नई दिल्ली : भारत को लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति मिलने जा रही थी. स्वतंत्रता की तारीख (Independence Day) मुकर्रर हो गई थी. देश में हर तरफ जश्न का माहौल था, लेकिन जैसे-जैसे यह तारीख (15 अगस्त) नजदीक आती जा रही थी दिल्ली के वायसराय हाउस में माउंटबेटेन के चेहरे पर शिकन भी बढ़ती जा रही थी. इस शिकन की बड़ी वजह भारत के बंटवारे के बाद पैदा हुए हालात तो थे ही, लेकिन उससे कहीं ज्यादा चिंताजनक था दोनों देशों के बीच संपत्तियों का बंटवारा. भारत और बंटवारे के बाद एक नए मुल्क की शक्ल लेने वाले पाकिस्तान के बीच संपत्तियों के विभाजन को लेकर कोई सहमति ही नहीं बन पा रही थी. इधर ज्यों-ज्यों आजादी की तारीख नजदीक आती माउंटबेटेन की चिंता भी बढ़ती जाती. तमाम मशक्कत-मशविरे के बाद जब कोई हल नहीं निकला तो संपत्तियों के बंटवारे के लिए दो लोगों को चुना गया.
बंटवारे का जिम्मा एक हिंदू और एक मुसलमान को मिला
माउंटबेटेन ने दोनों देशों के बीच संपत्तियों के बंटवारे की जिम्मेदारी जिन दो लोगों को देने का निर्णय लिया वे संबंध विच्छेद के मुकदमे में दोनों पक्षों के वकील की हैसियत रखते थे. दोनों बेहद अनुभवी अधिकारी थे. एक जैसे सरकारी बंगले में रहते थे. एक जैसी शेवरलेट गाड़ियों में दफ्तर जाते थे. और दफ्तर चंद कदम की दूरी पर था. इनमें से एक हिंदू था और दूसरा मुसलमान. ये दोनों शख्स थे चौधरी मुहम्मद अली और एच एम पटेल.
दोनों को बंटवारे के लिए कमरे में कर दिया गया बंद
बंटवारे के लिए दो शख्स तय तो कर दिये गए, लेकिन अभी भी जो सबसे बड़ी दिक्कत थी वो ये कि आखिर कर्जे की रकम का भुगतान कौन करेगा. अंग्रेजों के उपर करीब 5 अरब डॉलर का कर्ज था. दोनों देशों के बीच तकरार भी यही थी कि आखिर इस रकम का भुगतान कौन करेगा. यह विवाद इतना ज्यादा बढ़ गया कि एच एम पटेल और चौधरी मुहम्मद अली को सरदार पटेल के घर के एक कमरे में बंद कर दिया गया और तय हुआ कि जब तक वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंचते हैं तब तक उन्हें वहीं रहना पड़ेगा. डॉमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स अपनी मशहूर किताब 'फ्रीडम एट मिडनाइट' में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि रेहड़ी-पटरी वालों की तरह मोल-तोल और कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिर दोनों इस नतीजे पर पहुंचे कि बैंकों में मौजूद नगद रकम और अंग्रेजों से मिलने वाले पौंड-पावने का 17.5 प्रतिशत हिस्सा पाकिस्तान को मिलेगा और भारत के ऋण का 17.5 हिस्सा वह चुकाएगा.
सोफे से लेकर कमोड तक बंटे
बंटवारा सिर्फ देश का ही नहीं हुआ, सोफा, कुर्सी, मेज, कमोड, साइकिल और पानी पीने के जग का भी हुआ. और इन सामानों के बंटवारे के वक्त दोनों देशों के अधिकारियों के बीच बाकायदा लड़ाईयां तक हुईं. डॉमिनिक लॉपियर व लैरी कॉलिन्स लिखते हैं कि विभाग के बड़े अधिकारियों ने अच्छे टाइपराइटर तक छिपा दिये. कलमदान के बदले पानी का जग और हैट के बदले खूंटी स्टैंड तक बदला गया. सबसे ज्याजा जूतम-पैजार तो छूरी-कांटो को लेकर हुई. हां...एक चीज पर कोई बहस नहीं थी या यूं कहें कि पाकिस्तान को यह चाहिये ही नहीं था. वह थी शराब. बंटवारे के वक्त शराब भारत के हिस्से में आई और पाकिस्तान को उसके बदले पैसे दिये गए.