कहानी
उसने कभी निराश नहीं किया-2
विजय कुमार तिवारी
सौम्या शरीर से कमजोर थी परन्तु मन से बहुत मजबूत और उत्साहित। प्रवर जानता था कि ऐसे में बहुत सावधानी की जरुरत है। जरा सी भी लापरवाही परेशानी में डाल सकती है। पहले सौम्या ने अपनी अधूरी पढ़ायी पूरी की और मेहनत से आगे की तैयारी करने लगी। मैट्रिक, इण्टरमीडिएट और बीए आनर्स सभी परीक्षाओं में उसने सम्मानपूर्वक प्रथम श्रेणी प्राप्त की है। उसकी चाह थी कि इस बार भी उसे अच्छे अंक मिले। स्नात्कोत्तर की परीक्षा होनेवाली है।एक दिन प्रवर के कवि-मित्र आये जो उसी विश्व-विद्यालय में पढ़ाते थे। प्रवर की रुचि साहित्य में भी है और वह ऐसे साहित्यिक आयोजनों में आने-जाने लगा था। हिन्दी विषय को लेकर उसने इण्टर तक ही पढ़ायी की थी परन्तु मातृभाषा हिन्दी होने और पढ़ने-लिखने में अभिरुचि के कारण उसका कविता,कहानी लेखन बहुत पहले से ही शुरू हो गया था। इस शहर में उसे सुअवसर मिले और बडे-बडे मंच भी। शहर के लगभग सभी साहित्यकारों से मिलना-जुलना शुरु हो गया। आकाशवाणी के कार्यक्रमों में भाग लेने लगा और कहानियाँ अखबारों,पत्रिकाओं में छपने लगी। उसकी कहानियों पर बड़ी-बड़ी गोष्ठियाँ हुईं और घर में भी साहित्यिकों का आना-जाना था।अन्य दूसरे शहरों के कार्यक्रमों में भी प्रवर भाग लेने लगा। एक बार उसे कहानी पर आयोजित बड़े समारोह में निमन्त्रित किया गया जिसमें देश के 15 बडे कथाकार आने वाले थे।सौम्या को भी आनन्द मिलता था ऐसे नाम-धन्य साहित्यिकों को सुनकर।उनके लिए चाय-पानी की व्यवस्था सहर्ष करती और उनकी चर्चाओं में भाग भी लेती थी।
कवि मित्र ने कहा,"क्यों नहीं भाभी जी को यूज़ीसी की परीक्षा दिलवा देते हैं?"फिर उन्होंने विस्तार से जानकारी दी। उसी शाम एक दूसरा साहित्य-प्रेमी आया जो उसी विश्व-विद्यालय में हिन्दी से एम.ए कर रहा था। प्रवर ने कवि-मित्र के सलाह की चर्चा की। उसे भी यह परीक्षा देनी थी। उसने यूजीसी वाला फार्म ला दिया। सौम्या की परीक्षा अच्छी हुई और अगले पाँच वर्षो की शोध-छात्रवृत्ति के लिए उसका चयन हो गया। यह उसकी बहुत सही और सामयिक कृपा रही क्योंकि प्रवर की आय से घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था और सौम्या की अथक मेहनत का भी सुखद परिणाम था।
सौम्या के माता-पिता वापस अपने घर कुछ दिनों के लिए अवकाश पर आ रहे थे। सौम्या और प्रवर स्टेशन पहुँच गये। उन्हें यहाँ गाड़ी बदलनी थी क्योंकि जिस गाड़ी से वे आ रहे थे वह उनके स्टेशन पर नहीं रुकती है। वे सभी गाड़ी से उतरे और प्लेटफार्म पर एक खाली बेंच देखकर बैठ गये। सौम्या ने बेटी को गोद में उठा लिया और चुमने,सहलाने लगी। वह भी चिर प्यासी सी माँ की गोद में दुबक गयी और उत्सुक निगाहों से प्रवर को देखने लगी। प्रवर का ध्यान भी उसी पर था और भीतर बहुत कुछ उमड़ रहा था। बाँह फैलाये उसने बेटी को देखा और वह धीरे से माँ की गोद से उतर कर पिता की गोद में आ गयी। प्रवर की आँखें भर आयी। वह उठ खड़ा हुआ और बेटी को गोद में लिए इधर-उधर टहलने लगा ताकि कोई देख ना ले। बेटी लगभग दो साल की होनेवाली थी। जब उनकी अगली गाड़ी आयी तो बेटी को उसकी नानी ने प्रवर से अपनी गोद में ले लिया। तय यह हुआ था कि दो दिनों बाद प्रवर और सौम्या जाकर बेटी को ले आयेंगे। डर था कि कहीं वह भूल गयी होगी तो दो-चार दिन साथ रहकर ले आने से घुलमिल जायेगी।
अचानक शाम में छोटे मामा के साथ बेटी आ गयी। सुखद अनुभूति हुई प्रवर और सौम्या को। शायद यही होता है-खून का रिश्ता। मामा ने बताया कि स्टेशन से गाड़ी खुलने के बाद से ही इसने नानी को मारना,नोंचना शुरु कर दिया."मुझे मेरे पापा की गोद से क्यों उतारी? मुझे पापा के पास जाना है।" उसने रोना-पीटना शुरु कर दिया। दिन भर रोयी है। तब से कुछ खायी भी नहीं है। बस पापा के पास जाना है। बाध्य होकर ले आना पड़ा । आते ही प्रवर की गोद में बैठ गयी और सिर उठाये एकटक पापा को देखती रही। प्रवर भी विह्वल हो उठा। लोग इसीलिए कहते हैं कि बेटियाँ पिता की दुलारी होती हैं। प्रवर गॊद में उठाये घर से बाहर निकल आया और देर तक टहलता रहा। मन मे उठ रहे भावनाओं के ज्वार से लड़ता रहा। सौम्या अपने जज्बात को रोके सब देखती-समझती रही और रात के लिए भोजन बनाने लगी। बेटी अपने तरीके से महीनों अलग होने की पीड़ा अपनी तुतली बोली में व्यक्त करती रही। उसने यह भी बताया कि नाना के साथ रोज शाम में घुमती थी। फल और बेलून लेती थी। नानी के साथ खेलती थी। बात करते-करते चुप हो जाती थी और प्रवर को देखने लगती मानो पूछ रही हो कि आप दोनो तब कहाँ थे?प्रवर का गला भर आता। वह कहना चाहता था कि तुम्हें सब बताऊँगा जब बड़ी हो जाओगी। सौम्या और प्रवर के बीच में सॊते हुए शायद उस नन्हीं सी बेटी को बहुत सुकून और शान्ति मिलती थी।सौम्या का प्यार करने का तरीका भी अद्भूत है। वह कभी दिखाना या जताना नहीं चाहती और खुश है कि दुखी,कई बार अनुमान लगाना मुश्किल होता है। शायद उसका उपरी धरातल बहुत सख्त है और भीतर प्रेम का अजस्र स्रोत बहता रहता है। प्रवर ने सीख लिया है,उसके उपरी आवरण का भेदन करना और भीतर केअथाह सागर में गोते लगाना। बेटी को शायद सीखने,समझने में समय लगेगा।
एमए भी उसने अच्छे अंक के साथ प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की और उसका शोधकार्य शुरु हो गया। बेटी को तैयार करना और समय से विश्वविद्यालय पहुँचाना उसका सबसे बड़ा काम था। शोध के साथ-साथ उसे नित्य एक-दो कक्षायें भी लेनी पड़ती थीं और महाकवि कालिदास रचित मेघदूत पढ़ाना था। छात्र-छात्राओं और सौम्या की उम्र में बहुत अंतर नहीं था। सौम्या को स्वयं श्रृंगार में कोई अभिरुचि नहीं थी और ना ही वह कोई रुमानी स्वभाव की थी। इसे वह प्रेम नहीं मानती। प्रेम तो महसूस करने की चीज है,सरेआम दिखाने या चर्चा करने की नहीं। छात्र-छात्राओं की हरकतों और तौर-तरीकों से उसे खुशी नहीं होती। घर आकर प्रवर से इस पर बहुत सी बातें करती और कहानियाँ सुनाती। प्रवर हँस देता। सौम्या खीझ उठती."तुम भी उन्हीं का पक्ष लेते हो।" प्रवर समझाता कि दुनिया ऐसी ही है।