कहा, “क़िबला वालिद साहब के साथ ये ज़्यादती हुई!”  

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मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

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मिस माला

13 अप्रैल 2022
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गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

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मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
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नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

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मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
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अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

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मिलावट

13 अप्रैल 2022
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अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

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मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
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रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

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मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
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जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

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महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
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शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

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मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
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मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

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बीमार

13 अप्रैल 2022
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अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

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बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
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फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

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बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
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बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

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बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
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बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

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पहचान

20 अप्रैल 2022
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एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

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फातो

20 अप्रैल 2022
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तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

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फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
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टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

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माई जनते

20 अप्रैल 2022
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माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

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मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
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शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

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हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

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नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
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मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

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डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
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ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

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मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
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ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

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रिश्वत

20 अप्रैल 2022
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अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

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नारा

20 अप्रैल 2022
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उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

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झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
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कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

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नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
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मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

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जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
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चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

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जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
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मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

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जेंटिलमेनों का बुरश

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ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

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देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
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नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

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टू टू

20 अप्रैल 2022
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मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

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डरपोक

20 अप्रैल 2022
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मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

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दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
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छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

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तस्वीर

20 अप्रैल 2022
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“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

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नया साल

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कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

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ढारस

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आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

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तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
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“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

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डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
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डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

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