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हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022

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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।”

हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए हैं। थकावट होगी।”

बाबू हरगोपाल अपनी धुन के पक्के थे, “नहीं भाई मुझे थकावट-वकावट कुछ नहीं। मैं यहां सैर की ग़रज़ से आया हूँ। आराम करने नहीं आया। बड़ी मुश्किल से दस दिन निकाले हैं। ये दस दिन तुम मेरे हो। जो मैं कहूंगा तुम्हें मानना होगा। मैं अब के अय्याशी की इंतिहा करदेना चाहता हूँ... सोडा मँगवाओ।”

हामिद ने बहुत मना किया कि देखिए बाबू हरगोपाल सुबह-सवेरे मत शुरू कीजिए मगर वो न माने। बक्स खोल कर जॉनी वॉकर की बोतल निकाली और उसे खोलना शुरू कर दिया।

“सोडा नहीं मंगवाते तो लाओ, थोड़ा सा पानी लाओ... क्या पानी भी नहीं दोगे।”

बाबू हरगोपाल, हामिद से उम्र में बड़े थे। हामिद तीस का था तो वो चालीस के थे। हामिद उनकी इज़्ज़त करता था इसलिए कि उसके मरहूम बाप से बाबू साहिब के मरासिम थे। उसने फ़ौरन सोडा मंगवाया और बड़ी लजाजत से कहा, “देखिए मुझे मजबूर न कीजिएगा। आप जानते हैं कि मेरी बीवी बड़ी सख़्तगीर है।”

मगर बाबू हरगोपाल के सामने उसकी कोई पेश न चली और उसे साथ देना ही पड़ा। जैसी कि उम्मीद थी, चार पैग पीने के बाद बाबू हरगोपाल ने हामिद से कहा, “लो भई अब चलें घूमने। मगर देखो कोई ऐसी टैक्सी पकड़ना जो ज़रा शानदार हो। प्राईवेट टैक्सी हो तो बहुत अच्छा है। मुझे इन मीटरों से नफ़रत है।”

हामिद ने प्राईवेट टैक्सी का बंदोबस्त कर दिया, नई फ़ोर्ड थी। ड्राईवर भी बहुत अच्छा था... बाबू हरगोपाल बहुत ख़ुश हुए। टैक्सी में बैठ कर अपना चौड़ा बटुवा निकाला, खोल कर देखा। सौ-सौ के कई नोट थे और इत्मिनान का सांस लिया और अपने आपसे कहा, “काफ़ी हैं... लो भई ड्राईवर अब चलो।”

ड्राईवर ने अपने सर पर टोपी को तिर्छा किया और पूछा, “कहाँ सेठ।”

बाबू हरगोपाल हामिद से मुख़ातिब हुए, “बोलो भई तुम।”

हामिद ने कुछ देर सोच कर एक ठिकाना बताया। टैक्सी ने उधर का रुख़ किया। थोड़ी ही देर के बाद बंबई का सबसे बड़ा दलाल उनके साथ था। उसने मुख़्तलिफ़ मुक़ामात से मुख़्तलिफ़ लड़कियां निकाल निकाल कर पेश कीं मगर हामिद को कोई पसंद न आई, वो नफ़ासतपसंद था। सफ़ाई का शैदा था। ये लड़कियां सुर्ख़ी पाउडर के बावजूद उसको गंदी दिखाई दीं। इसके इलावा उनके चेहरों पर कस्बियत की मोहर थी। ये उसे बहुत घिनावनी मालूम होती थी।

वो चाहता था कि औरत को कस्बी होने पर भी औरत ही रहना चाहिए। अपने औरतपन को अपने पेशे के नीचे दबा नहीं देना चाहिए। उसके बरअ’क्स बाबू हरगोपाल ग़लाज़त पसंद था। लाखों में खेलता था। चाहता तो बंबई का पूरा शहर साबुन पानी से धुलवा देता मगर अपनी ज़ाती सफ़ाई का उसे कुछ ख़याल नहीं था। नहाता था तो बहुत ही थोड़े पानी से। कई कई दिन शेव नहीं करता था। गिलास चाहे मैला चिकट हो, उठा कर इस में फ़र्स्ट क्लास विस्की उंडेल देता था। ग़लीज़ भिकारन को सीने के साथ चिमटा कर सो जाता था और कहता था, “लुत्फ़ आगया... क्या चीज़ थी।”

हामिद को हैरत होती थी कि ये बाबू किस क़िस्म का इंसान है। ऊपर निहायत ही क़ीमती शेरवानी है नीचे ऐसी बनियान है कि उसको देखने से उबकाईयां आनी शुरू हो जाती हैं। रूमाल पास है लेकिन कुर्ते के दामन से नाक का बहता हुआ रेंठ साफ़ कर रहा है।

ग़लीज़ प्लेट में चाट खा कर ख़ुश हो रहा है। तकिए के गिलाफ़ मैले हो कर बदबू छोड़ रहे हैं मगर उसे उनको बदलवाने का ख़याल तक नहीं आता... हामिद ने उसके मुतअ’ल्लिक़ बहुत ग़ौर किया था मगर किसी नतीजे पर न पहुंचा। उसने कई मर्तबा बाबू हरगोपाल से कहा, “बाबू जी, आपको ग़लाज़त से घिन क्यों नहीं आती।”

ये सुन कर बाबू हरगोपाल मुस्कुरा देते, “क्यों नहीं आती... लेकिन तुम्हें तो हर जगह ग़लाज़त ही ग़लाज़त नज़र आती है। अब इसका क्या ईलाज है।”

हामिद ख़ामोश हो जाता और दिल ही दिल में बाबू हरगोपाल की ग़लाज़त पसंदी पर कुढ़ता रहता।

टैक्सी देर तक इधर-उधर घूमती रही। दलाल ने जब देखा कि हामिद इंतख़ाब के मुआ’मले में बहुत कड़ा है तो इसने दिल में कुछ सोचा और ड्राईवर से कहा, “शिवा जी पार्क की तरफ़ दबाओ... वो भी पसंद न आई तो क़सम ख़ुदा की भड़वागीरी छोड़ दूंगा।”

टैक्सी शिवाजी पार्क की एक बंगला नुमा बिल्डिंग के पास रुकी। दलाल ऊपर चला गया। थोड़ी देर के बाद वापस आया और बाबू हरगोपाल और हामिद को अपने साथ ले गया।

बड़ा साफ़-सुथरा कमरा था। फ़र्श की टाइलें चमक रही थीं। फ़र्नीचर पर गर्द का ज़र्रा तक नहीं था। इधर दीवार पर स्वामी विवेकानन्द की तस्वीर लटक रही थी। सामने गांधी जी की तस्वीर। सुभाष का फ़ोटो भी था। मेज़ पर मरहटी की किताबें पड़ी थीं।

दलाल ने उनको बैठने के लिए कहा, दोनों सोफे पर बैठ गए। हामिद घर की सफ़ाई से बहुत मुतअस्सिर हुआ। चीज़ें मुख़्तसर थीं मगर क़रीने से रखी गई थीं। फ़िज़ा बड़ी संजीदा थी, उसमें कस्बियों का वो बेशर्म तीखापन नहीं था।

हामिद बड़ी बेसब्री से लड़की की आमद का इंतिज़ार करने लगा। दूसरे कमरे से एक मर्द नुमूदार हुआ। उसने हौले-हौले सरगोशियों में दलाल से बातें कीं। बाबू हरगोपाल और हामिद की तरफ़ देखा और कहा, “अभी आती है... नहा रही थी, कपड़े पहन रही है।”

ये कह कर वो चला गया।

हामिद ने गौर से कमरे की चीज़ें देखना शुरू की। मेज़ के पास कोने में बड़ी ख़ूबसूरत रंगीन चटाई पड़ी थी। मेज़ पर किताबों के साथ दस-पंद्रह रिसाले थे। नीचे बड़े नाज़ुक चप्पल चमकीले फ़र्श पर पड़े थे। कुछ इस अंदाज़ से कि अभी अभी उनसे पांव निकल कर गए हैं। सामने शीशों वाली अलमारी में क़तार दर क़तार किताबें थीं। बाबू हरगोपाल ने फ़र्श पर जब अपने सिगरट का आख़िरी हिस्सा अपनी गुरगाबी के नीचे दबाया तो हामिद को बहुत ग़ुस्सा आया।

सोच ही रहा था कि उसे उठा कर बाहर फेंक दे कि दूसरे कमरे के दरवाज़े से उसके कानों में रेशमीं सरसराहट पहुंची। उसने ज़ाविया बदल कर देखा। एक गोरी चिट्टी लड़की, बिल्कुल नए काशटे में मलबूस नंगे पैर आ रही थी।

काशटे का पल्लू उसके सर से खिसका। सीधी मांग थी। जब क़रीब आकर उसने हाथ जोड़ कर परनाम किया तो उसके चमकीले जूड़े में हामिद ने एक पत्ता अड़सा हुआ देखा। पत्ते का रंग सफेदी माइल था। मोटे जूड़े में जो बड़ी सफ़ाई से किया गया था, ये पत्ता बहुत ख़ूबसूरत दिखाई देता था। हामिद ने परनाम का जवाब उठ कर दिया। लड़की शरमाती लजाती उनके पास कुर्सी पर बैठ गई।

उसकी उम्र हामिद के अंदाज़े के मुताबिक़ सत्रह बरस से ऊपर नहीं थी। क़द दरमियाना, रंग गोरा जिस में हल्की हल्की प्याज़ी झलक थी। जिस तरह उसकी साड़ी नई थी उसी तरह वो ख़ुद नई मालूम होती थी। कुर्सी पर बैठ कर उसने बड़ी बड़ी स्याह आँखें झुका लीं। हामिद को ऐसा महसूस होने लगा कि वो आहिस्ता आहिस्ता उसके वजूद में सरायत कर रही है। लड़की बड़ी साफ़ सुथरी, बड़ी उजली थी।

बाबू हरगोपाल ने हामिद से कुछ कहा तो वो चौंक पड़ा जैसे उसको किसी ने झिंझोड़ कर जगा दिया है, “क्या कहा बाबू हरगोपाल?”

बाबू हरगोपाल ने कहा, “बात करो भई।” फिर आवाज़ धीमी करदी, “मुझे तो कोई ख़ास पसंद नहीं।”

हामिद कबाब होगया। उसने लड़की की तरफ़ देखा। धुला हुआ शबाब उसके सामने बैठा था। निखरी हुई बेदाग़ जवानी। रेशम में लिपटी हुई उसकी नज़रों के सामने थी जिसको वो हासिल कर सकता था। एक रात के लिए नहीं, कई रातों के लिए, क्योंकि वो क़ीमत अदा करके अपनाई जा सकती थी, लेकिन हामिद ने जब ये सोचा तो उसे दुख हुआ कि ऐसा क्यों है। ये लड़की बिकाऊ माल हर्गिज़ नहीं होनी चाहिए थी। फिर उसे ख़्याल कि आया अगर ऐसा होता तो उसको हासिल कैसे करता।

बाबू हरगोपाल ने बड़े भोंडे अंदाज़ में पूछा, “क्या ख़याल है भई।”

“ख़याल?” हामिद फिर चौंका। आपको तो पसंद नहीं, “लेकिन में...” वो कुछ कहते कहते रुक गया।

बाबू हरगोपाल बड़े दोस्त नवाज़ थे। उठे और दलाल से कारोबारी अंदाज़ में पूछा, “क्यों भई क्या देना पड़ेगा?”

दलाल ने जवाब दिया, “छोकरी देख लीजिए। अभी ताज़ा-ताज़ा धंदा शुरू किया है।”

बाबू हरगोपाल ने उसकी बात काटी, “तुम उसे छोड़ो। मुआ’मले की बात करो।”

दलाल ने बीड़ी सुलगाई, “सौ रुपये होंगे। पूरा दिन रखिए या पूरी रात रखिए। एक डेढ़या कम नहीं होगा।”

बाबू हरगोपाल हामिद से मुख़ातिब हुए, “क्यों भई।”

हामिद को बाबू हरगोपाल और दलाल की गुफ़्तगु बहुत नागवार गुज़र रही थी। उसको यूं महसूस होता था कि उस लड़की की तौहीन होरही है... सौ रुपये में ये धड़कता हुआ शबाब, ये दहकती हुई जवानी... उसको ये सुन कर बहुत कोफ़्त हुई कि मरहटी हुस्न का जो ये नादिर नमूना उसके सामने सांस ले रहा था उसकी क़ीमत सिर्फ़ सौ रुपये है।

मगर इस कोफ़्त के साथ ही इस ख़याल ने उसके दिल में चुटकी ली कि सौ रुपये दे कर आदमी इस को हासिल तो कर सकता है। एक दिन या एक रात के लिए लेकिन फिर उसने सोचा। सिर्फ़ एक दिन या एक रात के लिए... इसके साथ तो आदमी को अपनी सारी उम्र बिता देनी चाहिए। इसकी हस्ती में अपनी हस्ती मुदग़म कर देनी चाहिए।

बाबू हरगोपाल ने फिर पूछा, “क्यों भई क्या ख़्याल है?”

हामिद अपना ख़याल ज़ाहिर नहीं करना चाहता था। बाबू हरगोपाल मुस्कुराया। जेब से बटुवा निकाला और सौ का एक नोट दलाल को दे दिया। एक डेढ़या कम न एक डेढ़या ज़्यादा। फिर वो हामिद से मुख़ातिब हुआ, “चलो भई... मुआ’मला तय हो गया।”

हामिद ख़ामोश हो गया। दोनों नीचे उतर कर टैक्सी में बैठे। दलाल लड़की लेकर आगया। वो शरमाती लजाती उनके साथ बैठ गई... होटल में एक कमरे का बंदोबस्त करके बाबू हरगोपाल अपने लिए कोई लड़की तलाश करने चला गया।

लड़की पलंग पर आँखें झुकाए बैठी थी। हामिद का दिल धक-धक कर रहा था। बाबू हरगोपाल विस्की की बोतल छोड़ गया था। आधी के क़रीब बाक़ी थी। हामिद ने सोडा मंगवा कर एक बहुत बड़ा पैग लगाया। इससे उसमें कुछ जुर्रत पैदा हुई। उसने लड़की के पास बैठ कर पूछा, “आपका नाम?”

लड़की ने निगाहें उठा कर जवाब दिया, “लता मंगलाओंकर।”

बड़ी प्यारी आवाज़ थी। हामिद ने एक बड़ा पैग अपने अंदर उंडेला और लता के सर से काशटे का पल्लू हटा कर उसके चमकीले बालों पर हाथ फेरा। लता ने बड़ी बड़ी स्याह आँखें झपकाईं। हामिद ने साड़ी का पल्लू बिल्कुल नीचे गिरा दिया। चुस्त चोली के खुले गिरेबान से उसको लता के सीने की उभार की नन्ही सी धड़कती हुई झलक दिखाई दी। हामिद का सारा वजूद थर्रा गया। उसके दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि वो चोली बन कर लता के साथ चिमट जाये। उसकी मीठी मीठी गर्मी महसूस करे और सो जाये।

लता हिंदुस्तानी नहीं जानती थी। उसको मंगलाओं से आए सिर्फ़ दो महीने हुए थे। मरहटी बोलती थी। बड़ी करख़्त ज़बान है लेकिन उसके मुँह में ये बड़ी मुलाइम हो गई थी। वो टूटी-फूटी हिंदुस्तानी में हामिद की बातों का जवाब देती तो वो उससे कहता, “नहीं लता, तुम मरहटी में बात करो। मुझे बहुत चांगली लगती।”

लफ़्ज़ “चांगली” सुन कर लता हंस पड़ती और सही तलफ़्फ़ुज़ उसको बताती, लेकिन हामिद चे और इए की दरमियानी आवाज़ पैदा न कर सकता, इस पर दोनों खिलखिला कर हँसने लगते। हामिद उस की बातें न समझता लेकिन उस न समझने में उसको लुत्फ़ आता था। कभी कभी वो उसके होंट चूम लेता और उससे कहता, “ये प्यारे प्यारे बोल जो तुम अपने मुँह से निकाल रही हो, मेरे मुँह में डाल दो। मैं इन्हें पीना चाहता हूँ।”

वो कुछ न समझती और हंस देती। हामिद उसे अपने सीने के साथ लगा लेता। लता की बांहें बड़ी सुडौल और गोरी गोरी थीं, उन पर चोली की छोटी छोटी आस्तीनें फंसी हुई थीं। हामिद ने उनको भी कई बार चूमा, लता का हर उज़ू हामिद को प्यारा लगता था।

रात को नौ बजे हामिद ने लता को उसके घर छोड़ा तो अपने अंदर एक ख़ला सा महसूस किया। उस के मुलाइम जिस्म का लम्स जैसे एक दम छाल की तरह उतरकर उससे जुदा हो गया। सारी रात करवटें बदलता रहा। सुबह बाबू हरगोपाल आए। उन्होंने तख़लिए में उससे पूछा, “क्यों कैसी रही?”

हामिद ने सिर्फ़ इतना कहा, “ठीक थी।”

“चलते हो फिर?”

“नहीं मुझे एक ज़रूरी काम है।”

“बकवास न करो... मैंने तुमसे आते ही कह दिया था कि ये दस दिन तुम मेरे हो।”

हामिद ने बाबू हरगोपाल को यक़ीन दिलाया कि उसे वाक़ई बहुत ज़रूरी काम है। पूने जा रहा है। वहां उसको एक आदमी से मिल कर अपना काम कराना है। बाबू हरगोपाल अंजामकार मान गए और अकेले अय्याशी करने चले गए।

हामिद ने टैक्सी ली। बैंक से रुपये निकलवाये और सीधा लता के हाँ पहुंचा। वो अंदर नहा रही थी। कमरे में एक मर्द बैठा था, वही जिसने पहले दिन कहा था, “अभी आती है... नहा रही थी, कपड़े बदल रही है।”

हामिद ने उससे कुछ देर बातें कीं और सौ का एक नोट उसके हवाले कर दिया। लता आई पहले से भी ज़्यादा साफ़-सुथरी और निखरी हुई। हाथ जोड़ कर उसने परनाम किया। हामिद उठा और उस मर्द से मुख़ातिब हुआ, “मैं चलता हूँ। तुम ले आओ इन्हें... वक़्त पर छोड़ जाऊंगा।”

ये कह कर वो नीचे उतर गया, लता आई और हामिद के पास बैठ गई। उसका लम्स महसूस करके हामिद को बड़ी राहत हुई। वो उसको वहीं टैक्सी में अपने सीने के साथ भींच लेता मगर लता ने हाथ के इशारे से मना कर दिया।

शाम के साढ़े सात बजे तक वो उसके साथ रही... जब उसको घर छोड़ा तो ऐसा महसूस किया कि उसके दिल की राहत उससे जुदा हो गई है। रात भर वो बेचैन रहा। हामिद शादीशुदा था। छोटे छोटे दो बच्चों का बाप था। उसने सोचा कि वो सख़्त हिमाक़त कर रहा है। अगर उसकी बीवी को पता चल गया तो आफ़त बरपा हो जाएगी।

एक बार सिलसिला हो गया ठीक है, मगर ये सिलसिला तो अब दराज़ होने की तरफ़ माइल था। उसने अह्द कर लिया कि अब शिवाजी पार्क का रुख़ नहीं करेगा। मगर सुबह दस बजे वो फिर लता के साथ होटल में लेटा था।

पंद्रह रोज़ तक हामिद बिला नाग़ा लता के हाँ जाता रहा... उसके बैंक के एकाऊंट में से दो हज़ार रुपये उड़ चुके थे। कारोबार अलग उसकी ग़ैरमौजूदगी के बाइ’स नुक़्सान उठा रहा था। हामिद को इस का कामिल एहसास था मगर लता उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर बुरी तरह छा चुकी थी। लेकिन हामिद ने हिम्मत से काम लिया और एक दम ये सिलसिला मुनक़ता कर दिया।

इस दौरान में बाबू हरगोपाल अपनी मैली और ग़लीज़ अय्याशियां ख़त्म करके लाहौर वापस जा चुका था। हामिद ने ख़ुद को ज़बरदस्ती अपने कारोबारी कामों में मसरूफ़ कर दिया और लता को भूलने की कोशिश की।

चार महीने गुज़र गए। हामिद साबित क़दम रहा। लेकिन एक दिन इत्तिफ़ाक़ से उसका गुज़र शिवाजी पार्क से हुआ। हामिद ने ग़ैर इरादी तौर पर टैक्सी वाले से कहा, “रोक लो यहां।” टैक्सी रुकी। हामिद सोचने लगा, “नहीं ये ठीक नहीं... टैक्सी वाले से कहो चले!” मगर दरवाज़ा खोल कर वो बाहर निकला और ऊपर चला गया।

लता आई तो हामिद ने देखा कि वो पहले से मोटी है। छातियां ज़्यादा बढ़ी हैं। चेहरे पर गोश्त बढ़ गया है। हामिद ने सौ रुपये दिए और उसको होटल में ले गया। यहां उसको जब मालूम हुआ कि लता हामिला है तो उसके औसान ख़ता हो गए। सारा नशा हिरन हो गया। घबरा कर उसने पूछा, “ये... ये हमल किसका है?”

लता कुछ न समझी। हामिद ने उसको बड़ी मुश्किल से समझाया तो उसने सर हिला कर कहा, “हम को मालूम नहीं।”

हामिद पसीना-पसीना हो गया, “तुम्हें बिल्कुल मालूम नहीं।”

लता ने सर हिलाया, “नहीं।”

हामिद ने थूक निगल कर पूछा, “कहीं... मेरा तो नहीं?”

“मालूम नहीं।”

हामिद ने मज़ीद इस्तफ़सार किया। बहुत ही बातें कीं तो उसे मालूम हुआ कि लता के लवाहक़ीन ने हमल गिरवाने की बहुत कोशिश की मगर कामयाब न हुए। कोई दवा असर नहीं करती थी। एक दवा ने तो उसे बीमार कर दिया चुनांचे एक महीना वो बिस्तर पर पड़ी रही। हामिद ने बहुत सोचा। एक ही बात उसकी समझ में आई कि किसी अच्छे डाक्टर से मशवरा करे और बहुत जल्दी करे क्योंकि बच्चे की ख़ातिर लता को गांव भेजा जा रहा था।

हामिद ने उस को घर छोड़ा और एक डाक्टर के पास गया जो उसका दोस्त था। उसने हामिद से कहा, “देखो, ये मुआ’मला बड़ा ख़तरनाक है। ज़िंदगी और मौत का सवाल दरपेश होता है।”

हामिद ने उससे कहा, “यहां मेरी ज़िंदगी और मौत का सवाल है। नुत्फ़ा यक़ीनन मेरा है। मैंने अच्छी तरह हिसाब लगाया है। उससे भी अच्छी तरह दरयाफ़्त किया है। ख़ुदा के लिए आप सोचिए मेरी पोज़ीशन क्या है... मेरी औलाद... मैं तो ये सोचते ही काँप काँप जाता हूँ। आप मेरी मदद नहीं करेंगे तो सोचता सोचता पागल हो जाऊंगा।”

डाक्टर ने उसको दवा दे दी। हामिद ने लता को पहुंचा दी मगर कोई असर न हुआ। हामिद ख़ुशख़बरी सुनने के लिए बेक़रार था मगर लता ने उससे कहा कि उस पर पहले भी किसी दवा ने असर नहीं किया था। हामिद बड़ी मुश्किलों से एक और दवा लाया मगर ये भी कारगर साबित न हुई। अब लता का पेट साफ़ नुमायां था। उसके लवाहक़ीन उसे गांव भेजना चाहते थे। लेकिन हामिद ने उनसे कहा, “नहीं, अभी ठहर जाओ... मैं कुछ और बंदोस्त करता हूँ।”

बंदोस्त कुछ भी न हुआ। सोच सोच कर हामिद का दिमाग़ आ’जिज़ आगया। क्या करे क्या न करे। कुछ उसकी समझ में नहीं आता था... बाबू हरगोपाल पर सौ ला’नतें भेजता था। अपने आपको कोसता था कि क्यों उसने हिमाक़त की। ये सोचाता तो लरज़ जाता कि अगर लड़की पैदा हुई तो वो भी अपनी माँ की तरह पेशा करेगी। डूब मरने की बात है।

उसको लता से नफ़रत हो गई। उसका हुस्न उसके दिल में अब पहले से जज़्बात पैदा न करता। ग़लती

से उसका हाथ लता से छू जाता तो उसको ऐसा महसूस होता कि उसने अंगारों में हाथ झोंक दिया है। उसको अब लता की कोई अदा पसंद नहीं थी। उसकी ज़बरदस्त ख़्वाहिश थी कि वो उसका बच्चा जनने से पहले पहले मर जाये। वो और मर्दों के पास भी जाती रही थी, क्या उसे हामिद ही का नुत्फ़ा क़बूल करना था?

हामिद के जी में आई कि वो उसके सूजे हुए पेट में छुरा भोंक दे या कोई ऐसा हीला करे कि उसका बच्चा पेट ही में मर जाये। लता भी काफ़ी फ़िक्रमंद थी। उसकी कभी ख़्वाहिश नहीं थी कि बच्चा हो। इसके इलावा उसको बहुत बोझ महसूस होता था। शुरू शुरू में तो उसको उल्टियों ने निढाल कर दिया था। अब हर वक़त उसके पेट में एंठन सी रहती थी। मगर हामिद समझता था कि वो फ़िक्रमंद नहीं है। और कुछ नहीं तो कमबख़्त मेरी हालत देख कर ही तरस खा कर बच्चा क़ै करदे।

दवाएं छोड़कर टोने-टोटके भी किए मगर बच्चा इतना हट धर्म था अपनी जगह पर क़ायम रहा... थक हार कर हामिद ने लता को गांव जाने की इजाज़त दे दी लेकिन ख़ुद वहां जा कर मकान देख आया। हिसाब के मुताबिक़ बच्चा अक्तूबर के पहले हफ़्ते में पैदा होना था। हामिद ने सोच लिया था कि वो उसे किसी न किसी तरह मरवा डालेगा, चुनांचे इस ग़रज़ से उसने बंबई से एक बहुत बड़े दादा से राह-ओ-रस्म पैदा की, उसको ख़ूब खिलाता-पिलाता रहा। उस पर उसका काफ़ी रुपया ख़र्च हुआ। मगर हामिद ने कोई ख़याल न किया।

वक़्त आया तो उसने अपनी सारी स्कीम दादा करीम को बता दी। एक हज़ार रुपये तय हुए। हामिद ने फ़ौरन दे दिए। दादा करीम ने कहा, “इतना छोटा बच्चा मुझसे नहीं मारा जाएगा। मैं लाकर तुम्हारे हवाले कर दूँगा। आगे तुम जानो और तुम्हारा काम। वैसे ये राज़ मेरे सीने में दफ़न रहेगा। उसकी तुम कुछ फ़िक्र न करो।”

हामिद मान गया। उसने सोचा कि वो बच्चे को गाड़ी की पटड़ी पर रख देगा। अपने आप कुचला जाएगा या किसी और तरकीब से उसका ख़ातमा करदेगा। दादा करीम को साथ लेकर वो लता के गांव आ पहुंचा।

दादा करीम ने बताया कि बच्चा पंद्रह रोज़ हुए पैदा हो चुका है। हामिद के दिल में वो जज़्बा पैदा हुआ जो अपने पहले लड़के की पैदाइश पर उसको महसूस हुआ था मगर उसने उसको वहीं दबा दिया और करीम से कहा, “देखो आज रात ये काम हो जाये।”

रात के बारह बजे एक उजाड़ जगह पर हामिद खड़ा इंतिज़ार कर रहा था। उसके दिल-ओ-दिमाग़ में एक अ’जीब तूफ़ान बरपा था। वो ख़ुद को बड़ी मुश्किलों से क़ातिल में तबदील कर चुका था। वो पत्थर जो उसके सामने पड़ा था। बच्चे का सर कुचलने के लिए काफ़ी था। कई बार उसे उठा कर वो उसके वज़न का अंदाज़ा कर चुका था।

साढ़े बारह हुए तो हामिद को क़दमों की आवाज़ आई। हामिद का दिल इस ज़ोर से धड़कने लगा जैसे सीने से बाहर आजाएगा। दादा करीम अंधेरे में नुमूदार हुआ। उसके हाथों में कपड़े की एक छोटी सी गठड़ी थी। पास आकर उसने हामिद के काँपते हुए हाथों में दे दी और कहा, “मेरा काम ख़त्म हुआ, मैं चला।”

ये कह वो चला गया। हामिद बहुत बुरी तरह काँप रहा था। बच्चा कपड़े के अंदर हाथ पांव मार रहा था। हामिद ने उसे ज़मीन पर रख दिया। थोड़ी देर अपने लरज़े पर क़ाबू पाने की कोशिश की। जब ये कुछ कम हुआ तो उसने वज़नी पत्थर उठाया। टटोल कर सर देखा। पत्थर ज़ोर से पटकने ही वाला था कि उसने सोचा, बच्चे को एक नज़र देख तो लूं। पत्थर एक तरफ़ रख कर उसने काँपते हुए हाथों से दियासलाई निकाली और एक तीली सुलगाई। ये उसकी उंगलियों ही में जल गई। उसकी हिम्मत न पड़ी। कुछ देर सोचा, दिल मज़बूत किया। दियासलाई की तीली जलाई, कपड़ा हटाया। पहले सरसरी नज़र से फिर एक दम ग़ौर से देखा। तीली बुझ गई... ये किसकी शक्ल थी? उसने कहीं देखी थी। कहाँ? कब?

हामिद ने जल्दी जल्दी एक तीली जलाई और बच्चे के चेहरे को ग़ौर से देखा। एक दम उसकी आँखों के सामने उस मर्द का चेहरा आगया जिसके साथ लता शिवाजी पार्क में रहती थी... हट तेरी ऐसी की तैसी... हूबहू वही शक्ल... वही नाक नक़्शा!

हामिद ने बच्चे को वहीं छोड़ा और क़हक़हे लगाता चला गया।
 

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मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से में उस के एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिन की ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उस की बहुत तारीफ़ क

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राजू

13 अप्रैल 2022
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सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहु

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लतीका रानी

13 अप्रैल 2022
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वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म क

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शाह दूले का चूहा

13 अप्रैल 2022
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सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा कि

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शान्ति

13 अप्रैल 2022
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दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर

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शादाँ

13 अप्रैल 2022
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ख़ान बहादुर मोहम्मद असलम ख़ान के घर में ख़ुशियां खेलती थीं, और सही मा’नों में खेलती थीं। उनकी दो लड़कियां थीं, एक लड़का। अगर बड़ी लड़की की उम्र तेरह बरस की होगी तो छोटी की यही ग्यारह साढ़े ग्यारह और जो लड़का

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शुग़ल

13 अप्रैल 2022
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ये पिछले दिनों की बात है जब हम बरसात में सड़कें साफ़ करके अपना पेट पाल रहे थे।  हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपये का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इसलिए हम सब

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वालिद साहब

13 अप्रैल 2022
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तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था।  दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।”  जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?”  रियाज़ ने ताश की ग

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मिस्री की डली

13 अप्रैल 2022
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पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

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मिस्टर मोईनुद्दीन

13 अप्रैल 2022
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मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

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मिस माला

13 अप्रैल 2022
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गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

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मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
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नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

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मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
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अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

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मिलावट

13 अप्रैल 2022
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अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

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मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
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रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

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मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
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जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

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महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
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शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

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मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
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मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

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बीमार

13 अप्रैल 2022
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अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

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बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
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फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

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बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
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बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

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बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
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बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

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पहचान

20 अप्रैल 2022
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एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

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फातो

20 अप्रैल 2022
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तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

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फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
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टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

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माई जनते

20 अप्रैल 2022
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माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

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मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
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शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

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हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

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नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
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मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

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डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
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ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

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मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
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ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

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रिश्वत

20 अप्रैल 2022
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अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

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नारा

20 अप्रैल 2022
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उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

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झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
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कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

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नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
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मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

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जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
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चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

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जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
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मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

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जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
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ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

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देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
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नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

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टू टू

20 अप्रैल 2022
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मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

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डरपोक

20 अप्रैल 2022
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मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

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दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
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छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

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तस्वीर

20 अप्रैल 2022
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“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

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नया साल

20 अप्रैल 2022
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कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

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ढारस

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आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

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तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
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“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

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डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
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डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

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