दिल की आवाज भी सुन, लेकिन... आज फिर दिल ने एक तमन्ना की, आज फिर दिल को हमने समझाया.... इतना आसान नहीं होता दिल को समझाना. लेकिन यह ज़रूरी है .हर वक़्त दिल की बात सुनने से परेशानी बढ़ सकती
“ये हॉस्पिटल की दवाइयां की बदबू मुझे बिलकुल पंसद नहीं और पता नहीं ये संचित भी कहां चला गया,,, नंबर बस आने ही वाला है,,,” “मिस्टर शेखर आप अंदर चले जाइये,,,” नर्स ने 65 साल के शेखर बोस को आवाज
अजीब गुनाह है ना लड़की होना भी। सारी उम्र पाबंदियों में ही निकल जाती है कि ये मत करो, वो मत करो। यहाँ मत जाओ, वहाँ मत जाओ। ऐसे खाओ, ऐसे कपड़े पहनो। ऐसे बात करो, ऐसे बैठो बगैरह बगैरह। और इतने सब के बाद भ
रमाकांत गोस्वामी और उनकी पत्नी उर्मिला बस से उतरकर धीरे धीरे कदमों से सामने के सोसाइटी में जाते है , उनके हाथों में एक एड्रेस था ,जिसमे उनके बड़े बेटे विनय गोस्वामी का पता था , ,*"!! उनकी
रीवा के कलेक्टर ऑफिस में आज बड़ी सजावट हो रही थी, आज नई कलेक्टर साहिबा का आगमन होना था , वह दिल्ली से यहां ट्रांसफर हुई थी , सुनने में आया था की वह बहुत साफ सफाई पसंद ,तेज तर्रार और स्ट्रिक्ट थी
मनुष्य के जीवन में मनुष्य के अलावा जानवर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दुनिया में मनुष्य की नीयत चाहे बदल जाये लेकिन जानवर अपनी नीयत कभी भी नहीं बदलते हैं । वे अपने मालिक प्रति पूरी इमानदारी और
नमस्कार स्वागत है आपका है ,मैं राहुल दवे (rk के अल्फ़ाज़) हाजिर हूँ आपके सामने एक नया अध्याय लेकर।। जैसा कि पिछले भाग में आपने जाना था कि कैसे हेजल ने अपने पिता को बंधक,विवशता में देखा था और कैसे
तरुण की कार दुर्घटना के बाद.....हेज़ल टूट चुकी थी ,उसे लग रहा था कि तरुण की मौत की वजह वो है ।। तरुण की मौत के बाद....अविनाश ने उसका ख्याल रखना शुरु किया ,विवाह तो दोनों का हो ही चुका था म
मनीषा बड़ी तेज़ी से जा रही थी , आज उसे कॉफी हाउस पहुंचने की बहुत जल्दी थी , कई रिक्शे वाले को हाथ दिखाया पर कोई कॉफी हाउस जाना ही नही चाहता था जैसे कॉफी हाउस में कर्फ्यू लगा हो ,जो रुकते वह भी&n
सरकार ने जब सोचा क्यों उन पांचों भाइयों की संपत्ति पर कब्जे में कैसे कर पाऊंगा तो उसने वृकुटी को बुलाया और अपने पास उसे नौकर बना कर रख लिया कुछ समय बीतने पर उसने अपने मन में मनगढ़ंत कहानियां बना
मिठाईवाला इस नाटक की कहानी बाप और बेटे के रिश्ते पर आधारित होती है | इस कहानी में जगन एक मिठाईवाला होता है | वो अपने बेटे से हर वक़्त कॉलेज में बारे में पूछता है लेकिन वो हर बात को नकार देता है | एक दि
स्वामी और उसके दोस्त की कहानी अगर आप आज भी देखेंगे तो 80 के दशक में जन्मे लोगो को अपने बचपन की याद आयेगी | स्वामी को देखकर आपको अपने बचपन वो हर किस्सा याद आ जाएगा जिसे आप भूल गये थे कि किस तरह स्कू
बातूनीराम ने कहना शुरू किया : बहुत सालों तक मालगुडी के लोगों को पता ही न था कि यहाँ कोई म्युनिसपैलिटी भी है। और इससे क़स्बे का कोई नुक़सान भी न था। बीमारियाँ अगर वे शुरू भी होतीं, तो कुछ दिन बाद ख़ुद ही
डॉ. रमन के पास मरीज बीमारी के आखिरी दिनों में ही आते थे। वे अक्सर चिल्लाते, ‘तुम एक दिन पहले क्यों नहीं आ सकते थे?’ इसका कारण भी साफ थाः डॉक्टर की बड़ी फीस और इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण बात यह कि कोई
मदन की नयी नयी नौकरी लगी थी ।एक छोटे से कस्बे मे।उसने दलाल से कह कर अपने लिए एक कमरा किराए पर लेने की बात की।छोटे कस्बों मे घरों के अंदर ही एक कमरा किराए पर दे दिया जाता है ऐसे ही एक दलाल ने मदन को यह
वो अल्फाज ही होते हैं ना! जो कभी जख्म देते हैं और कभी मरहम का काम करते हैं। कभी खंजर से भी पैने होते हैं और कभी मखमल से भी मुलायम। अल्फाज तो वही हैं। कुछ बदलता है तो बस बोलने का तरीका और बोलने वा
सम्मान तो हर तरह का ही कीमती होता है लेकिन इनमें सर्वोपरि है-आत्मसम्मान। आत्मसम्मान को चोट लगती है ना तो इंसान बौखला जाता है । आत्मसम्मान पर ठेस के कारण ही अम्बा ने शिखंडी बनकर पितामह भीष्म से बदला लि
मेरे जीवन मे बहुत सी ऐसी घटना हुई है जहां मुझे चैलेंज किया गया है कि मैं जीत नहीं पाऊँगी या ये जताया गया है कि मुझमे क़ाबिलियत नहीं है और कई बार परिस्थिति बिल्कुल मेरे विरोध में रही है और मैंने भी ह
अपनी खिड़की से मैं रोज उस बच्चे को देखता था। गली के उस पार वो रहता था। उसका पिता या तो उसे छोड़कर चला गया था या मर गया था। उसकी माँ ही उसकी देखभाल करती थी। वो एक समर्पित माँ थी। माँ के जाने के बाद वो अप
*समय बड़ा बलवान* (लघु कथा ) स्टील प्लान्ट के एक बड़े पद से रघु सेन को रिटायर हुए कुछ महीने ही हुए हैं । उन्होंने अपनी नौकरी बड़ी ही जिम्मेदारी से पूर्ण किया है । भ्रष्टाचार के दंश से वे बहुत द