shabd-logo

शान्ति

13 अप्रैल 2022

17 बार देखा गया 17

दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर रहे थे। मोटी भवों वाली यहूदन की जानी-पहचानी सूरत थी। ये बड़ा गोल मटोल चेहरा, तीखी नाक। मोटे-मोटे बहुत ही ज़्यादा सुर्ख़ी लगे होंट। शाम को हिमेशा दरमियान वाले दरवाज़े के साथ वाली कुर्सी पर बैठी दिखाई देती थी। मक़बूल ने एक नज़र उसकी तरफ़ देखा और बलराज से कहा, “बैठी है जाल फेंकने।” 

बलराज मोटी भवों की तरफ़ देखे बग़ैर बोला, “फंस जाएगी कोई न कोई मछली।” 

मक़बूल ने एक पेस्ट्री मुँह में डाली, “ये कारोबार भी अजीब कारोबार है। कोई दुकान खोल कर बैठती है। कोई चल फिर के सौदा बेचती है। कोई इस तरह रेस्तोरानों में गाहक के इंतिज़ार में बैठी रहती है... जिस्म बेचना भी एक आर्ट है और मेरा ख़याल है बहुत मुश्किल आर्ट है... ये मोटी भवों वाली कैसे गाहक को अपनी तरफ़ मुतवज्जा करती है। कैसे किसी मर्द को ये बताती होगी कि वो बिकाऊ है।” 

बलराज मुस्कुराया, “किसी रोज़ वक़्त निकालो कि कुछ देर यहां बैठो। तुम्हें मालूम हो जाएगा कि निगाहों ही निगाहों में क्यों कर सौदे होते हैं इस जिन्स का भाव कैसे चुकता है।” ये कह कर उसने एकदम मक़बूल का हाथ पकड़ा, “उधर देखो, उधर।” 

मक़बूल ने मोटी यहूदन की तरफ़ देखा। बलराज ने उसका हाथ दबाया, “नहीं यार... उधर कोने के छाते के नीचे देखो।” 

मक़बूल ने उधर देखा। एक दुबली-पतली, गोरी-चिट्टी लड़की कुर्सी पर बैठ रही थी। बाल कटे हुए थे। नाक नक़्शा ठीक था। हल्के ज़र्द रंग की जॉर्जट की साड़ी में मलबूस थी। मक़बूल ने बलराज से पूछा, “कौन है ये लड़की?” 

बलराज ने उस लड़की की तरफ़ देखते हुए जवाब दिया, “अमां वही है जिसके बारे में तुमसे कहा था कि बड़ी अजीब-ओ-ग़रीब है।” 

मक़बूल ने कुछ देर सोचा फिर कहा, “कौन सी यार तुम, तुम तो जिस लड़की से भी मिलते हो अजीब-ओ-गरीब ही होती है।” 

बलराज मुस्कुराया, “ये बड़ी ख़ासुलख़ास है... ज़रा ग़ौर से देखो।” 

मक़बूल ने ग़ौर से देखा। बुरीदा बालों का रंग भोसला था। हल्के बसंती रंग की साड़ी के नीचे छोटी आस्तीनों वाला ब्लाउज़। पतली-पतली बहुत ही गोरी बांहें। लड़की ने अपनी गर्दन मोड़ी तो मक़बूल ने देखा कि उसके बारीक होंटों पर सुर्ख़ी फैली हुई सी थी। 

“मैं और तो कुछ नहीं कह सकता मगर तुम्हारी इस अजीब-ओ-ग़रीब लड़की को सुर्ख़ी इस्तिमाल करने का सलीक़ा नहीं है... अब और ग़ौर से देखा है तो साड़ी की पहनावट में भी खामियां नज़र आई हैं। बाल संवारने का अंदाज़ भी सुथरा नहीं।” 

बलराज हंसा, “तुम सिर्फ़ खामियां ही देखते हो। अच्छाईयों पर तुम्हारी निगाह कभी नहीं पड़ती।” 

मक़बूल ने कहा, “जो अच्छाईयां हैं वो अब बयान फ़र्मा दीजिए, लेकिन पहले ये बता दीजिए कि आप उस लड़की को ज़ाती तौर पर जानते हैं या...” 

लड़की ने जब बलराज को देखा तो मुस्कुराई। मक़बूल रुक गया, “मुझे जवाब मिल गया। अब आप मोहतरमा की खूबियां बता दीजिए।” 

“सबसे पहली ख़ूबी उस लड़की में ये है कि बहुत साफ़ गो है। कभी झूट नहीं बोलती। जो उसने अपने लिए बना रखे हैं उन पर बड़ी पाबंदी से अमल करती है। पर्सनल हाईजीन का बहुत ख़याल रखती है। मोहब्बत-वोहब्बत की बिल्कुल क़ाइल नहीं। इस मुआमले में दिल उसका बर्फ़ है।” 

बलराज ने चाय का आख़िरी घूँट पिया, “कहिए क्या ख़याल है?” 

मक़बूल ने लड़की को एक नज़र देखा, “जो खूबियां तुमने बताई हैं एक ऐसी औरत में नहीं होनी चाहिऐं जिसके पास मर्द सिर्फ़ इस ख़याल से जाते हैं कि वो उनसे असली नहीं तो मस्नूई मोहब्बत ज़रूर करेगी। ख़ुद फ़रेबी हैं अगर ये लड़की किसी मर्द की मदद नहीं करती तो मैं समझता हूँ बड़ी बेवक़ूफ़ है।” 

“यही मैंने सोचा था... मैं तुमसे क्या बयान करूं, रूखेपन की हद तक साफ़ गो है। इससे बातें करो तो कई बार धक्के से लगते हैं... एक घंटा होगया, तुमने कोई काम की बात नहीं की... मैं चली, और ये जा वो जा... तुम्हारे मुँह से शराब की बू आती है। जाओ चले जाओ... साड़ी को हाथ मत लगाओ मैली हो जाएगी।” ये कह कर बलराज ने सिगरेट सुलगाया। 

“अजीब-ओ-ग़रीब लड़की है। पहली दफ़ा जब उससे मुलाक़ात हुई तो में बाई गॉड चकरा गया। छूटते ही मुझसे कहा, फिफ्टी से एक पैसा कम नहीं होगा। जेब में हैं तो चलो वर्ना मुझे और काम हैं।” 

मक़बूल ने पूछा, “नाम क्या है उसका।” 

“शांति बताया इसने... कशमीरन है।” 

मक़बूल कश्मीरी था, चौंक पड़ा, “कशमीरन!” 

“तुम्हारी हम-वतन।” 

मक़बूल ने लड़की की तरफ़ देखा। “नाक नक़्शा साफ़ कश्मीरीयों का था। यहां कैसे आई?” 

“मालूम नहीं!” 

“कोई रिश्तेदार है इसका?” मक़बूल लड़की में दिलचस्पी लेने लगा। 

“वहां कश्मीर में कोई हो तो मैं कह नहीं सकता। यहां बंबई में अकेली रहती है।” बलराज ने सिगरेट ऐश ट्रे में दबाया हार्बनी रोड पर एक होटल है, वहां इसने एक कमरा किराए पर ले रखा है... ये मुझे एक रोज़ इत्तिफ़ाक़न मालूम होगया वर्ना ये अपने ठिकाने का पता किसी को नहीं देती। जिसको मिलना होता है यहां पैरेज़ेन डेरी में चला आता है। शाम को पूरे पाँच बजे आती है यहां!” 

मक़बूल कुछ देर ख़ामोश रहा। फिर बैरे को इशारे से बुलाया और उससे बिल लाने के लिए कहा। इस दौरान में एक ख़ुशपोश नौजवान आया और उस लड़की के पास वाली कुर्सी पर बैठ गया। दोनों बातें करने लगे। 

मक़बूल बलराज से मुख़ातिब हुआ, “इससे कभी मुलाक़ात करनी चाहिए।” 

बलराज मुस्कुराया, “ज़रूर ज़रूर... लेकिन इस वक़्त नहीं, मसरूफ़ है। कभी आ जाना यहां शाम को... और साथ बैठ जाना।” 

मक़बूल ने बिल अदा किया। दोनों दोस्त उठ कर चले गए। 

दूसरे रोज़ मक़बूल अकेला आया और चाय का आर्डर दे कर बैठ गया। ठीक पाँच बजे वो लड़की बस से उतरी और पर्स हाथ में लटकाए मक़बूल के पास से गुज़री। चाल भद्दी थी। जब वो कुछ दूर, कुर्सी पर बैठ गई तो मक़बूल ने सोचा, “उसमें जिन्सी कशिश तो नाम को भी नहीं। हैरत है कि इसका कारोबार क्योंकर चलता है... लिपस्टिक कैसे बेहूदा तरीक़े से इस्तेमाल की है इसने... साड़ी की पहनावट आज भी ख़ामियों से भरी है।” 

फिर उसने सोचा कि उससे कैसे मिले। उसकी चाय मेज़ पर आचुकी थी वर्ना उठ कर वो उस लड़की के पास जा बैठता। उसने चाय पीना शुरू करदी। इस दौरान में उसने एक हल्का सा इशारा किया। 

लड़की ने देखा कुछ तवक्कुफ़ के बाद उठी और मक़बूल के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई। मक़बूल पहले तो कुछ घबराया लेकिन फ़ौरन ही सँभल कर लड़की से मुख़ातिब हुआ, “चाय शौक़ फ़रमाएंगी आप।” 

“नहीं।” 

उसके जवाबों के इस इख़्तिसार में रूखापन था। मक़बूल ने कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद कहा, “कश्मीरीयों को तो चाय का बड़ा शौक़ होता है।” 

लड़की ने बड़े बेहंगम अंदाज़ में पूछा, “तुम चलना चाहते हो मेरे साथ।” 

मक़बूल को जैसे किसी ने औंधे मुँह गिरा दिया। घबराहट में वो सिर्फ़ इस क़दर कह सका, “हा...” 

लड़की ने कहा, “फिफ्टी रूपीज़... यस ऑर नौ?” 

ये दूसरा रेला था मगर मक़बूल ने अपने क़दम जमा लिए, “चलिए!” 

मक़बूल ने चाय का बिल अदा किया। दोनो उठ कर टैक्सी स्टैंड की तरफ़ रवाना हुए। रास्ते में उसने कोई बात न की। लड़की भी ख़ामोश रही। टैक्सी में बैठे तो उसने मक़बूल से पूछा, “कहाँ जाएगा तुम?” 

मक़बूल ने जवाब दिया, “जहां तुम ले जाओगी।” 

“हम कुछ नहीं जानता... तुम बोलो किधर जाएगा?” 

मक़बूल को कोई और जवाब न सूझा तो कहा, “हम कुछ नहीं जानता!” 

लड़की ने टैक्सी का दरवाज़ा खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, “तुम कैसा आदमी है... खली पीली जोक करता है।” 

मक़बूल ने उसका हाथ पकड़ लिया, “मैं मज़ाक़ नहीं करता... मुझे तुमसे सिर्फ़ बातें करनी हैं।” 

वो बिगड़ कर बोली, “क्या... तुम तो बोला था फिफ्टी रूपीज़ यस!” 

मक़बूल ने जेब में हाथ डाला और दस-दस के पाँच नोट निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिए, “ये लो घबराती क्यों हो।” 

उसने नोट ले लिए। “तुम जाएगा कहाँ।” 

मक़बूल ने कहा, “तुम्हारे घर।” 

“नहीं।” 

“क्यों नहीं।” 

तुमको बोला है नहीं... “उधर ऐसी बात नहीं होगी।” 

मक़बूल मुस्कुराया, “ठीक है। ऐसी बात उधर नहीं होगी।” 

वो कुछ मुतहय्यर सी हुई, “तुम कैसा आदमी है।” 

“जैसा मैं हूँ। तुमने बोला फिफ्टी रूपीज़ यस कि नो... मैंने कहा यस और नोट तुम्हारे हवाले करदिए। तुम ने बोला उधर ऐसी बात नहीं होगी। मैंने कहा बिलकुल नहीं होगी... अब और क्या कहती हो।” 

लड़की सोचने लगी। मक़बूल मुस्कुराया, “देखो शांति, बात ये है। कल तुमको देखा। एक दोस्त ने तुम्हारी कुछ बातें सुनाईं जो मुझे दिलचस्प मालूम हुईं। आज मैंने तुम्हें पकड़ लिया। अब तुम्हारे घर चलते हैं। वहां कुछ देर तुमसे बातें करूंगा और चला जाऊंगा... क्या तुम्हें ये मंज़ूर नहीं।” 

“नहीं... ये लो अपने फिफ्टी रूपीज़।” लड़की के चेहरे पर झुंजलाहट थी। 

“तुम्हें बस फिफ्टी रूपीज़ की पड़ी है... रुपये के इलावा भी दुनिया मैं और बहुत सी चीज़ें हैं... चलो, ड्राईवर को अपना ऐड्रेस बताओ... मैं शरीफ़ आदमी हूँ। तुम्हारे साथ कोई धोका नहीं करूंगा।” 

मक़बूल के अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू में सदाक़त थी। लड़की मुतअस्सिर हुई। उसने कुछ देर सोचा फिर कहा, “चलो... ड्राईवर, हार्बनी रोड!” 

टैक्सी चली तो उसने नोट मक़बूल की जेब में डाल दिए, “ये मैं नहीं लूंगी।” 

मक़बूल ने इसरार न किया, “तुम्हारी मर्ज़ी!” 

टैक्सी एक पाँच मंज़िला बिल्डिंग के पास रुकी। पहली और दूसरी मंज़िल पर मसास ख़ाने थे। तीसरी, चौथी और पांचवें मंज़िल होटल के लिए मख़सूस थी। बड़ी तंग-ओ-तार जगह थी। चौथी मंज़िल पर सीढ़ियों के सामने वाला कमरा शांति का था। उसने पर्स से चाबी निकाल कर दरवाज़ा खोला। बहुत मुख़्तसर सामान था। लोहे का एक पलंग जिस पर उजली चादर बिछी थी। कोने में ड्रेसिंग टेबल। एक स्टूल, उसपर टेबल फ़ैन। चार ट्रंक थे वो पलंग के नीचे धरे थे। 

मक़बूल कमरे की सफ़ाई से बहुत मुतअस्सिर हुआ। हर चीज़ साफ़ सुथरी थी। तकिए के ग़लाफ़ आम तौर पर मैले होते हैं मगर उसके दोनों तकिए बेदाग़ ग़लाफ़ों में मलफ़ूफ़ थे। 

मक़बूल पलंग पर बैठने लगा तो शांति ने उसे रोका, “नहीं... उधर बैठने का इजाज़त नहीं... हम किसी को अपने बिस्तर पर नहीं बैठने देता। कुर्सी पर बैठो।” ये कह कर वह ख़ुद पलंग पर बैठ गई। 

मक़बूल मुस्कुरा कर कुर्सी पर टिक गया। 

शांति ने अपना पर्स तकिए के नीचे रखा और मक़बूल से पूछा, “बोलो... क्या बातें करना चाहते हो?” 

मक़बूल ने शांति की तरफ़ ग़ौर से देखा, “पहली बात तो ये है कि तुम्हें होंटों पर लिपस्टिक लगानी बिल्कुल नहीं आती।” 

शांति ने बुरा न माना। सिर्फ़ इतना कहा, “मुझे मालूम है।” 

“उठो, मुझे लिपस्टिक दो मैं तुम्हें सिखाता हूँ।” ये कह कर मक़बूल ने अपना रूमाल निकाला। 

शांति ने उससे कहा, “ड्रेसिंग टेबल पर पड़ा है, उठा लो।” 

मक़बूल ने लिपस्टिक उठाई। उसे खोल कर देखा, “इधर आओ, मैं तुम्हारे होंट पोँछूं।” 

“तुम्हारे रूमाल से नहीं... मेरा लो।” ये कह कर उसने ट्रंक खोला और एक धुला हुआ रूमाल मक़बूल को दिया। मक़बूल ने उस के होंट पोंछे। बड़ी नफ़ासत से नई सुर्ख़ी उन पर लगाई। फिर कंघी से उस के बाल ठीक किए और कहा, “लो अब आईना देखो।” 

शांति उठ कर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो गई। बड़े ग़ौर से उसने अपने होंटों और बालों का मुआइना किया। पसंदीदा नज़रों से तबदीली महसूस की और पलट कर मक़बूल से सिर्फ़ इतना कहा, “अब ठीक है।” 

फिर पलंग पर बैठ कर पूछा, “तुम्हारा कोई बीवी है?” 

मक़बूल ने जवाब दिया। “नहीं।” 

कुछ देर ख़ामोशी रही। मक़बूल चाहता था बातें हों चुनांचे उसने सिलसिल-ए-कलाम शुरू किया। 

“इतना तो मुझे मालूम है कि तुम कश्मीर की रहने वाली हो। तुम्हारा नाम शांति है। यहां रहती हो... ये बताओ तुमने फिफ्टी रूपीज़ का मुआमला क्यों शुरू किया?” 

शांति ने ये बेतकल्लुफ़ जवाब दिया, “मेरा फादर श्रीनगर में डाक्टर है... मैं वहां हॉस्पिटल में नर्स था। एक लड़के ने मुझको ख़राब कर दिया... मैं भाग कर इधर को आगई। यहां हमको एक आदमी मिला। वो हमको फिफ्टी रूपीज़ दिया... बोला हमारे साथ चलो। हम गया, बस काम चालू होगया। हम यहां होटल में आगया, पर हम इधर किसी से बात नहीं करती। सब रंडी लोग है, किसी को यहां नहीं आने देती।” 

मक़बूल ने कुरेद-कुरेद कर तमाम वाक़ियात मालूम करना मुनासिब ख़याल न किया। कुछ और बातें हुईं जिनसे उसे पता चला कि शांति को जिन्सी मुआमले से कोई दिलचस्पी नहीं थी। जब उसका ज़िक्र आया तो उसने बुरा सा मुँह बना कर कहा, “आई डोंट लाइक। इट इज़ बैड।” 

उसके नज़दीक फिफ्टी रूपीज़ का मुआमला एक कारोबारी मुआमला था। श्रीनगर के हस्पताल में जब किसी लड़के ने उसको ख़राब किया तो जाते वक़्त दस रुपये देना चाहे। शांति को बहुत ग़ुस्सा आया। नोट फाड़ दिया। 

इस वाक़े का उसके दिमाग़ पर ये असर हुआ कि उसने बाक़ायदा कारोबार शुरू कर दिया। पच्चास रुपये फ़ीस ख़ुदबख़ुद मुक़र्रर होगई। अब लज़्ज़त का सवाल ही कहाँ पैदा होता था... चूँकि नर्स रह चुकी थी इसलिए बड़ी मोहतात रहती थी। 

एक बरस होगया था उसे बंबई में आए हुए। इस दौरान में उसने दस हज़ार रुपये बचाए होते मगर उसको रेस खेलने की लत पड़ गई। पिछली रेसों पर उसके पाँच हज़ार उड़ गए लेकिन उसको यक़ीन था कि वो नई रेसों पर ज़रूर जीतेगी, “हम अपना लोस पूरा कर लेगा।” 

उसके पास कौड़ी-कौड़ी का हिसाब मौजूद था। सौ रुपये रोज़ाना कमा लेती थी जो फ़ौरन बंक में जमा करा दिए जाते थे। सौ से ज़्यादा वो नहीं कमाना चाहती थी। उसको अपनी सेहत का बहुत ख़याल था। 

दो घंटे गुज़र गए तो उसने अपनी घड़ी देखी और मक़बूल से कहा, “तुम अब जाओ... हम खाना खाएगा और सो जाएगा।” 

मक़बूल उठ कर जाने लगा तो उसने कहा, “बातें करने आओ तो सुबह के टाइम आओ। शाम के टाइम हमारा नुक़्सान होती है।” 

मक़बूल ने “अच्छा” कहा और चल दिया। 

दूसरे रोज़ सुबह दस बजे के क़रीब मक़बूल शांति के पास पहुंचा। उसका ख़याल था कि वो उसकी आमद पसंद नहीं करेगी मगर उसने कोई नागवारी ज़ाहिर न की। मक़बूल देर तक उसके पास बैठा रहा। इस दौरान में शांति को सही तरीक़े पर साड़ी पहननी सिखाई। लड़की ज़हीन थी। जल्दी सीख गई। 

कपड़े उसके पास काफ़ी तादाद में और अच्छे थे। ये सबके सब उसने मक़बूल को दिखाए। उसमें बचपना था न बुढ़ापा। शबाब भी नहीं था। वो जैसे कुछ बनते-बनते एक दम रुक गई थी, एक ऐसे मुक़ाम पर ठहर गई थी जिसके मौसम का तअय्युन नहीं होसकता। 

वो ख़ूबसूरत थी न बदसूरत, औरत थी न लड़की। वो फूल थी न कली। शाख़ थी न तना। उसको देख कर बा’ज़ औक़ात मक़बूल को बहुत उलझन होती थी। वो उसमें वो नुक़्ता देखना चाहता था, जहां उस ने ग़लत-मलत होना शुरू किया था। 

शांति के मुतअल्लिक़ और ज़्यादा जानने के लिए मक़बूल ने उससे हर दूसरे-तीसरे रोज़ मिलना शुरू कर दिया। वो उसकी कोई ख़ातिर मदारत नहीं करती थी। लेकिन अब उसने उसको अपने साफ़ सुथरे बिस्तर पर बैठने की इजाज़त दे दी थी। एक दिन मक़बूल को बहुत तअज्जुब हुआ जब शांति ने उस से कहा, “तुम कोई लड़की मांगता?” 

मक़बूल लेटा हुआ था, चौंक कर उठा, “क्या कहा?” 

शांति ने कहा, “हम पूछती, तुम कोई लड़की मांगता तो हम ला कर देता।” 

मक़बूल ने उससे दरयाफ़्त किया कि ये बैठे-बैठे उसे क्या ख़याल आया। क्यों उसने ये सवाल किया तो वो ख़ामोश होगई। 

मक़बूल ने इसरार किया तो शांति ने बताया कि मक़बूल उसे एक बेकार औरत समझता है। उस को हैरत है कि मर्द उसके पास क्यों आते हैं जबकि वो इतनी ठंडी है। मक़बूल उससे सिर्फ़ बातें करता है और चला जाता है। वो उसे खिलौना समझता है। आज उसने सोचा, मुझ जैसी सारी औरतें तो नहीं, मक़बूल को औरत की ज़रूरत है, क्यों न वो उसे एक मंगा दे। 

मक़बूल ने पहली बार शांति की आँखों में आँसू देखे। एक दम वो उठी और चिल्लाने लगी, “हम कुछ भी नहीं है... जाओ चले जाओ... हमारे पास क्यों आता है तुम... जाओ।” 

मक़बूल ने कुछ न कहा। ख़ामोशी से उठा और चला गया। 

मुतवातिर एक हफ़्ता वो पैरेज़ेन डेरी जाता रहा। मगर शांति दिखाई न दी। आख़िर एक सुबह उसने उसके होटल का रुख़ किया। शांति ने दरवाज़ा खोल दिया मगर कोई बात न की। मक़बूल कुर्सी पर बैठ गया। 

शांति के होंटों पर सुर्ख़ी पुराने भद्दे तरीक़े पर लगी थी। बालों का हाल भी पुराना था। साड़ी की पहनावट तो और ज़्यादा बदज़ेब थी। मक़बूल उससे मुख़ातिब हुआ, “मुझसे नाराज़ हो तुम?” 

शांति ने जवाब न दिया और पलंग पर बैठ गई। मक़बूल ने तुंद लहजे में पूछा, “भूल गईं जो मैंने सिखाया था?” 

शांति ख़ामोश रही। मक़बूल ने ग़ुस्से में कहा, “जवाब दो वर्ना याद रखो मारूंगा।” 

शांति ने सिर्फ़ इतना कहा, “मारो।” 

मक़बूल ने उठ कर एक ज़ोर का चांटा उसके मुँह पर जड़ दिया... शांति बिलबिला उठी। उसकी हैरतज़दा आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे। 

मक़बूल ने जेब से अपना रूमाल निकाला। ग़ुस्से में उसके होंटों की भद्दी सुर्ख़ी पोंछी। उसने मुज़ाहमत की लेकिन मक़बूल अपना काम करता रहा। लिपस्टिक उठा कर नई सुर्ख़ी लगाई। कंघे से उसके बाल संवारे, फिर उसने तहक्कुमाना लहजे में कहा, “साड़ी ठीक करो अपनी।” 

शांति उठी और साड़ी ठीक करने लगी मगर एक दम उसने फूट-फूट कर रोना शुरू कर दिया और रोती-रोती ख़ुद को बिस्तर पर गिरा दिया। मक़बूल थोड़ी देर ख़ामोश रहा। जब शांति के रोने की शिद्दत कुछ कम हुई तो उसके पास जा कर कहा, “शांति उठो... मैं जा रहा हूँ।” 

शांति ने तड़प कर करवट बदली और चिल्लाई, “नहीं नहीं... तुम नहीं जा सकते।” और दोनों बाज़ू फैला कर दरवाज़े के दरमियान में खड़ी होगई, “तुम गया तो मार डालूंगी।” 

वो हांप रही थी। उसका सीना जिसके मुतअल्लिक़ मक़बूल ने कभी ग़ौर ही नहीं किया था जैसे गहरी नींद से उठने की कोशिश कर रहा था। 

मक़बूल की हैरतज़दा आँखों के सामने शांति ने तले ऊपर बड़ी सुरअत से कई रंग बदले। उसकी नमनाक आँखें चमक रही थीं। सुर्ख़ी लगे बारीक होंट हौले-हौले लरज़ रहे थे। एक दम आगे बढ़ कर मक़बूल ने उसको अपने सीने के साथ भींच लिया। 

दोनों पलंग पर बैठे तो शांति ने अपना सर नेवढ़ा कर मक़बूल की गोद में डाल दिया। उसके आँसू बंद होने ही में न आते थे। 

मक़बूल ने उसको प्यार किया। रोना बंद करने के लिए कहा तो वो आँसूओं में अटक-अटक कर बोली, “उधर श्रीनगर में... एक आदमी ने हमको मार दिया था... इधर एक आदमी ने... हमको ज़िंदा कर दिया।” 

दो घंटे के बाद जब मक़बूल जाने लगा तो उसने जेब से पच्चास रुपय निकाल कर शांति के पलंग पर रखे और मुस्कुरा कहा, “ये लो अपने फिफ्टी रूपीज़!” 

शांति ने बड़े ग़ुस्से और बड़ी नफ़रत से नोट उठाए और फेंक दिए। 

फिर उसने तेज़ी से अपनी ड्रेसिंग टेबल का एक दरवाज़ा खोला और मक़बूल से कहा, “इधर आओ... देखो ये क्या है?” 

मक़बूल ने देखा, दराज़ में सौ सौ के कई नोटों के टुकड़े पड़े थे। मुट्टी भर के शांति ने उठाए और हवा में उछाले, “हम अब ये नहीं मांगता!” 

मक़बूल मुस्कुराया। हौले से उसने शांति के गाल पर छोटी सी चपत लगाई और पूछा, “अब तुम क्या मांगता है!” 

शांति ने जवाब दिया, “तुमको।” ये कहकर वो मक़बूल के साथ चिमट गई और रोना शुरू कर दिया। 

मक़बूल ने उसके बाल सँवारते हुए बड़े प्यार से कहा, “रोओ नहीं... तुमने जो मांगा है वो तुम्हें मिल गया है।”  

50
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा कोई नशा नहीं लेकिन भूख को इस बात से ऐतराज़ है
1

मूत्री

10 अप्रैल 2022
10
0
0

कांग्रेस हाऊस और जिन्नाह हाल से थोड़े ही फ़ासले पर एक पेशाब गाह है जिसे बंबई में “मूत्री” कहते हैं। आस पास के महलों की सारी ग़लाज़त इस तअफ़्फ़ुन भरी कोठड़ी के बाहर ढेरियों की सूरत में पड़ी रहती है। इस क़दर ब

2

मोचना

10 अप्रैल 2022
2
0
0

नाम उस का माया था। नाटे क़द की औरत थी। चेहरा बालों से भरा हुआ, बालाई लब पर तो बाल ऐसे थे, जैसे आप की और मेरी मोंछों के। माथा बहुत तंग था, वो भी बालों से भरा हुआ। यही वजह है कि उस को मोचने की ज़रूरत अक्स

3

रत्ती, माशा, तोला

10 अप्रैल 2022
2
0
0

ज़ीनत अपने कॉलिज की ज़ीनत थी। बड़ी ज़ेरक, बड़ी ज़हीन और बड़े अच्छे ख़ुद-ओ-ख़ाल की सेहतम-नद नौजवान लड़की। जिस तबीयत की वो मालिक थी उस के पेश-ए-नज़र उस की हम-जमाअत लड़कियों को कभी ख़याल भी न आया था। कि वो इतनी म

4

रामेशगर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से में उस के एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिन की ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उस की बहुत तारीफ़ क

5

राजू

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहु

6

लतीका रानी

13 अप्रैल 2022
2
0
0

वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म क

7

शाह दूले का चूहा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा कि

8

शान्ति

13 अप्रैल 2022
0
0
0

दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर

9

शादाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ख़ान बहादुर मोहम्मद असलम ख़ान के घर में ख़ुशियां खेलती थीं, और सही मा’नों में खेलती थीं। उनकी दो लड़कियां थीं, एक लड़का। अगर बड़ी लड़की की उम्र तेरह बरस की होगी तो छोटी की यही ग्यारह साढ़े ग्यारह और जो लड़का

10

शुग़ल

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ये पिछले दिनों की बात है जब हम बरसात में सड़कें साफ़ करके अपना पेट पाल रहे थे।  हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपये का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इसलिए हम सब

11

वालिद साहब

13 अप्रैल 2022
0
0
0

तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था।  दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।”  जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?”  रियाज़ ने ताश की ग

12

मिस्री की डली

13 अप्रैल 2022
0
0
0

पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

13

मिस्टर मोईनुद्दीन

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

14

मिस माला

13 अप्रैल 2022
1
0
0

गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

15

मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
1
0
0

नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

16

मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

17

मिलावट

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

18

मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

19

मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

20

महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

21

मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

22

बीमार

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

23

बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

24

बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
0
0
0

बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

25

बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
2
1
0

बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

26

पहचान

20 अप्रैल 2022
0
0
0

एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

27

फातो

20 अप्रैल 2022
0
0
0

तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

28

फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
1
0
0

टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

29

माई जनते

20 अप्रैल 2022
0
0
0

माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

30

मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

31

हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

32

नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

33

डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
1
0
0

ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

34

मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

35

रिश्वत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

36

नारा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

37

झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

38

नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

39

जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
0
0
0

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

40

जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

41

जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

42

देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
0
0
0

नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

43

टू टू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

44

डरपोक

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

45

दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
0
0
0

छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

46

तस्वीर

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

47

नया साल

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

48

ढारस

20 अप्रैल 2022
0
0
0

आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

49

तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

50

डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए