shabd-logo

मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022

25 बार देखा गया 25

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के झोंके उस फीते में एक कपकपाहट सी पैदा कर देते।

मेरे दाएं हाथ एक ऊँचा टीला था जिसके ढलवानों में गंदुम के हरे पौदे निहायत ही मद्धम सरसराहट पैदा कर रहे थे। ये सरसराहट कानों पर बहुत भली मालूम होती थी। आँखें बंद कर लो तो यूं मालूम होता कि तसव्वुर के गुदगुदे क़ालीनों पर कई कुंवारियां रेशमी साड़ियां पहने चल फिर रही हैं। इन ढलवानों के बहुत ऊपर चीड़ के ऊंचे दरख़्तों का एक हुजूम था। बाएं तरफ़ सड़क के बहुत नीचे एक छोटा सा मकान था जिसको झाड़ियों ने घेर रखा था, उससे कुछ फ़ासले पर पस्त क़द झोंपड़े थे, जैसे किसी हसीन चेहरे पर तिल।

हवा गीली और पहाड़ी घास की भीनी भीनी बॉस से लदी हुई थी। मुझे इस सैर में एक नाक़ाबिल-ए-बयान लज़्ज़त महसूस हो रही थी।

सामने टीले पर दो बकरियां बड़े प्यार से एक दूसरी को अपने नन्हे-नन्हे सींगों से रेल रही थीं। उन से कुछ फ़ासले पर कुत्ते का एक पिल्ला जो कि जसामत में मेरे बूट के बराबर था। एक भारी भरकम भैंस की टांग से लिपट लिपट कर उसे डराने की कोशिश कर रहा था। वो शायद भौंकता भी था। क्योंकि उसका मुँह बार बार खुलता था। मगर उसकी आवाज़ मेरे कानों तक नहीं पहुंचती थी।

मैं ये तमाशा देखने के लिए ठहर गया। कुत्ते का पिल्ला देर तक भैंस की टांगों पर अपने पंजे मारता रहा। मगर उसकी इन धमकियों का असर न हुआ। जवाब मैं भैंस ने दो-तीन मर्तबा अपनी दुम हिला दी और बस! लेकिन एका एकी जब कि पिल्ला हमले के लिए आगे बढ़ रहा था, भैंस ने ज़ोर से अपनी दुम हिलाई। किसी स्याह सी चीज़ को अपनी तरफ़ बढ़ते देख कर वो इस अंदाज़ से उछला कि मुझे बे-इख़्तियार हंसी आ गई।

मैं उनको छोड़ कर आगे बढ़ा।

आसमान पर बादल के सफ़ेद टुकड़े फैले हुए बादबान मालूम होते थे जिनको हवा इधर से उधर धकेल रही थी। सामने पहाड़ की चोटी पर एक क़द-आवर दरख़्त संतरी की तरह अकड़ा हुआ था। उसके पीछे बादल का एक टुकड़ा झूम रहा था। बादल, ये दराज़ क़द दरख़्त और पहाड़ी... तीनों मिल कर बहुत बड़े जहाज़ का मंज़र पेश कर रहे थे।

मैं नेचर की इस तस्वीरकशी को दम-ब-ख़ुद हो कर देख रहा था कि दफ़अ’तन लारी के हॉर्न ने मुझे चौंका दिया। ख़यालों की दुनिया से उतर कर मैं आवाज़ों की दुनिया में आ गया। मन की आँखें बंद हो गईं। मसामों के सारे कान खुल गए। मैं फ़ौरन सड़क के एक तरफ़ हट गया।

लारी परकार की तरह बड़ी तेज़ी से मोड़ के निस्फ़ दायरे पर घूमी और हांपती हुई मेरे पास से गुज़र गई।

एक और लारी गुज़रने पर मोड़ के अ’क़ब में पाँच-छः गायें नुमूदार हुईं, जो सर लटकाए हौले-हौले चल रही थीं। मैं अपनी जगह पर खड़ा रहा। जब ये मेरे आगे से गुज़र गईं तो मैंने क़दम उठाया और मोड़ की जानिब बढ़ा।

चंद गज़ों का फ़ासिला तय करने पर जब मैं सड़क के बाएं हाथ वाले टीले के एक बहुत बड़े पत्थर के आगे से निकल गया। जो मोड़ पर संगीन पर्दे का काम दे कर सड़क के दूसरे हिस्से को बिल्कुल ओझल किए हुए था। तो दफ़अ’तन मेरी नज़रें एक ख़ुद रो पौदे से दो चार हुईं।

वो जवान थी, उस गाय की तरह जवान, जिसके पुट्ठे जवानी के जोश से फड़क रहे थे और जो उसके पास से अपने अंदर हज़ारों कपकपाहटें लिए गुज़र रही थी... मैं ठहर गया।

वो एक नन्हे से बछड़े को हाँक रही थी। दो तीन क़दम चल कर बछड़ा ठहर गया और अपनी जगह पर ऐसा जमा कि हिलने का नाम न लिया। लड़की ने बहुतेरे ज़ोर लगाया। लाख जतन किए वो एक क़दम आगे न बढ़ा और कान समेट कर ऐसा ख़ामोश हुआ। गोया वो किसी की आवाज़ ही नहीं सुनता।

ये तेवर देख लड़की ने अपनी छड़ी से काम लेना चाहा। मगर चीड़ की पतली सी टहनी कारआमद साबित न हुई। थक हार कर उसने बड़ी मायूसी और इंतहाई गुस्से की मिली-जुली हालत में अपने दोनों पांव ज़मीन पर ज़ोर से मारे और काँधों को जुंबिश दे कर इस अंदाज़ से खड़ी हो गई, गोया उस हैवान से कहना चाहती है, “लो, अब हम भी यहां से एक इंच न हिलेंगे।”

मैं अभी लड़की की इस प्यारी हरकत का मज़ा लेने की ख़ातिर ज़ेहन में दोहराने ही वाला था कि दफ़अ’तन बछड़ा ख़ुद-ब-ख़ुद उठ भागा। वो इस तेज़ी के साथ दौड़ रहा था कि उसकी कमज़ोर टांगें मेज़ के ढीले पायों की तरह लड़खड़ा रही थीं।

लड़की बछड़े की इस शरारत पर बहुत मुतहैयर और ख़श्मनाक हुई। न जाने मैं क्यों ख़ुश हुआ कि इसी अस्ना में उसने मेरी तरफ़ देखा और मैंने उसकी तरफ़। हम दोनों ब-यक-वक़्त हंस पड़े। फ़िज़ा पर तारों का छिड़काव सा हो गया।

ये सब कुछ एक लम्हे के अंदर अंदर हुआ। उसने फिर मेरी तरफ़ देखा। मगर इस दफ़ा सवाल करने वाली लाज भरी आँखों से... शायद उसको अब इस बात का एहसास हुआ था कि उसकी मुस्कुराहट किसी ग़ैर मर्द के तबस्सुम से जा टकराई है।

वो गहरे सब्ज़ रंग का दुपट्टा ओढ़े हुए थी। मालूम होता था कि आस-पास की हरियावल ने अपनी सब्ज़ी उसी से मुस्तआ’र ली है। उसकी शलवार भी उसी रंग की थी। अगर वो कुरता भी उसी रंग का पहने होती तो दूर से देखने वाले यही समझते कि सड़क के दरमियान एक छोटा सा दरख़्त उग रहा है।

हवा के मुलाइम झोंके उसके सब्ज़ दुपट्टे में बड़ी प्यारी लहरें पैदा कर रहे थे। ख़ुद को बेकार खड़ी देख कर और मुझको अपनी तरफ़ घूरते पा कर वो बेचैन सी हो गई और इधर-उधर यूंही देखा कि जैसे किसी का इंतिज़ार कर रही है। फिर अपने दुपट्टे को संवार कर उसने उस तरफ़ का रुख़ किया ,जिधर गायें आहिस्ता-आहिस्ता जा रही थीं।

मैं उससे कुछ फ़ासले पर बाएं हाथ पत्थरों के पास खड़ा था। जो सड़क के किनारे किनारे दीवार की शक्ल में चुने हुए थे।

जब वो मेरे क़रीब आई तो ग़ैर इरादी तौर पर उसने मेरी तरफ़ निगाहें उठाईं लेकिन फ़ौरन सर को झटक कर नीचे झुका लीं। कूल्हे मटकाती और छड़ी हिलाती मेरे पास से यूं गुज़री जैसे कभी कभी मेरा अपना ख़्याल मेरे ज़ेहन से अपना कांधा रगड़ कर गुज़र जाया करता है।

उसके स्लीपर जो ग़ालिबन उसके पांव में खुले थे। सड़क पर घिसटने से शोर पैदा कर रहे थे। थोड़ी दूर जा कर उसने अपने क़दम तेज़ किए और फिर दौड़ना शुरू कर दिया। बीस-पच्चीस गज़ के फ़ासले पर वो पत्थरों से चुनी हुई दीवार पर फुर्ती से चढ़ी और मुझे एक नज़र देख कर दूसरी तरफ़ कूद गई। फिर दौड़ कर एक झोंपड़े पर चढ़ कर मुंडेर पर बैठ गई।

उसकी ये हरकात... या’नी... या’नी... मेरी तरफ़ उसका तीन बार मुड़ मुड़ कर देखना... क्या उसकी मुस्कुराहट के साथ मेरे तबस्सुम के कुछ ज़र्रे तो नहीं चिमट कर नहीं रह गए थे?

इस ख़याल ने मेरी नब्ज़ की धड़कन तेज़ कर दी। थोड़ी देर के बाद मुझे थकावट सी महसूस होने लगी। मेरे पीछे झाड़ियों में जंगल के पंछी गीत बरसा रहे थे। हवा में खुली हुई मोसीक़ी मुझे किस क़दर प्यारी मालूम हुई। न जाने मैं कितने घूँट इस राग मिली हवा के ग़टाग़ट पी गया।

झोंपड़े से कुछ दूर झाड़ियों के पास लड़की की गायें घास चर रही थीं। उनसे परे पथरीली पगडंडी पर एक कश्मीरी मज़दूर घास का गट्ठा कमर पर लादे ऊपर चढ़ रहा था। दूर... बहुत दूर एक टीले से धूवां बल खाता हुआ आसमान की नीलाहट में घुल मिल रहा था। मेरे गर्द-ओ-पेश पहाड़ियों की बुलंदियों पर हरे हरे चीड़ों और साँवले पत्थरों के चौड़े चकले सीनों पर डूबते सूरज की ज़र्रीं किरनें स्याह और सुनहरे रंग के मख़लूत साये बिखेर रही थीं। कितना सुंदर और सुहाना समां था।

मैंने अपने आपको अज़ीमुश्शान मोहब्बत में घिरा हुआ पाया।

वो जवान थी। उसकी नाक उस पेंसिल की तरह सीधी और सुतवां थी जिससे मैं ये सतरें लिख रहा हूँ, उसकी आँखें... मैंने उस जैसी आँखें बहुत कम देखी हैं। उस पहाड़ी इलाक़े की सारी गहराईयां उनमें सिमट कर रह गई थीं। पलकें घनी और लंबी थीं। जब वो मेरे पास से गुज़री थी तो धूप की एक लर्ज़ां शुआ किस तरह उसकी पलकों में उलझी थी।

उसका सीना मज़बूत और कुशादा था। उसमें जवानी सांस लेती थी। कांधे चौड़े, बाहें गोल और गदराहट से भरपूर, कानों में चांदी के लंबे लंबे बुनदे थे। बाल देहातियों की तरह सीधी मांग निकाल कर गुँधे हुए थे जिससे उसके चेहरे पर वक़ार पैदा हो गया था।

वो झोंपड़े की मटियाली छत पर बैठी अपनी छड़ी से मुंडेर कूट रही थी और मैं सड़क पर खड़ा था।

“मैं किस क़दर बेवक़ूफ़ हूँ।” दफ़अ’तन मैंने होश सँभाला और अपने दिल से कहा, “अगर कोई मुझे इस तरह उसको घूरता हुआ देख ले तो क्या कहे... इसके साथ ये क्योंकर हो सकता है?”

“ये क्योंकर हो सकता है?” जब मैंने इन अलफ़ाज़ पर ग़ौर किया तो मालूम हुआ कि मैं किसी और ही ख़याल में था। इस एहसास पर मुझे हंसी आ गई और यूंही एक बार उसको और देख कर सैर के क़स्द से आगे बढ़ा। दो ही क़दम चल कर मुझे ख़याल आया कि यहां बटोत में सिर्फ़ चंद रोज़ क़ियाम करना है क्यों न रुख़सत होते वक़्त उसको सलाम कर लूं। इसमें हर्ज ही क्या है? शायद मेरे सलाम का एक आध ज़र्रा उसके हाफ़िज़े पर हमेशा के लिए जम जाये।”

मैं ठहर गया और कुछ देर मुंतज़िर रहने के बाद मैंने सचमुच उसको सलाम करने के लिए अपना हाथ माथे की तरफ़ बढ़ाया। मगर फ़ौरन इस अहमक़ाना हरकत से बाख़बर हो कर हाथ को यूंही हवा में हिला दिया और सीटी बजाते हुए क़दम तेज़ कर दिए।

मई का गर्म दिन शाम की ख़ुनकी में आहिस्ता आहिस्ता घुल रहा था।

सामने पहाड़ियों पर हल्का सा धूवां छा गया था, जैसे ख़ुशी के आँसू आँखों के आगे एक चादर सी तान देते हैं। इस धुँदलके में चीड़ के दरख़्त तहत-ए-शऊर में छुपे हुए ख़यालात मालूम हुए, ये एक ही क़तार में फैलते चले गए थे।

मेरे पास ही एक मोटा सा कौआ अपने स्याह और चमकीले पर फैलाए सुस्ता रहा था। हवा का हर झोंका मेरे जिस्म के उन हिस्सों के साथ छू कर जो कपड़ों से आज़ाद थे, एक ऐसी मोहब्बत का पैग़ाम दे रहा था जिससे मेरा दिल इससे क़ब्ल बिलकुल ना-आश्ना था।

मैंने आसमान की तरफ़ निगाहें उठाईं, और मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वो मेरी तरफ़ हैरत से देख कर ये कहना चाहता है, “सोचते क्या हो... जाओ मोहब्बत करो!”

मैं सड़क के किनारे पत्थरों की दीवार पर बैठ गया और उस... उसकी तरफ़ डरते डरते देखा कि मुबादा कोई रहगुज़ार सारा मुआ’मला ताड़ जाये। वो उसी तरह सर झुकाए अपनी जगह पर बैठी थी। उसे इस खेल में क्या लुत्फ़ आता है? क्या वो अभी तक थकी नहीं? क्या उसने वाक़ई दुबारा मेरी तरफ़ मुड़ कर देखा? क्या वो जानती है कि मैं उसकी मोहब्बत में गिरफ़्तार हूँ? ”

आख़िरी सवाल किस क़दर मज़हकाख़ेज़ था... मैं झेंप गया। लेकिन... लेकिन इसके बावजूद उसको देखने से ख़ुद को बाज़ न रख सका। एक मर्तबा जब मैंने उसको देखने के लिए अपनी गर्दन मोड़ी तो क्या देखता हूँ कि उसका मुँह मेरी तरफ़ है और वो मुझे देख रही है... मैं मख़्मूर हो गया।

मेरे और उसके दरमियान गो फ़ासिला काफ़ी था मगर मेरी आँखें जिनमें मेरे दिल की बसारत भी चली आई थी, महसूस कररही थीं कि वो सपनों का घूंगट काढ़े मेरी तरफ़ देख रही है। मेरी तरफ़... मेरी तरफ़!

मेरे सीने से बे-इख़्तियार आह निकल गई... यह अ’जीब बात है कि सुख और चैन का हाथ भी दर्द भरे तारों पर ही पड़ता है। इस आह में कितनी राहत थी... कितना सुकून था। उस लड़की ने जो मेरे सामने झोंपड़े की छत पर बैठी थी। मेरे शबाब के हर रंग को शोख़ कर दिया था। मेरे रोएँ रोएँ से मोहब्बत फूट रही थी। शे’रियत जो मेरे सीने के किसी नामालूम कोने में सोई पड़ी थी, अब बेदार हो चुकी थी... क्या दोशीज़गी और शे’रियत तवाम बहनें नहीं?

अगर उस वक़्त वो मुझसे हमकलाम होती तो मैं एक लफ़्ज़ तक अपनी ज़बान से न निकालता। ख़ामोशी मेरी तर्जुमान होती... मेरी गूंगी ज़बान कितनी बातें उस तक पहुंचा देती। मैं उसको अपनी ख़ामोशी में लपेट लेता... वो ज़रूर मुतहैयर होती और इस हालत में बड़ी प्यारी मालूम होती।

इस ख़्याल से कि रास्ते में यूं बेकार खड़े रहना ठीक नहीं, मैं दीवार पर से उठा... मेरे सामने टीले पर जाने के लिए एक पगडंडी थी। ऊपर टीले के किसी पत्थर पर बैठ कर मैं उसको बख़ूबी देख सकता था। चुनांचे दरख़्तों की जड़ों और झाड़ियों का सहारा लेकर मैंने ऊपर चढ़ना शुरू किया। रास्ते में दो तीन बार मेरा पांव फिसला और नोकीले पत्थरों पर गिरते गिरते बचा।

टीले पर जहां पत्थर नहीं था, कहीं कहीं ज़मीन के छोटे छोटे टुकड़ों में आलू बोए हुए थे। इसी क़िस्म के एक नन्हे से खेत को तय करके मैं एक पत्थर पर बैठ गया और टोपी उतार कर एक तरफ़ रख दी। मेरे दाएं हाथ को ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा था जिसमें गंदुम उगी हुई थी। चढ़ाई की वजह से मेरा दम फूल गया मगर शाम की ठंडी हवा ने ये तकान फ़ौरन ही दूर कर दी। और मैं जिस काम के लिए आया था, उसमें मशग़ूल हो गया।

अब वो झोंपड़े की छत पर खड़ी थी और ख़ुदा मालूम वो कैसी कैसी अनोखी आवाज़ें निकाल रही थी। मेरा ख़याल है कि वो उन दोनों बकरियों को सड़क पर चढ़ने से रोक रही थी, जो घास चरती हुई आहिस्ता आहिस्ता ऊपर का रूख़ कर रही थीं।

हवा तेज़ थी, गंदुम के पके हुए ख़ोशे ख़ुर ख़ुर करती हुई बिल्ली की मूंछों की तरह थरथरा रहे थे। झाड़ियों में हवा की सीटियां शाम की ख़ामोश फ़िज़ा में इर्तिआ’श पैदा कर रही थीं।

मिट्टी के ढेलों के साथ खेलता मैं उसकी तरफ़ बहुत देर तक देखता रहा। वो अब झोंपड़े पर बड़े अ’जीब अंदाज़ से टहल रही थी। एक मर्तबा उसने अपने सर को जुंबिश दी तो मैं समझा कि वो मेरी मौजूदगी से बाख़बर... मुझे देख रही है... मेरी हस्ती के सारे दरवाज़े खुल गए।

जाने कितनी देर तक मैं वहां बैठा रहा? एका एकी बदलियां घिर आईं और बारिश शुरू होगई। मेरे कपड़े भीग रहे थे लेकिन मैं वहां से क्योंकर जा सकता था जबकि वो... वहीं छत पर खड़ी थी। इस ख़याल से मुझे बड़ी मसर्रत हासिल हुई कि वो सिर्फ़ मेरी ख़ातिर बारिश में भीग रही है।

यकायक बारिश तेज़ होगई। वो उठी और मेरी तरफ़ देखे बग़ैर... हाँ, मेरी तरफ़ निगाह उठाए बग़ैर छत पर से नीचे उतरी और दूसरे झोंपड़े में दाख़िल हो गई... मुझे ऐसा महसूस हुआ कि बारिश की बूंदें मेरी हड्डियों तक पहुंच गई हैं। पानी से बचाओ करने के लिए मैंने इधर-उधर निगाहें दौड़ाई। मगर पत्थर और झाड़ियां पनाह का काम नहीं दे सकती थीं।

डाक बंगले तक पहुंचते पहुंचते मेरे कपड़े और ख़यालात सब भीग गए... जब वहां से सैर को निकला था तो एक ख़ुश्क आदमी था, रास्ते में मौसम ने शायर बना दिया। वापस आया तो भीगा हुआ आदमी था... सिर्फ़ भीगा हुआ आदमी... बारिश सारी शायरी बहा ले गई थी।
 

50
रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ
0.0
मंटो ने भी चेखव की तरह अपनी कहानियों के दम पर अपनी पहचान बनाई. भीड़, रेप और लूट की आंधी में कपड़े की तरह जिस्म भी फाड़े जाते हैं. हवस और वहश का ऐसा नज़ारा जिसे देखने के बाद खुद दरिन्दे के सनकी हो जाने की कहानी है 'ठंडा गोश्त'. कहते हैं नींद से बड़ा कोई नशा नहीं लेकिन भूख को इस बात से ऐतराज़ है
1

मूत्री

10 अप्रैल 2022
10
0
0

कांग्रेस हाऊस और जिन्नाह हाल से थोड़े ही फ़ासले पर एक पेशाब गाह है जिसे बंबई में “मूत्री” कहते हैं। आस पास के महलों की सारी ग़लाज़त इस तअफ़्फ़ुन भरी कोठड़ी के बाहर ढेरियों की सूरत में पड़ी रहती है। इस क़दर ब

2

मोचना

10 अप्रैल 2022
2
0
0

नाम उस का माया था। नाटे क़द की औरत थी। चेहरा बालों से भरा हुआ, बालाई लब पर तो बाल ऐसे थे, जैसे आप की और मेरी मोंछों के। माथा बहुत तंग था, वो भी बालों से भरा हुआ। यही वजह है कि उस को मोचने की ज़रूरत अक्स

3

रत्ती, माशा, तोला

10 अप्रैल 2022
2
0
0

ज़ीनत अपने कॉलिज की ज़ीनत थी। बड़ी ज़ेरक, बड़ी ज़हीन और बड़े अच्छे ख़ुद-ओ-ख़ाल की सेहतम-नद नौजवान लड़की। जिस तबीयत की वो मालिक थी उस के पेश-ए-नज़र उस की हम-जमाअत लड़कियों को कभी ख़याल भी न आया था। कि वो इतनी म

4

रामेशगर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से में उस के एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिन की ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उस की बहुत तारीफ़ क

5

राजू

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सन इकत्तीस के शुरू होने में सिर्फ़ रात के चंद बरफ़ाए हुए घंटे बाक़ी थे। वो लिहाफ़ में सर्दी की शिद्दत के बाइस काँप रहा था। पतलून और कोट समेत लेटा था, लेकिन इस के बावजूद सर्दी की लहरें उस की हडीयों तक पहु

6

लतीका रानी

13 अप्रैल 2022
2
0
0

वो ख़ूबसूरत नहीं थी। कोई ऐसी चीज़ उस की शक्ल-ओ-सूरत में नहीं थी जिसे पुर-कशिश कहा जा सके, लेकिन इस के बावजूद जब वो पहली बार फ़िल्म के पर्दे पर आई तो उस ने लोगों के दिल मोह लिए और ये लोग जो उसे फ़िल्म क

7

शाह दूले का चूहा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

सलीमा की जब शादी हुई तो वो इक्कीस बरस की थी। पाँच बरस होगए मगर उसके औलाद न हुई। उसकी माँ और सास को बहुत फ़िक्र थी। माँ को ज़्यादा थी कि कहीं उसका नजीब दूसरी शादी न करले। चुनांचे कई डाक्टरों से मश्वरा कि

8

शान्ति

13 अप्रैल 2022
0
0
0

दोनों पैरेज़ेन डेरी के बाहर बड़े धारियों वाले छाते के नीचे कुर्सीयों पर बैठे चाय पी रहे थे। उधर समुंदर था जिसकी लहरों की गुनगुनाहट सुनाई दे रही थी। चाय बहुत गर्म थी। इसलिए दोनों आहिस्ता-आहिस्ता घूँट भर

9

शादाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ख़ान बहादुर मोहम्मद असलम ख़ान के घर में ख़ुशियां खेलती थीं, और सही मा’नों में खेलती थीं। उनकी दो लड़कियां थीं, एक लड़का। अगर बड़ी लड़की की उम्र तेरह बरस की होगी तो छोटी की यही ग्यारह साढ़े ग्यारह और जो लड़का

10

शुग़ल

13 अप्रैल 2022
0
0
0

ये पिछले दिनों की बात है जब हम बरसात में सड़कें साफ़ करके अपना पेट पाल रहे थे।  हम में से कुछ किसान थे और कुछ मज़दूरी पेशा, चूँकि पहाड़ी देहातों में रुपये का मुँह देखना बहुत कम नसीब होता है। इसलिए हम सब

11

वालिद साहब

13 अप्रैल 2022
0
0
0

तौफ़ीक़ जब शाम को क्लब में आया तो परेशान सा था।  दोबार हारने के बाद उसने जमील से कहा, “लो भई, मैं चला।”  जमील ने तौफ़ीक़ के गोरे चिट्टे चेहरे की तरफ़ ग़ौर से देखा और कहा, “इतनी जल्दी?”  रियाज़ ने ताश की ग

12

मिस्री की डली

13 अप्रैल 2022
0
0
0

पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

13

मिस्टर मोईनुद्दीन

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

14

मिस माला

13 अप्रैल 2022
1
0
0

गाने लिखने वाला अ’ज़ीम गोबिंदपुरी जब ए.बी.सी प्रोडक्शंज़ में मुलाज़िम हुआ तो उसने फ़ौरन अपने दोस्त म्यूज़िक डायरेक्टर भटसावे के मुतअ’ल्लिक़ सोचा जो मरहटा था और अ’ज़ीम के साथ कई फिल्मों में काम कर चुका था। अ’

15

मिसेज़ डिकोस्टा

13 अप्रैल 2022
1
0
0

नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

16

मिस्टर टीन वाला

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अपने सफ़ैद जूतों पर पालिश कररहा था कि मेरी बीवी ने कहा। “ज़ैदी साहब आए हैं!” मैंने जूते अपनी बीवी के हवाले किए और हाथ धो कर दूसरे कमरे में चला आया जहां ज़ैदी बैठा था मैंने उस की तरफ़ गौरसे देखा। “अर

17

मिलावट

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था। अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली

18

मातमी जलसा

13 अप्रैल 2022
0
0
0

रात रात में ये ख़बर शहर के इस कोने से उस कोने तक फैल गई कि अतातुर्क कमाल मर गया है। रेडियो की थरथराती हुई ज़बान से ये सनसनी फैलाने वाली ख़बर ईरानी होटलों में सट्टे बाज़ों ने सुनी जो चाय की प्यालियां सामन

19

मंज़ूर

13 अप्रैल 2022
0
0
0

जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

20

महताब ख़ाँ

13 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को मैं घर बैठा अपनी बच्चियों से खेल रहा था कि दोस्त ताहिर साहब बड़ी अफरा-तफरी में आए। कमरे में दाख़िल होते ही आप ने मैंटल पीस पर से मेरा फोंटेन पेन उठा कर मेरे हाथ में थमाया और कहा कि “हस्पताल में

21

मजीद का माज़ी

13 अप्रैल 2022
0
0
0

मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

22

बीमार

13 अप्रैल 2022
0
0
0

अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

23

बिस्मिल्लाह

13 अप्रैल 2022
1
0
0

फ़िल्म बनाने के सिलसिले में ज़हीर से सईद की मुलाक़ात हुई। सईद बहुत मुतअस्सिर हुआ। बंबई में उस ने ज़हीर को सेंट्रल स्टूडीयोज़ में एक दो मर्तबा देखा था और शायद चंद बातें भी की थीं मगर मुफ़स्सल मुलाक़ात पहली

24

बिजली पहलवान

13 अप्रैल 2022
0
0
0

बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

25

बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
2
1
0

बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

26

पहचान

20 अप्रैल 2022
0
0
0

एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

27

फातो

20 अप्रैल 2022
0
0
0

तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

28

फौजा हराम दा

20 अप्रैल 2022
1
0
0

टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

29

माई जनते

20 अप्रैल 2022
0
0
0

माई जनते स्लीपर ठपठपाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चकट में दाख़िल हुई ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे क

30

मौसम की शरारत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

31

हामिद का बच्चा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

32

नुत्फ़ा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

33

डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
1
0
0

ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

34

मोमबत्ती के आँसू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

35

रिश्वत

20 अप्रैल 2022
0
0
0

अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

36

नारा

20 अप्रैल 2022
0
0
0

उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

37

झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

38

नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

39

जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
0
0
0

चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

40

जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

41

जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
0
0
0

ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

42

देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
0
0
0

नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

43

टू टू

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

44

डरपोक

20 अप्रैल 2022
0
0
0

मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

45

दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
0
0
0

छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

46

तस्वीर

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

47

नया साल

20 अप्रैल 2022
0
0
0

कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

48

ढारस

20 अप्रैल 2022
0
0
0

आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

49

तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
0
0
0

“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

50

डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
0
0
0

डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए