shabd-logo

रिश्वत

20 अप्रैल 2022

23 बार देखा गया 23

अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया।

उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो बहुत ख़ुश था, उस के वालिद ख़ान बहादुर अताउल्लाह का इरादा था कि उसे आला ता’लीम के लिए विलायत भेजेंगे। पासपोर्ट ले लिया गया था, सूट वग़ैरा भी बनवा लिए गए थे कि अचानक ख़ान बहादुर अताउल्लाह ने जो बहुत शरीफ़ आदमी थे, किसी दोस्त के कहने पर सट्टा खेलना शुरू कर दिया।

शुरू में उन्हें इस खेल में काफ़ी मुनाफ़ा हुआ। वो ख़ुश थे कि चलो मेरे बेटे की आला ता’लीम का ख़र्च ही निकल आया, मगर लालच बुरी बला है। उन्होंने ये समझा कि उनकी पुश्त पर चौगुनी है, जीतते ही चले जाऐंगे।

उनका वो दोस्त जिसने उनको इस रास्ते पर लगाया था बार बार उनसे कहता था,“ख़ान साहब, माशा-अल्लाह आप क़िस्मत के धनी हैं, मिट्टी में भी हाथ डालें तो सोना बन जाये।”

और वो इस क़िस्म की चापलूसियों के ज़रिये ख़ान बहादुर से सौ दो सौ रुपये ऐंठ लेता। ख़ान बहादुर को भी कोई तकलीफ़ महसूस न होती, इसलिए कि उन्हें बगै़र मेहनत के हज़ारों रुपये मिल रहे थे।

अहमद दीन ज़हीन और बा-शुऊर लड़का था, उसने एक दिन अपने बाप से कहा,“अब्बा जी! ये आप ने जो सट्टा बाज़ी शुरू की है, माफ़ कीजिएगा, इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।”

ख़ान बहादुर ने तेज़ लहजे में उससे कहा, “बरखु़र्दार! तुम्हें मेरे कामों में दख़ल देने की जुरअत नहीं होनी चाहिए, मैं जो कुछ कर रहा हूँ ठीक है... जितना रुपया आ रहा है, वो मैं अपने साथ क़ब्र में लेकर नहीं जाऊंगा। ये सब तुम्हारे काम आएगा।”

अहमद दीन ने बड़ी मासूमियत से पूछा,“लेकिन अब्बा जी, ये कब तक आता रहेगा? हो सकता है कल को ये जाने भी लगे।”

ख़ान बहादुर भन्ना गए।

“बको मत, आता ही रहेगा।”

रुपया आता रहा...

लेकिन एक दिन ख़ान बहादुर ने कई हज़ार रुपये की रक़म दाव पर लगा दी, लेकिन नतीजा सिफ़र निकला। दस हज़ार हाथ से देने पड़े।

ताव में आकर उन्होंने बीस हज़ार रुपये का सट्टा खेला। उनको यक़ीन था कि सारी कसर पूरी हो जाएगी, लेकिन सुबह जब उन्होंने अख़बार देखा तो मालूम हुआ कि ये बीस हज़ार भी गए।

ख़ान बहादुर हिम्मत हारने वाले नहीं थे, उन्होंने अपना एक मकान गिरवी रख कर पच्चास हज़ार रुपये लिये, और सबका सब अल्लाह का नाम लेकर चांदी के सट्टे पर लगा दिए।

अल्लाह का नाम तो ख़ैर अल्लाह का नाम है। वो चांदी और सोने की मार्कीट पर क्या कंट्रोल कर सकता है? सुबह हुई तो ख़ान बहादुर को मालूम हुआ कि चांदी का भाव एक दम गिर गया है, उनको इस क़दर सदमा हुआ कि दल के दौरे पड़ने लगे।

अहमद दीन ने उनसे कहा,“अब्बा जी, छोड़ दीजिए इस बकवास को।”

ख़ान बहादुर ने बड़े ग़ुस्से में अपने बेटे से कहा,“तुम बकवास मत करो, मैं जो कुछ कर रहा हूँ ठीक है।”

अहमद दीन ने मोअद्दबाना कहा,“लेकिन अब्बा जान, ये जो आपको दिल की तकलीफ़ शुरू हो गई है, इसकी वजह क्या है?”

“मुझे क्या मालूम, अल्लाह बेहतर जानता है। ऐसे आ’रिज़े इंसान को होते ही रहते हैं।”

अहमद दीन ने कुछ देर सोचने के बाद कहा,“जी हाँ, इंसान को हर क़िस्म के आ’रिज़े होते रहते हैं लेकिन उनकी कोई वजह भी तो होती है। मिसाल के तौर पर अगर आप कोई ऐसी चीज़ खा लें जिस में हैजे़ के जरासीम हों और...”

ख़ान बहादुर को अपने बेटे की ये गुफ़्तुगू पसंद नहीं थी।

“तुम चले जाओ यहां से, मेरा मग़्ज़ मत चाटो... मैं हर चीज़ से वाक़िफ़ हूँ।”

अहमद दीन ने कमरे से बाहर निकलते हुए कहा,“ये आपकी ग़लतफ़हमी है, कोई इंसान भी हर चीज़ से वाक़िफ़ होने का दा’वा नहीं कर सकता।”

अहमद दीन चला गया।

ख़ान बहादुर अंदरूनी तौर पर ख़ुद को बहुत बड़ा चुग़द समझने लगे थे लेकिन वो अपने इस एहसास को अपने लड़के पर ज़ाहिर नहीं करना चाहते थे।

बिस्तर पर लेटे उन्होंने बार बार ख़ुद से कहा,“ख़ान बहादुर अताउल्लाह, तुम ख़ान बहादुर बने फिरते हो, लेकिन अस्ल में तुम अव़्वल दर्जे के बेवक़ूफ़ हो।”

“तुम अपने बेटे की बात पर कान क्यों नहीं धरते, जबकि तुम जानते हो कि वो जो कुछ कह रहा है सही है।”

“जितना रुपया तुमने हासिल किया था, उससे दुगुना रुपया तुम ज़ाए कर चुके हो, क्या ये दरुस्त है?”

ख़ान बहादुर झुँझला गए और बड़बड़ाने लगे,“सब दुरुस्त है... सब दुरुस्त है। एक मैं ही ग़लत हूँ लेकिन मेरा ग़लत होना ही सही होगा, बा’ज़ औक़ात ग़लतियां भी सेहत का सामान मुहय्या कर देती हैं।”

पंद्रह दिन बिस्तर पर लेटे और ईलाज कराने के बाद जब वो किसी क़दर ही तंदुरुस्त हुए तो उन्होंने अपना एक और मकान बेच दिया, ये पच्चीस हज़ार रुपये में बिका ।

ख़ानसाहब ने ये सब रुपये सट्टे पर लगा दिए। उनको पूरी उम्मीद थी कि वो अपनी अगली पिछली कसर पूरी कर लेंगे मगर क़िस्मत ने यावरी न की और वो इन पच्चीस हज़ार रूपों से भी हाथ धो बैठे।

अहमद दीन पेच-ओ-ताब खा के रह गया। उसकी समझ में नहीं आता था कि अपने बाप को किस तरह समझाए, वो उसकी कोई बात सुनते ही नहीं थे।

अहमद दीन ने आख़िरी कोशिश की और एक दिन जब उसका बाप अपने कमरे में हुक़्क़ा पी रहा था और मालूम नहीं किस सोच में ग़र्क़ था कि उससे डरते डरते मुख़ातिब हुआ,“अब्बा जी...”

ख़ान बहादुर साहब सोच में इस क़दर ग़र्क़ थे कि उन्होंने अपने लड़के की आवाज़ ही नहीं सुनी।

अहमद दीन ने आवाज़ को ज़रा बलंद किया, अब्बा जी, अब्बा जी!”

ख़ान बहादुर चौंके।

“क्या है?”

अहमद दीन काँप गया।

“कुछ नहीं अब्बा जी, मुझे... मुझे आपसे एक बात कहना थी।”

ख़ान बहादुर ने हुक़्क़े की नड़ी अपने मुँह से जुदा की।

“कहो, क्या कहना है?”

अहमद दीन ने बड़ी लजाजत से कहा,“मुझे ये अ’र्ज़ करना है... ये दरख़्वास्त करना थी... कि... आप सट्टा खेलना बंद कर दें।”

हुक़्क़े का एक ज़ोरदार कश लेकर वो अहमद दीन पर बरस पड़े,“तुम कौन होते हो मुझे नसीहत करने वाले, मैं जानूँ मेरा काम। क्या अब तक तुम्हारे ही मशवरे से मैं सारे काम करता रहा हूँ? देखो, मैं तुमसे कहे देता हूँ कि आइंदा मेरे मुआ’मले में कभी दख़ल न देना। मुझे ये गुस्ताख़ी हरगिज़ पसंद नहीं, समझे!”

अहमद दीन की गर्दन झुकी हुई थी,“जी मैं समझ गया।”

और ये कह कर वो अपने बाप के कमरे से निकल गया।

सट्टे की लत शराब की आदत से भी कहीं ज़्यादा बुरी होती है। ख़ान बहादुर इसमें कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए कि जायदाद... सबकी सब इस ख़तरनाक खेल की नज़र होगई।

मरहूम बीवी के ज़ेवर थे, वो भी बिक गए और नतीजा इसका ये निकला कि उनके दिल के आ’रिज़े ने कुछ ऐसी शक्ल इख़्तियार की कि वो एक रोज़ सुबह सवेरे ग़ुस्लख़ाने में दाख़िल होते ही धम से गिरे और एक सेकंड के अंदर अंदर दम तोड़ दिया।

अहमद दीन को ज़ाहिर है कि अपने बाप की वफ़ात का बहुत सदमा हुआ, वो कई दिन निढाल रहा। उसकी समझ में नहीं आता था कि क्या करे? बी.ए पास था, आला ता’लीम हासिल करने के ख़्वाब देख रहा था, मगर अब सारा नक़्शा ही बदल गया था। उसके बाप ने एक फूटी कौड़ी भी उसके लिए नहीं छोड़ी थी। मकान, जिसमें वो तन्हा रहता था, रेहन था।

यहां से उसको कुछ अ’र्से के बाद निकलना पड़ा। घर की मुख़्तलिफ़ चीज़ें बेच कर उसने चार-पाँच सौ रुपये हासिल किए और एक ग़लीज़ मुहल्ले में एक कमरा किराए पर ले लिया, मगर पाँच सौ रुपये कब तक उसका साथ दे सकते थे। ज़्यादा से ज़्यादा एक बरस तक बड़ी किफ़ायत शिआरी से गुज़ारा कर लेता।

लेकिन उसके बाद क्या होता?

अहमद दीन ने सोचा,“मुझे मुलाज़मत कर लेनी चाहिए! चाहे वो कैसी भी हो? पच्चास साठ रुपये माहवार मिल जाएं तो गुज़ारा हो जाएगा।”

उसकी माँ को मरे इतने ही बरस होगए थे जितने उसको जीते। अहमद दीन ने हालाँकि उसकी शक्ल तक नहीं देखी थी, न उसको दूध पीना नसीब हुआ था, फिर भी वो अक्सर उसको याद कर के आँसू बहाता रहता।

अहमद दीन ने मुलाज़मत हासिल करने की इंतहाई कोशिश की, मगर कामयाबी न हुई। इतने बे-रोज़गार और बेकार आदमी थे कि वो ख़ुद को इस बेरोज़गारी और बेकारी के समुंदर में एक क़तरा समझता था।

लेकिन इस एहसास के बावजूद उसने हिम्मत न हारी और अपनी तग-ओ-दो जारी रखी।

बहुत दिनों के बाद उसे मालूम हुआ कि अगर किसी अफ़सर की मुट्ठी गर्म की जाये तो मुलाज़मत मिलने का इमकान पैदा हो सकता है लेकिन वो मुट्ठी गर्म करने का मसाला कहाँ से लाता?

एक दफ़्तर में जब वो मुलाज़मत के सिलसिले में गया तो हेड क्लर्क ने उससे शफ़ीक़ाना अंदाज़ में कहा, “देखो बरखु़र्दार, यूं ख़ाली खोली काम नहीं चलेगा। जिस असामी के लिए तुमने दरख़्वास्त दी है, उसके लिए पहले ही दो सौ पच्चास दरख़्वास्तें वसूल हो चुकी हैं, मैं बड़ा साफ़ गो आदमी हूँ। पाँच सौ रुपये अगर तुम दे सकते हो तो ये मुलाज़मत तुम्हें यक़ीनन मिल जाएगी।”

अब अहमद दीन पाँच सौ रुपये कहाँ से लाता, उसके पास बमुश्किल बीस या तीस रुपये थे।

चुनांचे उसने हेड क्लर्क से कहा,“जनाब! मेरे पास इतने रुपये नहीं, आप मुलाज़मत दिलवा दीजिए तनख़्वाह में से आधी रक़म आप ले लिया करें।”

हेडक्लर्क हंसा,“तुम हमें बेवक़ूफ़ बनाते हो, जाओ, चलते फिरते बनो।”

अहमद दीन बहुत देर तक चलता फिरता रहा, मगर उसे इतमिनान से कहीं बैठने का मौक़ा न मिला। जहां जाता, रिश्वत का सवाल सामने होता, दुनिया शायद रिश्वत ही की वजह से आलम-ए-वुजूद में आई है।

शायद ख़ुदा को किसी ने रिश्वत दी हो और उसने ये दुनिया बना दी हो।

अहमद दीन के पास जब पैसा भी न रहा तो मज़दूरी शुरू कर दी। बोझ उठाता और हर रोज़ दो रुपये कमा लेता।

महंगाई का ज़माना था, गो दोनों वक़्त का खाना भटियारख़ाने में खाता लेकिन उसे काफ़ी ख़र्च बर्दाश्त करना पड़ता।

ज़्यादा से ज़्यादा एक आना बच रहता।

अहमद दीन मज़दूरी करता, मगर उसके दिल-ओ-दिमाग़ पर रिश्वत का चक्र घूमता रहता था। ये एक बहुत बड़ी ला’नत थी और वो चाहता था कि इससे किसी तरह नजात हासिल करे और मज़दूरी छोड़कर कोई ऐसी मुलाज़मत इख़्तियार करे जो उसके शायान-ए-शान हो। आख़िर वो बी.ए पास था, फ़र्स्ट क्लास फ़र्स्ट।

उसने सोचा कि नमाज़ पढ़ना शुरू कर दे, ख़ुदा से दुआ मांगे कि वो उसकी सुने! चुनांचे उसने बाक़ायदा पाँच वक़्त की नमाज़ शुरू कर दी। ये सिलसिला एक वक़्त तक जारी रहा मगर कोई नतीजा बरामद न हुआ।

इस दौरान में उसके पास तीस रुपये जमा हो चुके थे। सुबह की नमाज़ अदा करने के बाद वो डाक-ख़ाने गया। तीस रुपये का पोस्टल आर्डर लिया और लिफ़ाफ़े में डाल कर साथ ही एक रुक्क़ा भी रख दिया जिसका मज़मून कुछ इस क़िस्म का था,

“अल्लाह मियां, मैं समझता हूँ तुम भी रिश्वत लेकर काम करते हो। मेरे पास तीस रुपये हैं जो तुम्हें भेज रहा हूँ, मुझे कहीं अच्छी सी मुलाज़मत दिलवा दो। बोझ उठा उठा कर मेरी कमर दोहरी हो गई है।”

लिफ़ाफ़े पर उसने पता लिखा,

“बख़िदमत जनाब अल्लाह मियां... मालिक-ए-कायनात”

चंद रोज़ बाद अहमद दीन को एक ख़त मिला जो कायनात अख़बार के एडिटर की तरफ़ से था। उस का नाम मुहम्मद मियां था, ख़त के ज़रिये उसने अहमद दीन को बुलाया था। वो कायनात के दफ़्तर गया, जहां मुतर्जिम की हैसियत से सौ रुपया माहवार पर रख लिया गया।

अहमद दीन ने सोचा... आख़िर रिश्वत काम आ ही गई।
 

50
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा कोई नशा नहीं लेकिन भूख को इस बात से ऐतराज़ है
1

मूत्री

10 अप्रैल 2022
15
0
0

कांग्रेस हाऊस और जिन्नाह हाल से थोड़े ही फ़ासले पर एक पेशाब गाह है जिसे बंबई में “मूत्री” कहते हैं। आस पास के महलों की सारी ग़लाज़त इस तअफ़्फ़ुन भरी कोठड़ी के बाहर ढेरियों की सूरत में पड़ी रहती है। इस क़दर ब

2

मोचना

10 अप्रैल 2022
5
0
0

नाम उस का माया था। नाटे क़द की औरत थी। चेहरा बालों से भरा हुआ, बालाई लब पर तो बाल ऐसे थे, जैसे आप की और मेरी मोंछों के। माथा बहुत तंग था, वो भी बालों से भरा हुआ। यही वजह है कि उस को मोचने की ज़रूरत अक्स

3

रत्ती, माशा, तोला

10 अप्रैल 2022
4
0
0

ज़ीनत अपने कॉलिज की ज़ीनत थी। बड़ी ज़ेरक, बड़ी ज़हीन और बड़े अच्छे ख़ुद-ओ-ख़ाल की सेहतम-नद नौजवान लड़की। जिस तबीयत की वो मालिक थी उस के पेश-ए-नज़र उस की हम-जमाअत लड़कियों को कभी ख़याल भी न आया था। कि वो इतनी म

4

रामेशगर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से में उस के एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिन की ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उस की बहुत तारीफ़ क

5

राजू

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहु

6

लतीका रानी

13 अप्रैल 2022
2
0
0

वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म क

7

शाह दूले का चूहा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा कि

8

शान्ति

13 अप्रैल 2022
0
0
0

दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर

9

शादाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ख़ान बहादुर मोहम्मद असलम ख़ान के घर में ख़ुशियां खेलती थीं, और सही मा’नों में खेलती थीं। उनकी दो लड़कियां थीं, एक लड़का। अगर बड़ी लड़की की उम्र तेरह बरस की होगी तो छोटी की यही ग्यारह साढ़े ग्यारह और जो लड़का

10

शुग़ल

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ये पिछले दिनों की बात है जब हम बरसात में सड़कें साफ़ करके अपना पेट पाल रहे थे।  हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपये का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इसलिए हम सब

11

वालिद साहब

13 अप्रैल 2022
0
0
0

तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था।  दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।”  जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?”  रियाज़ ने ताश की ग

12

मिस्री की डली

13 अप्रैल 2022
0
0
0

पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

13

मिस्टर मोईनुद्दीन

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

14

मिस माला

13 अप्रैल 2022
1
0
0

गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

15

मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
1
0
0

नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

16

मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

17

मिलावट

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

18

मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

19

मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

20

महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

21

मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

22

बीमार

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

23

बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

24

बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
0
0
0

बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

25

बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
2
1
0

बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

26

पहचान

20 अप्रैल 2022
0
0
0

एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

27

फातो

20 अप्रैल 2022
0
0
0

तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

28

फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
1
0
0

टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

29

माई जनते

20 अप्रैल 2022
0
0
0

माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

30

मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

31

हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

32

नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

33

डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
1
0
0

ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

34

मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

35

रिश्वत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

36

नारा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

37

झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

38

नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

39

जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
0
0
0

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

40

जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

41

जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

42

देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
0
0
0

नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

43

टू टू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

44

डरपोक

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

45

दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
0
0
0

छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

46

तस्वीर

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

47

नया साल

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

48

ढारस

20 अप्रैल 2022
0
0
0

आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

49

तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

50

डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

---

किताब पढ़िए