किसान आन्दोलन बनाम महत्वकांक्षा
डॉ शोभा भारद्वाज
देश को आजादी मिली लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी राशन में लाल या सफेद गेहूं ( चोकर जैसा ) वह भी लंबी कतारों में लग कर मिलता था यह गेहूं अमेरिका और कनाडा से आता .1962 एवं 1965 में भारत को दो युद्ध पहला चीन के साथ दूसरा पाकिस्तान के साथ लड़ना पड़ा .जिससे आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर हो गयी .पी.एल.480 के अंतर्गत अमेरिका से गेहूं और वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी अत: आर्थिक मदद के लिए स्वर्गीय इंदिरा जी अमेरिका की सरकारी यात्रा पर गयीं उन दिनों अमेरिका उत्तरी वियतनाम से युद्ध में फंसा था वियतनाम ने गरीब मुल्क होते हुए भी अमेरिकन शक्ति का डट कर मुकाबला किया पूरे विश्व में अमेरिका की छवि खराब हो रही थी . अमेरिकन राष्ट्रपति जानसन 35 लाख टन गेहूँ और एक हजार मिलियन डालर की सहायता के बदले इंदिरा जी से अपने पक्ष में स्टेटमेंट दिलवाना चाहते थे ‘अमेरिका का वियतनाम में उठाया गया कदम उचित है’ राष्ट्रपति को विश्वास था इंदिराजी मजबूरी में उनके पक्ष में स्टेटमेंट दे देंगी इंदिरा जी ने राष्ट्रपति जानसन को साफ़ इंकार कर दिया अमेरिकन राष्ट्रपति ने भी मदद से हाथ खीँच लिया .
भारत कृषि प्रधान देश है .देश के आर्थिक विकास के लिए पंच वर्षीय योजनाओं की शुरुआत की गयी प्रथम पंच वर्षीय योजना में कृषि विकास पर अधिक जोर दिया गया था .स्वर्गीय प्रधान मंत्री शास्त्री जी की कोशिश थी हरित क्रान्ति द्वारा कृषि की स्थिति में सुधार किया जाये उस समय का प्रचलित नारा था जय जवान जय किसान . शास्त्री जी की मृत्यू के बाद देश की प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने भी हरित क्रान्ति पर जोर दिया नयें संकर बीज बोये गए जिनसे गेहूं की भरी बालियाँ आती राज्य द्वारा किसानों को बिजली पानी खाद और कम व्याज पर कर्ज देने की शुरुआत हुई कृषि में सरकारी निवेश भी तेजी से बढ़ा धीरे -धीरे देश में अनाज के भंडारण बढ़ने लगे आगे जाकर न्यूनतम कृषि मूल्य का निर्धारण कर किसानों से उनकी फसल खरीदी जाती है . हर सरकार की कोशिश रही हैं किसानों की आर्थिक स्थिति सुधरे किसानों को सस्ते ब्याज पर ऋण देना चुनाव के दिनों में किसानों के वोटों को आकर्षित करने के लिए ऋण माफ़ी का भी आश्वासन दिया जाता है .
देश में अधिकतर छोटे किसान हैं उनके पास दो बीघा से पाँच बीघा ही जमीन है .बैको में सस्ते ब्याज पर ऋण की व्यवस्था है लेकिन इनका लाभ बड़े किसान उठा लेते हैं गरीब किसान यह रास्ता नहीं जानते अत :बुआई के समय साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है , ऋण एवं उस पर ब्याज का बोझ बढ़ता रहता है कई परेशान किसानों ने आत्म हत्या कर ली . सरकारे कोशिश करती रही लेकिन खेती लाभ का सौदा नहीं रहा कभी – कभी लागत भी नहीं निकल पाती कर्ज के बोझ से दबे किसानों को आढ़तियों को सस्ते दामों पर अपनी फसल बेचनी पड़ती है. कर्ज के बोझ से परेशान कई किसान आत्महत्या कर चुके हैं .
केवल कृषि आधारित इकोनोमी से देश का विकास सम्भव नहीं था देश में नौजवानों के लिए नये रोजगार के अवसर पैदा करना बहुत आवश्यक था इसलिए स्वर्गीय श्री नरसिंह राव ने श्री मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाया उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेशकों के लिए खोल कर अर्थव्यवस्था को मजबूत किया. उन्हीं दिनों विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम रह गया था 47 टन सोना इंग्लैंड एवं जापान के बैंक में गिरवी रख कर प्राप्त डालर से कच्चा तेल विदेशी कर्ज की अदायगी की गयी थी .आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत से रोजगार के अवसर बढ़े .
कृषि का विषय समवर्ती सूची के अंतर्गत आता है इस पर राज्य सरकारें एवं संसद दोनों को कानून बनाने का अधिकार है लेकिन संसद द्वारा बने कानून के बाद संसद का कानून प्रमुख माना जाता है मोदी सरकार ने भी किसानों के कल्याण अनेक योजनायें बनायीं . यह तीनों कृषि कानून संसद द्वारा पास किये लेकिन पंजाब ,कुछ हरियाणा क्षेत्र एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान कानून समाप्त करने की जिद पर अड़े किसान राजधानी को घेर कर बैठे है.
सरकार एवं किसानों के बीच ग्यारह दौर की वार्ता भी हो चुकी हैं सरकार किसानों द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को स्वीकृति दे चुकी है फिर भी किसान चाहते हैं पहले तीनों कानून निरस्त हों उसके बाद उनकी मांगे पूरी की जायें किसान फैसला भी कर लें लेकिन राजनीतिक दलों को किसानों में अपना एक मुश्त वोट बैंक दिखाई दे रहा है किसानों के सहारे बहुमत की सरकार को उखाड़ना चाहते है. कुछ किसान नेता जैसे राकेश टिकैत अपने आपको चोधरी चरण सिंह के समान नेता स्थापित करने में लगे हैं रोज मीडिया में स्टेटमेंट देना , नये- नये पोजों में फोटोशूट के वीडियो प्रसारित करना ,अब संसद तक मार्च निकालेंगे , महापंचायतें बुलाना कृषि कानून क्या है? यह न समझा कर केवल उनका डर दिखाना ,अब किसानों की समस्या को सुलझाने के बजाय देश की हर समस्या पर लीडरी कर रहे हैं और भी दो तीन लीडर उन्हीं के नक्शे कदम पर चल कर उग्र भाषा में सरकार को डराने का अभिनय करते नजर आते हैं .टिकैत जन प्रिय लीडर बनेंगे या नहीं यह समय बताएगा .
अब तो बार्डर पर बैठे किसान भी परेशान हैं नित्य नये फरमान आन्दोलन को लम्बा खींचने की कवायद नये कार्यक्रमों की घोषणा फिर फ्लाप शो . नया फरमान रोज दोहराया जाता है देश के किसानों को ट्रैक्टरों में डीजल भर कर तैयार रहें जब वह हुक्म दें दिल्ली की और चल दें कितने ? चालीस लाख वह मोदी सरकार पर अहसान कर रहे हैं अभी उन्होंने गद्दी त्यागों का नारा नहीं दिया .
किसान आन्दोलन में खलिस्तान एंगल भी आ चुका है विदेशों में किसानों को निरीह दिखाया जा रहा है . बामपंथियों की अलग राजनीति , नक्सलाईट अपने बंदियों को जेल से आजाद करवाने के लिए पोस्टर बैनर दिखा रहे हैं कुछ 26 जनवरी के अपराधियों के समर्थक बने हुए हैं अब तो किसानों को गर्मी में ऐसी कूलर में बैठ कर आराम दायक आन्दोलन का प्रलोभन दिया जा रहा है .प्रियंका वाड्रा उत्तरप्रदेश में खाप पंचायतों में अपने प्रवचन द्वारा किसानों को आकर्षित कर रही हैं जनता उनका वोट बैंक बनेगीं या नहीं यह समय बताएगा .राहुल गांधी की पुरानी रट अडानी अम्बानी शायद उन्हें उनसे चुनाव के लिए मोटा चंदा चाहिए . किसानों के हित में किया गया आन्दोलन जनता की सहानुभूति भी खोता जा रहा है. लोग आन्दोलन के समाचार देखने सुनने के बजाये सीरियल देखना पसंद करते हैं .