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मिलावट

13 अप्रैल 2022

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अमृतसर में अली मोहम्मद की मनियारी की दुकान थी छोटी सी मगर उस में हर चीज़ मौजूद थी उस ने कुछ इस क़रीने से सामान रखा था कि ठुंसा ठुंसा दिखाई नहीं देता था।

अमृतसर में दूसरे दुकानदार ब्लैक करते थे मगर अली मोहम्मद वाजिबी नर्ख़ पर अपना माल फ़रोख़्त करता था यही वजह है कि लोग दूर दूर से उस के पास आते और अपनी ज़रूरत की चीज़ें ख़रीदा करते।

वो मज़हबी क़िस्म का आदमी था ज़्यादा मुनाफ़ा लेना उस के नज़दीक गुनाह था अकेली जान थी उस के लिए जायज़ मुनाफ़ा ही काफ़ी था।

सारा दिन दुकान पर बैठता ग्राहकों की भीड़ लगी रहती उस को बाअज़ औक़ात अफ़सोस होता जब वो किसी गाहक को सनलाईट साबुन की एक टिकिया न दे सकता या केली फ़ोरनीन पोपी की बोतल, क्योंकि ये चीज़ें उसे महदूद तादाद में मिलती थीं।

ब्लैक न करने के बावजूद वो ख़ुशहाल था। उस ने दो हज़ार रुपय पस-अंदाज़ कर रखे थे जवान था एक दिन दुकान पर बैठे बैठे उस ने सोचा कि अब शादी कर लेनी चाहिए बुरे बुरे ख़याल दिमाग़ में आते हैं शादी कर लूं कि ज़िंदगी में लताफ़त पैदा हो जाएगी बाल बच्चे होंगे उन की परवरिश के लिए मैं और ज़्यादा कमाने की कोशिश करूंगा।

उस के वालिदैन अर्सा हुआ अल्लाह को प्यारे हो चुके थे उस की कोई बहन थी न भाई। वो बिलकुल अकेला था शुरू शुरू में जबकि वो दस बरस का था उस ने अख़्बार बेचने शुरू किए इस के बाद ख़वांचा लगाया क़ुलफ़ियाँ बेचीं जब उस के पास एक हज़ार रुपया जमा हो गया तो उस ने एक छोटी सी दुकान किराए पर ले ली और मनियारी का सामान ख़रीद कर बैठ गया।

आदमी ईमानदार था उस की दुकान थोड़े ही अर्से में चल निकली जहां तक आमदनी का तअल्लुक़ था वो उस से बे-फ़िक्र था मगर वो चाहता था घर बसाए। उस की बीवी हो बच्चे हों और वो उन के लिए ज़्यादा से ज़्यादा कमाने की कोशिश करे इस लिए कि उस की ज़िंदगी मशीन ऐसी बन गई थी सुबह दुकान खोलता गाहक आते उन्हें सौदा देता शाम को दुकान बंद करता और एक छोटी सी कोठरी में जो उस ने शरीफ़ पूरा में ले रख्खी थी सो जाता।

गंजे का होटल था उस में वो खाना खाता, सिर्फ़ एक वक़्त सुबह नाश्ता जैमल सिंह के कटड़े में शाभे हलवाई की दुकान में करता, दुकान खोलता और शाम तक अपनी गद्दी पर बैठा रहता।

उस के अंदर शादी की ख़्वाहिश शिद्दत इख़्तियार करती गई लेकिन सवाल ये था कि इस मुआमले में उस की मदद कौन करे। अमृतसर में उस का कोई दोस्त यार भी नहीं था जो उस के लिए कोशिश करता।

वो बहुत परेशान था शरीफ़ पूरा की कोठरी में रात को सोते वक़्त वो कई मर्तबा रोया कि उस के माँ बाप इतनी जल्दी क्यों मर गए उन्हें और कुछ नहीं तो इस लिए ज़िंदा रहना चाहिए था कि वो उस की शादी का बंद-ओ-बस्त कर जाते।

उस की समझ में नहीं आता था कि वो शादी कैसे करे बहुत देर तक सोचता रहा इस दौरान में उस के पास तीन हज़ार रुपय जमा हो गए उस ने एक छोटे से घर को जो अच्छा ख़ासा था किराए पर ले लिया मगर रहता वो शरीफ़ पूरे ही में था।

एक दिन उस ने अख़्बार में एक इश्तिहार देखा जिस में लिखा था कि शादी के ख़्वाहिश-मंद हज़रात हम से रुजू करें। बी ए पास लेडी डाक्टर हर क़िस्म के रिश्ते मौजूद हैं ख़त-ओ-किताबत कीजिए या ख़ुद आ के मिलिए।

इतवार को वो दुकान नहीं खोलता था उस दिन वो उस पते पर गया और उस की मुलाक़ात एक दाढ़ी वाले बुज़ुर्ग से हुई। अली मोहम्मद ने मुद्दा बयान किया दाढ़ी वाले बुज़ुर्ग ने मेज़ का दराज़ खोल कर बीस पच्चीस तस्वीरें निकालीं और उस को एक एक कर के दिखाईं कि वो इन में से कोई पसंद करे।

एक लड़की की तस्वीर अली मोहम्मद को पसंद आ गई छोटी उम्र की और ख़ूबसूरत थी। उस ने शादियां कराने वाले एजैंट से कहा “जनाब। ये लड़की मुझे पसंद है”

एजैंट मुस्कुराया “तुम ने एक हीरा चुन लिया है”

अली मोहम्मद को ऐसा महसूस हुआ कि वो लड़की उस की आग़ोश में है उस ने गटकना शुरू कर दिया “बस। जनाब आप बात पक्की कर दीजिए, एजैंट संजीदा हो गया, देखो बरखु़र्दार! ये लड़की तुम ने चुनी है, इलावा हसीन होने के बहुत बड़े ख़ानदान से तअल्लुक़ रखती है लेकिन तुम से ज़्यादा फ़ीस नहीं मांगूंगा”

“आप की बड़ी नवाज़िश है मैं यतीम लड़का हूँ अगर आप मेरा ये काम कर दें तो आप को सारी उम्र अपना बाप समझूंगा” एजैंट के मोंछों भरे होंटों पर फिर मुस्कुराहट नुमूदार हुई “जीते रहो मैं तुम से सिर्फ़ तीन सौ रुपय फीस लूंगा” अली मोहम्मद ने बड़े मुतशक्किराना लहजे में कहा “जनाब का बहुत बहुत शुक्रिया मुझे मंज़ूर है ”

ये कह कर उस ने जेब से तीन नोट सौ सौ रुपय के निकाले और उस बुजु़र्गवार को दे दिए।

तारीख़ मुक़र्रर हो गई निकाह हुआ रुख़्सती भी हुई अली मोहम्मद ने वो छोटा सा मकान किराए पर ले रख्खा था अब सजा सजाया था वो उस में बड़े चाओ से अपनी दुल्हन ले कर आया पहली रात का तसव्वुर मालूम नहीं उस के दिल-ओ-दिमाग़ में किस क़िस्म का था मगर जब उस ने दुल्हन का घूंघट हाथों से उठाया तो उस को ग़श सा आ गया।

निहायत बद-शकल औरत थी सरीहन उस मर्द बुज़ुर्ग ने उस के साथ धोका किया था अली मोहम्मद लड़खड़ाता कमरे से बाहर निकला और शरीफ़ पूरे जा कर अपनी कोठरी में देर तक सोचता रहा कि ये हुआ किया है लेकिन उस की समझ में कुछ भी न आया।

उस ने अपनी दुकान न खोली दो हज़ार रुपय वो अपनी बीवी का हक़-ए-महर अदा कर चुका था तीन सौ रुपय उस एजैंट को अब इस के सिर्फ़ सात सौ रुपय थे वो इस क़दर दिल बर्दाश्ता हो गया था कि उस ने सोचा शहर ही छोड़ दे सारी रात जागता रहा और सोचता रहा उस ने फ़ैसला कर ही लिया सुबह दस बजे उस ने अपनी दुकान एक शख़्स के पास पाँच हज़ार रुपय में यानी औने पौने दामों बेच दी और टिकट कटवा कर लाहौर चला आया।

लाहौर जाते हुए गाड़ी में किसी जेब कतरे ने बड़ी सफ़ाई से उस के तमाम रुपय ग़ायब कर दिए वो बहुत परेशान हुआ लेकिन उस ने सोचा कि शायद ख़ुदा को यही मंज़ूर था।

लाहौर पहुंचा तो उस की दूसरी जेब में जो कतरी नहीं गई थी सिर्फ़ दस रुपय और ग्यारह आने थे उस से उस ने चंद रोज़ गुज़ारा किया लेकिन बाद में फ़ाक़ों की नौबत आ गई।

इस दौरान में उस ने कहीं न कहीं मुलाज़िम होने की बहुत कोशिश की मगर ना-काम रहा वो इस क़दर मायूस हो गया कि उस ने ख़ुदकुशी का इरादा कर लिया मगर उस में इतनी जुर्रत नहीं थी उस के बावजूद एक रात वो रेल की पटरी पर लेट गया ट्रेन आ रही थी मगर कांटा बदला और वो दूसरी लाईन पर चली गई कि उसे उधर ही जाना था।

उस ने सोचा कि मौत भी धोका दे जाती है चुनांचे उस ने ख़ुदकुशी का ख़याल छोड़ दिया और हल्दी और मिर्चें पीसने वाली एक चक्की में बीस रुपय माहवार पर मुलाज़मत इख़्तियार कर ली।

यहां उसे पहले ही दिन मालूम हो गया कि दुनिया धोका ही धोका है हल्दी में पीली मिट्टी की मिलावट की जाती थी और मिर्चों में सुर्ख़ ईंटों की।

दो बरस तक वो इस चक्की में काम करता रहा उस का मालिक हर महीने कम अज़ कम सात सौ रुपय माहवार कमाता था इस दौरान में अली मोहम्मद ने पाँच सौ रुपय पस-अंदाज़ कर लिए थे एक दिन उस ने सोचा जब सारी दुनिया में फ़रेब ही फ़रेब है तो वो भी क्यों न फ़रेब करे।

उस ने चुनांचे एक अलाहिदा चक्की क़ायम कर ली और उस में मिर्चों और हल्दी में मिलावट का काम शुरू कर दिया उस की आमदनी अब काफ़ी माक़ूल थी उस को शादी का कई बार ख़याल आया मगर जब उस की आँखों के सामने इस पहली रात का नक़्शा आया तो वो काँप काँप गया।

अली मोहम्मद ख़ुश था उस ने फ़रेब-कारी पूरी तरह सीख ली थी उस को अब उस के तमाम गुर मालूम हो गए थे, एक मन लाल मिर्चों में कितनी ईंटें पिसनी चाहिऐं, हल्दी में कितनी ज़र्द रंग की मिट्टी डालनी चाहिए और फिर वहां का हिसाब ये अब उस को अच्छी तरह मालूम था।

लेकिन एक दिन उस की चक्की पर पुलिस का छापा पड़ा हल्दी और मिर्चों के नमूने बोतलों में डाल कर मोहर बंद किए गए और जब केमिकल एग्जामिनर की रिपोर्ट आई कि इन में मिलावट है तो उसे गिरफ़्तार कर लिया गया।

इस का लाहौर में कौन था जो उस की ज़मानत देता कई दिन हवालात में बंद रहा आख़िर मुक़द्दमा अदालत में पेश हुआ और उस को सौ रुपया जुरमाना और एक महीने की क़ैद बा-मुशक़क़्त की सज़ा हुई।

जुर्माना तो उस ने अदा कर दिया लेकिन एक महीने की क़ैद बा-मुशक़क़्त उसे भुगतना ही पड़ी ये एक महीना उस की ज़िंदगी में बहुत कड़ा वक़्त था इस दौरान में वो अक्सर सोचता था कि इस ने बे-ईमानी क्यों की जबकि इस ने अपनी ज़िंदगी का ये उसूल बना लिया था कि वो कभी ख़राब कारी नहीं करेगा।

फिर वो सोचता कि उसे अपनी ज़िंदगी ख़त्म कर लेनी चाहिए इस लिए कि वो इधर का रहा न उधर का, उस का किरदार मज़बूत नहीं बेहतर यही है कि मर जाये ताकि उस का ज़हनी इज़्तिराब ख़त्म हो।

जब वो जेल से बाहर निकला तो वो मज़बूत इरादा कर चुका था कि ख़ुदकुशी कर लेगा ताकि सारा झंझट ही ख़त्म हो इस ग़र्ज़ के लिए उस ने सात रोज़ मज़दूरी की और दो तीन रुपय अपना पेट काट काट कर जमा किए। उस के बाद उस ने सोचा. कौन सा ज़हर होगा जो कार-आमद हो सकता है।

उस ने सिर्फ़ एक ही ज़हर का नाम सुना था जो बड़ा क़ातिल होता है संख्या मगर ये संख्या कहाँ से मिलती?

उस ने बहुत कोशिश की आख़िर उसे एक दुकान से संख्या मिल गई उस ने इशा की नमाज़ पढ़ी ख़ुदा से अपने गुनाहों की माफ़ी मांगी कि वो हल्दी और मिर्चों में मिलावट करता रहा फिर रात को संख्या खाई और फुटपाथ पर सो गया।

उस ने सुना था संख्या खाने वालों के मुँह से झाग निकलते हैं, तशन्नुज के दौरे पड़ते हैं, बड़ा कर्ब होता है मगर उसे कुछ भी न हुआ सारी रात वो अपनी मौत का इंतिज़ार करता रहा मगर वो न आई।

सुबह उठ कर वो उस दुकानदार के पास गया जिस से उस ने संख्या ख़रीदी थी और उस से पूछा “भाई साहब! ये आप ने मुझे कैसी संख्या दी है कि मैं अभी तक नहीं मरा”

दुकानदार ने आह भर के बड़े अफ़सोस-नाक लहजे में कहा : “क्या कहूं मेरे भाई आजकल हर चीज़ नक़ली होती है या उस में मिलावट होती है” 

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रचनाएँ
सआदत हसन मंटो की प्रसिद्ध कहानियाँ
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रामेशगर

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पिछले दिनों मेरी रूह और मेरा जिस्म दोनों अ’लील थे। रूह इसलिए कि मैंने दफ़अ’तन अपने माहौल की ख़ौफ़नाक वीरानी को महसूस किया था और जिस्म इसलिए कि मेरे तमाम पुट्ठे सर्दी लग जाने के बाइ’स चोबी तख़्ते के मानि

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मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम-ए-कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँ कि वो इस के आदी नहीं थ

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नौ महीने पूरे हो चुके थे। मेरे पेट में अब पहली सी गड़बड़ नहीं थी। पर मिसिज़ डी कोस्टा के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। वो बहुत परेशान थी। चुनांचे मैं आने वाले हादिसे की तमाम अन-जानी तकलीफें भूल गई थी और मिस

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मंज़ूर

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जब उसे हस्पताल में दाख़िल किया गया तो उस की हलात बहुत ख़राब थी। पहली रात उसे ऑक्सीजन पर रखा गया। जो नर्स ड्यूटी पर थी, उस का ख़्याल था कि ये नया मरीज़ सुब्ह से पहले पहले मर जाएगा। उस की नब्ज़ की रफ़्तार

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मजीद का माज़ी

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मजीद की माहाना आमदनी ढाई हज़ार रुपय थी। मोटर थी। एक आलीशान कोठी थी। बीवी थी। इस के इलावा दस पंद्रह औरतों से मेल जोल था। मगर जब कभी वो विस्की के तीन चार पैग पीता तो उसे अपना माज़ी याद आजाता। वो सोचता कि

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बीमार

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अजब बात है कि जब भी किसी लड़की या औरत ने मुझे ख़त लिखा भाई से मुख़ातब किया और बे-रबत तहरीर में इस बात का ज़रूर ज़िक्र किया कि वो शदीद तौर पर अलील है। मेरी तसानीफ़ की बहुत तारीफ़ें कीं। ज़मीन-ओ-आसमान के कुलाब

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बिजली पहलवान के मुतअल्लिक़ बहुत से क़िस्से मशहूर हैं कहते हैं कि वो बर्क़-रफ़्तार था। बिजली की मानिंद अपने दुश्मनों पर गिरता था और उन्हें भस्म कर देता था लेकिन जब मैंने उसे मुग़ल बाज़ार में देखा तो वो मुझ

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बाबू गोपीनाथ

13 अप्रैल 2022
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बाबू गोपी नाथ से मेरी मुलाक़ात सन चालीस में हूई। उन दिनों मैं बंबई का एक हफ़तावारपर्चा एडिट किया करता था। दफ़्तर में अबदुर्रहीम सीनडो एक नाटे क़द के आदमी के साथ दाख़िल हुआ। मैं उस वक़्त लीड लिख रहा था। सी

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20 अप्रैल 2022
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एक निहायत ही थर्ड क्लास होटल में देसी विस्की की बोतल ख़त्म करने के बाद तय हुआ कि बाहर घूमा जाये और एक ऐसी औरत तलाश की जाये जो होटल और विस्की के पैदा करदा तकद्दुर को दूर कर सके। कोई ऐसी औरत ढूँडी जाय

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तेज़ बुख़ार की हालत में उसे अपनी छाती पर कोई ठंडी चीज़ रेंगती महसूस हुई। उस के ख़्यालात का सिलसिला टूट गया। जब वो मुकम्मल तौर पर बेदार हुआ तो उस का चेहरा बुख़ार की शिद्दत के बाइस तिमतिमा रहा था। उस ने आँ

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टी हाऊस में हरामियों की बातें शुरू हुईं तो ये सिलसिला बहुत देर तक जारी रहा। हर एक ने कम अज़ कम एक हरामी के मुतअल्लिक़ अपने तअस्सुरात बयान किए जिस से उस को अपनी ज़िंदगी में वास्ता पड़ चुका था। कोई जालंधर

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शाम को सैर के लिए निकला और टहलता टहलता उस सड़क पर हो लिया जो कश्मीर की तरफ़ जाती है। सड़क के चारों तरफ़ चीड़ और देवदार के दरख़्त, ऊंची ऊंची पहाड़ियों के दामन पर काले फीते की तरह फैले हुए थे। कभी कभी हवा के

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लाहौर से बाबू हरगोपाल आए तो हामिद घर का रहा न घाट का। उन्होंने आते ही हामिद से कहा, “लो, भई फ़ौरन एक टैक्सी का बंदोबस्त करो।” हामिद ने कहा, “आप ज़रा तो आराम कर लीजिए। इतना लंबा सफ़र तय करके यहां आए

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20 अप्रैल 2022
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मालूम नहीं बाबू गोपी नाथ की शख़्सियत दर-हक़ीक़त ऐसी ही थी जैसी आप ने अफ़साने में पेश की है, या महज़ आपके दिमाग़ की पैदावार है, पर मैं इतना जानता हूँ कि ऐसे अजीब-ओ-ग़रीब आदमी आम मिलते हैं। मैंने जब आपका अफ़

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डार्लिंग

20 अप्रैल 2022
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ये उन दिनों का वाक़िया है। जब मशरिक़ी और मग़रिबी पंजाब में क़तल-ओ-ग़ारतगरी और लूट मार का बाज़ार गर्म था। कई दिन से मूसलाधार बारिश होरही थी। वो आग जो इंजनों से न बुझ सकी थी। इस बारिश ने चंद घंटों ही में ठ

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मोमबत्ती के आँसू

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ग़लीज़ ताक़ पर जो शिकस्ता दीवार में बना था, मोमबत्ती सारी रात रोती रही थी। मोम पिघल पिघल कर कमरे के गीले फ़र्श पर ओस के ठिठुरे हुए धुँदले क़तरों के मानिंद बिखर रहा था। नन्ही लाजो मोतियों का हार लेने

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रिश्वत

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अहमद दीन खाते पीते आदमी का लड़का था। अपने हम उम्र लड़कों में सबसे ज़्यादा ख़ुशपोश माना जाता था, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि वो बिल्कुल ख़स्ता हाल हो गया। उसने बी.ए किया और अच्छी पोज़ीशन हासिल की। वो

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नारा

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उसे यूं महसूस हुआ कि उस संगीन इमारत की सातों मंज़िलें उसके काँधों पर धर दी गई हैं। वो सातवें मंज़िल से एक एक सीढ़ी कर के नीचे उतरा और तमाम मंज़िलों का बोझ उसके चौड़े मगर दुबले कांधे पर सवार होता गय

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झूटी कहानी

20 अप्रैल 2022
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कुछ अर्से से अक़ल्लियतें अपने हुक़ूक़ के तहफ़्फ़ुज़ के लिए बेदार हो रही थीं। उन को ख़्वाब-ए-गिरां से जगाने वाली अक्सरियतें थीं जो एक मुद्दत से अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए उन पर दबाओ डालती रही थीं। इस बेदार

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नफ़्सियाती मुताला

20 अप्रैल 2022
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मुझे चाय के लिए कह कर, वह उन के दोस्त फिर अपनी बातों में ग़र्क़ हो गए। गुफ़्तुगू का मौज़ू, तरक़्क़ी पसंद अदब और तरक़्क़ी पसंद अदीब था। शुरू शुरू में तो ये लोग उर्दू के अफ़सानवी अदब पर ताइराना नज़र

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जाओ हनीफ़ जाओ

20 अप्रैल 2022
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चौधरी ग़ुलाम अब्बास की ताज़ा तरीन तक़रीर-ओ-तबादल-ए-ख़यालात हो रहा था। टी हाउस की फ़ज़ा वहां की चाय की तरह गर्म थी। सब इस बात पर मुत्तफ़िक़ थे कि हम कश्मीर ले कर रहें गे, और ये कि डोगरा राज का फ़िल-फ़ौर ख़ात

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जान मोहम्मद

20 अप्रैल 2022
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मेरे दोस्त जान मुहम्मद ने, जब मैं बीमार था मेरी बड़ी ख़िदमत की। मैं तीन महीने हस्पताल में रहा। इस दौरान में वो बाक़ायदा शाम को आता रहा बाअज़ औक़ात जब मेरे नौकर अलील होते तो वो रात को भी वहीं ठहरता ताकि

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जेंटिलमेनों का बुरश

20 अप्रैल 2022
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ये ग़ालिबन आज से बीस बरस पीछे की बात है। मेरी उम्र यही कोई बाईस बरस के क़रीब होगी, या शायद इस से दो बरस कम। क्योंकि तारीख़ों और सनों के मुआमले में मेरा हाफ़िज़ा बिलकुल सिफ़र है। मेरी दोस्ती का हल्क़ा उन

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देख कबीरा रोया

20 अप्रैल 2022
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नगर नगर ढिंडोरा पीटा गया कि जो आदमी भीक मांगेगा उसको गिरफ़्तार कर लिया जाये। गिरफ्तारियां शुरू हुईं। लोग ख़ुशियां मनाने लगे कि एक बहुत पुरानी ला’नत दूर हो गई। कबीर ने ये देखा तो उसकी आँखों में आँ

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टू टू

20 अप्रैल 2022
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मैं सोच रहा था, दुनिया की सबसे पहली औरत जब माँ बनी तो कायनात का रद्द-ए-अ’मल क्या था? दुनिया के सबसे पहले मर्द ने क्या आसमानों की तरफ़ तमतमाती आँखों से देख कर दुनिया की सब से पहली ज़बान में बड़े फ़ख़्

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डरपोक

20 अप्रैल 2022
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मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर क

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दीवाली के दीये

20 अप्रैल 2022
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छत की मुंडेर पर दीवाली के दीये हाँपते हुए बच्चों के दिल की तरह धड़क रहे थे। मुन्नी दौड़ती हुई आई। अपनी नन्ही सी घगरी को दोनों हाथों से ऊपर उठाए छत के नीचे गली में मोरी के पास खड़ी हो गई। उसकी रोती

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तस्वीर

20 अप्रैल 2022
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“बच्चे कहाँ हैं?” “मर गए हैं।” “सब के सब?” “हाँ, सबके सब... आपको आज उनके मुतअ’ल्लिक़ पूछने का क्या ख़याल आ गया।” “मैं उनका बाप हूँ।” “आप ऐसा बाप ख़ुदा करे कभी पैदा ही न हो।” “

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नया साल

20 अप्रैल 2022
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कैलेंडर का आख़िरी पत्ता जिस पर मोटे हुरूफ़ में 31 दिसंबर छपा हुआ था, एक लम्हा के अंदर उसकी पतली उंगलियों की गिरफ़्त में था। अब कैलेंडर एक टूंड मुंड दरख़्त सा नज़र आने लगा। जिसकी टहनियों पर से सारे पत्ते

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ढारस

20 अप्रैल 2022
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आज से ठीक आठ बरस पहले की बात है। हिंदू सभा कॉलिज के सामने जो ख़ूबसूरत शादी घर है, उसमें हमारे दोस्त बिशेशर नाथ की बरात ठहरी हुई थी। तक़रीबन तीन साढ़े तीन सौ के क़रीब मेहमान थे जो अमृतसर और लाहौर

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तीन में ना तेरह में

20 अप्रैल 2022
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“मैं तीन में हूँ न तेरह में, न सुतली की गिरह में।” “अब तुमने उर्दू के मुहावरे भी सीख लिये।” “आप मेरा मज़ाक़ क्यों उड़ाते हैं। उर्दू मेरी मादरी ज़बान है।” “पिदरी क्या थी? तुम्हारे वालिद बुज़ु

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डायरेक्टर कृपलानी

20 अप्रैल 2022
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डायरेक्टर कृपलानी अपनी बलंद किरदारी और ख़ुश अतवारी की वजह से बंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बड़े एहतराम की नज़र से देखा जाता था। बा’ज़ लोग तो हैरत का इज़हार करते थे कि ऐसा नेक और पाकबाज़ आदमी फ़िल्म डायरे

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